Teen Ghodon Ka Rath - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

तीन घोड़ों का रथ - 4

सातवें दशक के उत्तरार्ध में नवीन निश्चल, संजय खान, जितेंद्र, शशिकपूर आदि बहुत लोकप्रिय और सफल हो रहे थे। कई नए नायकों की पहली ही फिल्में ही धमाल मचाने वाली सिद्ध हुईं।
किन्तु इस दशक में जिन नायकों की पतंग आसमान पर पहुंच रही थी उनमें धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन ने अभिनय और सफलता के क़िले पर अपना परचम लहराया।
धर्मेंद्र का आगमन बहुत पहले से हो गया था। इस दशक में वो मीना कुमारी के साथ फूल और पत्थर, शर्मिला टैगोर के साथ देवर और सायराबानो के साथ आई मिलन की बेला जैसी लोकप्रिय फिल्में दे चुके थे। उन्होंने सुचित्रा सेन, मीना कुमारी, वहीदा रहमान से लेकर हेमा मालिनी, रेखा और ज़ीनत अमान तक के साथ काम करते हुए फ़िल्म जगत के नंबर वन क्लब में जल्दी ही अपना स्थान बनाया। धर्मेंद्र की मौजूदगी ही नहीं बल्कि उनकी बादशाहत लंबे समय तक कायम रही। नए दौर की अभिनेत्रियों ने भी उनके साथ खूब काम किया। किंतु हेमा मालिनी के साथ लगभग डेढ़ दर्जन फिल्में, इश्क और फिर शादी ने उन्हें लगातार खबरों में बनाए रखा। अगर समीक्षकों की मानें तो धर्मेंद्र एक बेहतरीन एक्टर, एक सुगठित देह के स्वामी और महिलाओं के आदर्श पुरुष होते हुए भी एक मोर्चे पर अपने कद को कम करने की ओर बढ़ते देखे जा सकते हैं। उन पर ये आरोप है कि धुंआधार सफ़लता मिल जाने के बाद भी उन्होंने ढेर सारी औसत फ़िल्मों में काम करना नहीं छोड़ा। जिसने उनकी छवि को बहुत महान अभिनेता कहलाने से रोका।
फ़िल्म "राज" से एक टेलेंट हंट जीत कर फ़िल्मों में आए राजेश खन्ना ने सही अर्थों में "सुपर स्टार" का दर्ज़ा पाया। उनकी आराधना फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई। उसके बाद तो उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्मों की मानो झड़ी ही लग गई। दो रास्ते, दुश्मन, दाग, सच्चा झूठा, प्रेम कहानी, प्रेम नगर, आपकी कसम, अपना देश, सफ़र, रोटी, नमक हराम, बंधन जैसी फ़िल्मों ने उन्हें चोटी के मुकाम पर पहुंचा दिया। फ़िल्म विधा हमेशा से एक टीम का काम माना जाता रहा है परन्तु अकेले हीरो द्वारा फ़िल्म की सफलता की गारंटी देने का सूत्रपात राजेश खन्ना से ही हुआ। राजेश खन्ना ने मुख्य धारा की इन व्यावसायिक फिल्मों के अलावा अविष्कार, आनंद, थोड़ी सी बेवफाई, सौतन जैसी फ़िल्मों में भी अपने ज़बरदस्त अभिनय की छाप छोड़ी।
शर्मिला टैगोर और मुमताज़ के साथ राजेश खन्ना की सफल फ़िल्मों की श्रृंखला ऐतिहासिक रही। और इस तरह बहुत थोड़ी अवधि में ही राजेश खन्ना ने अपने दौर के नंबर एक सितारे के रूप में जगह बनाई। वो अवतार देसी फ़िल्मों से अपनी उपस्थिति देर तक बनाए रख सके किंतु राजनीति और डिंपल कपाड़िया से विवाह ने उनका रुख ज़िंदगी में कुछ अलग कर डाला।
इसी दौर में आए अमिताभ बच्चन की कामयाबी को परिभाषित करने के लिए मानो सुपरस्टार का दर्ज़ा भी छोटा पड़ गया। उन्होंने बेमिसाल सफ़लता का ऐसा रिकॉर्ड बनाया कि वे शताब्दी के मेगा स्टार कहे जाने लगे।
ये भी एक विडंबना ही कही जाएगी कि हिंदी फ़िल्म जगत का ये सबसे देदीप्यमान नक्षत्र अपने आरंभिक दिनों में एक असफल अभिनेता ही कहा जाता रहा। सात हिंदुस्तानी, रेशमा और शेरा, बंसी बिरजू, एक नजर, एक था चंदर एक थी सुधा, बंधे हाथ, बॉम्बे टू गोवा, रास्ते का पत्थर जैसी एक के बाद एक असफल फ़िल्मों ने एक तरह से अमिताभ का हौसला पस्त करना शुरू कर दिया था। फ़िल्म फर्ज़ की सफल हीरोइन बबीता ने अमिताभ के साथ काम करने से ही इंकार कर दिया था। अरुणा ईरानी, नीता खयानी और पद्मा खन्ना जैसी सहायक अभिनेत्रियां उनकी जोड़ीदार बन रही थीं। लेकिन तभी प्रकाश मेहरा की फ़िल्म ज़ंजीर ने सारी कहानी बदल कर ही रख दी।
इस फ़िल्म की चमत्कारिक सफलता के बाद अमिताभ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दीवार, त्रिशूल, शोले, नमक हराम, नमक हलाल, अमर अकबर एंथनी, देश प्रेमी, मुकद्दर का सिकंदर और ऐसी दर्जनों कामयाब फ़िल्मों ने अमिताभ बच्चन को सिनेमा का पर्याय ही बना छोड़ा। डॉन, लावारिस, बेमिसाल, सिलसिला, कभी कभी जैसी भव्य फिल्में किसी त्यौहार की तरह सिनेमा हॉल में लगने लगीं और चारों ओर अमिताभ अमिताभ होने लगा। हर बड़ी फ़िल्म पहले उनके पास आती। खून पसीना, ईमान धरम, मिस्टर नटवर लाल, गंगा की सौगंध से लेकर कभी खुशी कभी गम, मोहब्बतें, भूत, बागवान, ब्लैक, पीकू, शहंशाह और ऐसी ही न जाने कितनी ही फिल्में अमिताभ के नाम लिखी गईं।
अमिताभ बच्चन न केवल अपने समय के, बल्कि सर्वकालिक "नंबर वन" अभिनेता सिद्ध हुए। उनकी ये यात्रा आज भी अनवरत जारी है।


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