अय्याश--भाग(३७) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--भाग(३७)

संगिनी को अब समझ में आ रहा था कि इतने समय से उसके मामा दयाराम से मुलाकात क्यों ना हुई थी?वो इसलिए कि वो जेल में हैं,संगिनी को अब इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उसकी कंठी का भेद ना खुल जाएं और ये बात कहीं उसके पति को पता चल गई तो वें ना जाने क्या सोचेगें?संगिनी के मस्तिष्क में विचारों का आवागमन निरन्तर जारी था और वों इस झमेले से छुटकारा पाना चाहती थी,उसने ये बात शुभगामिनी से भी कही और इस बार शुभगामिनी ने संगिनी को सलाह दी कि वो इस बार सत्या को सब सच सच बता दें,ऐसा ना हो किसी दिन कोई बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएं,
लेकिन संगिनी बोली......
जीजी!मामा तो अभी जेल में है,शायद अब वो मेरे घर दोबारा नहीं आऐगें।।
लेकिन फिर भी,एक बार फिर से सोच लो,कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं,शुभगामिनी बोली।।
ठीक है समय देखते ही उनसे बता दूँगी,संगिनी बोली।।
लेकिन संगिनी ने सत्या को कुछ नहीं बताया,शायद वो डरती थी कि कहीं उसका पति उससे नाराज ना हो जाएं और उससे नफरत करने लगे,उससे सत्या ने पूछा भी कि तुम्हारे गले की सोने की कंठी कहाँ है? तो उसने ये कहकर टाल दिया कि गले में चुभती है इसलिए उतार दी,सत्या ने भी उसकी बात पर भरोसा कर लिया,लेकिन इसी तरह एक महीना और बीत गया लेकिन दयाराम इस बीच एक भी बार संगिनी के घर उससे मिलने नहीं आया,संगिनी ने सोचा कि शायद मामा को ज्यादा दिनों की सजा मिली है इसलिए वें उससे मिलने नहीं आए,
इसी बीच मुखर्जी बाबू की बहुत ज्यादा तबियत खराब हो गई और उन्हें एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और उनके पास रात के समय सत्या ही अस्पताल में रुकता था,चूँकि शुभगामिनी भी अपने घर में अकेली हो जाती थी और इधर संगिनी भी अपने घर में अकेली हो जाती थी,इसलिए सत्या ने दोनों को रात में एक साथ एक घर में ही रूकने की सलाह दी और फिर दोनों साथ में किसी एक के घर रूक जातीं,इससे दोनों बच्चियाँ भी खुश रहती और अपने पिताओं को याद ना करतीं,
और वो शाम सत्या की आखिरी रात थी अस्पताल में ठहरने की क्योंकि फिर उसके दूसरे दिन मुखर्जी बाबू को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी,सत्या मुखर्जी बाबू के पास अस्पताल चला गया,चूँकि उस रात शुभगामिनी संगिनी के घर रूकने वाली थी,इसलिए सत्या निश्चिन्त था,नहीं तो जिस दिन संगिनी शुभगामिनी के घर रूकती तो सत्या पहले उसे शुभगामिनी के घर छोड़ता फिर अस्पताल जाता था,रात के आठ बजने को थे और शुभगामिनी अभी तक संगिनी के घर ना आई थी,उसे उस दिन कुछ ज्यादा ही देर हो गई,बाहर काफी अन्धेरा था क्योंकि उस दिन अमावस की रात थी,संगिनी अपने मकान के किवाड़ बंद करके लालटेन जलाकर बैठी शुभगामिनी के आने की प्रतीक्षा कर रही थी,तभी किवाड़ पर दस्तक हुई ,उसने किवाड़ के पास जाकर पूछा....
कौन? कौन है?
लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया,इसलिए संगिनी ने भी मारे डर के किवाड़ नहीं खोले,लेकिन तभी उसके कमरें की खिड़की पर किसी ने जोर का धक्का दिया और वो खिड़की खुल गई,क्योंकि खिड़की में सलाखें नहीं थी इसलिए उस खिड़की से कोई भीतर घुस आया,आहट सुनकर संगिनी ने बेटी को फौरन गोद में उठाया और लालटेन लेकर उस ओर गई.....
उसने लालटेन की मद्धम रोशनी में देखा तो वहाँ उसका मामा दयाराम खड़ा था,जिसके बढ़े हुए बाल और लम्बी दाड़ी उसका घिनौना रूप दर्शा रहे थें,संगिनी ने जैसे ही उसे देखा तो फौरन बोल पड़ी....
मामा!तुम!तुम जेल से कब छूटे? और यहाँ क्या लेने आएं हो?
जेल से छूटा नहीं,जेल तोड़कर भाग आया हूँ और तेरे पास भला क्या लेने आ सकता हूँ?कुछ रूपया चाहिए था,दयाराम बोला।।
तुम जेल तोड़ कर भागे हो,तुम्हारे जैसे अपराधी के लिए मेरे पास कोई रूपया नहीं है,चुपचाप यहाँ से चले जाओ वरना अच्छा ना होगा,संगिनी चिल्लाई।।
ऐसे कैसे चला जाऊँ? इतनी आसानी से तू मुझसे पीछा नहीं छुड़ा सकती,तू मुझे रूपये दे दे तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा,दयाराम बोला।।
मैं तुम्हें अब और रूपये नहीं दे सकती,संगिनी बोली।।
तो तू ऐसे नहीं मानेगी,दयाराम बोला।।
मामा! धमकी मत दो,तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते,संगिनी बोली।।
ठीक है तेरा तो नहीं बिगाड़ सकता लेकिन तेरी इस बेटी को तो नुकसान पहुँचा सकता हूँ और इतना कहकर दयाराम ने मिट्ठू को संगिनी की गोद से छीन लिया और उसके गले पर चाकू रखते हुए बोला......
जितना रूपया और जितने गहने हैं तेरे पास तो मेरे हवाले कर दे,नहीं तो बच्ची के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा,
नहीं.....नहीं....तुम इसे कुछ मत करो,मैं अभी सबकुछ तुम्हें दिए देती हूँ,संगिनी गिड़गिड़ाई।।
तो जल्दी कर,दयाराम दहाड़ा।।
और फिर संगिनी ने अपने हाथ में पकड़ी लालटेन को जमीन पर रखा फिर अपने संदूक की ओर गई और नीचें की ओर झुकी,वहीं पर एक डंडा रखा था,वो संगिनी ने उठाया और फुर्ती के साथ दयाराम के हाथ पर वार किया,जिससे दयाराम के हाथ से बच्ची और चाकू दोनों छूट गए,संगिनी ने जरा भी देर ना करते हुए वो चाकू उठाया और दयाराम पर वार कर दिया,चाकू सीधा दयाराम की बाँह पर लगा,इस वार से दयाराम तिलमिला गया और वो फिर बच्ची की ओर झपटा लेकिन संगिनी भी कहाँ हार मानने वाली थी,उसने भी डंडा उठाया और जितने वार कर सकती थी करती गई....
अपनी इस हार से दयाराम बौखला गया और उसने संगिनी के हाथ से डंडा छीना,फिर उसने उस डंडे से संगिनी के सिर पर जोर का वार किया,एक ही डंडे में संगिनी बेहोश हो गई,दयाराम ने फौरन ही संदूक से जेवर और रूपऐं निकाले,जलती हुई लालटेन से सब जगह केरोसीन छिड़का और आग लगाकर खिड़की से भाग निकला,जब आग की लपटों ने जोर पकड़ा तब लोगों को पता चला,शुभगामिनी भी तब तक आ चुकी थी,लोंग आग बुझाने के लिए दौड़ पड़े लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ सब कुछ जलकर खाक़ हो चुका था।।
सत्या को जब ये खबर पहुँची तो वो अस्पताल से दौड़ा दौड़ा वापस आया,घर जलकर खाक़ हो चुका था,लोगों ने माँ बेटी के क्षत-विक्षत शरीरों को मकान से बाहर निकाला,,चूँकि मुखर्जी बाबू को अस्पताल से दूसरे दिन छुट्टी मिलने वाली थी ,लेकिन इस घटना के चलते वें रात में ही सत्या के संग अस्पताल से आ गए,फौरन डाक्टर को बुलाया गया और डाक्टर ने जवाब दे दिया,ये सुनकर सत्या बेसुध सा हो गया,फिर ना वो रोया और ना चीखा,बस अपने माथे पर हाथ रखकर एक ओर बैठ गया।।
शुभगामिनी और विजय तो चीख मारकर रो पड़े,मुखर्जी बाबू और वहाँ मौजूद लोगों ने सत्या को बहुत रूलाने का प्रयास किया लेकिन सत्या की आँखों से एक बूँद आँसू नहीं टपका,शायद उसकी उसकी आँखें पथरा गईं थी और उसके आँसू सूख चुके थे,वो अचेत सा किसी के घर के चबूतरे पर जा बैठा,उसके चेहरे के भाव शून्य हो चुके थे ,जब संगिनी के अन्तिम संस्कार का समय आया तो उसे देखकर मुखर्जी बाबू फूट फूटकर रो पड़े,लेकिन सत्या को इससे भी कोई फर्क ना पड़ा,मुखर्जी बाबू और विद्यालय के अध्यापकों ने सत्या के हाथों माँ बेटी का अन्तिम संस्कार करवाया,संगिनी को अग्नि के सुपुर्द करते हुए भी सत्या की चेतना नहीं लौटी, इतना दर्द सहते सहते सत्या अब शायद बेदर्द हो गया था।।
सत्या की गृहस्थी में आग क्या लगी उसकी खुशियों में भी अब आग लग चुकी थी,उसके रहने का अब कोई ठिकाना ना बचा था,इसलिए विजय बाबू ने सत्या को अपने घर में पनाह दे दी,वो मुखर्जी बाबू के घर में भी एक कोना पकड़कर माथे पर हाथ धरे बैठा रहता,उसकी ऐसी दुर्दशा देखकर शुभगामिनी और विजय रो पड़ते लेकिन कर कुछ भी ना सकेँ,विजय ही सत्या को स्नान करवाता और भोजन खिलाता,अगर विजय बाबू को भोजन खिलाने का समय ना मिलता तो सत्या ऐसे ही भूखा बैठा रहता,अब विद्यालय ना जाने पर वहाँ के प्रधानाध्यापक ने भी सत्या को नौकरी से निकाल दिया,
अब सत्या पूर्णतः विजय बाबू पर ही निर्भर था,सत्या ने अपने जीवन में बहुत दुःख देखें थे लेकिन ये दुःख उसके लिए असहनीय था,इसलिए उसकी ऐसी दशा हो गई थी,फिर कुछ दिन बाद बंसी काका विजय बाबू को मिले और उन्होनें बताया कि दयाराम जेल तोड़कर भागा था और एक दिन पकड़ा गया,उसने अपना जुर्म कुबूला कि उस रात उसने ही संगिनी बिटिया के घर में आग लगाई थी,उसे जब पता चला कि संगिनी अब इस दुनिया में नहीं रही तो उसे अपनी इस गलती पर बहुत पछतावा हुआ और उसने जेल के कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली।।
विजय बाबू ने घर आकर ये सब शुभगामिनी को बताया तो शुभगामिनी बहुत दुखी हुईँ और विजय को दयाराम और संगिनी के बीच हुई पहले की सारी बातें बता दी,ये सुनकर विजय बोला....
काश! संगिनी ने सबकुछ सत्यकाम को बताया होता तो वो आज हमारे बीच जिन्दा रहतीं।।
ऐसे ही दो महीने बीत चुके थे लेकिन सत्या की हालत में कोई सुधार ना हुआ,विजय बाबू ने डाँक्टर को भी दिखाया तो डाँक्टर बोले....
इन्हें बहुत गहरा आघात पहुँचा है,इनका इलाज सिर्फ इनके मन से दर्द को निकालना है और जब तक ये रोयेगें नहीं,इनका दर्द नहीं बहेगा,कोशिश कीजिए कि ये किसी बात को लेकर रो पड़ें।।
डाक्टर साहब! मैनें और मेरी पत्नी ने इन्हें रूलाने की बहुत कोशिश कि लेकिन सफल ना हो सके,विजय बाबू बोलें।।
इनके जख्मों को कुरेदने की कोशिश कीजिए,ताकि ये रो पड़े, नहीं तो ये इनके लिए अत्यधिक घातक सिद्ध होगा,डाँक्टर साहब बोले।।
जी! मैं फिर से प्रयास करूँगा,विजय बाबू बोले।।
और फिर विजय बाबू सत्या को लेकर घर आ गए,ऐसे ही कुछ दिन और बीते फिर एक दिन रविवार की सुबह शुभगामिनी की बेटी मीनाक्षी सीढ़ियों से गिर पड़ी और लुढ़कते लुढ़कते नीचें पहुँची,उसे गिरता देख सत्या उसके पीछे भागा और उसके पास जाकर बोला.....
नहीं....नहीं....मेरी बच्ची! मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगा।।
फिर फौरन ही सत्या ने बच्ची को गोद में उठा लिया,मीनाक्षी के माथे पर चोट लगी थी और खून बह रहा था,सत्या की ऐसी प्रतिक्रिया देखकर शुभगामिनी और विजय की आँखों में एक चमक आ गई,एक आशा की किरण जाग उठी कि शायद अब सत्या की चेतना लौट आई है इसलिए तो वों मीनाक्षी के पीछे भागा,शुभगामिनी और विजय दोनों आँखों में आँसू लिए सत्या को निहार रहे थे,तभी सत्या तेज आवाज में बोला.....
आप दोनों खड़े क्या हैं,बच्ची को जल्दी से डाँक्टर के पास ले जाइएं।।
हाँ....हाँ...अभी जाता हूँ,विजय नैनों में खुशी के आँसू लिए हुए बोला।।
और फिर विजय बच्ची को डाक्टर के पास ले गया और इधर अब जब सत्या की चेतना लौटी तो धीरे धीरे उसे सब याद आ गया और उसने शुभगामिनी से पूछा.....
भाभी! संगिनी और मिट्ठू कहाँ हैं?
ये सुनकर शुभगामिनी के नैनों से अश्रुओं की जलधारा बह चली और उसने उस रात की सारी सच्चाई सत्या को बता दी,ये सुनकर सत्या चीख पड़ा और फूट फूटकर रो पड़ा फिर शुभगामिनी से बोला.....
भाभी! इसलिए मैं किसी से प्रेम नहीं करता,मैं जिससे भी प्रेम करने लगता हूँ,वो ही मुझसे दूर चला जाता है,इसलिए तो मैं संगिनी को अपनाने से डरता था,
हाय! मेरी प्यारी मिट्ठू ! कितना दर्द हुआ होगा जब वो आग में झुलसी होगी,मेरी जीवनसंगिनी भी मुझे जीवन के बीच रास्ते में छोड़कर चली गई,तुम आई ही क्यों मेरे जीवन में?चार दिन का सुन्दर ख्वाब दिखाकर तुम्हें आखिर नियति ने मुझसे छीन ही लिया,उस दिन सत्या बहुत रोया,जब विजय डाक्टर के पास से लौटा तो सत्या उसके काँधे पर सिर रखकर बहुत रोया और उस दिन उसने दिनभर कुछ भी खाया पिया नहीं,विजय और शुभगामिनी ने खिलाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सत्या ने ये कहकर टाल दिया की जी अच्छा नहीं है।।
फिर शुभगामिनी ने सत्या को दयाराम वाली भी सारी बातें बता दीं,ये भी बताया कि अब दयाराम इस दुनिया में नहीं है,प्रायश्चित वश उसने आत्महत्या कर ली,तब सत्या बोला.....
भाभी! संगिनी ने नहीं बताया तो आप ही मुझे बता देतीं।।
दादा! उसने मुझे कसम दी थी,शुभगामिनी बोली।।
ये सुनकर फिर सत्या कुछ ना बोला।।
दो दिन हो गए सत्यकाम ने कुछ नहीं खाया,ऐसा लगता था मानो उसकी भूख प्यास मर चुकी है,शायद उसके मन में अब और जीने की इच्छा शेष ना बची थी,इसी तरह दो दिन और गुजरे फिर सत्या ने विजय का घर छोड़ने का फैसला किया,क्योंकि उसको ये लग रहा था कि विजय और शुभगामिनी भाभी उसे इतना चाहते हैं कहीं ये भी उससे दूर ना हो जाएं इसलिए उन्हें और उनका घर छोड़ने में ही उनकी भलाई है इसलिए सत्या ने एक पत्र लिखकर विजय से उसके घर से जाने के लिए माँफी माँगी साथ में कारण भी बताया कि वो उनका घर क्यों छोड़ रहा है? साथ में इतने साल साथ रहनें पर और हमेशा मदद करने के लिए शुक्रिया भी अदा किया और फिर उस रात सत्या चार दिन का भूखा-प्यासा रेलवें स्टेशन की ओर चल पड़ा......
अमावस की रात का अँधेरा,सत्या बस चला जा रहा था,कई दिनों से खाया नहीं था इसलिए उसके कदम लड़खड़ा रहे थें,वैसे भी संगिनी के जाने के बाद उसका शरीर सूखकर हड्डियों का ढ़ाँचा बन गया था,उसके पास ना तो रूपऐं थे और ना ही कोई सामान,वो जैसे तैसे रेलवें के प्लेटफॉर्म तक पहुँच गया,तब उसे महसूस हुआ कि उसे बहुत तेज प्यास लगी है,लेकिन उसमें बिल्कुल भी हिम्मत शेष ना बची कि वो कहीं जाकर पानी पी ले,इसलिए वो वहीं लड़खडाकर गिर पड़ा और बेहोश हो गया.....
उसे जमीन पर गिरा हुआ देखकर लोगों की भीड़ लग गई लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो उसे उठाकर थोड़ा पानी पिलाकर होश में ले आएं,तभी एक खातून बुर्का पहने वहाँ से गुजरीं,उनके पीछे उनका एक नौकर और एक नौकरानी थे,साथ में कुली भी था जो उनका सामान लेकर आगें आगें चल रहा था,इतना मजमा देखकर उन खातून के कदम ठिठके और अपने नौकर रहीम से उन्होंने वहाँ का जायजा लेने को कहा.....
रहीम ने वहाँ जाकर जो देखा तो सारा हाल उन खातून को कह सुनाया,तब वें खातून बोलीं.....
रहीम! उस शख्स को पानी पिलाओ और होश में आने पर उन्हें हमारे पास ले आओ.....
रहीम ने ऐसा ही किया और सत्यकाम से बोला......
हमारी मख़्दूमा ने आपको याद फरमाया है....
लेकिन क्यों? सत्यकाम ने पूछा।।
ये तो आपको वें ही बताऐगीं,रहीम बोला।।
और फिर सत्यकाम उन खातून के पास पहुँचकर बोला...
जी! देवी!बहुत बहुत धन्यवाद मेरी सहायता करने के लिए।।
आप तो पढ़े लिखें मालूम होते हैं,उन मोहतरमा ने बुर्के के भीतर से अपनी खूबसूरत आवाज़ में कहा....
जी! लेकिन इस पढ़ाई का अब कोई भी अर्थ नहीं रहा,सत्यकाम बोला।।
ऐसा क्यों कहते हैं आप?खातून ने पूछा।।
जी! जिसके जीवन में सिवाय अन्धेरे के कुछ और ना हो तो वो सवेरा होने की उम्मीद कैसे कर सकता है?सत्यकाम बोला।।
शायद बहुत नाउम्मीदी में गुजरी में आपकी जिन्दगी,खातून बोलीं।।
ऐसा ही कुछ समझ लीजिए?सत्यकाम बोला।।
ये आपकी नजरों का धोखा है साहब!हो सकता है कि इस दुनिया में आपसे भी ज्यादा नाउम्मीद लोंग हों,खातून बोलीं।।
अभी तो केवल मुझे मैं ही नाउम्मीद दिख रहा हूँ,सत्या बोला।।
और फिर सत्या को बोलते बोलते ही चक्कर सा आ गया,रहीम ने उसे जल्दी से सम्भाला,तब वें खातून बोलीं....
रहीम! रेलगाड़ी के छूटने का वक्त हो गया है, इन साहब को हमारे रिजर्वेशन वाले डिब्बे में ले आओं,वहीं इनसे गुफ़्तगू होगी....
सत्या ने उनके साथ आने से इनकार किया लेकिन फिर खातून के काफी़ जिद करने पर सत्या उनके साथ जाने को राजी हो गया.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....