हडसन तट का ऐरा गैरा - 21 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 21

ऐश ने हडसन नदी में छोटी- बड़ी, रंग - बिरंगी नावें और जहाज देखे तो खूब थे पर किसी विशालकाय जहाज पर सवार होने का मौक़ा उसे पहली बार ही मिला था। उसका ध्यान दाना- पानी से ज़्यादा इस खूबसूरत जहाज को देखने पर अधिक था।
उसने देखा कि जहाज के पिछवाड़े की एकांत सुनसान सीढ़ियों पर एक बहुत उम्रदराज महिला सफ़ाई कर रही है। शायद वो जहाज के भोजन कक्ष की मेजों पर बिछे रहने वाले कवर वहां धोने के लिए लाई थी। एक बड़ी सी मशीन में उन्हें डाल कर वो सीढ़ियों की सफ़ाई में जुटी थी।
ऐश का दिल किया कि उस महिला की कोई मदद न भी कर सके तो कम से कम उसे इस परिश्रम के लिए धन्यवाद ज़रूर दे। लोग खाना खाते समय खाने के स्वाद में इतने खो जाते हैं कि उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहता। खाना गिर रहा है तो गिरे, सूप फैल रहा हो तो फैले। उनकी बला से!
लेकिन ये वृद्ध महिला तन्मय होकर एक- एक दाग को धोने - पौंछने में लगी हुई थी।
ऐश ने जाकर धीरे से कहा - गुड मॉर्निंग मैम!
महिला ने चौंक कर उधर देखा और बोली - शुभ दिन प्यारी चिड़िया।
उसे इस तरह प्रेम से पेश आते देख कर ऐश का हौसला बढ़ा। ऐश ने उससे बातचीत कर उसका मन बहलाना चाहा, बोली - आप इतनी मेहनत क्यों कर रही हैं? क्या आपका यहां कोई मददगार नहीं है?
- आई लव दिस! मुझे काम से प्यार है। मेरा मददगार तो ऊपर बैठा है, वो देखो। कह कर बुढ़िया ने आसमान की ओर इशारा किया।
- ओह, तो ये है प्यार। ऐश ने सोचा।
उसे अचंभा हुआ। वो सोचने लगी कि देखो, प्यार में कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होना ज़रूरी नहीं, प्यार किसी से भी हो सकता है। काम से भी।
तभी एक मोटा सा ठिगना आदमी सीढ़ियों से खट - खट करता हुआ आया और महिला की ओर देख कर बोला - जल्दी करो सिस्टर, अभी चादरें भी हैं... हरिअप!
वह आदमी लौटने के लिए पलटा ही था कि बुढ़िया की आवाज़ आई - क्या मुसीबत है! सांस लेने की भी फुर्सत नहीं। देखना, छोड़ दूंगी सब!
ऐश को लगा कि ये प्यार नहीं, ये तो शायद इन बूढ़ी अम्मा की मजबूरी है...बेचारी।
ऐश अनमनी सी होकर वापस लौट चली। वैसे भी उसके समूह- साथी लोग अब उड़ चलने के लिए पर तौलने लगे थे।
हल्की बारिश होने लगी थी। ऐश अपने दल के साथ जहाज की विपरीत दिशा में उड़ चली। ठंडी हवाएं मानो हाथ हिला कर इन यायावर परिंदों को अलविदा कह रही थीं।
इस विश्राम के बाद उड़ने में आनंद आ रहा था। खुशनुमा मौसम में उड़ते हुए ऐश को महसूस हुआ जैसे उसकी परवाज़ अपने आप ही हो रही है, उसे कोई श्रम नहीं करना पड़ रहा। ऐसे में उसका ध्यान इधर- उधर की बातों पर जाने लगा।
उसने देखा वो बुजुर्ग से बगुलाभगत जिनसे उसने चाचा कह कर बात की थी वो बार - बार पीछे रह जाते थे। ये शायद उनकी उम्र का तकाज़ा था।
लेकिन फिर भी ऐश ने उनके हौसले की दाद दी कि वो हिम्मत करके युवाओं के इस दल के साथ चले तो आए।
कहते हैं कि बुजुर्ग लोग अनुभव का खज़ाना होते हैं। कई बार युवाओं के पास जोश तो होता है पर मुसीबत आने पर केवल जोश काम नहीं आता, ऐसे में कोई न कोई अनुभवी इंसान ही उन्हें राह सुझाता है।
"हाथ कंगन को आरसी क्या", ऐश ने अभी खुद ही देखा था कि इन बुजुर्गवार चाचा ने ही तो ऐश को इंसानों से दूर रहने की सलाह दी थी। ठीक तो है, जो लोग राशन ख़त्म होने पर परिंदों को भून कर खा जाने का इरादा रखें, उनसे कैसी यारी- दोस्ती!

ऐश को उन बूढ़े चाचा पर श्रद्धा सी हो आई। उनकी बदन तोड़ मेहनत पर दया भी आने लगी। उसने मन ही मन ये सोचा कि जब भी आगे कहीं विश्राम करने के लिए रुकेंगे तो वो उनके पंख सहला देगी। बुजुर्गों की सेवा- टहल करने से तो आशीर्वाद ही मिलता है, इसमें कैसा संकोच! देखो, बेचारे कैसे सबके साथ- साथ उड़ पाने की कोशिश कर रहे हैं। बार - बार सांस फूल जाता है।
बारिश अब बंद हो चुकी थी। पानी की बूंदों से धुल जाने से सभी के पंख साफ़ होकर चमचमा रहे थे।
ऐसा लगता था जैसे साफ़- सुथरे नहाए - धोए पंछियों की कोई बारात जा रही हो।
ऐश अपनी इस कल्पना पर ही शरमा गई। उसे रॉकी याद आने लगा। बेचारा उसके दरवाज़े पर बारात लाने का कितना ख्वाहिशमंद था।