एक बूंद इश्क - 30 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • Reborn to be Loved - 2

    Ch 2 - Psycho शीधांश पीछले भाग में आपने पढ़ा…ये है हमारे शीध...

  • बन्धन प्यार का - 27

    बहू बैठो।हिना बैठ गयी थी।सास अंदर किचन में चली गयी थी।तब नरे...

  • कुआँ

    धोखा तहुर बहुत खुश हुआ था अपने निकाह पर। उसने सुना था अपनी ब...

  • डॉक्टर ने दिया नया जीवन

    डॉक्टर ने दिया नया जीवनएक डॉक्टर बहुत ही होशियार थे ।उनके बा...

  • आई कैन सी यू - 34

    अब तक हम ने पढ़ा की लूसी और रोवन उनके पुराने घर गए थे। वहां...

श्रेणी
शेयर करे

एक बूंद इश्क - 30

३०.अपर्णा की बेचैनी


रुद्र का सपना पूरा होनेवाला था। ये जानकर सब लोग बहुत खुश थे। गुरुवार की दोपहर को ही रुद्र अपर्णा के साथ दिल्ली जाने के लिए निकल गया। उसने सारी तैयारी पहले से करके रखी थी। दोनों दिल्ली पहुंचकर एक होटल में आएं। फिर थोड़ी देर रेस्ट करके दोनों फंक्शन में जाने के लिए तैयार होने लगे।
अपर्णा ने ब्लेक रंग की चमकीली बोर्डर वाली साड़ी पहनी और रुद्र ने ब्लेक रंग का ब्लेजर और ब्लेक पेंट पहन लिया। दोनों बहुत ही प्यारे लग रहे थे। आठ बजे दोनों फंक्शन में जाने के लिए निकल गए। उन्हें लेने गाड़ी आई थी। दोनों उस गाड़ी में बैठकर निकल पड़े। गाड़ी एक फाइव स्टार होटल के सामने आकर रुकी। वहीं ये फंक्शन रखा गया था। रुद्र और अपर्णा साथ में गाड़ी से नीचे उतरे और अंदर चले आएं। अंदर बहुत सारे बड़े-बड़े फोटोग्राफर्स मौजूद थे। इस फंक्शन के ऑर्गेनाइजर ने रुद्र और अपर्णा को सब से मिलवाया। फिर रुद्र के साथ प्रोजेक्ट को लेकर डिस्कस की, जिसमें रूद्र को परसों ही प्रोजेक्ट शुरू कर देना था। रुद्र ने सुना तो उसने अपर्णा की ओर देखा। क्यूंकि प्रोजेक्ट पर काम करने से रुद्र बहुत व्यस्त हो जानेवाला था। जिससे उसके पास अपर्णा के लिए वक्त नहीं बचता। लेकिन ये रूद्र का सपना था। इसलिए अपर्णा ने आंखों से ही रुद्र को हां कह देने के लिए कहा।
रात के साढ़े दश बजें फंक्शन खत्म होते ही रूद्र अपर्णा के साथ वापस होटल आ गया। होटल के रुम में आते ही रुद्र ने अपर्णा के दोनों हाथ पकड़कर कहा, "तुमने मेरे लिए जो किया, उसके लिए मैं बहुत खुश हूं। लेकिन एक बार मेरा प्रोजेक्ट का काम शुरू हो गया, तो ऑफिस और प्रोजेक्ट में मेरे पास तुम्हारे लिए वक्त नहीं बचेगा।"
"तो आप कहां कहीं भागे जा रहे है। हमारे पास तो पूरी जिंदगी..." अपर्णा कहते-कहते रुक गई। उसे याद आ गया कि उसके पास उतनी जिंदगी भी नहीं थी। जितनी लोगों को उम्मीद होती है। उसने एक गहरी सांस ली और फिर प्यार से रुद्र का गाल छूकर कहा, "आप आराम से अपना सपना पूरा किजिए। मैं आपका इंतज़ार करूंगी।"
"ठीक है, मैं हो सके उतना जल्दी सारा काम ख़त्म करने की कोशिश करुंगा। एक बार प्रोजेक्ट पूरा हो जाएं। फिर मेरा सारा वक्त तुम्हारा होगा।" रूद्र ने अपर्णा को गले लगाकर कहा।

एक दिन दिल्ली घुमने के बाद दोनों मुंबई वापस आ गए। घर आते ही रुद्र ऑफिस और प्रोजेक्ट के काम में बिजी हो गया। प्रोजेक्ट एक हफ्ते का था। साथ ही ऑफिस में एक डील को लेकर मीटिंग होती रहती थी। जिसकी वज़ह से रूद्र कभी-कभार तो देर रात तक घर नहीं आ पाता था। लेकिन इन सब में अपर्णा हर वक़्त उसके साथ परछाई की तरह खड़ी रहती।
रुद्र की मेहनत और अपर्णा के साथ की वज़ह से रुद्र जिस डील के लिए मेहनत कर रहा था। वह उसे मिल गई। इस खुशी में रुद्र ने अपर्णा के साथ होटल में डीनर ऑर्गेनाइज करवाया। उसने अपर्णा को भी मैसेज करके बता दिया।
रुद्र का मैसेज मिलते ही अपर्णा तैयार होने लगीं। रुद्र ऑफिस से आया, तब दोनों डीनर के लिए निकल गए। रुद्र ने बहुत अच्छा अरेंजमेंट्स करवाया था। अपर्णा ने देखा तो रुद्र का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए कहा, "काम चाहें जितना भी हो। आप मेरे लिए वक्त निकाल ही लेते है।"
"ये सब तुम्हारी समझदारी और साथ की वज़ह से ही पॉसिबल हो पाता है।" रुद्र ने प्यार से कहा।
दोनों ने साथ में बैठकर डीनर किया। रुद्र ने अपर्णा का फेवरेट आइसक्रीम ऑर्डर किया। दोनों साथ में बहुत खुश लग रहे थे। डीनर के बाद जब दोनों घर आ रहे थे। तब रुद्र ने अपर्णा से कहा, "कल प्रोजेक्ट का आखरी दिन है। बारिश का मौसम है, तो सोच रहा हूं, सापुतारा के कुछ फोटोग्राफ्स खींचकर आऊ।"
"ये तो बहुत अच्छा सोचा आपने, घर जाकर मैं आपकी पेकिंग कर दूंगी।" अपर्णा ने कहा।
"अब तो बस जैसे-तैसे कल का दिन खत्म हो जाएं। फिर सारा वर्क दिल्ली भेज दूंगा और ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर तुम्हें किसी अच्छी जगह घुमाने ले जाऊंगा।" रुद्र ने गाड़ी चलाते हुए कहा।
रूद्र की बात सुनकर अपर्णा मुस्कुराकर रह गई। घर आकर अपर्णा ने रुद्र के लिए सापुतारा जाने की पेकिंग कर ली। रुद्र अपना लेपटॉप लेकर बैठ गया। वह देर रात तक उस पर काम करता रहा। दवाइयों की वजह से अपर्णा को नींद आ गई, तो वह सो गई।

अगली सुबह रुद्र सापुतारा जाने के लिए तैयार होने लगा। अपर्णा उसके लिए चाय लेकर आई। रुद्र ने तैयार होकर चाय का कप लिया और अपर्णा के गाल पर किस करते हुए कहा, "शाम को ही आने के लिए निकल जाऊंगा। दश बजें तक पहुंच जाऊंगा। मेरा इंतज़ार करना।"
"तो रात का खाना साथ में ही खाएंगे।" अपर्णा ने मुस्कुराकर कहा और रूद्र के गले लग गई। दोनों काफ़ी देर तक एक-दूसरे के गले लगे रहे। लेकिन आज़ सुबह से ही अपर्णा को कुछ अजीब लग रहा था। वह रूद्र को बताती, तो वह जाता नहीं। इसलिए उसने रूद्र से कुछ नहीं कहा। आठ बजते ही रुद्र गाड़ी लेकर निकल गया।
रुद्र के जानें के बाद सब ऑफिस के लिए निकल गए। स्नेहा अपनी किसी दोस्त के यहां जानेवाली थी। तो वह भी चली गई। चाची और सावित्री जी अपने काम में व्यस्त हो गई। अपर्णा दादाजी के कमरें में चलीं आई।
दादाजी ने अपर्णा को देखा तो कहा, "आओ ना बेटा! बहुत दिनों बाद आराम से बात करने का मौका मिला है।"
अपर्णा आकर दादाजी के पास बैठ गई। लेकिन उसके मन की बैचेनी की वजह से वो कुछ कह नहीं पाई। वो बस चुपचाप बैठी रही। दादाजी ने उसे ऐसे परेशान देखा तो उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, "कोई बात है क्या? तुम कुछ परेशान लग रही हो।"
"वो दादाजी...सुबह से बैचेनी हो रही है। पता नहीं क्यूं? कुछ समझ नहीं आ रहा है।" अपर्णा ने कहा।
"तो कुछ देर आराम कर लो। मन शांत हो जाएगा, तो बैचेनी भी नहीं होगी।" दादाजी ने कहा।
अपर्णा को यहीं सही लगा। वह अपने कमरे में चली गई। अपर्णा की बात सुनकर दादाजी भी कुछ परेशान हो गए। उन्होंने अपने कमरे में लटकाई महादेव की तस्वीर की ओर देखा और कहने लगे, "महादेव! अपर्णा की बैचेनी को देखकर लगता है कुछ बूरा....बस सब संभाल लेना।"

अपर्णा अपने कमरें में चलीं आई। लेकिन उसे नींद नहीं आई। तो वह कुछ देर बाद नीचे चली आई। चाची और सावित्री जी दोपहर के खाने की तैयारी कर रही थी। अपर्णा उनके पास आकर उनकी मदद करने लगी। सावित्री जी ने उसे मना किया। फिर भी वह नहीं मानी। उसे लगा, शायद काम में मन लगेगा तो बैचेनी खत्म हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अपर्णा की बैचेनी का सिलसिला लंबा चला। उसने दोपहर में ठीक से खाना भी नहीं खाया। वह सीधा अपनें कमरें में आ गई। कमरें में आकर वह बेड पर लेट गई। आखिर में मुश्किल से उसकी आंख लग गई।
जब उसका फोन बजा। तब उसकी आंख खुली। उसने उठकर घड़ी की ओर देखा, तो आठ बज चुके थे। उसने फोन उठाकर स्क्रीन पर देखा। रुद्र फोन कर रहा था। उसने फोन उठाकर तुरंत कान से लगाया, "आप निकल गए?"
"जी मैं मुंबई के सीटी हॉस्पिटल से बोल रहा हूं। ये फोन जिसका है, उनका एक्सिडेंट हो गया है। आप जल्दी से यहां आ जाईए। फोन में आपका नंबर लविंग वाइफ से सेव था। तो मैंने आपको फोन किया। एक ट्रक ने टक्कर मारी है। उनके सिर से बहुत खून बह गया है। गाड़ी का कांच टूट गया, उसके कुछ टुकड़े सीने में बूरी तरह से चुभ गए है। आप जल्दी आ जाईए।" किसी ने कहा और फोन कट हो गया।
अपर्णा ने ये सब सुना तो उसके हाथों से फ़ोन नीचे जा गिरा। उसकी सांसें फुलने लगी। उसी वक्त कमरें में सावित्री जी आई। वह अपर्णा को खाने के लिए बुलाने आई थी। लेकिन उन्होंने अपर्णा को इस हालत में देखा तो तुरंत घबराते हुए उसके पास चली आई और पूछने लगी, "क्या हुआ बेटा? तुम इतनी डरी हुई क्यूं हो? कोई बूरा सपना देखा क्या? मैं शाम को आई तब तो तुम आराम से सो रही थी। अचानक से क्या हो गया?"
"वो.... रुद्र....उसका एक्सिडेंट हो गया है। वह....सीटी हॉस्पिटल में एडमिट है।" अपर्णा ने लंबी-लंबी सांसें भरते हुए कहा।



(क्रमशः)

_सुजल पटेल