इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 12 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 12

12

खाओ-खाओ, लो तुम भी खाओ

राजा कृष्णदेव राय बड़े विद्वान थे, कलाप्रेमी थे, पर साथ ही वे परिहास-प्रिय भी थे। राजदरबार की अतिशय व्यस्तता में भी विनोद और हास-परिहास के मौके ढूँढ़ लेते। दरबारियों की चुटीली बातों पर वे खुलकर हँसते थे और कभी-कभी तो ठहाके भी लगाते थे। इससे दरबार का वातावरण सरस बना रहता था। दरबारियों को भी सारा तनाव भूलकर खुलकर हँसने और ठिठोली करने का मौका मिल जाता। इससे समय का कुछ पता ही नहीं चलता था। रोज ही राजदरबार में कोई न कोई ऐसी बात होती कि सब दरबारियों के चेहरे पर हँसी छलछलाने लगती। फुर्सत के इन क्षणों में दरबारी राजकाज की व्यस्तता और सारी थकान भूल जाते। फिर से हलके-फुलके और तरोताजा हो जाते।

एक बार की बात, पड़ोसी राजा देवधर ने राजा कृष्णदेव राय के दरबार में अपने शाही बाग के सुगंधित आम भिजवाए। खूब बढ़िया, मीठे आम। राजा देवधर बढ़िया और स्वादिष्ट आमों को शौकीन थे। इसलिए उन्होंने राजधानी में आम का एक अलग बगीचा लगवाया था। इस बार वे ही बढ़िया सुगंधित आम उन्होंने राजा कृष्णदेव राय के लिए भी भिजवाए। आमों की सुगंध से दरबार महकने लगा। सभी दरबारियों के चेहरे पर आनंदपूर्ण हँसी छलक पड़ी।

राजदरबार में कोई गंभीर चर्चा चल रही थी। पर तेनालीराम का ध्यान आम के टोकरों की ओर था। बार-बार वह उधर ही देखने लगता और धीरे से सिर हिलाकर हँस देता। मंत्री ने इशारे से यह बात राजा कृष्णदेव राय को बता दी। राजा ने हँसकर कहा, “तेनालीराम, आमों का ध्यान बाद में कर लेना। अभी कुछ और जरूरी काम निबटाने हैं।”

तेनालीराम मुसकराया। बोला, “महाराज, पेट में कुछ जाए, तो दिमाग भी काम करेगा।...आप तो जानते ही हैं और फिर मेरे दादा के दादा के दादा के लकड़दादा के जमाने से चलती आई पुरानी कहावत भी है कि पेट खाली तो दिमाग खाली।...फिर भला राजदरबार के कामों में मन लगे भी तो कैसे? यह तो मुझ जैसे आमों के रसिक के लिए बड़ी भारी परीक्षा हो गई महाराज!”

राजपुरोहित ताताचार्य भी खाने-पीने के बड़े शौकीन थे। आम उन्हें इतने प्रिय थे कि रास्ता चलते आसपास के किसी बाग से आई आमों की सुगंध नासिका-रंध्रों में पहुँच जाए तो उनके कदम वहीं थम जाते थे। जब तक वहीं खड़े-खड़े दो-चार आम न चूस लें, पैर आगे बढ़ते ही न थे। फिर यह तो खास मौका था। वे जानते थे, राजा देवधर के शाही बाग में बड़े खास तरह के सिंदूरी आम होते हैं, जिनकी सुगंध और स्वाद लाजवाब है। ऐसे आमों के टोकरे बिल्कुल पास रखे हों तो भला दिल-दिमाग में हलचल क्यों न होगी?

राजपुरोहित ने देखा कि राजा कृष्णदेव राय का मूड बढ़िया है और उनके चेहरे पर प्रसन्नता व्यप्त है तो उन्होंने भी एक मीठी फुरफुरी छोड़ दी। मंद-मंद मुसकराहट के साथ कहा, “तेनालीराम ठीक कह रहा है महाराज। मेरा सुझाव है, कुछ समय के लिए दरबार का कामकाज रोककर, राज उद्यान में बैठ, आमों का स्वाद लिया जाए! ऐसे क्षणों में प्रतीक्षा सहन नहीं होती।...आखिर हम सभी प्रकृति-प्रेमी लोग हैं महाराज। ऐसे बढ़िया और सुस्वादु आमों का स्वागत न करें, तो प्रकृति-देवी भला हमसे कैसे प्रसन्न रह सकती हैं?”

“ओहो, अब समझा मैं आपके प्रकृति-प्रेम का आशय! तब तो आपके अनुसार, हमें प्रकृति देवी को मनाने के लिए जल्दी से जल्दी इन आमों का सेवन करना ही चाहिए।” राजा कृष्णदेव राय हँसे। बोले, “तेनालीराम ने जो कुछ कहा और राजपुरोहित ताताचार्य जी की बातों से जो सार निकला, उसका भली भाँति स्वागत करते हुए, राजदरबार की कार्यवाही थोड़े समय के लिए स्थगित की जाती है। आमों का भरपूर आनंद लेने के बाद ही हम आगे राजदरबार के जरूरी काम करेंगे।”

सुनकर हास्य की फुरफुरी के साथ मंत्री की भी मूँछें फड़कने लगीं। उसने मूँछों में हँसते हुए कहा, “महाराज, मेरा भी एक सुझाव है। आम का ऊपर का हिस्सा हम लोग खाएँगे, बीच का हिस्सा तेनालीराम का रहेगा।”

इस पर राजा कृष्णदेव राय हँसकर बोले, “ठीक है। लेकिन क्या तेनालीराम को भी मंजूर है यह बात?”

तेनालीराम मंद-मंद हँसी के साथ बोला, “मुझे मंजूर है महाराज! भला मंत्री जी की बात अनसुनी करके क्या मुझे मरना है?...पर मेरी शर्त यह है कि राजदरबार में जो भी भेंट-सामग्री आए, उसका भीतर का हिस्सा मुझे मिले, ऊपर का हिस्सा दरबारियों को। अगर दरबारियों को यह शर्त मंजूर हो, तो फिर मेरी भी हाँ समझिए।”

दरबारियों ने खुशी-खुशी यह बात मान ली। मंत्री ने भी झटपट कहा, “ठीक है, ठीक है, आज तो तेनालीराम को बीच का हिस्सा मिले ही। फिर आगे भी यह प्रथा चालू रहे तो हमें क्या परेशानी है...? आगे का आगे देखा जाएगा। तेनालीराम ने हमें बहुत छकाया है, कम से कम आज तो हम उससे बदला ले ही लेंगे।...हाँ, पर महाराज, तेनालीराम को कहिए, एक बार फिर से सोच-विचार कर ले, कहीं बाद में खिसियाकर हाय-हाय न करे।”

“न महाराज, हाय-हाय क्यों करूँगा?” तेनालीराम बोला, “हाय-हाय करें रे दुश्मन! अलबत्ता मंत्री जी की शर्त मुझे मंजूर है।”

थोड़ी देर में राज उद्यान में सभी दरबारी पहुँचे। वहीं आमों का एक बड़ा सा टोकरा ले जाया गया। कुछ देर तक ठंडे, स्वच्छ पानी की एक नाँद में डालकर आमों को रखा गया। आम खूब ठंडे हो गए तो सबने खूब स्वाद ले-लेकर आम खाए। गुठलियाँ एक टोकरी में डाल दी गईं। मंत्री खिलखिलाकर हँसते हुए बोला, “यह रहा तेनालीराम का हिस्सा!”

सुनकर सारे दरबारी भी ठहाका लगाकर हँसे। राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की ओर देखकर कहा, “तेनालीराम, तुम्हारे हिस्से के आम तो गए। लगता है, मंत्री जी ने आज तो तुम्हें छका दिया।”

तेनालीराम कुछ बोला नहीं। चपुचाप मुसकराता रहा।

कुछ दिन बाद नगर सेठ लक्खूमल ने उपहार के रूप में दरबार में बादाम तथा अखरोटों के टोकरे भेजे। साथ ही सोने की थाली में स्वच्छ वस्त्र से ढका राजभोग भी। राजा कृष्णदेवराय ने सभी उपहार दरबारियों में बाँटने का आदेश दिया।

तेनालीराम बोला, “महाराज, शर्त के मुताबिक दरबारियों को बादाम और अखरोट के छिलके दे दिए जाएँ, भीतर का हिस्सा मेरा। इसी तरह राजभोग के ऊपर ढका वस्त्र दरबारियों को मिले, राजभोग मेरे हिस्से आएगा।”

सुनते ही दरबारियों के चेहरे उतर गए। मंत्री अब बुरी तरह पछता रहा था। मगर भला कहे क्या? बाकी दरबारी भी हक्के-बक्के थे। समझ गए, उस समय ज्यादा आम खाने के जोश में उन्होंने कुछ और सोचा ही नहीं। मगर यही रहा तो आगे तो लेने के देने पड़ जाएँगे। हर चीज पर तेनालीराम का ही हक होगा।

इस बीच मंत्री ने राजपुरोहित की ओर एक छिपा हुआ इशारा किया। राजपुरोहित ताताचार्य खुद भी लज्जित थे। बोले, “महाराज, हम शर्त वापस लेते हैं।...मंत्री जी भी यही चाहते हैं।”

राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की ओर देखा। पूछा, “क्यों तेनालीराम, तुम्हारी इस बारे में क्या राय है?”

तेनालीराम मुसकराकर बोला, “ठीक है महाराज! मगर इस बार तो सभी चीजें शर्त के हिसाब से ही बँटनी चाहिए। मंत्री जी और राजपुरोहित ताताचार्य शर्त खत्म करना चाहते हैं, तो बढ़िया आमों से भरा एक टोकरा मुझे मँगवाकर दें।”

“तेनालीराम की बात तो ठीक है।” कहते हुए राजा कृष्णदेव राय जोरों से हँस पड़े।

उसी समय टोकरा भरकर, खूब मीठे, पके आम मँगवाए गए। तेनालीराम ने स्वाद ले-लेकर खाए। बादाम, अखरोटों की गिरियाँ और स्वादिष्ट राजभोग भी तेनालीराम के ही हिस्से आया।

सभी दरबारी मुँह ताकते रह गए। अकेले तेनालीराम ने सबको छका दिया था। राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की यह चतुराई देखी तो हँसते हुए बोले, “वाह तेनालीराम, तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि तुम अकेले ही सब दरबारियों पर भारी हो!”

सुनकर मंत्री, राजपुरोहित और सारे दरबारियों के चेहरे शर्म से पानी-पानी हो गए।