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अय्याश--भाग(३)

दीनानाथ जी फौरन इलाहाबाद आएं और लड़कों के कमरें पहुँचे,गंगाधर ने उन्हें फौरन गिलास में घड़े से पानी भरकर दिया लेकिन दीनानाथ जी ने पानी से भरा गिलास फेंक दिया और बोलें....
तुम लोगों का धरम भ्रष्ट हो चुका है,मैं तुम लोगों के हाथ से पानी भी नहीं पी सकता,मेरा धरम भी भ्रष्ट हो जाएगा,तुम लोगों ने एक चरित्रहीन औरत का अन्तिम संस्कार किया,कुल का नाम डुबोते शरम ना आई तुम तीनों को,समाज में नाम खराब कर दिया मेरा।।
लेकिन मामा जी उसमें रज्जो जीजी का कोई दोष ना था,सत्यकाम बोला।।
चुप कर नालायक! मुझसे जुबान लड़ाता है,तू ही इन सब चीजों का कर्ता धर्ता है,साथ में मेरे दोनों लड़कों को भी बिगाड़ दिया,दीनानाथ जी सत्यकाम पर चिल्लाएं।।
फिर दीनानाथ जी बोले....
तुम तीनों अब घर चलो,हो चुकी तुम लोगों की पढ़ाई-लिखाई,तुम लोंग यहाँ रह कर यही गुल खिलाओगें।।
और फिर सब गाँव आ गए लेकिन फिर सावित्री ने अपने पति दीनानाथ को समझाया बुझाया तब जाकर दीनानाथ जी तीनों लड़को को वापस इलाहाबाद भेजने को राज़ी हुए.....
ऐसे ही फिर सब सुचारु रूप से चलने लगा,लेकिन सत्यकाम की दूसरों की मदद करने की आदत ना छूटी थी,वो आएं दिन कुछ ना कुछ ऐसा करता रहता,जिससे गंगाधर और श्रीधर भी मुसीबत में पड़ जाते....
ऐसे ही एक बार की बात है तीनों के कमरें के बगल वाली कोठरी में एक मजदूर वो कोठरी लेकर किराएं पर रहता था जिसका नाम परशु था,गाँव में उसकी जमीन साहूकार ने हथिया ली थीं इसलिए मजबूर होकर वो इलाहाबाद में आकर मजदूरी करने लगा,जो कुछ मजदूरी से मिलता तो घर भेज देता,
सत्यकाम उसे काका कहकर पुकारता था और अक्सर आते जाते उससे बात कर लेता था एक बार उसे चेचक निकल आई और बहुत तेज बुखार आ गया,वो जब अपनी कोठरी से बाहर नहीं निकला तो सत्यकाम को कुछ संदेह सा हुआ,उसने उसकी कोठरी के बाहर से ही पुकारा....
काका! कल से दिखाएं नहीं दिए।।
बेटा! शायद चेचक निकल आई है,छूत का रोग है इसलिए बाहर नहीं निकला,बुखार की वजह से शरीर में हिम्मत ही नहीं रह गई है,खाना भी नहीं बनाया कल से,परशु बोला।।
ये सुनकर सत्यकाम विचलित हो गया,उसने फौरन अपने कमरें में आकर अंगीठी में दूध गरम किया और परशु को पिलाने उसकी कोठरी में चला गया,फिर वो दूध उसने परशु को पिलाया,डाक्टर को भी बुलाकर लाया,डाक्टर बोले....
संक्रमित रोग है,मैं रोगी के पास नहीं जाऊँगा,बस दवा दिए देता हूँ बुखार की उसे तो खिला देना,हो सकें तो तुम भी उसके पास मत जाओ।।
लेकिन सत्यकाम ने डाक्टर की बात नहीं मानी और दोनों भाइयों को गाँव भेज दिया,बोला कि किसी से मत कहना कि मैं परशु काका की सेवा कर रहा हूँ,तुमलोगों को गाँव इसलिए भेज रहा हूँ कि अगर परशु काका की सेवा करते हुए उन से ये रोग मुझे हो गया तो तुम लोंग तो बचे रहोगें....
भाइयों ने बहुत समझाया लेकिन दूसरों की सेवा करना ये तो सत्या का पागलपन था,वो कहता था कि मेरी आँखों के सामने कोई रोता तड़पता रहें और मैं उसकी मदद ना करूँ तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारेगी ,भाइयों के गाँव जाने के बाद सत्या परशु की सेवा में लग गया,अपने हाथों से खाना बनाकर उसे खिलाता,समय पर दवा देता और रात में दो बार जागकर उसकी कोठरी में उसकी तबियत देखने जाता,कुछ ही दिनों में परशु एकदम स्वस्थ हो गया और भगवान की दया से सत्या भी इस रोग से संक्रमित नहीं हुआ।।
सत्या के पागलपन की सीमा ना थी,गाय और कुत्तों को अपनी थाली की रोटियाँ खिला देता और खुद भूखा सो रह रहता,जब दोनों भाई देख लेते तो अपनी थाली से खिला देते नहीं देख पाते तो सत्या को भूखा रहने में कोई फर्क नहीं पड़ता वो कहता मेरे पेट में गया,जानवरों के पेट में गया एक ही बात है...
अब सत्या चौदह वर्ष का हो चुका था,कद-काठी में बाप पर गया था इसलिए लम्बा चौड़ा दिखता था,रंग भी एकदम साफ था,दीवाली की छुट्टियाँ हुई तो तीनों भाई गाँव पहुँचे,सत्या फौरन ही विन्ध्यवासिनी के घर उससे मिलने जाने लगा तो सत्यकाम की माँ वैजयन्ती ने उसे टोका....
क्यों रें?आते ही कहाँ चल दिया?
माँ! मैं तो बिन्दू से मिलने जा रहा था,सत्या बोला।।
सुन अब बिन्दू से मिलने मत जाया कर,वैजयन्ती बोली।
वो क्यों माँ? सत्या ने पूछा।।
वो अब किसी और की अमानत है? वैजयन्ती बोली।।
माँ! क्या कहती हो? मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा? सत्या बोला।।
मतलब ये कि अब उसकी सगाई हो चुकी है जल्द की उसकी शादी होने वाली है,अब वो अपने ससुराल चली जाएगी,वैजयन्ती बोली।।
लेकिन इतनी जल्दी उसकी शादी,सत्या ने पूछा।।
हाँ!वो तुझसे दो साल बड़ी भी तो है,सोलह की हो चुकी है,उसकी शादी तो करनी पड़ेगी,वैजयन्ती बोली।।
सच में बिन्दू चली जाएगी,सत्या ने पूछा।।
हाँ रे! सच में,वैजयन्ती बोली।।
फिर मैं किसके साथ खेलूँगा? सत्या ने पूछा।।
अपने भाइयों के साथ खेल,वैजयन्ती बोली।।
और फिर एक शाम सत्या,बिन्दू से मिलने गया और उससे पूछा....
तो तू ब्याह कर रही है?
बुआ ने कहा ब्याह करने को,बिन्दू बोली।।
बुआ कहेगी कि तू कुएँ में कूद जा तो कूँद जाएगी,सत्या बोला।।
तो फिर क्या करती मैं? बिन्दू ने पूछा।।
मना कर देती,सत्या बोला।।
लेकिन ब्याह करने में क्या बुराई है?नये कपडे मिलते हैं,नये गहने मिलते हैं,बिन्दू बोली।।
तो फिर मर जा! और इतना कहकर सत्या अपने घर चला आया,फिर अपने कमरें में जाकर तकिए में मुँह छुपाकर काफी देर तक रोता रहा.....
रात को उसने खाना भी नहीं खाया,सुबह नहर के किनारे की पुलिया पर बैठकर नहर के पानी में पत्थर फेंक रहा था तभी विन्ध्यवासिनी उसके पास पहुँची और उसके बगल में बैठ गई लेकिन बोली कुछ नहीं.....
तब सत्या ने कहा....
तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं,तू जा क्यों रही है?
जाना पड़ेगा और मुझे पता है कि मैं तेरी सबसे अच्छी दोस्त हूँ लेकिन दोस्ती तो बराबरी वालों में होती है,मैं तो तुझसे बड़ी हूँ ना! बिन्दू बोली।।
तब सत्या बोला....
तो क्या हुआ?राधा भी तो कान्हा से बड़ी थीं,लेकिन उनकी मित्रता को तो लोंग आज भी पूजते हैं,आज भी लोंग राधा-कृष्ण का नाम जपते हैं,मित्रता का रिश्ता तो बहुत पवित्र होता है,जो कि सिर्फ़ त्याग की बोली बोलता है,अगर मित्रता करके मैं तुमसे कुछ पाना चाहूँ तो भला कैसी मित्रता?
कृष्ण तो सर्वज्ञाता थे चाहते तो राधा से विवाह कर सकते थें लेकिन उन्होंने मित्रता के रिश्ते को कलंकित नहीं किया,हमेशा उसे पवित्र बनाएं रखा,जिसे संसार आज भी सम्मान देता है,कृष्ण की रानियों को वो स्थान नहीं मिला जो स्थान राधा को मिला,राधा ने संसार की भलाई के लिए कृष्ण का त्याग किया,उन्हें उनके कर्तव्यों को निर्वहन करने को कहा,तो मित्रता कभी छोटी या बड़ी नहीं होती,वो तो केवल पवित्र और त्यागमयी होती है,है ना!
अरे! तू तो बड़ा ज्ञानी हो गया है,बिन्दू बोली।।
ज्ञानी तो बनना पड़ेगा ना! अब तू नहीं रहेगी ना मेरी बेवकूफियांँ झेलने के लिए,,ये कहते कहते सत्या की आँखें भर आई और उसने अपना मुँह दूसरी ओर घुमा लिया.....
इतना सुनकर बिन्दू,सत्या की पीठ से लगकर रो पड़ी,अब तो सत्या भी खुद को सम्भाल ना पाया और वो भी यूँ ही दूसरी ओर मुँह घुमाएं हुए फूट फूटकर रो पड़ा,दोनों ने एकदूसरे से कुछ भी नहीं कहा बस रोते रहे....
गंगाधर भी तब तक नहर की पुलिया पर आ चुका था,बिन्दू ने गंगाधर को देखा तो चली गई.....
गंगाधर ने देखा कि सत्या की आँखें लाल हैं और उसने सत्या को अपने सीने से लगा लिया,गंगाधर के सीने से लगते ही सत्या एक बार फिर से फफक पड़ा.....
गंगाधर सत्या को ऐसे ही कुछ देर तक अपने सीने से लगाए रहा,फिर दोनों घर आ गए....
फिर गंगाधर ने घर में कहा कि हम दिवाली तक यहाँ नहीं रूक सकते,मेरी कुछ किताबें कमरें में छूट गईं हैं,मैं और सत्या इलाहाबाद जा रहे हैं,श्रीधर यहीं रहेगा....
गंगाधर ने इसलिए ये बहाना बनाया था कि वो सत्या को बिन्दू से दूर ले जाना चाहता था,वो सत्या को बहुत चाहता था और उसे दुखी नहीं देख सकता था,फिर दोनों इलाहाबाद आ गए,गाँव तभी गए जब बिन्दू की शादी का एक दिन शेष रह गया....
और शादी के एक दिन पहले की रात जिस रात बिन्दू की मेंहदी थी,बिन्दू के दोनों हाथों में मेंहदी लगी थी,सत्या के परिवार के सभी सदस्य बिन्दू के घर पर तैयारियों में लगें हुए थे,घर पर केवल सत्या,गंगा और श्रीधर ही थे ,तब सत्या गंगाधर से बोला....
मैं आखिरी बार बिन्दू से मिलना चाहता हूँ फिर कल वो ससुराल चली जाएगी।।
श्रीधर बोला....
जा! तू बिन्दू के घर चला जा,कहना माँ को बुलाने आया था।।
यही सही रहेगा,गंगाधर भी बोला।।
और फिर सत्या ,बिन्दू के घर माँ को बुलाने के बहाने चला आया,सुजाता सब समझ गई थी कि सत्या बिन्दू से मिलने आया है,सत्या बिन्दू के कमरें में चला गया और बोला....
मैं तुझसे थोड़ी देर बातें करना चाहता हूँ,
सुजाता बुआ भी तब तक कमरें में आ चुकी थी और बिन्दू को गले लगाकर बोली....
तू मेरी सगी बेटी नहीं है लेकिन भगवान साक्षी है कि मैने तुझे सगी बेटी से भी ज्यादा चाहा है,कल तू पराए घर चली जाएगी तो मैं तेरे बिन कैसे रहूँगी और इतना कहते ही बुआ की आँखों से झरझर आँसू बहने लगे।।
फिर बुआ सत्या से बोली....
सत्या ! तुझे जो बात करनी है बिन्दू से तो कर ले,मैं पीछे का दरवाजा खोल देती हूँ,तू इसे अपने घर ले जा,कोई पूछेगा तो कह दूँगी कि बिन्दू काफी थक गई थी इसलिए सो गई है,इसने खाना नहीं खाया है इसे खाना खिला देना,गंगा को भेज मैं खाना उसके हाथों भिजवा देती हूँ।।
फिर सत्या बिन्दू के संग अपने घर आ गया,कुछ देर में गंगा खाना ले आया और फिर गंगाधर और श्रीधर दोनों ही सत्या और बिन्दू को घर में अकेला छोड़कर बाहर निकल गए।।
सत्या ने पहले बिन्दू को अपने हाथों से खाना खिलाया,क्योकिं बिन्दू के हाथों में मेंहदी लगी थी,बिन्दू ने सत्या से बार बार कहा कि तुम भी खा लो लेकिन सत्या बोला....
पहले तू खा ले,मैं बाद में खा लूँगा।।
सत्या बिन्दू को खाना खिलाता रहा लेकिन उसने उस रात खाना नहीं खाया,खाना खाने के बाद आँगन में पड़ी दोनों अलग अलग चारपाइयों पर बिन्दू और सत्या लेट गए,आसमान में तारें टिमटिमा रहे थे और दोनों आसमान की ओर देख रहे थे दोनों एकदूसरे का चेहरा देखें बिना बातें कर रहे थें फिर सत्या बोला...
तू कल मुझे छोड़कर चली जाएगी तो मुझे तेरी बहुत याद आएगी।।
सच में! मुझे याद करेगा तू,बिन्दू ने पूछा।।
हाँ! सच बहुत याद करूँगा,अच्छा ये सब छोड़ ,ये बता तू मुझे याद करेगी या नहीं..सत्या ने पूछा..
तब बिन्दू बोली...जब कभी मैं आम के पेड़ की की छाया तले बैठा करूँगी तो मुझे तेरी याद आएगी,जब नहर में मुझे अपनी परछाई दिखाई देगीं तो मुझे तुम्हारी याद आएगी,जब कभी मैं तुम्हारी पसंद का रसोई में कुछ बनाऊँगी तो तब मुझे तुम्हारी याद आएगी,हर घड़ी हर पल मुझे तुम्हारी याद आएगी,मैं नहीं जानती कि ये क्या है?लेकिन मैं तुमसे दूर नहीं होना चाहती।।
और फिर अपनी अपनी चारपाई पर दोनों लेटे हुए आसमान की ओर मुँह करके बस रोते रहे ,ना सत्या ने बिन्दू को चुप कराया और ना बिन्दू ने सत्या को चुप कराया और फिर कुछ देर बार गंगाधर और श्रीधर आ गए फिर श्रीधर बोला....
सुजाता काकी ! बिन्दू को बुला रहीं हैं,बाहर खड़ी है ,इतना सुनकर फिर बिन्दू चली गई...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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