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अय्याश--भाग(११)

जब विन्ध्यवासिनी ने कोई जवाब ना दिया तो सत्यकाम ने फिर से पूछा....
पानी पिओगी बिन्दू! लाऊँ तुम्हारे लिए गिलास भरकर।।
नहीं! अभी मुझे प्यास नहीं है सत्या! विन्ध्यवासिनी बोली।।
चलो ! अभी तक तुम्हें मेरा नाम तो याद है ,सत्यकाम बोला।।
तुम्हारा नाम भला कैसें भूल सकती हूँ कभी? विन्ध्यवासिनी बोली।।
मुझे मुरारी ने सब बता दिया है, सत्यकाम बोला।।
क्या बता दिया है? विन्ध्वासिनी ने पूछा।।
तुम्हारे बारें में,सत्यकाम बोला।।
तो अब तुम तो मुझे गलत समझ रहे होगे,विन्ध्यवासिनी बोली।।
नहीं!अब भी तुम मेरे लिए वैसी ही पवित्र हो जैसी की तुम पहले थी,सत्यकाम बोला।।
मैं एक तवायफ़ हूंँ सत्या! और तवायफ़ कभी पवित्र नहीं होती,विन्ध्यवासिनी बोली।।
तो फिर लोगों की नज़रें खराब हैं लेकिन मेरी नहीं,सत्यकाम बोला।।
मेरी छोड़ो, तुम अपनी बताओ कि यहाँ कैसें ? यहाँ कोई नौकरी करते हो क्या?विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
नहीं! हालातों का मारा हूँ और भाग्य ने यहाँ ला पटका,सत्यकाम बोला।
कुछ समझी नहीं मैं!विन्ध्यवासिनी बोली।।
तुम ना ही समझों तो बेहतर होगा,बस इतना समझ लों कि ये दुनिया मुझे अपने साथ रहने के काबिल नहीं समझती,सत्यकाम बोला।।
लेकिन तुम में बुराई क्या है? विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
वो तो दुनिया ही जानें,मैं तो बस अपने मन की जानता हूँ,सत्यकाम बोला।।
तुम और तुम्हारी बातें सदा से ऐसी ही हैं,विन्ध्यवासिनी बोली।।
हाँ! मैं तो हूँ ही नासमझ! तुमसे दो साल छोटा हूँ ना! तुम बड़ी हो मुझसे इसलिए तो समझदार हो,सत्यकाम बोला।।
ये सुनकर विन्ध्यवासिनी को हँसी आ गई और वो बोली....
मैं बड़ी हूँ ना! तो अब तुम्हें मेरी बात माननी ही होगी।।
ठीक है! तुम भी अपनी दादागीरी दिखा लो,सत्यकाम बोला।
और क्या दादागीरी तो दिखाऊँगी ही तुम मेरे दोस्त जो ठहरें? विन्ध्यवासिनी बोली।।
बहुत दिनों बाद किसी अपने से बात कर रहा हूँ,अच्छा लग रहा है तुमसे बात करके,सत्यकाम बोला।
क्यों ? गंगाधर और श्रीधर सब कहाँ हैं? विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
सब वहीं होगें गाँव में या इलाहाबाद में,मैं तो ना जाने कबसे नहीं मिला उन सबसे,सत्यकाम बोला।।
क्यों?घर छोड़ दिया क्या? विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
घर कौन छोड़ना चाहता है? बस मामा जी ने घर से निकाल दिया,सत्यकाम बोला।।
लेकिन क्यों? तुमने ऐसा क्या किया था? विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
मैनें मानवता दिखाई और उन्होंने मेरी मानवता को ख़िलाफ़त समझ लिया,सत्यकाम बोला।
ओह.....तो ये बात है,तो अब क्या सोचा है? यहाँ क्या करोगें?विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।
पता नहीं,अभी तो कुछ नहीं सोचा,सत्यकाम बोला।।
ठीक है! अभी दो तीन दिन तुम हम लोगों के साथ ही ठहरो,फिर सोच लेना,विन्ध्यवासिनी बोली।।
ठीक है,सत्यकाम बोला।।
दोनों के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि इतने में मुरारी बाजार से सामान लेकर आ पहुँचा और बोला...
ये लीजिए! ब्राह्मण देवता आपका धोती ,कुरता और बिन्दिया बहन! ये रहा सामान और खाना,खाने के लिए साथ में पत्तल भी हैं,उनमें रख दो,चूल्हा जलाने को लकड़ियाँ सुबह खरीद लाऊँगा,बाजार पास ही है,साथ में सुबह खाना पकाने के लिए मिट्टी की हाण्डी और मिट्टी का तवा भी खरीद लाऊँगा।।
ठीक है मुरारी भइया!तुम सामान कोठरी में रख दो मैं तब तक स्नान करके आती हूँ,विन्ध्यवासिनी बोली।।
ठीक है तुम स्नान कर लो बिन्दिया बहन! मुरारी बोला।।
फिर विन्ध्यवासिनी ने अपने सन्दूक में से एक सूती धोती निकाली और स्नानघर की ओर चल दी,वहाँ से बाल्टी लाकर कुएँ से पानी भरा और नहाने चली गई।।
मुरारी ने सत्यकाम से कहा...
तो आपको कुछ खाने को दूँ।।
नहीं भाई! पहले स्नान करूँगा,नहीं तो रात भर नींद ना आएगी,सत्यकाम बोला।।
स्नान तो मैं भी करूँगा,मुरारी बोला।।
फिर सबने स्नान करके कोठरी के भीतर दिया जलाकर खाना खाया,उसके बाद विन्ध्यवासिनी तो कोठरी में ही जमीन पर एक चादर बिछाकर लेट गई ,मुरारी और सत्यकाम बाहर आँगन में चटाई बिछाकर लेट गए,फिर दोनों ऐसे ही कुछ बातें करते करते सो गए।।
सुबह हुई चिड़ियों की चहचहाहट से सत्यकाम जाग उठा,उसने देखा कि तब तक विन्ध्यवासिनी स्नान कर चुकी है और अपनी गीली धोती वो आँगन में बंँधी हुई रस्सी पर फैला रही है.....
उसके बाल गीले हैं इसलिए उसने अपने सिर पर पल्लू नहीं ले रखा है,उसके बाल अब भी बहुत खूबसूरत हैंं जैसे कि पहले हुआ करते थें,आज उसने उसका चेहरा ठीक से देखा है,कल वो पूरे समय पल्लू सिर पर लिए थी और शाम को तो अँधेरा हो चुका था इसलिए वो उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाया था,उसने देखा कि अब उसका चेहरा पहले सी तरह कान्तिमय नहीं रह गया है,शायद वक्त के थपेड़ों ने उसके कोमल चेहरें को बेज़ार बना दिया है,उसकी गहरी आँखों में अब केवल दुःख के भाव ही नज़र आते हैं,उसके चेहरे की हँसी झूठी और खोखली दिखाई देती है,लेकिन छरहरी तो वो अब भी पहले की तरह ही है,उसने कोई भी श्रृंगार नहीं कर रखा है,शायद पति की बेवक्त मौत ने उसकी उमंगो को भीतर से बिल्कुल से खतम कर दिया है,ना पैर में पायल ना हाथों में कंगन,सूना माथा और सूनी माँग,कैसी बिडम्बना है ये?
काश! मैं इसके लिए कुछ कर पाता,इसकी मदद कर पाता,कितना अच्छा हो कि अगर कोई शरीफ़ आदमी इससे ब्याह कर लें,लेकिन हमारे समाज में एक तवायफ़ से ब्याह करना घोर पाप माना जाता है,कोई भी राजी ना होगा इससे ब्याह करने को,माँफ कर देना बिन्दू मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता,सत्या ने मन में सोचा।।
बिन्दू ने अपनी धोती रस्सी में फैलाई और मुड़ी तो उसने देखा कि सत्या उसे बड़े गौर से देख रहा है तब उसने सत्या से पूछा....
जाग गए तुम! नींद ठीक से आई ना!
हाँ! स्नान करने के बाद जो नींद आई ना ! अब जाके आँख खुली है,स्नान ना करता तो सो ही ना पाता,सत्या बोला।।
मुरारी भइया कहाँ गए सुबह सुबह? बिन्दू ने पूछा।।
मुझे क्या मालूम ?मैं तो सो रहा था,सत्या बोला।।
तभी मुरारी बाहर से आया,साथ में धर्मशाला का नौकर हजारी भी था ,उसने बिन्दू से कहा....
बिन्दिया बहन! ये लकड़ियाँ और ये कुछ मिट्टी के बरतन लाने गया था,साथ में ताजें पत्तों के पत्तल भी मिल गए इसलिए संग लेता चला आया,अब तुम आराम से खाना बना सकती हो,बिना ईधन के खाना कैसें बनाती भला! सामान ज्यादा लाना था इसलिए हजारी को भी संग ले गया था।।
हाँ! और सुबह सुबह हमें भी घसीट ले गए अपने संगें संगें,हजारी बोला।।
ले ये जलेबी खा ले,बड़ा आया शिकायत करने वाला,मुरारी बोला।।
वो तो हम जरूर खाएंगे,लाओ हमाई जलेबी दे दो,हम जा रहें हैं और फिर हजारी अपने हिस्से की जलेबी लेकर चला गया।।
फिर मुरारी बोला....
बिन्दिया बहन ! ये रहीं जलेबियाँ और ये छोटी सी मटकी में दूध है,इसे गरम कर लों,फिर स्नान करके सभी दूध जलेबी का नाश्ता करेगें।।
ठीक है भइया! मैं दूध गरम कर देती हूँ,बिन्दू बोली।।
तो ब्राह्मण देवता! आप पहले स्नान करेगें या मैं पहले कर लूँ,मुरारी ने सत्या से पूछा।।
मुरारी भइया! तुम्ही पहले स्नान कर लो,मैं बाद में स्नान कर लूँगा,सत्या बोला।।
कुछ देर में सबने स्नान करके नाश्ता कर लिया फिर मुरारी बोला....
मैं आज जमींदार साहब का घर देखने जाऊँगा,आखिर कहाँ रहते हैं वो? ताकि बाद में वहाँ जानें में आसानी रहें।।
ठीक है तो कब तक निकलोगे,मुरारी भइया!बिन्दिया ने पूछा...
बस,थोड़ी देर में ही ,मुरारी बोला।।
तो फिर मैं भोजन तैयार कर लेती हूँ,बिन्दू बोली।।
ना! अभी तो दूध जलेबी खाई है,खाना तो दोपहर तक ही खाऊँगा,अभी नहीं बाद में बनाना भोजन,मुरारी बोला।।
ठीक है तो क्या बना लूँ? बिन्दिया ने पूछा।
जो ब्राह्मण देवता को पसंद हो ,मैं तो कुछ भी खा लूँगा,मुरारी बोला।।
तो क्या तुम्हारे ब्राह्मण देवता एक तवायफ़ के हाथ का बना खाना खाऐगें,उनका धरम भ्रष्ट ना हो जाएगा,बिन्दू बोली।
अरे! ये तो मैनें सोचा ही नहीं,मुरारी बोला।।
आप बिल्कुल परेशान ना हों,मुझे इन सब बातों से कोई फरक नहीं पड़ता,मैं सिवाय मानवता के और किसी धरम को नहीं मानता,सत्या बोला।।
तब ठीक है अब मुझे तसल्ली हो गई,मुरारी बोला।।
फिर उन सब के बीच यूँ ही बातें होतीं रहीं,कुछ ही देर में ही मुरारी चला गया और फिर बिन्दिया सत्या की बिन्दू बनकर उससे बात करने लगी और उससे पूछा....
अच्छा! बताओ कि क्या खाओगे? आज वही बनाती हूँ,बिन्दू बोली।।
मुझे तुम्हारे हाथ की वो आलू टमाटर की तरी वाली सब्जी खानी है जिसमें तुम ढ़ेर सा हरा धनिया डालकर बनाती थीं और साथ में गरमागरम पूरियाँ हो तो बस मज़ा ही आ जाएं,सत्या बोला।।
तब तो बहुत ही अच्छा,मैं वही बनाएं लेती हूँ,सब्जी तैयार कर के रख लेती हूँ,आटा गूंथ कर रख लेती हूँ,मुरारी भइया के आने पर गरमागरम पूरियाँ तल दूँगीं,बिन्दू बोली।।
ठीक है लाओ कुछ मदद करानी हो तो कर दूँ,सत्या बोला।।
नहीं इतना तो मैं कर ही लूँगी,बाहर सार्वजनिक सिलबट्टा रखा है उसमें मासाला पीसकर लाती हूँ,बिन्दू बोली।
और फिर खुशी खुशी बिन्दू मसाला लेकर पीसने बाहर चली आई,तो वहाँ पहले से एक औरत सिलबट्टे पर मसाला पीस रही थी,बिन्दू वहीं खड़ी होकर इन्तज़ार करने लगी कि सिलबट्टा खाली होते ही वो भी मसाला पीस लेगी,लेकिन तभी उस औरत ने बिन्दू से पूछा....
घूमने आई हो।।
अब बिन्दू क्या जवाब देती उसने हाँ में जवाब दे दिया।।
शायद दो लोंग ठहरे हैं तुम्हारे संग,उस औरत ने पूछा।।
हाँ! बिन्दू बोली।।
एक तो तुम्हारा भाई है जिसे तुम मुरारी भइया कहती हो और दूसरा कौन है तुम्हारा पति,लेकिन ना तुम्हारे माथे में बिन्दी है और ना माँग में सिन्दूर तो वो तुम्हारा पति कैसे हुआ?उस औरत ने पूछा।।
जी! आप अपना काम कीजिए,किसी के व्यक्तिगत मामले से आपको क्या लेना देना? बिन्दू बोली।।
वाह..जी! छिछोरी हरकतें करो तुम और मैं पूछूँ भी ना! वो औरत बोली।।
जी! आप ये कैसीं बातें कर रही हैं? बिन्दू बोली।।
वैसी ही जैसी मुझे करनी चाहिए,वो औरत बोली।।
फिर बिन्दू कुछ ना बोली और अपने कमरें की ओर आने लगी तभी वो औरत बोली....
ऐसी ही औरतें तो समाज को खराब करतीं हैं,जवाब नहीं है इसलिए तो जा रही है।।
कोठरी से सत्या सब सुन रहा था ,उससे रहा ना गया और वो बाहर आकर बोला...
क्या मतलब है आपके कहने का?
वही जो तुम समझ रहे हो,वो औरत बोली।।
देखिए आप जुबान सम्भालकर बात कीजिए,सत्या बोला।।
ओहो....देखो तो शरीफजादे को कैसे शराफत टपक रही है चेहरे से,वो औरत बोली।।
देखिए बहनजी! अब आप हद पार कर रही हैं,सत्या बोला।।
हदें तो तुम दोनों ने लाँघ रखीं हैं,वो औरत बोली।।
ज्यादा चिल्लमचिल्ली की वज़ह से अब उस औरत का पति भी अपनी कोठरी से बाहर आ गया और अपनी पत्नी से पूछा....
क्या बात है? क्या हुआ?
वो औरत बोली....
मुझसे क्या पूछते हो उससे पूछो?उसने सत्या की ओर इशारा करते हुए कहा....
जब उस के पति ने सत्या को देखा तो बोला.....
अरे! तुम तो दीनानाथ जी के भांजे हो ना!

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....


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