अय्याश--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--(अन्तिम भाग)

शौक़त के घरवाले उन पर दबाव बनाने लगें,यहाँ तक कि शौक़त की अम्मी और अब्बाहुजूर भी चाहते थे कि कैसे भी उन पर दबाव बनाकर हमारा उनसे तलाक़ करवा दिया जाएं, वें सभी इस मक़सद में कामयाब भी हो गए और एक बार फिर हम अपनी जिन्दगी तनहा गुजारने लगें,हमसे अब ये ग़म सहना मुश्किल हो रहा था,हमारी तकलीफ़ को हमारी अम्मीजान ने महसूस किया और वें दोबारा हमें अपने घर लें गई,वहाँ हमें कुछ राहत महसूस हुई लेकिन अब्बाहुजूर ने हमसे फिल्मों में काम करने के लिए दबाव डाला,मजबूर होकर फिर से हमने खुद को फिल्मों मसरूफ़ कर लिया,जिससे अब हमें शौकत का ख्याल ना आता और कभी आता तो खुद को शराब के नशे में डुबो लेते.....
दिन बीतने लगें लेकिन किस्मत ने एक बार फिर से करवट ली और हमारी मुलाकात फिर से शौकत से हुई,जिसने हमारें जख्मों को फिर से कुरेद दिया और हम कराह उठें,सच तो ये था कि हम शौक़त को कभी भूल ना सकें थें और हम उनके बिना रह नहीं सकते,तब शौकत मियाँ बोले....
मैं अपनी पहली बेग़म को तलाक देने को राजी हूँ लेकिन तुम मुझसे दोबारा निकाह कर लो,जब काज़ी से इस बारें में राय ली गई तो उन्होंने कहा कि ये मसला हल तो हो सकता ,अगर आप तलाक के बाद दोबारा इन्हें अपनी ब़ेगम बनाना चाहते हैं तो इन्हें शरिया कानून की शर्त पूरी करनी ही होगी जिसमें इनका हलाला होगा,जिनका इनके साथ दोबारा निकाह होगा तो इन्हें उनके साथ हमबिस्तर होना पड़ेगा,तभी उनसे इनके तलाक को मंजूरी मिलेगी,नहीं तो बिना हलाला हुए ये आपसे दोबारा निकाह नहीं कर सकतीं,
इस बात को हमने नामंजूर कर दिया और हमने उनसे कहा कि....
हम किसी भी गैर मर्द के साथ कभी भी हमबिस्तर नहीं होगें,हमने आपको ही दिल से चाहा था और हमेशा चाहते रहेगें,हलाला के द्वारा धर्म की आड़ में आप मर्दजात हमेशा स्त्री-शोषण करते आएं हैं,भला हलाला के नाम पर यह कैसा रिवाज है कि जिसमें कोई तलाक़शुदा महिला अपने पहले शौहर के पास दोबारा तब जा सकती है, जब तक कि उसका किसी दूसरे पुरुष से निकाह ना हो और वह पुरुष हमबिस्तर होने के बाद ही उसे तलाक़ दे सकता,वैसे तो हलाला मर्दों को सज़ा देने के नाम पर बनाया गया क़ानून है, पर इसने स्त्री को भोगने की वस्तु बना दिया है,हमें ये कतई मंजूर नहीं ,आप हमसे निकाह करें या ना करें,
फिर इस बात से शौक़त हमसे ख़फा होकर अपनी अपनी ब़ेगम के पास लौट गए और हमने एक बार फिर से शराब और सिगरेट में खुशी पानी चाही,इस बीच हिन्दुस्तान और पकिस्तान का बँटवारा हुआ,उन दंगों में हमारे अब्बाहुजूर मारें गए,हम पकिस्तान नहीं जाना चाहते थे,इसलिए हम लाहौर छोड़कर लखनऊ आकर बस गए,शौकत भी पकिस्तान जाकर बस गया,हमने फिल्मों से बहुत रूपया कमाया था,वो हमारे काम आया,लेकिन हमने अपनी अम्मी और अपने भाई बहनों के लिए एक मकान खरीद जहाँ वें सभी रहने लगें,जहाँ से हम अभी लौट रहें हैं और हमने अपने लिए लखनऊ में नया मकान खरीद लिया,
हमारा अलग रहना हमारे परिवारवालों को अखर गया क्योंकि हमने अपनी तीनों बहनों का तो निकाह करवा दिया था,जो कि वो हमने अपनी जिम्मेदारी समझकर निभाया,लेकिन अपने भाइयों को हम उम्र भर बैठाकर नहीं खिला सकते थे,कुछ सालों तक वें सभी उस मकान में रहें लेकिन जब हमने उन्हें खर्चा देना बंद कर दिया और हमारी बिमारी का पता चलते ही वें सभी भी पकिस्तान चले गए,कुछ वक्त बाद पता चला कि अम्मी का इन्तकाल हो गया।।
एक एक करके सबने हमें छोड़ दिया,जिन बहनों का हमने निकाह करवाया था वें भी अब हमसे मिलने नहीं आतीं,सोचती होगीं कि हमारी बिमारी में कहीं उन्हें हमारी तिमारदारी ना करनी पड़ जाएं,ना फिर कभी भाइयों ने याद किया और ना कभी बहनों ने याद किया,पूरे परिवार को हमने मेहनत करके पाला और वें ही हमें अपने काबिल नहीं समझते,हमने अपना वक्त काटने के लिए स्कूल खोल लिया,बस हमेशा यही फिक्र लगी रहती है कि हमारे बाद इन बच्चियों का क्या होगा?कौन स्कूल चलाएगा?कौन ये जिम्मेदारी लेगा?
आप इतनी चिन्ता क्यों कर रहीं हैं दीदी?सत्यकाम बोला।।
वक्त नहीं है ना!हमारे पास,आलिमा बोली।।
ऐसी कौन सी बीमारी हुई है आपको जो आपके पास वक्त नहीं हैं,सत्यकाम ने पूछा।।
शराब का हद से ज्यादा इस्तेमाल करना हमारी सेहद को भारी पड़ गया,लिवर पर असर पड़ा और हमें लिवरसिरोसिस हो गया,इसलिए तो हम ऐसा सादा खाना खाते हैं,ऐसे कोई चार लोंग नहीं हैं हमारी जिन्दगी में जो हमारे इन्तेकाल के बाद हमारे जनाज़े को उठा सकें,किस पर भरोसा करें,जिसे अपना बनाया उसी ने हमारा इस्तेमाल किया,पता है हमें बाद में पता चला कि लाहौर में हमने जो हवेली खरीदी थी उसे शौकत ने हमसे हड़प लिया था,वो सिर्फ़ रूपयों के लिए हमारे साथ था,वो हमारा सहारा पाकर हीरो बना,उसने भी हमारा इस्तेमाल किया था,अब्बाहुजूर ने इतनी कम उम्र में अपने फायदे के लिए हमारा इस्तेमाल किया,अम्मी भी हमारा साथ छोड़कर भाइयों के ही साथ चलीं गईं,
ये दुनिया और इसके लोंग बड़े ही अज़ीब हैं भाईजान!कहते कुछ हैं,करते कुछ हैंं,जिसे अपना बनाओ वही गला काटने पर उतारू हो जाता है,इन्सानियत और वफ़ा की उम्मीद करना ही बेकार है,एहसानफरामोश लोंग बसते हैं इस दुनिया में,इतना कहते कहते आलिमा रूक गई....
तो फिर उम्मीद मत कीजिए,खुश रहा कीजिए,जितने भी दिन बचें हैं आपके खाते में तो उन्हें सुकून के साथ काटिए,सोचिए मत बस खुलकर जी लीजिए,हर एक दिन को ऐसे जिएं जैसे की वो आपकी जिन्दगी का आखिरी दिन हो,मैं भी अब इसी तरह जीने की कोशिश करूँगा,मैनें भी सोच लिया है,सत्या बोला।।
आप भी तो नाउम्मीदी में ही जी रहें हैं,आलिमा बोली।।
जी रहा था लेकिन अब और नहीं,आपकी कहानी सुनकर मैं जान गया हूँ कि अब मुझे क्या चाहिए?और वो है सुकून और शान्ति जिसकी तलाश में मैं ना जाने कब से मारा मारा फिर रहा हूँ,जो कि मेरे भीतर ही थी और मैं मृग की भाँति कस्तूरी को यहाँ वहाँ ढूढ़ रहा था,सत्यकाम बोला।।
आपकी बात बिल्कुल सही है भाईजान!आपने हमारी सारी उलझनों को सुलझा दिया,अब हम भी सुकून के साथ मर सकेगें,अब हमें कोई अफ़सोस नहीं,कोई मलाल नहीं,आलिमा बोली।।
जी!मुझे भी ऐसा ही लगता है कि अब मैं भारमुक्त हो चुका हूँ,कोई भी भार मेरे ऊपर नहीं है,जितना कम भार होगा हमारे ऊपर उतनी ही आसानी से हम ऊपर जा सकेंगें सुकून के साथ,सत्या बोला।।
बिल्कुल सही भाईजान! लेकिन अब सो जाइएं,बहुत रात हो चुकी है,हम सब सुबह तक अपने स्टेशन पहुँच जाऐगें,आलिमा बोली।।
जी!शायद ठीक कहतीं हैं आप और फिर इतना कहकर सब सोने के लिए लेट गए,बिस्तर पर लेटे लेटे सत्या सोच रहा था कि मैं सच में बहुत गलत था,जब ये दुनिया मुझे छोड़ रही थी तो इस दुनिया को मुझे पहले ही छोड़ देना चाहिए था,आज तक भ्रम पाले बैठा रहा,ना जाने किस झूठी आस में जी रहा था लेकिन अब मैं बन्धनमुक्त हूँ,अब कोई भी भावनाएं,कोई भी आस मुझे बाँधे नहीं रह सकती,यही सोचते सोचते कब सत्या की आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला।।
सुबह हो चुकी थी,रेलगाड़ी बस अपने गन्तव्य तक पहुँचने ही वाली थी,आलिमा ने रहीम और नज़मा से सामान निकालने को कहा,रेलगाड़ी रूकी और सभी सामान सहित नीचे उतरे,रहीम ने एक कुली मुकर्रर किया फिर सभी रेलवें स्टेशन के बाहर आएं,दो ताँगें पकड़े एक में नज़मा और आलिमा बैठें,दूसरे में सत्यकाम और रहीम सामान सहित बैठें,कुछ ही देर में वें आलिमा की हवेली के सामने थे,वहीं बगल की जमीन पर लड़कियों का स्कूल था,
सब भीतर पहुँचे और आलिमा ने सत्यकाम को अपने बाकीं नौकरों से मिलवाया,सत्यकाम का कमरा दिखाया और फिर बाजार खुल जाने पर रहीम से सत्या के इस्तेमाल के लिए कुछ कपड़े मँगवाए,फिर नाश्ते के बाद सब आराम करने अपने अपने कमरें में पहुँच गए,जब दोपहर के खाने का वक्त हो गया तो सत्यकाम को आलिमा ने खाने की टेबल पर बुलवाया,इस बीच सत्यकाम और आलिमा के बीच बहुत सी बातें हुई तभी आलिमा के घर का टेलीफोन बजा,रहीम ने फोन उठाया और आलिमा से बोला.....
मख़्दूमा ! सेठ हजारीलाल जी का टेलीफोन है,आपको याद फरमा रहें हैं।।
रहीम की बात सुनकर आलिमा ने जाकर टेलीफोन अपने हाथों में लिया और उनसे कहा....
जी! सेठ जी!कहें...
और फिर जब आलिमा टेलीफोन सुनकर हटीं तो सत्यकाम से बोलीं....
सेठ हजारी लाल जी का टेलीफोन था,वें शाम को हमसे मिलने आ रहें हैं,बहुत ही दरियादिल शख्स हैं,हमारे स्कूल के लिए बहुत सा दान देते हैं,लड़कियों की वर्दी और किताबों का इन्तजाम भी वें ही करते हैं,खुदा उन्हें लम्बी उम्र बख्शें।।
हजारीलाल ....ये नाम कुछ सुना सुना सा लगता है लेकिन याद नहीं आ रहा,सत्यकाम बोला।।
शाम को उनसे मुलाकात तो होगी ही आपकी तो शायद याद आ जाएं,आलिमा बोली।।
जी!शायद!एक बात और कहना चाहता था आपसे,सत्यकाम बोला।।
पढ़ने के लिए कुछ किताबें मिल जातीं तो अच्छा रहता ,माँफ कीजिएगा आपको तकलीफ़ दे रहा हूँ,सत्या बोला।।
जी!नहीं!इसमें तकलीफ़ कैसीं?हम आपको लाइब्रेरी की चाबी दिए देते हैं तो आप वहाँ जाकर कोई भी किताब पढ़ सकते हैं,हम पढ़ तो नहीं सकते लेकिन किताबें जमा करने का शौक़ रखते हैं,जमा करते वक्त ये सोचा करते थे कि शायद ये किताबें किसी के काम आ जाएं और देखिए ना आखिर किताबें आपके काम आ गईं,आलिमा बोली।।
जी!बहुत बहुत धन्यवाद,सत्यकाम बोला।।
धन्यवाद कैसा भाईजान!ऐसा कहकर हमें शर्मिंदा ना करें,आलिमा बोली।।
फिर सत्या लाइब्रेरी चला गया और किताबों में अपना मन लगा लिया,शाम हुई और फिर सेठ हजारीलाल जी आलिमा की हवेली पधारें और उन्होंने सत्यकाम को देखा तो फौरन बोल पड़े....
अरे!सत्या!तुम!पहचाना मुझे।।
ओह तो क्या आप भाईजान को पहले से जानते हैं,आलिमा ने हजारीलाल जी से पूछा।।
जी हाँ!हजारीलाल जी बोले।।
जी!सेठ जी!वही तो जब मैनें दीदी के मुँह से आपका नाम सुना तो मुझे ऐसा लगा कि मैं आपको पाहचानता हूँ और देखिए ना ये सही साबित हुआ,सत्यकाम बोला।।
मैं कितने सालों से तुम्हें ढूढ़ रहा हूँ सत्यकाम!सेठ हजारीलाल जी बोलें।।
वो किसलिए,सत्यकाम ने पूछा।।
अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए,जो मैनें तुम पर लाँक्षन लगाया था,झूठी चोरी का आरोप लगाकर अपने घर से निकाला था,मेरे मन में पाप था और मैनें तुम्हें पापी घोषित कर दिया,मुझे माँफ कर दो सत्या!मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और तब से आज तक मैं तिल तिलकर मर रहा हूँ,जब तक तुम मुझे माँफ नहीं कर दोगेँ तब तक मुझे चैन ना मिलेगा,हजारीलाल जी बोलें.....
उस बात को तो मैं ना जाने कब का भूल चुका हूँ सेठ जी!आप तब से आज तक उस बात को दिल से लगाएं बैठें हैं,सत्यकाम बोला।।
मैं बस तुमसे माँफी माँगना चाहता हूँ तुम एक बार अपने मुँह से कह दो कि तुमने मुझे माँफ कर दिया,सेठ हजारीलाल जी बोले।।
जी!हाँ!अब मैं सभी बन्धनों से मुक्त हूँ और सभी को भी बन्धनों से मुक्त करता हूँ,सत्यकाम बोला।।
ये क्या कह रहे हों सत्या ?सेठ हजारीलाल जी बोले।।
बिल्कुल सही कह रहा हूँ मैं उस मृगमरीचिका की खोज कर रहा था जो बाहर नहीं स्वयं मेरे भीतर थी,मुझे पहले ही इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए था जो मुझे छोड़ रहे हैं वो मेरे थे ही नहीं,अगर मेरे होते तो वें जीवनभर मेरे संग चलते,सत्यकाम बोला।।
सत्या तुम वैरागियों जैसी बातें करते हों,हजारीलाल जी बोले।।
बस,भ्रमजाल से निकल चुका हूँ,पहले भ्रमित और दिशाहीन था लेकिन अब नहीं,सत्यकाम बोला।।
इतनी कम उम्र में इतना ज्ञान,हजारीलाल जी बोले।।
ये सब छोड़िए और ये बताइएं कि मधुमालती दीदी और परमसुख कहाँ हैं?सत्यकाम ने पूछा।।
परमसुख तो शिमला में पढ़ता है और तुम्हारी दीदी मधुमालती भी सत्संग और ईश्वर की भक्ति में समय बिता रही है,उनका एक आश्रम है उस आश्रम का नाम भी तुम्हारे ही नाम पर ही हैं उस आश्रम का नाम सत्याश्रम है,वहाँ बेसहारा और गरीब महिलाओं को आश्रय दिया जाता है,तुम्हारी दीदी ने ही वो आश्रम खोला है और उसका कार्यभार एक महिला को सौंपा है,उस महिला की भी बड़ी दुखभरी कहानी थी,एक अच्छे परिवार की महिला को मजबूरीवश ऐसे घृणित कार्य को करना पड़ा,उस महिला ने मधुमालती से मदद माँगी और मधुमालती उसकी मदद के लिए तैयार भी हो गई और उनके कहने पर उनके ही जैसी कई महिलाओं को अपने आश्रम में आश्रय दिया,हजारीलाल जी बोले।।
ओह...ये तो दीदी ने बड़ा अच्छा कार्य किया,सत्यकाम बोला।।
तो क्या तुम अपनी दीदी से मिलना नहीं चाहोगे?वो तो तुम्हें देखकर चहक उठेगी,हजारीलाल जी बोलें।।
जी!जरूर!मिलना चाहूँगा उनसे,सत्यकाम बोला।।
तो फिर कल ही तुम आश्रम चले आओ,मैं दोपहर को अपनी मोटर भेज दूँगा,तुम्हें लेने के लिए,हजारीलाल जी बोले।।
जी!इसकी कोई जरूरत नहीं,मैं आ जाऊँगा,सत्यकाम बोला...
अरे!ऐसे कैसे,तुम्हें मोटर पर बैठकर ही आना होगा,हजारीलाल जी बोलें।।
ठीक है,जैसी आपकी इच्छा,सत्यकाम बोला।।
ये हुई ना बात,तो अब मैं चलता हूँ कल आश्रम में फिर से मुलाकात होगी,इतना कहकर हजारीलाल जी चले गए...
दूसरे दिन सत्या आश्रम पहुँचा,वहाँ उसकी मुलाकात मधुमालती से हुई,मधुमालती ने सत्या को आश्रम के सहायकों से मिलवाया,फिर मधुमालती सत्या को उन महिला के पास ले गईं जो आश्रम का कार्यभार सम्भाल रहीं थीं,सत्या ने उस महिला को देखा और खुशी से बोल पड़ा....
बिन्दू तुम और यहाँ!!
विन्ध्यवासिनी ने जैसे ही सत्या को देखा तो मारें खुशी के उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े,उसने सत्या से पूछा....
मेरी छोड़ो लेकिन तुम यहाँ कैसें?
बस,शांति और सुकून की तलाश में चला आया,सत्या बोला।।
मैं भी उसी तलाश में यहाँ आ पहुँची,विन्ध्यवासिनी बोली।।
दोनों की बातें सुनकर मधुमालती बोली....
ऐसा लगता है पुरानी जान पहचान है,आप दोनों बातें कीजिए,मैं बाहर हूँ और फिर इतना कहकर मधुमालती बाहर चली गई,तब विन्ध्यवासिनी सत्या से बोली.....
अब इस तवायफ़ की उम्र ढ़ल चुकी थी,इसलिए कोई भी ना पूछता था,जो बचत थी उसी से खर्चा चल रहा था फिर एक दिन मधुमालती बहन मिली और उन्हें मैनें आपबीती सुनाई,तब उन्होंने ही ये आश्रम खोलकर मुझ जैसी ना जाने कितनी तवायफ़ों को सहारा दिया,बहुत सुकून हैं यहाँ,कोई गालियांँ नहीं देता,कोई जलील नहीं करता,कोई हर रोज बेइज्जत नहीं करता।।
इतने सालों बाद दोनों ने मिलकर फिर से अपने दुख दर्द बाँटें,दोनों बहुत खुश थे एकदूसरे का साथ पाकर,यहाँ आश्रम पर अब उनके ऊपर कोई भी पाबन्दी ना थी,वें साथ में दिल खोलकर बातें कर सकते थे,
इसके बाद सत्यकाम आलिमा बानो के स्कूल में बालिकाओं को अंग्रेजी पढ़ाने लगा और आश्रम में भी आकर महिलाओं को साक्षर बनाने लगा,उसे अब ऐसा कार्य करके अपना जीवन सफल लगने लगा था,अब उसका निराशा से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था,सत्यकाम को आलिमा के यहाँ रहते छः महीने बीत चुके थे,अब आलिमा की बिमारी इतनी बढ़ चुकी थी कि वो अब बिस्तर से नहीं उठ पाती थी,इस दौरान सत्या ने आलिमा की बहुत देखभाल की बिल्कुल सगी बहन की तरह,इस बात से आलिमा बहुत खुश हुई और अपनी सारी वसीयत उन्होंने सत्या के नाम कर दी,सारी जिम्मेदारियाँ वें सत्या के हाथों सौंपकर एक दिन अल्लाह को प्यारी हो गईं.....
लेकिन अब सत्या को आलिमा की मौत ने ज्यादा परेशान नहीं किया क्योंकि अब वो जीवन-मरण के भ्रमजाल से बाहर निकल चुका था,आलिमा ने जो जिम्मेदारियाँ उसे सौपीं थीं वो उन्हें बखूबी निभा रहा था,अब वो अपने जीवन से प्रसन्न और संतुष्ट था,यही हाल विन्ध्यवासिनी का भी था,वो भी अब संसार के सभी बन्धनों से मुक्त थी,दोनों आश्रम में मिलते लोगों में ज्ञान का प्रकाश फैलाकर,अज्ञान रूपी अन्धकार मिटाते और लोगों को सुकून बाँटते....
कुछ ही दिनों में सत्या के कारण उस आश्रम की ख्याति फैल गई,जिसे भी शांति,संतुष्टि चाहिए होती थी वो सत्या के पास चला आता और उसकी मधुरवाणी को सुनकर धन्य हो जाता,ऐसे ही सत्या और विन्ध्यवासिनी ने उस आश्रम को बहुत सालों तक साथ में सम्भाला केवल मित्र बनकर,उन दोनों ने इतने लोगों के मन का कीचड़ साफ किया था कि अब उनका तन और मन गंगाजल की तरह पवित्र हो चुका था और वो पवित्रता उन दोनों के साथ मरते दम तक रही,पहले विन्ध्यवासिनी ने अपने प्राण त्यागेँ फिर इसके दो साल बाद सत्या इस संसार को छोड़कर चला गया और पीछे छोड़ गया अपने महानविचार ,जिनका अनुसरण करके कई लोगों ने अपने जीवन को सँवार लिया,जिसे समाज ने अय्याश का नाम दिया था उसने उस नाम को स्वयं में समाहित नहीं होने दिया,अपनी आत्मा को इतना शुद्ध बना लिया कि उससे मिलकर अशुद्ध व्यक्ति भी शुद्ध हो गया.....
कुछ लोंग केवल जन्म ही इसलिए लेते हैं कि वें समाज का कल्याण कर सकेँ,शायद सत्यकाम का जन्म इसलिए ही हुआ था....🙏🙏😊😊

समाप्त......
सरोज वर्मा.....