तीन घोड़ों का रथ - 2 Prabodh Kumar Govil द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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तीन घोड़ों का रथ - 2

देश आज़ाद होने के बाद पहले दशक में अशोक कुमार, भारत भूषण, महिपाल, प्रदीप कुमार, बलराज साहनी, किशोर कुमार, राजकुमार जैसे नायक बेहद सफल और लोकप्रिय फिल्मों के सहारे दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हो गए थे लेकिन जब बात शिखर की हो तो तीन नाम सबसे आगे दिखाई दे रहे थे - राजकपूर, दिलीप कुमार और देवानंद !
राजकपूर को लोकप्रिय, उद्देश्य परक तथा सफल फ़िल्मों के सहारे ये गौरव मिला कि उन्हें अपने समय की सर्वोच्च फ़िल्म शख्सियत कहा जा सके। उन्होंने अभिनय के साथ साथ फ़िल्म निर्माण में भी सर्वोच्च प्रतिमान स्थापित किए। श्री चार सौ बीस,आवारा, अंदाज़, बरसात, चोरी चोरी आदि फ़िल्मों से न केवल फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में नएपन की बयार आई बल्कि राजकपूर ने एक कामयाब फिल्मकार और लोकप्रिय नायक के रूप में जगह बनाई।
एक समय था जब दर्शक उनकी फ़िल्मों का इंतजार किया करते थे। हर बड़ी अभिनेत्री उनके साथ फिल्म करने की ख्वाहिश रखती थी। नर्गिस के साथ उनकी कई फिल्में बेहद सफ़ल हुई और इन दोनों के बीच निजी जीवन में भी निकटता का आगाज़ हुआ जो बाद में परवान तो नहीं चढ़ सका पर फ़िल्मों की दुनिया में एक अमिट छाप छोड़ गया। राजकपूर की संगम, सत्यम शिवम सुंदरम, बॉबी, अराउंड द वर्ल्ड आदि फिल्में दर्शकों के बीच तरह तरह से चर्चित रहीं।
छठे दशक के दौरान हिंदी फ़िल्मों के सिरमौर का ये ताज दिलीप कुमार ने पहना।
"मुगले आज़म" हिंदी रजतपट पर किसी नायक की लोकप्रियता और कामयाबी का एक प्रतिमान है। ज्वार भाटा, अंदाज़, अंजाम, मेला, मुसाफ़िर, आन, अमर, उड़न खटोला,देवदास जैसी फ़िल्मों ने दिलीप कुमार को देश दुनिया के महानतम नायकों में शामिल कर दिया। उनकी संघर्ष, लीडर, नया दौर, राम और श्याम भी लोकप्रिय फिल्में रहीं। इतना ही नहीं, उन्होंने इसके बाद चरित्र अभिनेता के रूप में भी एक सफल पारी खेली और विधाता, कर्मा, इज्ज़तदार, किला, क्रांति जैसी फिल्में दीं। दिलीप कुमार को हिंदी फ़िल्मों का ट्रेजेडी किंग कहा गया। दिल दिया दर्द लिया, गोपी, सगीना, बैराग, कोहिनूर आदि उनकी फ़िल्मों के दर्शकों ने उनके अभिनय के नव रंग देखे और सराहे।
शिखर की लोकप्रियता का ये अंदाज देवानंद ने भी देखा। सदाबहार अभिनेता का खिताब पाए इस नायक की उपलब्धियां भी बेमिसाल हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से ग्लैमर को परदे पर दिखा पाने की काबिलियत देव आनंद के साथ जुड़ी है। काला पानी, काला बाज़ार, बाज़ी, तेरे घर के सामने से लेकर गाइड, ज्वैल थीफ़, दुनिया, हम दोनों, तक आते आते देव आनंद की गिनती चोटी के सितारों में ही होती रही। जॉनी मेरा नाम, हरे राम हरे कृष्ण, वारंट, छुपा रुस्तम, शरीफ़ बदमाश, हीरा पन्ना जैसी अनेक फ़िल्मों ने देव आनंद को लंबे समय तक फ़िल्मों में सक्रिय रखा। अपनी सदाबहार नायक की छवि को कई दशक तक खींच पाने में भी वो कामयाब रहे। बाद के दिनों में अपनी हर नई फ़िल्म में नई तारिकाओं को मौक़ा देने का उनका ज़ुनून कायम रहा। यद्यपि इसका परिणाम यह भी हुआ कि उनकी बाद के दिनों की कई फ़िल्मों में उनकी हीरोइनों हेमा मालिनी, राखी, जीनत अमान, टीना मुनीम (अंबानी) परवीन बाबी आदि को उनकी फ़िल्मों की सफ़लता का श्रेय उनसे भी अधिक मिलता देखा गया।
ये एक आश्चर्य की ही बात कही जायेगी कि उनकी ही तरह लंबे समय तक "सदाबहार नायिका" कही जाने वाली रेखा ने उनके साथ किसी फ़िल्म में काम नहीं किया।