ब्रह्मांड और आदमी अशोक असफल द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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ब्रह्मांड और आदमी

इस असीम ब्रह्मांड में
यह धरती तिल भर से ज्यादा नहीं
और न क्षण भर से ज्यादा
उसका समय

इस विराट धरती के मुकाबले
तिल भर भी नहीं मैं
और न क्षण भर भी मेरा समय

फिर भी मैं मूरख
पूरी धरती को कब्जाने में लगा हूं
सूरज से बड़ी उम्र पाने के धोखे में।

●●


सच जिंदा रहेगा

इरादा बड़ा है तीस्ता का
सरकार की सम्प्रभुता से
संकल्प बड़ा है
कठपुतली कानून से
और दिल गुजरात जेल से

क्योंकि उन्हें पता है-
सामने वाला जर्नल डायर से ज्यादा शक्तिमान नहीं
एस सी भारतीय है
अंग्रेज बहादुर की अदालत नहीं
और यह जेल लाहौर सेंट्रल जेल नहीं

जब भगतसिंह ने माफी नहीं मांगी
तीस्ता क्यों मांगें
माफी तो सावरकर के अनुयायी मांगते हैं
सुकरात तो जहर पीते हैं
गैलीलियो तो फांसी पर चढ़ते हैं!

●●


तो आपसे कुछ नहीं कहना

अगर आप फासिस्टों के साथ हैं
तो आपको दलित पिछड़ा या आदिवासी नहीं समझा जाएगा
फासिस्ट ही समझा जाएगा

अगर आप फासिस्टों के साथ हैं
तो आपको अल्पसंख्यक आस्तिक या नास्तिक नहीं समझा जाएगा
सिर्फ और सिर्फ फासिस्ट ही समझा जाएगा

अगर आप फासिस्टों के साथ हैं
और बेशक दयालु हैं
बेशक मानवीय हैं
ब्रॉड माइंडेड हैं
लेकिन आपको क्रूर अमानवीय और नैरो माइंडेड ही समझा जाएगा

अगर आप फासिस्टों के साथ हैं
तो आपकी पहचान आपकी अपनी नहीं है
उन्हीं की जो पहचान है वह आप पर काबिज होगी
और आप वही करेंगे
जो वे करते हैं
वैसे ही बनेंगे
जैसे वे हैं

दुष्ट
धूर्त और
हृदयहीन।

●●


हत्यारों का राज्य

किसने सोचा था कि एक दिन
हत्यारों का राज्य आ जाएगा!
किसने सोचा था एक दिन
क्रूर और निर्मम लोगों का शासन होगा!
किसने सोचा था कि हम एक दिन
लुटेरों के चंगुल में होंगे!
वे मारेंगे और रोने भी नहीं देंगे!

वे अधर्मी धर्म की आड़ में आएंगे!
घोर अनैतिक वे नैतिकता को ओट में छुप जाएंगे!
देश के दुश्मन राष्ट्रवाद का चोला ओढ़कर आएंगे!
रेहन रख देंगे हमें समूचा और
बेचकर खा जाएंगे!
और ताज्जुब कि
साहित्यकार उन्हीं के गुण गाएंगे!
सारे अखबार भाट बन जाएंगे!

धूर्तों के उकसावे पर लोग
अपना ही खून बहाएंगे!
वे हर युग में आए थे!
वे हर युग में आएंगे!
लेकिन हम मूर्खानंद
उन्हें कभी नहीं पहचान पाएंगे!

●●


औरंगजेब_का_पुनरागमन

बच्चा स्कूल से लौटकर बोला-
पापा, मैं हिंदुओं का औरंगजेब बनूंगा

सुनकर मैं चौंक गया
मैंने उसे गौर से देखा
उसका चेहरा तमतमाया हुआ था

पूछा-
तुमने ऐसा फैसला क्यों लिया?
बोला-
औरंगजेब ने जिस तरह हिंदुओं और सिखों पर जुल्म किया
उनका धर्मांतरण कराया
मैंने प्रतिज्ञा ली है
हिंदुओं का औरंगजेब बनूंगा!

मैंने उसे फिर गौर से देखा
और गुस्से में बोला-
इसका मतलब, तू
विधर्मियों का कत्ल कर
उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर करेगा?

उसने कहा- हां,
हां पापा, मैं ऐसा जरूर करूंगा!
मैं उन पर खूब जुल्म करूंगा!
खानाबदोश बनाके छोडूंगा!

गुस्सा, सातवें आसमान पर पहुंच गया...
मैंने उसे कसकर तमाचा मारते,
हाँफते-चीखते कहा-
दुष्ट! तू इतिहास दोहराएगा?
कितनी मुश्किल से हम/ हमारी पीढ़ियां
आदमी को बर्बर पशु से मनुष्यता तक खींचकर लाये...
और तू फिर उसे जानवर बनाएगा?
अरे मूर्ख, तू औरंगजेब क्यों बनेगा?
अकबर क्यों नहीं बनेगा?

चोट खाकर भी वह रोया नहीं
तमतमाया चेहरा लिए पैर पटकता हुआ
अंदर के कमरे में चला गया...
और स्कूल में दिखाए गए नाटक के डायलॉग
मुट्ठियाँ बाँध कर बोलने लगा!

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न्याय_मर_जाएगा...बुरा_होगा

कौन है यह तिरासी साल की बुढ़िया
जिसकी प्रार्थना सर्वोच्च अदालत ने खारिज करदी?
नहीं देखा कि कैसे वह
बीस साल पहले
दंगाइयों से अपनी जान बचाती
अहमदाबाद से तीन दिन में
तीस किलोमीटर पैदल चलकर
गांधीनगर पहुंची?

किस बात का इंसाफ चाहती थी वह
जो उसने सोलह साल पहले
न्याय के दरवाजे पर दस्तक दी!
और जिसे न्यायमूर्ति ने ठुकरा दिया...
जबकि देश के प्रधान सेवक कह चुके थे कि-
राजधर्म का पालन हो!
मगर उन्होंने खुद अपने गवर्नर से रिपोर्ट नहीं मांगी!
शायद, उनमें अपने ही राज्य के प्रधान सेवक को नाराज करने का साहस न था!

बाद में देश के बदले हुए प्रधान सेवक
जिन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए
ना उन्होंने
और ना उनके दो मंत्रियों ने
मामले में कोई रुचि दिखाई...
अदालती कार्यवाही ने जरूर एसआईटी गठित कराई
मगर उसकी क्लोजर रिपोर्ट पर मोहर लगाई,
फिर शीर्ष अदालत ने भी!
और एक तिरासी साला बेवा बुढ़िया को सिरे से निराश कर दिया...
जिसकी आंखों के आगे
उसके पति को मार
उसकी लाश सहित अड़सठ और जिंदा जला दिये!

राजतन्त्र में भी न्याय शायद,
ऐसा न होता!
वह पूछता जरूर कि-
हत्यारे किस सातवें आसमान से आए
और किस चौदहवें पाताल में चले गए?

मुझे तिरासी साला ज़किया ज़ाफ़री की आस टूटने का गम नहीं
वह आज नहीं तो कल मर ही जाएगी!
पर न्याय मर जाएगा...
यह तो एक देश
एक कौम
एक व्यवस्था
और एक धर्म/संस्कृति के लिए बुरा होगा!

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