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अय्याश--भाग(९)

जब वीरेन्द्र ने मलखान से बोल-चाल बंद कर दी तो मलखान इस अपमान से तिलमिला गया और वो मन ही मन विन्ध्यवासिनी से बदला लेने की सोचने लगा,उसने सोचा अपने अपमान का बदला लेने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा,इसलिए वो इसके लिए योजनाएं बनाने लगा उसने सोचा पहले मैं सबसे माँफी माँग लेता हूँ जिससे मुझे वीरेन्द्र के घर में फिर से घुसने को मिल जाएगा और फिर मैं अपने अपमान का बदला आसानी से ले सकता हूँ,यही सोचकर वो एक दिन वीरेन्द्र के गोदाम पर पहुँचा और आँखों में झूठ-मूठ के आँसू भरकर उसके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगा और बोला....
वीरेन्द्र भाई! मुझे माँफ कर दो! मैं उस दिन के किए पर पछता रहा हूँ ,ना जाने मुझे उस दिन क्या हो गया था? कौन सा शैतान मेरे ऊपर हावी हो गया था जो मैनै भाभी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करने की चेष्टा की,मैनें ऐसा पाप करने की कोश़िश की उस देवी के साथ,भगवान मुझे नर्क में भी जगह ना देगा।।
उसकी बात सुनकर वीरेन्द्र बोला....
मैं तुम्हें माँफी देने वाला कौन होता हूँ? माँफी तो तुम्हें मेरी माँ और उस देवी से माँगनी चाहिए,जिसका तुमने अपमान किया।।
मैं सबकुछ करने को तैयार हूँ,बस एक बार मुझे तुम्हारी माँ और भाभी माँफ कर दें,कान पकड़ता हूँ आगें से फिर कभी ऐसी गलती ना होगी,मलखान बोला।।
लेकिन तुमने जो किया है ना !विन्ध्यवासिनी के साथ वो क्षमायोग्य नहीं है,तुमने उस पर कुदृष्टि डाली जो तुम्हें इतना मान और इज्जत देती थी,वीरेन्द्र बोला।।
उस समय मेरी अकल पर हवस का पर्दा पड़ गया था भाई !जो मैनें ऐसा घृणित कार्य किया,मलखान बोला।।।
मेरे माँफ करने से कुछ नहीं होगा,जब तक विन्ध्यवासिनी तुम्हें माँफ नहीं कर देती तो मैं भी तुम्हें माँफ नहीं करूँगा,वीरेन्द्र बोला।।
तो अभी घर चलो मेरे साथ ,मुझे भाभी से माँफी माँगनी है,मलखान बोला।।
अभी बहुत काम है तुम शाम को गोदाम आ जाना फिर यही से इकट्ठे घर चल चलेगें तब तुम विन्ध्यवासिनी से माँफी माँग लेना,वीरेन्द्र बोला।।
ठीक है तो मैं शाम को आ जाता हूँ और इतना कहकर मलखान चला गया फिर शाम को दोनों घर गए और जैसे ही मायावती ने द्वार खोला तो मलखान को सामने देखकर भड़क उठी और बोली....
तू! तू फिर यहाँ आ गया,उस दिन का थप्पड़ भूल गया क्या? मेरे घर में व्यभिचारी व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है,निकल जा मेरे घर से।।
मायावती का गुस्सा उस समय साँतवें आसमान पर था और माँ को इतना क्रोधित वीरेन्द्र भी पहली बार देख रहा था ,इसलिए वो भी कुछ ना बोला और तब मलखान को कोई रास्ता ना सूझा इसलिए वो फौरन मायावती के चरणों पर गिर पड़ा और बोला.....
माँ....माँफ कर दो माँ! फिर आगें से ऐसी गलती कभी ना होगी,चाहो तो जितनी भी गाली दे लो चाहो तो जितने भी थप्पड़ मार लो लेकिन खुद से दूर ना करो माँ!मुझ अभागे को इतने सालों के बाद तो माँ का प्यार नसीब हुआ था,मेरी सगी माँ तो मुझसे रूठकर भगवान के पास चली गई,तुम भी रूठ जाओगी तो मैं तो अनाथ हो जाऊँगा,अपनी शरण मे ले लो माँ ! माँफ कर दो।।
मलखान की भावुकतापूर्ण बातें सुनकर मायावती का मन पसीज गया वो चाहती तो थी कि मलखान से कह दे कि जा माफ किया मैने, लेकिन वो ऐसा नहीं बोली,उसने कहा....
बहु माँफ कर देगी तब मैं भी माँफ कर दूँगी,क्योकिं तेरे कारण सबसे ज्यादा ठेस तो उसी को लगी है,वो तुझे अपना भाई समझ रही थी और तू उसकी बेइज्जती करने पर उतारू हो गया।।
हाँ! मैँ उनसे भी माँफी माँग लेता हूँ कहाँ भाभी उन्हें बुलाइए,मलखान बोला।।
तब मायावती ने विन्ध्यवासिनी को आवाज़ दी....
बहु....बहु...बाहर तो आ!
विन्ध्यवासिनी भीतर से ये सब सुन रही थी और बाहर आकर बोली....
ये अधर्मी,राक्षस फिर से यहाँ आ गया,मैं इसकी शकल भी नहीं देखना चाहती।।
तब मलखान विन्ध्यवासिनी के पैरों तले गिरकर बोला....
माँफ कर दो भाभी! इस अधर्मी को माँफ कर दो,फिर दोबारा ऐसा कभी नहीं होगा,मलखान बोला।।
मैं तुम पर अब भरोसा नहीं कर सकती,जो एक बार ऐसा घृणित कार्य कर चुका हो उस पर कैसें भरोसा किया जा सकता है?इसका क्या प्रमाण है कि तुम आगें से ऐसा नहीं करोगें?विन्ध्यवासिनी बोली।।
मेरे आँसू ही मेरे पाश्चाताप के प्रमाण हैं अगर आपको मुझ पर भरोसा नहीं है तो आज के बाद मैं आपके द्वार पर फिर कभी भी कदम नहीं रखूँगा और इतना कहकर मलखान विन्ध्यवासिनी के चरणों पर से उठा और जाने लगा....
ये देख विन्ध्यवासिनी का मन पिघल गया और उसने मलखान से कहा....
रूको...चलो तुम्हें माँफ किया और इतना कहकर विन्ध्यवासिनी भीतर चली गई,उस दिन के बाद मलखान फिर से वीरेन्द्र के घर आने लगा लेकिन अब विन्ध्यवासिनी एक बार धोखा खाकर सावधान हो चुकी थी, मलखान जब भी घर आता तो वो कोश़िश करती कि उसे बाहर ना निकलना पड़े,खाने पीने का सामान वो अपनी सास के हाथों भिजवा देती।।
मलखान को विन्ध्यवासिनी का ये रवैया अच्छा ना लगता था,वो मन ही मन सोचता था कि इसका गर्व एक दिन मैने चूर ना कर दिया तो मेरा नाम मलखान नहीं,वो तो केवल किसी भी हाल में विन्ध्यवासिनी को पाना चाहता था,विन्ध्यवासिनी एक स्वाभिमानी महिला थी और किसी भी हाल में अपने स्वाभिमान को खोना नहीं चाहती थी।।
और फिर एक दिन मौका पाकर मलखान ने अपना बदला लेने की ठानी,उसने दो दिन के लिए गाँव से कहीं बाहर जाने को कहा ,उसनें वीरेन्द्र से कहा कि वो अपनी कुलदेवी माता के मन्दिर जा रहा है,हर साल वहाँ वो भण्डारा करवाता है,कुछ दान-दक्षिणा भी देता है,अगर तुम्हें चलना हो तो कहो,वीरेन्द्र ने अपनी माँ से पूछा कि चला जाऊँ....
माँ बोली,तू अकेला मत जा मैं भी तेरे साथ चलती हूँ,ये सुनकर मलखान बोला....
तब तो और भी अच्छा रहेगा,कल सुबह की बस पकड़ कर सब निकल चलते हैं,एक रात मन्दिर की धर्मशाला में ठहरकर दूसरे दिन वापस आ जाऐगें...
जब विन्ध्यवासिनी को ये बात पता चली तो उसे कुछ शक़ सा मालूम हुआ और उसने उन दोनों को वहाँ जाने से रोकना चाहा तो सास मायावती बोली...
बहु! धर्म का काम है,वैसे भी कहीं तो जा नहीं पाते ,देवी के दर्शन का मौका मिल रहा है तो क्यों गँवाना?ऐसा मौका कभी कभी तो मिलता है।।
सास की बात सुनकर फिर विन्ध्यवासिनी कुछ ना बोल सकी लेकिन तब उसके दिमाग़ में एक विचार कौंधा,उसने अपनी सास से कहा....
आप दोनों जा रहे हैं तो क्या मैं घर में अकेली रहूँगी?मैं भी साथ चलती हूँ देवी के दर्शन मुझे भी हो जाऐगें।।
हाँ! बहु! तू भी चल,मैने कब मना किया? मायावती बोली।।
फिर दूसरे दिन सुबह सुबह सब निकल पड़े,दो घण्टे के सफ़र के बाद एक जगह मलखान ने बस रूकवाई ,सब बस से उतर गए,तब वीरेन्द्र ने पूछा....
यहाँ तो कोई मन्दिर नहीं दिख रहा....
मन्दिर यहाँ से दो कोस भीतर है,वहाँ काफी चहलपहल रहती है,इस पक्की सड़क पर तो केवल बस ही रूकती है,वीरेन्द्र ने तो भरोसा कर लिया लेकिन विन्ध्यवासिनी को थोड़ा संदेह हुआ,लेकिन तब भी वो कुछ ना बोली....
पक्की सड़क से दो कोस चलने के बाद एक पहाड़ी पर माता का मन्दिर सच में दिखाई दिया,तब मलखान बोला....
देखो वो रहा मन्दिर और मेरे नौकर तो यहाँ कल ही आ गए थे सारा इन्तजाम करने,अब तक तो उन्होंने सारा काम शुरु करवा ही दिया होगा, जब सबने वहाँ पहुँचकर देखा तो सच में वहाँ भण्डारे का काम जारी था,शाम तक वहाँ भण्डारा चला,रात सबने धर्मशाला में ब्यतीत की और दूसरे दिन सुबह माता के दर्शन करके वापस आ गए....
ये नाटक मलखान ने वीरेन्द्र और उसकी माँ को विश्वास में लेने के लिए किया था क्योकिं उसके दिमाग में तो कुछ और ही षणयन्त्र चल रहा था,ऐसे ही एक महीने और बीते गए तब मलखान बोला....
कल मेरे स्वर्गीय दादाजी का जन्मदिन है,पिता जी ने कुलदेवी के मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने को कहा है अगर तुम भी चलोगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा,इस बार भी वीरेन्द्र ने मलखान की बात मान ली,साथ में मायावती और विन्ध्यवासिनी भी चलने को तैयार हो गई क्योकिं पहली बार वहाँ के मन्दिर के दर्शन करके उन्हें अच्छा लगा था और अब मलखान पर विश्वास भी हो गया था।।
सब वहाँ पहुँचे लेकिन इस बार पहले जैसी रौनक नहीं थी तब मलखान बोला....
तब भण्डारा था इसलिए अपने सभी जानने वाले को बुलाया थामैनें यहाँ,अब यहाँ ज्यादा लोंग नहीं है इसलिए ऐसा सूना सूना लग रहा है,लेकिन घबराने की बात नहीं है वो देखों मन्दिर की पहाड़ी के पीछे की तरफ लोंगो की बस्तियाँ हैं,इलाका इतना भी सुनसान नहीं है,वहाँ भी लोंग रहते हैं मन्दिर के पुरोहित जी तो अभी यहाँ हैं ही ,शाम को तो वें भी नीचें उतरकर अपने घर चले जाते हैं।।
दिन भर मंदिर में ब्यतीत करने के बाद रात को विन्ध्यवासिनी ने धर्मशाला के आंँगन में साथ में लाए सामान से चूल्हें में रोटियां सेकीं और कुछ आलू भूनकर भोजन तैयार कर लिया ,तब तक सब मन्दिर के आँगन में बैठकर प्रसाद खा रहे थे और पुरोहित जी मंदिर से नीचे उतरकर गाँव चले गए थे ,मंदिर में केवल यही चार लोंग बचे थें,फिर दिए की रोशनी में सबने खाया और सोने चले गए,लेकिन रात में मायावती को अचानक उल्टियाँ शुरु हो गई,
विन्ध्यवासिनी उठी और माँ को बाहर लेकर आई, वो माँ को सम्भाल ही रही थी कि इतने में वीरेन्द्र को भी उल्टियाँ होने लगी अब तो विन्ध्यवासिनी परेशान हो उठी कि कैसे दोनों को सम्भाले?गाँव होता तो वैद्य को बुलवा लेती,अन्जानी जगह और वो भी पहाड़ के ऊपर,दोनों की ऐसी हालत देखकर मलखान मुस्कुराता हुआ आया और विन्ध्यवासिनी से बोला....
बहुत गुरूर था ना तुझे अपने रूप पर ,अब देख इन दोनों की दशा और साथ में अब तेरी भी दुर्दशा होगी ,उस दिन मेरा अपमान किया था ना! लें!.... ले लिया मैनें अपने अपमान का बदला,आज तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती,आज तेरी सब अकड़ निकालूँगा।।
क्या बकते हो?विन्ध्यवासिनी बोली।।
हाँ! शाम को मैने जो इन दोनों को प्रसाद खिलाया था उसने मैनें जह़र मिलाया था,बस कुछ ही देर में इन दोनों का काम तमाम हो जाएगा और बुलबुल मेरे पंजे में होगी,मलखान बोला।।
निर्लज्ज! पापी! तुझे लाज ना आई,मायावती बोली।।
माँ...माँ...जी! उस दिन जो थप्पड़ आपने मुझे मारा था ,उसका हिसाब भी तो चुकता करना था,मलखान बोला।।
कमीने! तूने ये चाल चली,अपना बदला पूरा करने के लिए,वीरेन्द्र चीखा...
ज्यादा मत चीख अभी तेरी साँसें बस खत्म ही होने वालीं हैं,मलखान बोला।।
पापी! नीच! मैं तेरा खून पी जाऊँगी,विन्ध्यवासिनी चीखी।।
अब चीखने से कुछ होने वाला नहीं मेरी जान!मलखान बोला।।
और विन्ध्यवासिनी अपने पति और सास को सम्भालने में लग गई लेकिन धीरे धीरे दोनों की साँसें मद्धम होतीं जा रहीं थीं और नब्ज़ गिरती जा रही थी।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....



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