अय्याश--भाग(३८) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--भाग(३८)

सत्या ना चाहते हुए भी उन मोहतरमा के संग उनके रिजर्वेशन वाले डिब्बे में बैठ तो गया था लेकिन उसे बहुत संकोच हो रहा था,कुछ ही देर में रेलगाड़ी चल पड़ी और टीसी टिकट जाँचने आया,तब वें खातून बोलीं....
जनाब! ये भाईजान भी हमारे संग ही है,आप इनका टिकट बना दीजिए,जितने रूपऐं लगेगें तो हम आपको दे देते हैं,खुदा के लिए इन्हें परेशान मत कीजियेगा।।
मोहतरमा!मुझे भला क्या परेशानी हो सकती है आप कितने भी जन अपने डिब्बे में बैठा लीजिए,मुझे टिकट के रूपऐं मिल रहे हैं ना!तो आप इत्मीनान रखिए,मैं इन साहब का टिकट भी अभी बनाएं देता हूँ और फिर इतना कहकर टीसी ने सत्यकाम का टिकट बनाया और अगले डिब्बे में चला गया।।
अब उन खातून ने अपना बुर्का उतारकर एक तरफ रखा,सत्या ने उनका चेहरा देखा तो वें उम्र में सत्या से दो चार साल ही बड़ी होगीं,उनके कुछ कुछ बाल सफेद थे और चेहरें पर थोड़ी सी झुर्रियाँ थी,उनके आँखों पर पड़े स्याह घेरे इस बात की गवाही दे रहे थे जैसे कि वें बीमार हैं,फिर उन्होंने सत्या की ओर मुस्कुराते हुए देखा और पूछा.....
भाईजान!आपने आपका तार्रुफ़ नहीं बताया?
जी! मैं सत्यकाम चतुर्वेदी,बस इतना ही परिचय है मेरा।।
ओहो....भाईजान!आप तो ब्राह्मण हैं,हमारा पानी पीकर कहीं आपका धर्म तो भ्रष्ट नहीं हो गया,खातून ने सत्या से पूछा।।
दीदी! मेरी दृष्टि में मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है,आपने मेरी मदद की है पानी पिलाकर,उस ऊपर वाले ने जब नदी और समुद्र बनाते हुए फर्क नहीं किया कि ये इसका है ये उसका है तो आप और हम कौन होते हैं उस पानी में फर्क करने वाले,किसी के प्राण बचाना कोई अपराध तो नहीं,ये ही सच्चा धर्म है,सत्या बोला।।
अच्छा लगा आपके पकी़जा ख्यालों को सुनकर,अल्लाहताला आपसा रहमदिल सबको बनाएं,खातून बोलीं।।
जी! इन्हीं विचारों के कारण ही तो मैनें केवल अपना सबकुछ खोया है,पाया कुछ भी नहीं,सत्या बोला।।
यूँ मायूस ना हों भाईजान!ऊपर वाला सब पर निगाह रखता है,उसकी मेहर हर एक पर बरसती है, खातून बोलीं।।
जी! मायूसी ने तो ना जाने कब से मेरे जीवन में डेरा डाल रखा है? सत्यकाम बोला।।
ओहो....भीतर से बहुत टूटे हुए मालूम पड़ते हैं आप? खातून बोली।।
जी! मेरी छोड़िए ,आप अपनी सुनाइएं,आपने भी तो अभी तक अपना परिचय ही नहीं दिया,सत्या बोला।।
हमारा नाम आलिमा बानो है,हम अनाथ और बेसहारा बच्चियों के लिए स्कूल चलाते हैं,वें सब वहाँ किताबी तालीम लेतीं हैं साथ में नृत्य और संगीत की भी तालीम लेतीं हैं,लेकिन हम चाहते हैं कि बच्चियाँ अंग्रेजी भी सीखें ताकि आगें उनके मुस्तक़बिल(भविष्य) की उलझनें आसान हो जाएं,हम तो अपनी जिन्दगी में किताबी तालीम हासिल नहीं कर पाएं इसलिए हम चाहते हैं कि हमारे स्कूल की बच्चियाँ जब पढ़ लिख बाहर निकले तो बाहर की दुनिया उन्हें इज्जत की नज़रों से देखें और उन सब बच्चियों की शख्सियत में चार चाँद लग जाएं और उनके ख़ुद-एतिमाद(आत्मविश्वास) में बढ़ोत्तरी हो,आलिमा बानो बोलीं।।
आलिमा की बात सुनकर सत्यकाम बोला....
वाह....बहुत ही सुन्दर नाम है,आपके नाम का अर्थ होता है विदुषी ,आपके विचार भी आपके नाम के भाँति ही बहुत अच्छे हैं,मुझे खुशी हुईँ ये जानकर कि आप इस क्षेत्र में इतना अच्छा कार्य कर रहीं हैं और रही बच्चियों को अँग्रेजी पढ़ाने की बात तो वो काम तो मैं भी कर सकता हूँ,यदि आपको मुझ पर विश्वास हो तो आप ये जिम्मेदारी मुझे सौंप सकतीं हैं,मुझे बहुत प्रसन्नता होगी ऐसा कार्य करके,सत्यकाम बोला।।
ओह....ज़हेनसीब! जो आप जैसे नेकदिल इन्सान के कदम हमारे स्कूल में पड़ेगे,आलिमा बानो बोलीं।।
जी!ये तो मेरे अहोभाग्य जो मुझे ये अवसर मिला,सत्यकाम बोला।।
भाईजान!ऐसा कहकर हमें शर्मिंदा मत कीजिए,ये तो हमारे स्कूल और हमारी खुशनसीबी होगी,तो बातों में वक्त ना बर्बाद करते हुए कुछ खा लिया जाएं,आपकी हालत देखकर लगता है कि अभी अभी आप किसी गहरें दर्दों से गुजरे हैं,आलिमा बानो बोली।।
जी!आप ने सही पहचाना,लेकिन मैं आपको कुछ भी बता ना सकूँगा,बड़ी मुश्किलों से खुद को सम्भाला है मैनें,यदि मैनें अपने जख्मों को फिर से कुरेदा तो दर्द बरदाश्त से बाहर हो जाएगा,सत्यकाम बोला।।
माँफ कीजिएगा भाईजान!हमारा ये इरादा बिल्कुल भी नहीं था,लेकिन आपको एक बात बता दें कि ऊपरवाला इम्तिहान भी उसी का लेता है जिसमें इम्तिहान देने की भरपूर ताकत हो,इसलिए शायद उसने आपको चुना है,आलिमा बानो बोलीं।।
हो सकता है आप सही हों,सत्यकाम बोला।।
ऐसा ही है भाईजान!अब आप हताश ना हों,हाथ धो लीजिए हम अभी नजमा से कहकर खाना लगवाते हैं,हाँ ! एक बात और भाईजान! इन दिनों हमारी तबियत जरा नासाज़ सी रहती है इसलिए हम जरा परहेज़ी और सादा खाना खाते हैं आपको कोई एतराज़ तो ना होगा,आलिमा ने पूछा।।
जी! ये मेरे लिए तो और भी अच्छा होगा,सत्यकाम बोला।।
फिर क्या था आलिमा बानों ने नजमा से खाना लगाने को कहा,नजमा खाना निकालने लगी और रहीम प्लेटें लगाने लगा,जब खाना लग चुका तो सत्या और आलिमा खाना खाने लगें,खाना वाकई बहुत सादा था,लेकिन सत्या को पसंद आया और उसने इतने दिनों बाद आज कुछ ठीक से खाया था,कुछ ही देर में खाना खतम हो गया और बातें फिर से शुरु हो गईं,सत्या ने खाने की तारीफ़ करते हुए कहा....
दीदी!खाना मेरे अनुसार और स्वाददार था,सादी सी लौंकी की सब्जी और मूँग की दाल बहुत ही स्वादिष्ट थी,सत्या बोला।।
शुक्रिया भाईजान!इस तारीफ़ की हक़दार तो ये नज़मा है, इसी ने बनाया है ये खाना ,आलिमा बोली।।
फिर सत्या ने नज़मा से कहा कि खाना बहुत ही अच्छा था,नज़मा ने भी मुस्कुराते हुए कहा....
शुक्रिया हुजूर!
फिर आलिमा और सत्यकाम के बाद रहीम और नज़मा भी खाना खाने बैठें,वें दोनों पति-पत्नी थे और काफी समय से आलिमा की खिदमत कर रहे थे,फिर जब बातें दोबारा शुरू हुई तो सत्या ने आलिमा से पूछा....
अगर मैं सही हूँ तो यहाँ आपका घर है और शायद आप कहीं जा रहीं हैं?
हम यहाँ अपना पुराना मकान देखने आएं थे,पहले उसमें हमारी अम्मीजान और हमारे भाई बहन रहते थे,लेकिन अब वहाँ कोई नहीं रहता,अब हम लखनऊ वापस जा रहे हैं,हम लखनऊ में ही रहते हैं,आलिमा बोली।।
अच्छा तो आप अपने पति और बच्चों के पास वापस जा रहीं हैं,सत्यकाम ने पूछा।।
भाईजान!हमने निकाह नहीं पढ़वाया,वो वज़ह हम आपको बता ना सकेगें,आलिमा बोली।।
दीदी! मुझे ये जानने की कोई उत्सुकता भी नहीं है,कुछ ग़म ऐसे होते हैं तो स्वयं तक सीमित रहे तो अच्छा, नहीं तो खामख्वाह तमाशे का रूप ले लेते हैं और फिर दुनिया हँसती है,सत्यकाम बोला।।
जी! बिल्कुल !हम आपकी बातों से मुत्तफ़िक़(सहमत) हैं,आलिमा बोली।।
किसी किसी का जीवन तो बचपन से बिखरा हुआ होता है,जिसे कभी कोई ठौर ही नहीं मिलता,वो कहते हैं ना कि "बचपन के दुखिया को कभी भी सुख नहीं मिलता"ये कहावत जिसने भी बनाई है बिल्कुल सही बनाई है,सत्यकाम बोला।।
जी!हम आपकी इस बात से भी मुत्तफ़िक़ हैं,हम भी शायद उनमें से एक हैं,आलिमा बोली।।
आप भी जमाने और अपनों दोनों की बहुत सताई हुई मालूम होतीं हैं,सत्यकाम बोला।।
अपनी अपनी किस्मत है भाईजान!ऊपरवाला शायद हमारी किस्मत में खुशियों के चंद लम्हें लिखना भूल गया,आलिमा बोली।।
दीदी!मुझे तो उसने कुछ समय के लिए खुशियाँ बख्शीं थीं लेकिन फिर छीन लीं,उसे मुझ पर तनिक भी दया ना आई,निष्ठुर है वो ऊपरवाला,ये कहते कहते सत्या की आँखें भर आईं.....
ओह.....भाईजान!अब बस कीजिए और कितना मातम मनाऐगें,लगता है ऊपरवाले ने आपसे आपकी बहुत ही प्यारी चींज छीन ली है,आलिमा बोली।।
जी!आप सही कहतीं हैं,मेरा संसार उजड़ गया और वो तमाशा देखता रह गया,सत्यकाम बोला।
हम एक बात कहें अगर आप बुरा ना मानें तो,आलिमा बोली।।
जी! कहिए,सत्यकाम बोला।।
अगर आप अपने दिल का गुबार निकालना चाहते हैं तो निकाल दें,खुदा के लिए अपने ग़म को दिल में दबाकर ना रखें,नहीं तो वो नासूर बन जाएगा,आलिमा बोली।।
क्या कहूँ? कैसे बताऊँ? कहाँ जाकर रोऊँ? कि ऊपरवाले ने मेरे साथ बिल्कुल अच्छा नहीं किया,वो कैसे इतना निष्ठुर हो सकता कि दो साल की छोटी सी बच्ची आग में झुलस गई और वो देखता रहा,जब मैनें अपनी पत्नी और अपनी बेटी का आग में झुलसा हुआ शरीर देखा था तो जैसे मुझ पर तो पहाड़ ही टूट पड़ा था,कैसे भूल जाऊँ दोनों को,मेरे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थी ना जाने कौन सा ग्रहण लगा जो वो दोनों मुझे छोड़कर चली गई,मेरे लिए असहनीय है ये सब,सत्यकाम बोला।।
ओह.....इतना दर्द,आपकी जगह कोई भी होगा ना तो वो भी नहीं सम्भाल सकता खुद को,लेकिन भाईजान जिन्दगी हमें जिस तरह चलाती है,हमें वैसे ही चलना पड़ता है,हम उसके सामने मजबूर हैं,आलिमा बोली।।
मजबूर तो मैं था जो मैं दोनों को बचा ना सका,सत्यकाम बोला।।
भाईजान! यहाँ सभी मजबूर ही हैं,अब आप हमें ही देख लीजिए,मौत हमारे सामने खड़ी हैं और हम खुद को महफ़ूज भी नहीं कर सकते,अभी और जीने का अरमान है लेकिन बस हमारे पास चंद लम्हें ही बाकीं हैं,आलिमा बोली।।
कहना क्या चाहती हैं आप! मैं कुछ समझा नहीं,सत्यकाम बोला।।
बस,थोड़ा ही वक्त बाकी है हमारे पास,ना जाने ऊपरवाले को क्या मंजूर है? आलिमा बोली।।
कोई जानलेवा बीमारी है आपको? सत्यकाम ने पूछा।।
जी!बस ऐसा ही समझ लीजिए,हमारी जिन्दगी बचपन से ही बहुत ही ग़ुरबत में बीती है,सोचा था अब कुछ राहत मिली है लेकिन मुई ये बिमारी अब हमारी जान लेकर ही छोड़ेगी,हमने ना जाने अपने कितने ख्वाबों को ख़ाक में मिलते हुए देखा है लेकिन कभी ना उम्मीद ना हुए,बस अब उम्मीद का दामन छोड़ने को जी चाहता है,जब अपने ही धोखा देकर और बेइज्जती करके चले जाते हैं ना !तो ये दर्द सम्भालना मुश्किल हो जाता है,आलिमा बोली।।
दीदी! मुझे ऐसा लगता है कि शायद मुझसे ज्यादा दुःख तो आपने झेले हैं इसलिए शायद अब आपकी हिम्मत जवाब दे गई है,मैं अब तक सोचता था कि मैं ही इस दुनिया में सबसे ज्यादा दुःखी हूँ लेकिन मुझसे भी ज्यादा दुःखी लोंग हैं दुनिया में,वो कहते हैं ना कि.....
दुनिया में कितना ग़म है,मेरा ग़म कितना कम है,
लोगों का ग़म देखा तो मैं अपना ग़म भूल गया.....सत्या बोला।।
जी!भाईजान! इस रंगीन दुनिया में आपको बहुत से बदरंग लोंग मिल जाऐगें,उनमें से एक हम भी हैं,आलिमा बोली।।
क्या अपने इस मुँहबोले भाई को अपना दर्द बताकर अपना मन हल्का नहीं करेगीं? सत्यकाम ने पूछा.....
जी! आज हम अपने मन का गुबार निकाल ही देते हैं,शायद कोई राहत महसूस हो,आलिमा बोली।।
ज्यादा तो नहीं लेकिन राहत जरूर महसूस होगी आपको,सत्यकाम बोला.....
तो ठीक है आप भी सुन लीजिए हमारे दर्द,और फिर आलिमा ने अपनी कहानी कहनी शुरु की......
हमारी कहानी हम अपनी अम्मीजान से शुरू करेगें,हमारी अम्मीजान एक बहुत ही बड़े खानदान की नूर-ए-चश्म थीं,अपने आठ भाइयों की सबसे प्यारी और छोटी बहन,उनके भाई उन्हें दुनिया-जहान की चींज़े मुहैया कराते थे,वें जो कहतीं वही उनकी नजरों के सामने हाजिर हो जाता,उनके भाई उनकी हर खुशी पर कुर्बान थे,वें चाहते थे कि वें अपनी बहन के कदमों तले जन्नत रख दें,सभी भाइयों के लिए उनकी बहन ,खुदा का बख्शा हुआ खूबसूरत तोहफा था इसलिए उन्होंने प्यार और मौहब्बत के साथ अपनी बहन का नाम नजराना रखा.....
नजराना यूँ ही ऐश-ओ-आराम में पल रही थीं,वक्त बीतता गया और नजराना पर जवानी का खुमार छाया,अब पन्द्रहवीं पार करके वो सोलहवीं में पहुँची तो भाइयों ने उसके निकाह की बात सोची,अपनी नाजों से पली बहन के लिए उन्हें नवाबों के खानदान का खूबसूरत जवान चाहिए था,जो उनकी बहन को मौहब्बत के साथ अपने दिल में जगह दे लेकिन जैसा वें सोच रहे थें वैसा कुछ भी ना हो पाया.....

क्रमशः......
सरोज वर्मा......