Bandh Khidkiya - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

बंद खिड़कियाँ - 22

अध्याय 22

सरोजिनी का शरीर सुबह उठी तब एक नया खून आया जैसे उत्साहित था। मन के अंदर नहीं समा पा रहीं ऐसी एक खुशी मुंह और होठों पर चमक रही थी।

उसने अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर अंगड़ाई ली। उसकी दोनों आंखें अभी तक एक खुशी में डूबी हुई थी।

"क्या हो गया तुम्हें?" ऐसा अपने आप से ही उसने पूछा।

"बहुत बड़ी बात हो गई" अपने आपको जवाब दिया। पिछली रात की यादें गुलाब जल की वर्षा में भीगे है जैसे उसे याद आने लगी। एकदम से लाखों-लाखों फूल खिले। उसकी खुशबू से उसका जी भर गया।

जिन बातों को महसूस नहीं किया, जिसे वह भूल गई थी, जिसे उसने अनुभव किया उस आनंद के होठों पर एक ज्ञान की मुस्कान खिली।

"वीणा को बजाने से ही स्वर आएंगे तोड़ोगे तो आएगा?"

वह स्वयं मुस्कुराई। "आ, उसका मतलब अभी समझ में आया" अपने आप से बोली।

वह साधारण गाना नहीं था। वह गंधर्व का गाना कभी जो सुना नहीं अति कर्णप्रिय बड़े सुंदर लोगों द्वारा गाया गया बहुत ही प्रिय लग रहा था। पंख लगा कर उड़ने जैसा एक आनंद था वह। एक साथ कई इंद्रधनुष आकाश में आएं तो जो खुशी होगी ऐसी सुखाअनुभूति हुई। कोई दुख नहीं। कोई डर नहीं। एक सत्य को लेकर की गई एक यात्रा थी। 

वह धीरे से खिड़की के पास जाकर बगीचे को देखा। स्लेटी रंग के ओढ़ने का सवेरा अभी भी ढका हुआ था। पक्षी सुबह होने से पहले ही कलरव कर रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे वे सवेरे के स्वागत कागान कर रहे हो। चमेली, गुलाब और मोगरा सबकी महक से वातावरण भर गया। अभी तक क्यों नहीं देखा इतना सुंदर सवेरे का उदय उसे बहुत अच्छा लगा। एक लक्ष्य को ढूंढ कर जाने वाली यात्रा फिर.....

वह हमेशा की तरह फुर्ती से उठकर नहाने के लिए कुएं के पास जाकर दांत साफ करके नहा कर आई। चूल्हा जलाकर कॉफी के लिए पानी रखते समय रसोई के दरवाजे के पास दिनकर सिर झुका कर खड़ा था।

"मैं रवाना होता हूं" जमीन को देखते हुए बोला।

"क्या कॉफी पिए बिना? वह हंसते हुए प्रेम सेबोली। "नहीं जी" वह बोला अभी भी उसने सिर नहीं उठाया। "पूरा सवेरा होने के पहले ही घर से रवाना होना अच्छा रहेगा..."

"नहीं तो आफत"

"किसे?"

मैंने एकदम से उसे सिर उठाकर देखा। उसकी आंखों में हल्का सा आश्चर्य दिखा। फिर असमंजस में सर झुका कर धीमी आवाज में बोला "दोनों के लिए। कल जो घटना घटी उसके लिए दोबारा आपसे माफी मांगता हूं।"

वह बड़ी तसल्ली से भीगें स्वर में बोली "आपको माफी मांगने की जरूरत नहीं। आप यही सोच रहे हैं गलती हो गई तो उस गलती के लिए मैं भी तो जिम्मेदार हूं।"

वह असमंजस के साथ उसे देखा।

"अभी भी यह गलत है आपको नहीं लग रहा है?"

"नहीं" वह निर्णय के साथ बोली। यह विवाद करने का विषय नहीं है ऐसा कहने जैसे उसने एक एल्मुनियम के लोटे को उठाकर उसे दिया।

"दूध दोहना आता है? गौशाला में सफेद गाय है उसका दूध थोड़ा दोहकर ले आइएगा। ग्वाले के आने में देर होगी। बढ़िया कॉफी बना कर दूंगी, पूरा सवेरा होने के पहले ही आप रवाना हो जाएंगे।"

वह दूसरा रास्ता ना होने के कारण रवाना हुआ तो उसे देख वह व्यंग्य से हंसी। उसे देख उसके चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान दौड़ गई।

नई नवेली अपनी गृहस्थी शुरू करने जैसे बड़े उत्साह के साथ खोलते पानी में कॉफी का पाउडर डालकर डिगाशन तैयार किया।

सिर्फ 5 मिनट में वह दूध दोहकर लाकर दिया।

"हां! आप बहुत फुर्तिले हैं उसने तारीफ की।

रसोई के पास वाले बरामदे में बैठा।

"आप भी उसी फुर्ती से कॉफी बना कर दे रही है क्या?"

"हां दूंगी!" वह हंसते हुए कहकर अगले ही क्षण भाफ निकल रहे कॉफ़ी लाकर दिया।

"बढ़िया !" उसने तारीफ कर उसे देख मुस्कुराया।

"चूल्हा भी आपका कहना मानता है। कॉफी फर्स्ट क्लास है आप नहीं पी रही हैं क्या।"

"मैं आराम से पीऊंगी ।"वह बोली।

"बहुत धन्यवाद"बोला "फिर मैं चलता हूं। दरवाजा बंद कर लीजिए।"

उसे जल्दी-जल्दी जाते हुए देखकर फिर उसने दरवाजा बंद किया।

15 मिनट बाद ही ग्वाला दूध दोहने आया।

"क्यों अम्मा आप अकेले ही हो? मरगथम के घर के दरवाजे पर ताला लगा है। दुख के साथ वह पूछा।

"क्या करें?" वह बोली "मरगथम के पिताजी का देहांत हो गया इसीलिए सब लोग रवाना होकर चले गए। अकेली ही हूं।"

"गलत है!" दुख के साथ वह बोला, "साहब के आने तक मैं अपनी पत्नी को रात में यहां सोने के लिए कहूंगा।"

"ऐसा ही करो"सरोजिनी बोली । माली आया तो मरगथम नहीं है ऐसा कहकर उसने अपनी पत्नी को लेकर आऊंगा बोला।

शडैयन की मौत के बारे में, काम करने वालोंमें से किसी ने भी उससे इसके बारे मेंबात नहीं की क्योंकि वे भीतोडर रहे थे उसे ऐसा लगा उसका अनुमान सही है ऐसा सोच उसके मन में समाधान ना हो सकने वाला गुस्सा उबलने लगा ‌। कितना अहंकार होने पर उसने ऐसा एक अन्याय कर ऊपर से मुझे मारकर हंसने के लिए उसमें कितनी नीचता होगी?

वह दृश्य उसके आंखों के सामने दिखने से गुस्सा और नफरत से वह उबलती है। तुम्हें क्या अधिकार है मुझे अपमानित करने का? मैं तुम्हारे आधीन हूं यह सोच?

मैं तेरी आधीन नहीं हूं! निश्चित तौर पर तुमने उस नीच के सामने मुझे जो अपमानित किया वह सहन करने लायक नहीं.....

जैसे-जैसे दिन सरकने लगे उसे शडैयन की हत्या से ज्यादा रत्नम के सामने अपमानित होने की बात ही याद रहने लगी।

रात के समय कोनार की पत्नी का खर्राटे लेने से उसकीप्रतिध्वनि (इको) महल में गूंज रही थी तो उसकी आंखों से अश्रु झरने लगते हैं। यदि तुमने मुझसे मनुष्य जैसे व्यवहार किया होता, तो तुम्हारे दोस्त को अपने शरीर सौंपने की हिम्मत नहीं की होती। "गलती हो गई" ऐसा उस सहाब के घबराने जैसा कुछ भी नहीं हुआ। कोई गलती नहीं हुई। तुम्हारे लिए मैं वट सावित्री का व्रत रखूं तू इसके लायक नहीं है...

शादी में गए हुए भीड़ को लौटने तक सरोजिनी के मन में एक धैर्य और एक जिद्द दोनों ही घुस गए थे।

घर लौटने के बाद सरोजिनी की सास और रत्नम दोनों ही सामान्य नहीं थे इस बात को सरोजिनी ने महसूस किया। मुझे क्या लेना-देना ऐसा सोच अपने काम को करते हुए चुप रही।

उस दिन शुक्रवार था। माली ने मोगरे की कलियों को तोड़ कर दिया था| सरोजिनी पिछवाड़े के बरामदे में बैठकर उसकी माला बना रही थी। सामने उसकी सास बाल बनाते हुए बैठी हुई थी।

भगवान के फोटोओं पर माला चढ़ाने के लिए सरोजिनी उठने लगी तो चमचमाती साड़ी में रत्नम दौड़ कर आई।

"उसे यहां दे!" कहती हुई फूल की माला को छीनने लगी।

"अरे, पहले भगवान को चढ़ाना है!"कहकर सरोजिनी ने घबराते हुए मना किया।

"ओहो!" कहकर व्यंग्य से हंसी।

"भगवान इतना फूल मांग रहे हैं क्या ? इतना बहुत है भगवान के लिए कहकर एक छोटा सा टुकड़ा हार का देकर बाकी सब को गोला बनाकर अपने सिर परलगाने लगी, तो सरोजिनी आश्चर्य और गुस्से से बोली "अम्मा इसे देखो, क्या यह सही है?"

"क्या सही क्या गलत ? तुम कौन हो मुझसे पूछने वाली?" रत्नम आंखेँ मटका कर बोली।

नीचे बैठी हुई सास उठी।

"यह देखो रत्नम! तुम्हारे सभी बातें हद को पार कर रहे हैं। भगवान को फूल डाले बिना इस घर में सिर पर फूल नहीं लगाते । इसके अलावा फूल पर तुम्हारे अकेले का ही अधिकार है क्या? बड़ी बहू जिसने फूल दिया उसके यहां रहते हुए तुम कैसे ऊंची हो जाओगी और सारा फूल तुम ही लगाओगी?"

रत्नम व्यंग्य से हंसी।

"मैं महान हूं। आदमी को जिस औरत से प्रेम ज्यादा होता है वही महान होती है। यह इसे भी मालूम है । फूल लगाकर मटकनी की इसेकहाँ जरूरत है।"

सास के चेहरे पर जो गुस्सा दिखाई दे रहा था उसे देख सरोजिनी को आश्चर्य हुआ।"

"तेरे इस तरह मटकनेका क्या फायदा? इसने जो नहीं किया वह तुमने करके दिखा दिया क्या? शादी के घर में कितने लोगों ने पूछा पहली बहू को बच्चे नहीं हुए इसलिए आपने इससे शादी कराई इसके हुआ क्या? मेरा सिर शर्म से झुक गया।"

"शर्म से अच्छी तरह झुका लीजिए!"गुस्से से रत्नम चिल्लाई "बिना वीर्य वाले लड़के को पैदा करके मेरे ऊपर बांझ का दोषारोपण? हमारे घर हर एक के आठबच्चों से कम किसी के नहीं हैं। किसी और से मैंने शादी की होती तो अभी तक मेरे भी पाँचबच्चे हो जाते! बांझ मैं नहीं आपका बेटा है!"

सास का चेहरा एकदम से लाल हो गया सरोजिनी ने बड़ी उत्सुकता से उसे देखा।

"इसको कितना घमंड है तुमने देखा?" सरोजिनी को देखकर वह बोली "इसे जंबू ने सिर के ऊपर बैठा रखा है इसको इसलिए यह भी बोलेगी और भी बोलेगी!"

"बोलूंगी!” रत्नम आगे भी बोली "लड़के को क्यों नहीं किसी डॉक्टर के पास ले जाते हो। तब रहस्य का पता चलेगा!"

सरोजिनी की आंखें और अधिक उत्सुकता से फैली।

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