इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 10 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 10

10

पोलूराम की खुली पोल

राजा कृष्णदेव राय का न्याय ऐसा था कि दूध का दूध, पानी का पानी हो जाता था। कोई कितना ही होशियार, छल-बल वाला या तिकड़मी क्यों न हो, दरबार में राजा कृष्णदेव राय के तर्क और बुद्धिमत्तापूर्ण न्याय के आगे उसकी बोलती बंद हो जाती थी। जो सच्चे और ईमानदार होते, उनके चेहरे खिल उठते। थोड़ी ही देर में सभी के मुँह से निकलता—“सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुँह काला!” यों अकसर नेक और भले लोग राजा के दरबार में परेशान होकर आते, मगर हँसते हुए जाते थे।

एक बार की बात, राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा था। किसी समस्या पर गंभीर विचार-विमर्श चल रहा था। तभी उन्हें जोर की गुहार सुनाई दी, “दुहाई है, महाराज! न्याय कीजिए, न्याय कीजिए!”

राजा कृष्णदेव राय चौंक उठे। परेशान होकर उन्होंने सामने गलियारे में देखा, जहाँ कुछ ज्यादा ही हलचल थी। इसी के साथ लड़ते-झगड़ते तीन लोग भीतर आए। इनमें एक शहर का मशहूर हलवाई बालचंद्रन था तथा दो अन्य लोग थे। पूछने पर उनमें से एक ने अपना नाम पोलूराम बताया, दूसरे ने ढोलूराम। रुपयों की एक थैली को लेकर पोलूराम और ढोलूराम का हलवाई बालचंद्रन से झगड़ा हो रहा था।

हलवाई बालचंद्रन कह रहा था, “बचाइए, महाराज! ये दोनों ठग मुझसे थैली छीनना चाहते हैं। बड़े ही बदमाश हैं ये लोग। कई दिनों से मेरी दुकान पर नजर रखे हुए थे। पता नहीं, कैसे चोर-उचक्के हैं। थैली छीनने की कोशिश की। मैंने नहीं छीनने दी, तो मुझे मारा-पीटा और धमकाया भी है! महाराज, इन गुंडों से मुझे बचाइए। साथ ही इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दीजिए।”

राजा ने बालचंद्रन के साथ आए लोगों पोलूराम और ढोलूराम से पूछा। उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा, “महाराज, आप इस बेईमान आदमी की बातों में मत आ जाइए। हम तो गाँव के सीधे-सादे लोग हैं। इसी दुष्ट हलवाई ने मौका ताड़कर हमारी थैली हड़प ली। थैली हमारी है। हम दुकान पर बैठकर मिठाई खा रहे थे, तो इसने चुपके से उठा ली और अब देने से इनकार कर रहा है।”

राजा कृष्णदेव राय ने बालचंद्रन से सारी बात पूछी तो उसने बताया, “महाराज, दुकान बंद करने से पहले मैंने रुपए गिने। उन्हें थैली में डाल, घर चलने को हुआ, तो ये दोनों ठग आ धमके। थैली छीनने लगे, फिर मारपीट पर भी उतारू हो गए। देखिए, मेरे माथे पर यह चोट का निशान...!”

“नहीं महाराज, रुपए हमारे हैं। आप गिन लीजिए। पूरे पाँच सौ रुपए हैं।...हमें चोर साबित करने के लिए माथे पर चोट का निशान तो इसने खुद ही लगा लिया।” पोलूराम और ढोलूराम ने कहा।

हलवाई बालचंद्रन बोला, “महाराज, यह ठीक है कि थैली में पूरे पाँच सौ रुपए हैं। जब मैं गिन रहा था, इन्होंने चुपके से सुन लिया। मुझे ठगना चाहते हैं।...इतनी बुरी तरह पीटा और अब झूठ बोलकर मुझी को दोषी बता रहे हैं। क्या कोई अपने माथे पर खुद ही चोट का निशान लगा सकता है?”

राजा कृष्णदेव राय उलझन में पड़ गए। उनके पास बहुत मामले आए थे, पर ऐसा मामला तो पहली बार आया था। धीरे से बुदबुदाकर बोले, “अजीब मामला है!”

तभी अचानक उन्हें तेनालीराम का खयाल आया। उन्होंने देखा, तेनालीराम सामने बैठा सिर खुजा रहा है। राजा ने तेनालीराम से कहा, “मुझे पता है, तुमने इतनी देर में काफी कुछ सोच लिया है। अब जल्दी से असलियत का पता लगाओ।”

तेनालीराम ने हलवाई और उन दो आदमियों से फिर बात की। उसे लग रहा था, बालचंद्रन राज्य का पुराना और नामी हलवाई है, वह बेईमानी नहीं कर सकता। पर फैसला कैसे हो? घटना का कोई गवाह भी तो नहीं है, जिससे पूछ-ताछ करके मामले की तह तक पहुँचा जाए। अचानक उसे कुछ सूझा। उसने सेवकों से कहा, “एक बड़े बरतन में गरम पानी भरकर लाओ।”

वैसा ही हुआ। सब दरबारियों की निगाहें तेनालीराम पर जमी थीं। सभी हैरान, भला गरम पानी से क्या होगा? सब एक-दसरे की ओर देखते हुए तेनालीराम की बेवकूफी पर व्यंग्यपूर्वक हँस रहे थे।

पर तेनालीराम तो अपने काम में डूबा था। उसने थैली खोली। उसमें से एक सिक्का निकाला, उसे धीरे से गरम पानी में डाल दिया और गौर से देखने लगा। फिर एक और सिक्का निकालकर पानी में डाला। और फिर सिक्कों से भरी पूरी थैली ही पानी में उलट दी।

थोड़ी ही देर में पानी के ऊपर काफी चिकनाई तैरने लगी। तेनालीराम के चेहरे पर मुसकराहट आ गई।

उसने राजा कृष्णदेव राय से कहा, “मिल गया गवाह महाराज, मिल गया!”

राजा कृष्णदेव राय हैरान। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि तेनालीराम क्या कह रहा है? यहाँ आसपास तो कोई गवाह नजर नहीं आ रहा। तो फिर तेनालीराम कहना क्या चाहता है?

राजा ने तेनालीराम की ओर देखा तो उससे बाँकी मुसकान के साथ कहा, “महाराज, न सिर्फ गवाह मिला, बल्कि उसने सब कुछ सच-सच बता भी दिया है।”

“क्या मतलब...?” राजा कृष्णदेव राय को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि तेनालीराम कह क्या रहा है?

इस पर तेनालीराम ने बताया, “महाराज, रुपए हलवाई बालचंद्रन के ही हैं। हलवाई के हाथ चिकने रहते हैं, इसीलिए सिक्कों पर भी चिकनाई आ गई। देखिए, पानी पर तैरती यह चिकनाई ही तो गवाह है!”

अब तो सारा भेद खुल चुका था। हलवाई के साथ आए दोनों ठगों पोलूराम और ढोलूराम ने भागने की कोशिश की, पर सैनिकों ने पकड़ लिया। बाद में पता चला, वे ठग ही थे। राजधानी में और भी कई लोगों को इसी तरह ठग चुके थे। इसीलिए उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। राजा ने उन्हें कारागार में डलवा दिया।

हलवाई बालचंद्रन ने राजा कृष्णदेव राय का गुणगान करते हुए कहा, “महाराज, आपके न्याय की बहुत प्रशंसा सुनी थी। आज खुद अपनी आँखों से देख लिया कि किस तरह आपके दरबार में दूध का दूध और पानी का पानी होता है। इसीलिए प्रजा आपके गुण गाते नहीं थकती।”

राजा कृष्णदेव राय बोले, “तेनालीराम जैसा चतुर और बुद्धिमान दरबारी हो, तो ऐसा बिल्कुल मुश्किल नहीं।” फिर तेनालीराम को प्यार से गले से लगाकर कहा, “सच तेनालीराम, तुमने ऐसा न्याय किया कि यह हलवाई बालचंद्रन ही नहीं, विजयनगर की सारी प्रजा तुम्हें प्यार से याद रखेगी।”

कहते-कहते राजा कृष्णदेव राय ने अपनी कीमती हार उतारकर तेनालीराम को पहना दिया। सारे दरबारी अचंभित होकर यह देख रहे थे और मन ही मन तेनालीराम की बुद्धिमत्ता की तारीफ कर रहे थे।