तीन घोड़ों का रथ - 3 Prabodh Kumar Govil द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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तीन घोड़ों का रथ - 3

साठ का दशक शुरू होते- होते फ़िल्मों में विश्वजीत, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, शशि कपूर आदि भी अपनी जगह बनाते हुए दिखे किन्तु टॉप पर अपनी मंज़िल ढूंढने का दमखम जिन नायकों में दिखाई दिया वो मुख्य रूप से राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त और मनोज कुमार थे।
ये गीत- संगीत भरी मादक मनोरंजक फ़िल्मों का ज़माना था। इसी मधुरता के चलते इसे फ़िल्मों का स्वर्ण युग भी कहा जा रहा था। इस युग की अधिकांश फ़िल्मों में साधारण घरेलू जीवन, समाज की रूढ़ियां, हास परिहास, गीत नृत्य, भावुकता भरे प्रेम व बिछोह आदि का बोलबाला ही प्रमुख रूप से होता था। कपट, बेईमानी, हिंसा, मारधाड़ आदि का प्रयोग बस केवल आटे में नमक के समान थोड़ा सा होता था। लोग अपनी दिनचर्या से समय निकाल कर मन बहलाव के लिए फ़िल्म देखने जाते थे और थोड़ी देर के लिए उस काल्पनिक तिलिस्म में खो जाते थे जो उन्हें वास्तविक जीवन में आसानी से हासिल नहीं हो पाता था।
इन दिनों कई पारिवारिक, प्रेम प्रसंगों से भरी मनोरंजक फिल्मों के माध्यम से राजेन्द्र कुमार ने अपनी एक प्यारी सी जगह बनाई। ससुराल, जिंदगी, मेरे मेहबूब, संगम, आरज़ू, सूरज, दिल एक मंदिर जैसी एक के बाद एक हिट फ़िल्मों की जैसे उन्होंने झड़ी लगा दी। उनकी अभिनीत फ़िल्मों का आलम ये था कि उन्हें "जुबली कुमार" की संज्ञा दी जा रही थी।
सातवें दशक की ढेर सारी सफल फ़िल्मों ने राजेन्द्र कुमार को अपने समय का नंबर एक हीरो करार दिया। उस दौर की लगभग हर हीरोइन ने उनके साथ काम किया। राजेन्द्र कुमार एक ऐसे हीरो साबित हुए जिनके अभिनय की तारीफ कभी किसी फिल्म समीक्षक ने नहीं की पर दर्शकों ने उनके दीदार के लिए बॉक्स ऑफिस हिला दिया। राजेंद्र कुमार वैजयंती माला, सायरा बानो, साधना, मीना कुमारी, माला सिन्हा, वहीदा रहमान से लेकर हेमा मालिनी, रेखा, बबिता, राखी तक के सफल जोड़ीदार बने। सार्थक फ़िल्मों के अपने दिनों में जिन नूतन के साथ उनकी फिल्में नहीं आईं, बाद में चरित्र अभिनेता के रूप में उनके साथ भी साजन बिना सुहागन जैसी फ़िल्मों में उन्हें दर्शकों ने देखा।
उनके साथ - साथ शिखर की यही सफलता सुनील दत्त ने भी पाई। मदर इंडिया में राजेंद्र कुमार और सुनील दत्त भाइयों की भूमिका में साथ में आए। यादें, मुझे जीने दो, वक्त, हमराज़, गुमराह, मिलन, गबन, मेरा साया, रेशमा और शेरा जैसी कई कामयाब फिल्में सुनील दत्त ने दीं। उन्हें भी अपने वक़्त का नंबर वन सितारा माना गया। उन्होंने फ़िल्मों में एक लम्बी पारी खेली। अपने बाद के दिनों में रीना रॉय के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों द्वारा काफ़ी पसंद की गई।
राजकपूर की ही भांति पहले हीरो और फिर फ़िल्म निर्माता के रूप में भारी ख्याति मनोज कुमार के हिस्से में भी आई। हरियाली और रास्ता, गुमनाम, पूनम की रात, वो कौन थी, अनीता, हिमालय की गोद में जैसी कई लोकप्रिय फिल्मों के बाद एक समय उन्हें भी सर्वश्रेष्ठ कहा गया। निर्माता बन जाने के बाद भी पूरब और पश्चिम, उपकार, रोटी कपड़ा और मकान, क्लर्क, यादगार, क्रांति जैसी कई फ़िल्मों में उनकी लोकप्रियता बरकरार रही। साधना, माला सिन्हा, सायरा बानो, वहीदा रहमान के साथ सफलतम फिल्में देने वाले मनोज कुमार ने युग बदल जाने के बावजूद जया बच्चन (भादुड़ी) रेखा, राखी, हेमा मालिनी, ज़ीनत अमान तक के साथ काम किया और एक से बढ़कर एक कामयाब फ़िल्में दीं।
फ़िल्म इतिहास में चोटी के सितारों के क्लब में एक कुर्सी उनके नाम की भी है।
इन तीनों को ही मधुर संगीत वाली पारिवारिक फिल्मों के लिए हमेशा याद तो रखा ही जाएगा, दर्शक ये भी कभी नहीं भूलेंगे कि इन्होंने "नायक" के रूप में रजत पट पर बरसों राज कर लेने के बाद "चरित्र अभिनेता" के रूप में भी अपनी वृद्धावस्था तक कैमरे से मुठभेड़ जारी रखी। हालांकि कुछ फिल्मी पंडित दबी जुबान से ये भी कहते पाए जाते हैं कि ये तीनों ही अपने बाद अपनी फिल्मी विरासत अपने अपने बेटों को सौंपने के लिए फिल्मी दुनिया में बने रहना चाहते थे।
किंतु कुमार गौरव (राजेंद्र कुमार के बेटे), कुणाल गोस्वामी (मनोज कुमार के बेटे) और संजय दत्त में से सितारों ने केवल संजय का ही साथ दिया।