काफ़ी सारी गुजराती कहानियों के बाद ये मातृभारती पर मेरी पहली हिंदी कहानी है। उम्मीद हैं कि हमारे पाठकों को गुजराती कहानियों के जैसे मेरी ये हिंदी कहानी भी पसंद आएगी। तो मेरी कहानी 'एक बूंद इश्क' को पढ़कर अपने प्रतिभाव देना ना भूलें।
यह कहानी एक ग़लतफहमी से शुरू प्यार पर खत्म होगी। जिसमें कहानी के नायक और नायिका को काफी सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। फिर भी इस का अंत काफ़ी दुखदाई रहेगा। जो आपको कहानी पढ़ने के बाद ही पता चलेगा।
१.ग़लतफहमी
बनारस शहर! जो महादेव की नगरी के नाम से जाना जाता है। जहां काशी विश्वनाथ का मंदिर और चोरासी घाट बने है। उसी चोरासी घाटों मे से अस्सी घाट नाम के घाट पर हमारी अपर्णा बैठी थी। अपर्णा माने देवी पार्वती का ही एक नाम! हमारी अपर्णा की भी इच्छा थी कि उसे महादेव जैसा पति मिले। मगर पार्वती जी जैसी देवी को महादेव को पाने के लिए तपस्या करनी पड़ी थी। तो अपर्णा को इतनी आसानी से महादेव जैसा पति कैसे मिलता?
अपर्णा अस्सी घाट की सीढ़ियों पर बैठी घाट के पानी को एक टक निहार रही थी। उसके चेहरे पर एक सुकून नज़र आ रहा था। जो नौकरी मिल जाने की खुशी में उसके चेहरे पर छाया हुआ था। आज़ सुबह में ही अपर्णा को मुंबई की एक बहुत बड़ी कंपनी से ई-मेल आया था। वहां जब नौकरी का प्लेसमेंट चल रहा था। तब अपर्णा ने वहां एप्लाई किया था। इसलिए उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। नौकरी अभी मिली नहीं थी। लेकिन अपर्णा को यकीन था कि उसे वह नौकरी जरूर मिल जाएंगी।
अस्सी घाट पर कुछ ही देर में लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। क्यूंकि गंगा आरती का समय हो गया था। अपर्णा ने सीढ़ियों से उठकर चारों तरफ़ नज़र घुमाई तो उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। चारों ओर रोशनी ही रोशनी थी। फूलों और दिये वालों के पास से लोग खरीददारी कर रहे थे। अपर्णा भी उस और चलीं गईं और अपने लिए पत्तों के बनें दोने में भरे फूलों का एक दोना और दीपक खरीदा। फिर एक कागज़ का दोना लेकर उसमें फूल और दीपक रखकर उस दीपक को जलानें लगी। आरती शुरू होते ही सब आरती में शामिल हो गए। अपर्णा ने दोने में रखा दीपक गंगा के पानी में छोड़ दिया और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई।
"कितना मांगेगी? कुछ हमारे लिए भी छोड़ दे।" पीछे से एक लड़की ने आकर कहा तो अपर्णा ने मुस्कुराते हुए अपनी आंखें खोली।
"आरुषि! महादेव के पास सब को देने के लिए बहुत कुछ है। जो चाहे मांग लो।" अपर्णा ने आरुषि के कंधे पर हाथ रखकर कहा। आरुषि उसे देखकर मुस्कुराने लगी। वह अपर्णा की बचपन की दोस्त है। दोनों ने साथ में ही स्कूल और कॉलेज की थी। लेकिन आरुषि को एक महिने पहले ही दिल्ली में नौकरी मिल गई थी। बस यही पर दोनों बिछड़ गई थी। क्यूंकि अपर्णा की जिद्द मुंबई में नौकरी करने की थी। जब उसे पता चला कि अपर्णा कल मुंबई इंटरव्यू देने जा रही है। तो वह उससे मिलने आई थी।
"तो कल आखिर मुंबई जा रही हों।" आरुषि ने सीढ़ियों पर बैठकर कहा।
"हां, अब बस नौकरी भी मिल जाएं।" अपर्णा ने भी उसके पास बैठते हुए कहा। दोनों बैठकर अस्सी घाट के पानी में तैर रहे दीपक को देखते हुए बैठी थी। उतने में एक लड़का उल्टा चलता हुआ आ रहा था और उसका पांव फिसलते ही वह सीधा अपर्णा की गोद में आ गिरा। अपर्णा ने घबराकर उस लड़के की ओर देखा। उतनें में वह उठकर कहने लगा, "सोरी सोरी! वो गलति से हो गया।
"अपना सोरी अपनें पास ही रखो। भगवान ने इतनी बड़ी आंखें दी है। तो फिर ऐसे कैसे गिर गए। गिरना ही था तो कहीं और जाकर गिरते। मेरी गोद में क्यूं गिरे?" अपर्णा अचानक ही भड़ककर कहने लगी। लेकिन लड़के का ध्यान तो कहीं और ही था। अपर्णा को पता चला तो उसे ज्यादा गुस्सा आ गया। वह लड़के की बांह पकड़कर, उसे अपनी तरफ घुमाकर कहने लगी, "वहां कहां देख रहे हो। इधर देखो। तुमने सब जान बुझकर किया है न? मुझे पता है। तुमने अपने किसी दोस्तों से शर्त लगाई होगी कि मैं अपर्णा से बात करके ही रहुगा। वह भी मुझसे बात करेंगी। फिर मैं उसे प्रपोज करुंगा और शर्त जीतकर बताऊंगा। फिर शर्त के पैसों से सब को पार्टी भी दूंगा।"
"ओ हेल्लो! खुद को कहीं की राजकुमारी समझा है क्या? जो मैं तुम्हें प्रपोज करुं और वो भी शर्त के कुछ पैसे जितने के लिए।" लड़के ने जब अपर्णा की आंखों में देखते हुए कहा। तो कुछ वक्त के लिए दोनों एक-दूसरे की आंखों में खो से गए। अपर्णा की आंखें दियों की रोशनी सी चमक रही थी। लड़का उसकी चमकती गहरी आंखों में खोकर रह गया।
अपर्णा के साथ पहले भी बहुत बार ऐसा हो चुका था। अपर्णा को बहुत से लड़के पसंद करतें थे। लेकिन वह किसी से बात नहीं करती थी। उसके चलते अपर्णा से दो बातें सुनने के लिए और उसके करीब जाने के लिए लड़के आएं दिन ऐसी शर्तें लगातें रहते। फिर अपर्णा से डांट खाते और कुछ को तो अपर्णा की मार भी पड़ी थी। इसलिए आज़ भी उसे लगा कि ऐसा कुछ ही हुआ होगा। लेकिन लड़के ने जिस तरह के तेवर दिखाकर बात की। अपर्णा को कुछ गरबड़ लगी।
"तो तुमने ये सब किसी शर्त के लिए नहीं किया था?" अपर्णा ने कुछ देर बाद अपनी आंखें लड़के पर से हटाते हुए पूछा।
"जी नहीं, वो तो मेरा एक दोस्त मेरे पीछे पड़ा था। उसे मेरा कैमरा चाहिए था। लेकिन मैं मेरा कैमरा किसी को नहीं देता। तो वह मुझसे कैमरा लेने के लिए मेरे पीछे पड़ा था। मैं भागते हुए यहां आया और पता नहीं कैसे मेरा पांव फिसला और मैं आपकी गोद में आ गिरा।" लड़के ने सारी कहानी बताते हुए कहा।
"ओहहह, मुझे लगा.." अपर्णा नजरें चुराते हुए इतना कहकर ही अटक गई। तो लड़के ने उसकी आधी छोड़ी बात पूरी करतें हुए कहा, "आपको लगा मैं किसी शर्त के चलते आपकी गोद में गिरा।"
"सोरी, मेरे साथ ऐसा बहुत बार हो चुका है। इसलिए गलतफहमी हो गई।" अपर्णा ने नजरें झुकाए कहा।
"शिवा! सब इंतज़ार कर रहे है। जल्दी चल, नहीं चाहिए मुझे तेरा कैमरा। अब आ जा होटल जाकर कल वापस जाना है उसकी तैयारी भी करनी है।" कुछ ही दूरी पर खड़े एक लड़के ने कहा।
"अब आपका हो गया हो तो मैं जाऊं?" शिवा ने अपर्णा को देखते हुए पूछा।
अपर्णा ने सिर हिलाकर हां कहा तो शिवा जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगा। अपर्णा बस उसे जाता हुआ देखते रही। लड़का दिखने में तो काफ़ी हेंडसम था। आरुषि भी कुछ वक्त के लिए उसे देखते रह गई थी। उसके जातें ही उसने अपर्णा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "लड़का तो अच्छा था। उसकी आंखों के तो क्या कहने? तू भी कुछ वक्त के लिए उसमें खो गई थी।"
"अपनी बकवास बंद कर और घर चल। कल सुबह मुझे वक्त पर निकलना भी है।" अपर्णा ने आरुषि का हाथ झटककर कहा और सीढ़ियां चढ़ने लगी। घाट पर से ही अपर्णा अपनें घर और आरुषि अपनें घर के लिए निकल गई।
अपर्णा चलकर ही अपनें चाचा के घर आ गई। जब अपर्णा दश साल की थी। तभी उसके मम्मी-पापा का डिवोर्स हो चुका था। मम्मी अपना खुद का बिजनेस संभालती और पापा का कभी कोई ठिकाना नहीं होता। इसलिए अपर्णा अपनें चाची-चाचा के साथ रहती। उनको कोई बेटी नहीं थी। एक बेटा था। जो आर्मी में था। इसलिए चाची अपर्णा को अपनी बेटी की तरह ही रखती। अपर्णा घर पर आई तब तक चाचा-चाची सो चुके थे। अपर्णा भी अपने कमरे में आकर सो गई।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल