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अय्याश--भाग(८)

उस तवायफ़ को नाश्ता देकर सत्या फौरन डिब्बे से बाहर चला आया और बाहर आकर एक पेड़ के नीचें बैठ गया फिर कुछ सोचते हुए उसकी आँखों से दो आँसू भी टपक गए,वो कुछ देर यूँ ही बैठा रहा फिर उठा और अनमने मन से स्टेशन के बाहर आ गया....
काफी देर बाद अपना कार्य पूर्ण करके वो वापस अपने डिब्बे पर पहुँचा,वहाँ मुरारी नाश्ते के लिए उसका इन्तजार कर रहा था,मुरारी ने उसे देखते ही कहा....
आ गए ब्राह्मण देवता! बड़ी देर लगा दी,रेलगाड़ी बस आधे घण्टे में यहाँ से निकलने वाली है।।
हाँ!रातभर से इस डिब्बे में ही तो था,बाहर अच्छा लग रहा था इसलिए रुक गया,सत्यकाम बोला।।
आपने उन्हें नाश्ता पहुँचा तो दिया था ना! मुरारी ने पूछा।।
जी! हाँ! पहुँचा दिया था,सत्यकाम ने जवाब दिया।।
बड़ी मुसीबत की मारी है बेचारी! मुरारी बोला।।
कौन? मुसीबत की मारी है,सत्यकाम ने पूछा।।
वही जिसे आप नाश्ता देने गए थे,मुरारी बोला।।
क्यों ऐसा क्या हुआ था उनके साथ? सत्यकाम ने पूछा।।
मत पूछो,बेचारी का हाल,बड़े शरीफ़ घराने से हैं लेकिन हालातों ने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया,मुरारी बोला।।
क्या आप सब जानते हैं उनके बारें में? सत्यकाम ने पूछा।।
जी! हाँ! पहले आप नाश्ता कर लीजिए,फिर मैं आपको उसकी सारी कहानी सुनाता हूँ,मुरारी बोला।।
ठीक है और इतना कहकर सत्यकाम नाश्ता करने लगा,कुछ देर के बाद सत्यकाम का नाश्ता खत्म हुआ और उसने मुरारी से उस तवायफ़ की कहानी सुनाने को कहा,तब मुरारी ने उस तवायफ़ की कहानी सुनानी शुरू की.....
उसके माँ बाप ने उसका नाम विन्ध्यवासिनी रखा था,बचपन में ही माँ बाप उसे अनाथ करके चले गए तो उसे उसकी बुआ अपने साथ अपने गाँव ले आई,वहाँ उसकी बुआ और फूफा ने उसका बहुत अच्छी तरह से ख्याल रखा क्योकिं बुआ की अपनी कोई सन्तान नहीं थीं,फिर कुछ साल बुआ के पास रहने के बाद बुआ ने एक अच्छा सा घर ढ़ूढ़कर उसका ब्याह कर दिया,विन्ध्यवासिनी अपने ससुराल आ गई,
ससुराल में उसकी विधवा सास मायावती पति वीरेन्द्र और छोटा देवर रवीन्द्र थे,पति थोक अनाज का व्यापारी था,मुनासिब दाम पर गाँव के किसान से थोक के भाव गेहूँ,चावल,दालें खरीदकर शहर में बेंचता था,अपने गाँव के गोदाम में वो ये सब इकट्ठा करके रखता था,वीरेन्द्र में कोई ऐब नहीं था,वो बहुत ही खुशमिजाज और दरियादिल इन्सान था,अपनी माँ की बहुत इज्जत करता था और पत्नी विन्ध्यवासिनी से बहुत प्यार करता था,रवीन्द्र उससे उम्र में काफी छोटा था वो उसे भी बहुत चाहता था,शहर के हाँस्टल में उसने रवीन्द्र को भरती करवा दिया था,वो वहीं रहकर पढ़ाई कर रहा था।।
वीरेन्द्र के पास किसी चींज की कोई कमी नहीं थी,गाँव के सारे किसान उसकी इज्जत करते थे,अपने पिता के छोटे से कारोबार को बढ़ाकर उसने खूब बड़ा कर दिया था,उसके खुद के भी खेत थे जिस पर वो गरीब लोगों से खेती करवाकर उस खेत की आधी उपज उन्हें दे देता था और आधी अपने पास रख लेता था।
वीरेन्द्र का जीवन सुचारू रूप से गतिमान था,तभी उस गाँव के जमींदारन का बेटा शहर से पढ़कर लौटा और उसने देखा कि वीरेन्द्र दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था तो मन ही मन जलभुन कर राख हो गया,उसने अपने पिता से कहा कि आप यहाँ के जमींदार हैं और मुनाफा ये कमा रहा है,इसे इस गाँव से निकालने के लिए के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।
चूँकि जमींदार एक अच्छे इन्सान थे इसलिए जमींदार शिवप्रसाद सिंह ने अपने बेटे को समझाया कि वो अपने भाग्य और मेहनत से कमा रहा है,हमें इससे क्या लेना देना? हमारे पास किस चीज की कमी है जो तू उसकी दौलत पर नजर गड़ाए बैठा है लेकिन जमींदार के बेटे को अपने पिता की बात समझ नहीं आई और उसने वीरेन्द्र से पंगा लेने का सोचा।।
वो एक दिन वीरेन्द्र के गोदाम आया और उससे बोला....
मुझे पहचाना!
जी!नहीं! वीरेन्द्र बोला।।
कैसें पहचानेगें ? मैं अभी तो शहर से पढ़ाई पूरी करके लौटा हूँ,जमींदार का बेटा बोला।।
जी! अपना परिचय दीजिए तभी तो पहचानूँगा,वीरेन्द्र बोला।।
मैं यहाँ के जमींदार शिवप्रसाद सिंह का बेटा मलखान सिंह हूँ,जमींदार का बेटा बोला।।
ओहो....पहचाना...पहचाना तो आप जमींदार साहब के बेटे हैं,बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर,वीरेन्द्र बोला।।
मुझे ये काम सीखना है,क्या मुझे सिखाएंगें?मलखान ने पूछा।।
जी! आपको ये काम सीखने की क्या जरूरत आ पड़ी? आप के यहाँ किस चींज की कमीं है,वीरेन्द्र बोला।।
जी! कमी तो नहीं लेकिन दौलत किसे बुरी लगती है जितनी भी हो और पाने की ख्वाहिश तो रहती ही है,मलखान बोला।।
हा....हा...हा....हा....ये भी खूब कही आपने,मज़ेदार इन्सान मालूम पड़ते हैं आप! वीरेन्द्र हँसते बोला।।
जी! मैं सच में मज़ाक नहीं कर रहा,मुझे ये काम सीखना है,मलखान बोला।।
मेरे तो भाग्य खुल गए जो आप मुझसे ये काम सिखाने को कह रहे हैं,वीरेन्द्र बोला।।
कहिए ना ! तो आ जाऊँ कल से आपके गोदाम पर ये काम सीखने,मलखान ने फिर पूछा।।
जी! जरूर!आपका स्वागत है,आज से ही सीखना शुरू कर दीजिए,वीरेन्द्र बोला।।
और फिर उस दिन वीरेन्द्र मलखान की मीठी मीठी बातों में आ गया और मलखान ने वीरेन्द्र से गहरी दोस्ती कर ली,एक दिन ऐसे ही दोपहर का समय था,उस दिन मलखान गोदाम पर ही था और वीरेन्द्र दोपहर का खाना खाने जा रहा था,वहीं गोदाम के पास लगें नीम के पेड़ के नीचे ,तो उसने मलखान से भी खाना खाने के लिए पूछा,मलखान बोला.....
आप खाइए,मैं बस थोड़ी देर में घर के लिए निकल रहा हूँ,वहीं खा लूँगा।।
आइए भी ,हमारी पत्नी के हाथ का बनाया खाना खाकर आप को फिर किसी और के हाथों का खाना अच्छा नहीं लगेगा,वीरेन्द्र बोला।।
अच्छा! तो ये बात है तो अब तो आपकी पत्नी के हाथों का बना खाना जरूर खाना पड़ेगा और इतना कहकर मलखान हाथ धोकर खाना खाने बैठ गया,खाना वाकई में लजीज था जोकि मलखान को बहुत पसंद आया तब मलखान बोला.....
खाना तो बहुत ही स्वादिष्ट बनातीं हैं भाभी जी,कभी घर भी बुलाइए हमें खाने पर।।
जी! जरूर! कल ही शाम को पधारिए,आप अपनी पसंद बता दीजिए,मैं वही बनवाकर रखूँगा,वीरेन्द्र बोला।।
जी! जो भाभी जी को पसंद हो तो वें वही बना लें,मलखान बोला।।
ठीक है तो कल शाम को तेयार रहिएगा,वीरेन्द्र बोला।।
और फिर दूसरे दिन शाम को मलखानसिंह वीरेन्द्र के घर पहुँचा,वीरेन्द्र ने अपनी माँ और अपनी पत्नी से मलखान सिंह का परिचय करवाया तो मलखान सिंह ने जैसे ही विन्ध्यवासिनी का रूप देखा तो उस मंत्रमुग्ध हो उठा,खाना खाकर जब वो अपने घर लौटा तो विन्ध्यवासिनी के ही ख्यालों में डूबा रहा,मलखान वैसे भी अय्याश किस्म का इन्सान था,शहर की बदनाम गलियों से उसका गहरा नाता था,शराब और जुएँ से भी उसको परहेज़ ना था लेकिन अभी गाँव में वो वीरेन्द्र के सामने अच्छा बनने का दिखावा कर रहा था,उसकी बुरी नियत से वीरेन्द्र बेख़बर था,चूँकि मलखान के माँ नहीं थी इसलिए उसने वीरेन्द्र की माँ मायावती से कहा....
मेरी तो कोई माँ नहीं है लेकिन आपको देखकर लगता है कि मुझे मेरी माँ वापस मिल गई,मलखान की मीठी मीठी बातों से मायावती का भी ममता भरा मन पिघल गया और इसी बहाने अब मलखान ने वीरेन्द्र के घर में आने का रास्ता बना लिया था।।
वो दो चार दिन में वीरेन्द्र के घर उसकी गैरहाजिरी में चला ही आता था,वो घर मायावती से मिलने नहीं विन्ध्यवासिनी की सुन्दर सूरत देखने आया करता था,उसकी आँखों पर हवस की पट्टी जो चढ़ गई थी,एक दिन इसी तरह उसने देखा कि वीरेन्द्र तो गोदाम पहुँच चुका है तो सोचा क्यों ना मैं वीरेन्द्र के घर चला जाऊँ और वो वीरेन्द्र के घर जा पहुँचा,उसने विन्ध्यवासिनी से पूछा तो पता चला कि मायावती किसी पड़ोसन के यहाँ कुछ काम से गई थी,उसने सोचा अच्छा मौका है,उसने विन्ध्यवासिनी से एक गिलास पानी माँगा,
विन्ध्यवासिनी जैसे ही पानी लेने रसोई में पहुँची तो मलखान ने विन्ध्यवासिनी को कमर से पकड़ लिया,मलखान का अचानक से स्पर्श पाकर विन्ध्यवासिनी के हाथ से गिलास छूट गया और उसने अपने आप को छुड़ाने की कोश़िश की लेकिन मलखान की पकड़ मजबूत थी तो विन्ध्यवासिनी झुकी और दाँतों का दम लगाकर पूरे जोर से मलखान के हाथ को काट लिया और मलखान से दूर हटते ही उसने हँसिया उठा लिया और फिर बोली.....
अपनी खैर चाहता है तो चला जा यहाँ से ,नहीं तो टुकड़े टुकड़े कर दूँगी,समझता क्या है तू अपनेआप को किसी औरत की इज्जत पर तू हाथ डालेगा और वो तुझे छोड़ देगी।।।
विन्ध्यवासिनी का चण्डी जैसा रूप देखकर मलखान के तो जैसे होश ही उड़ गए और उसके माथे पर पसीना आ गया,तब तक विन्ध्यवासिनी की सास भी आ चुकी थी और उसने विन्ध्यवासिनी के शब्द सुन लिए थे,वो मलखान के पास आई और उसके गाल पर एक जोर का थप्पड़ रसीद दिया फिर बोली....
दग़ाबाज़! पहले मीठी मीठी बातें करके घर में घुसा फिर घर की आबरू पर हाथ डालता है,खबरदार! जो आज के बाद इस घर में घुसने की कोश़िश की।।
ये सुनकर मलखान अपना सा मुँह लेकर चला गया और विन्ध्यवासिनी रोते हुए अपनी सास के सीने से लग गई तब मायावती बोली....
चुप हो जा बहु! मत रो,जब तक मैं हूँ तो खुद को कभी भी अकेला मत समझना।।
फिर शाम को जब वीरेन्द्र घर लौटा तो मायावती ने मलखान की सारी करतूत उसे कह सुनाई,उस दिन के बाद वीरेन्द्र ने भी मलखान से बोलचाल बंद कर दी....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....


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