अमिताभ बच्चन के जलाल के बाद कुछ सालों के लिए तो फ़िल्म उद्योग में "नंबर वन" की बात ही धूमिल हो गई क्योंकि न तो अमिताभ कहीं गए और न उनकी लोकप्रियता!
लेकिन फिर भी उम्र की नदी नया पानी लाती है तो उसके किनारों पर नई हरियाली भी आती है।
फिरोज़ खान, अनिल धवन, अमोल पालेकर, राज बब्बर, विनोद खन्ना , शत्रुघ्न सिन्हा, विजय अरोड़ा, सचिन, गोविंदा आदि ने बॉलीवुड में कदम जमाए।
संजीव कुमार, ऋषि कपूर और मिथुन चक्रवर्ती के रूप में भी फ़िल्म जगत को बेहतरीन और सफल नायक मिले।
हर तरह की भूमिका निभाने वाले संजीव कुमार को चोटी का सितारा माना जाने लगा। वे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और फ़िल्म आलोचकों के लगातार सराहे जाने के बाद नंबर वन अभिनेता कहलाए। उनकी छवि एक स्टार से ज्यादा एक बेहतरीन एक्टर की बनी। उन्होंने जया भादुड़ी (बच्चन) और शबाना आज़मी के साथ कुछ बहुत सार्थक उद्देश्यपूर्ण फिल्में दीं।
राजकपूर की विरासत को ऋषि कपूर ने जिस तरह दोहराया, उन्हें भी अपने दौर का सबसे कामयाब स्टार मानने वाले कम न रहे। मेरा नाम जोकर और बॉबी से कम उम्र में ही कैमरे का सामना करने वाले ऋषि कपूर ने बाद में लैला मजनूं, सरगम, अमर अकबर एंथनी, चांदनी जैसी भव्य और कामयाब फ़िल्में दीं।
बहुत छोटी आयु से फ़िल्मों में प्रवेश करके लगातार अपनी मांग युवा पीढ़ी के बीच में बनाए रख कर ऋषि कपूर ने शिखर पर जगह बनाई। ऋषि कपूर लंबे समय तक फ़िल्मों में बने रहे और अपने अंतिम दौर में नकारात्मक भूमिकाओं में भी नज़र आए। दीवाना, प्रेमरोग, बोल राधा बोल, एक चादर मैली सी आदि उनकी अभिनय रेंज का सुखद विस्तार थीं।
एक समय ऐसा भी था जब मिथुन चक्रवर्ती को जूनियर अमिताभ कहा जाता था। जो निर्माता अमिताभ की व्यस्तता व फ़ीस के चलते उन्हें चाहते हुए भी नहीं ले पाते थे वे मिथुन का रुख करते थे। मृगया जैसी कलात्मक खूबसूरत फ़िल्म से एंट्री लेने वाले मिथुन प्यार झुकता नहीं, प्यारी बहना, डिस्को डांसर, दीवाना तेरे नाम का आदि सफल फ़िल्मों में दर्शकों की पसंद बने। इस बुलंदी ने मिथुन की कामयाबी भी शिखर पर स्वीकार की।
लेकिन अमिताभ बच्चन की आंधी के बाद जो नाम ऊंचाइयों पर दिखाई दिए उनमें विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा और जितेंद्र का नाम लिया जा सकता है। विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा दोनों ही फिल्मों में खलनायकों के रूप में आए थे। किंतु नकारात्मक भूमिका में भी इन दोनों को फिल्मकारों का जो फुटेज और दर्शकों का जो उत्साह जनक प्रतिसाद मिला उसने इन्हें सफल नायक भी बना दिया।
विनोद खन्ना ने मुकद्दर का सिकंदर, कुरबानी, मेरे अपने, इंसाफ आदि फ़िल्मों में बेहतरीन एक्टिंग का प्रदर्शन किया। वो मेरा गांव मेरा देश, कच्चे धागे जैसी फ़िल्मों से लोकप्रियता तो पा ही चुके थे।
खिलौना फ़िल्म में एक छोटी सी भूमिका करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा को दर्शकों ने बाद में कालीचरण, विश्वनाथ, काला पत्थर, जलजला जैसी फ़िल्मों में भी देखा और सराहा।
फ़िल्मों में एक लंबी पारी खेल कर जिस अभिनेता ने अपने समय की लगभग सभी टॉप अभिनेत्रियों के साथ काम करते हुए अपना सिक्का जमाया वो जितेंद्र आज भी स्वस्थ और सक्रिय दिखाई देते हैं। सातवें दशक में "सेहरा" और "गीत गाया पत्थरों ने" जैसी फ़िल्मों से आए जितेंद्र ने इसी दशक में बबीता के साथ आई जेम्स बॉन्ड शैली की फ़िल्म फर्ज़ से धमाका कर दिया। लोग उन्हें दूसरा शम्मी कपूर कहने लगे। उनके रूप में फ़िल्मों को एक अच्छा डांसिंग स्टार मिल गया। एक शम्मी कपूर को छोड़ कर किसी भी अन्य पुराने नायक में नृत्य कला की ऐसी प्रतिभा नहीं थी। धर्मेंद्र, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार जहां अपनी फ़िल्मों में नाचती हुई एक्ट्रेस के दर्शक मात्र हुआ करते थे, वहीं जितेंद्र ने बबीता, आशा पारेख, नंदा से लेकर हेमा मालिनी, रेखा, रीना रॉय और श्रीदेवी के साथ ज़बरदस्त ठुमके लगाए।
जितेंद्र ने महिला प्रधान फ़िल्मों में काम करने से भी कभी परहेज़ नहीं किया। सिंदूर, मेंहदी, घर उनकी फिल्मों के विषय बने और जितेंद्र ने बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर जम कर निशाना साधा।
कहा जाता है कि जब धर्मेंद्र टॉप पर थे तो जितेंद्र नंबर दो पर थे, जब राजेश खन्ना टॉप पर पहुंचे तो जितेंद्र नंबर दो थे और जब अमिताभ बच्चन शिखर पर पहुंच कर नंबर वन सुपर - मेगा स्टार बने, तब भी दो नंबर पर जितेंद्र का ही नाम लिया जाता था।