Ek bund Ishq - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 7

७.परिवार

अपर्णा का एक पूरा दिन काम में ही बीत गया। शाम को जब वह होटल लौटी। तब उसने देखा कि उसका दोस्त उसका इंतज़ार कर रहा था। उसे देखते ही अपर्णा उसके पास आई और उसे डांटते हुए कहने लगी, "कबीर! तुम कब आएं और कब से इंतजार कर रहे हों? एक फोन करते तो मैं जल्दी आ जाती ना‌।"
"बस अभी-अभी आया हूं। लेकिन वापस जल्दी जाना है। तू सारा सामान देख ले। फिर मैं चलता हूं।" कबीर ने कहा।
"मुझे ये सब मेरे फ्लैट पर शिफ्ट करना है। तो अभी कुछ भी देखने का वक्त नहीं है। अगर कुछ कम हुआ तो थोड़े दिनों बाद बनारस आ ही रही हूं।" अपर्णा ने कहा।
"तो चल मैं तेरी हेल्प कर देता हूं। मैं एक टेक्सी बुला लेता हूं। तू बाकी का सामान लेकर नीचे आ जा।" कबीर ने कहा और वह बाहर चला गया। अपर्णा अपनें रुम में रखा बाकी का सामान लेकर नीचे आ गई और होटल से चेक आउट कर लिया।
कबीर टेक्सी बुलाकर अंदर आया। उसने और अपर्णा ने मिलकर सारा सामान टेक्सी में रखा और दोनों उसकी गाड़ी में आ बैठे। तब तक साक्षी ने अपर्णा को फ्लैट का अड्रेस भी भेज दिया। उसने टेक्सी ड्राईवर को अड्रेस समझाया और टेक्सी समेत कबीर की गाड़ी उस अड्रेस की ओर बढ़ गए।
एक घंटे बाद टेक्सी एक बड़े एपार्टमेंट के सामने रुकी‌। अपर्णा जैसे ही गाड़ी में से नीचे उतरी उसके ऑफिस के कुछ स्टाफ मेम्बर्स वहां थे। जिसमें से एक लड़की ने अपर्णा के पास आकर कहा, "हेल्लो मैं नियति! हम सब भी इसी अपार्टमेंट में रहते है। साक्षी मैम ने बताया कि तुम आज़ ही शिफ्ट हो रही हो तो हम तुम्हारी मदद के लिए आ गए।"
"थैंक्यू सो मच! लेकिन ज्यादा सामान नहीं है तो आपको कोई काम हो तो आप वो देखिए। मैं मैनेज कर लूंगी।" अपर्णा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा।
"अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। हम तुम्हें सामान ऊपर ले जाने में मदद करते है।" नियति ने कहा और एक बैग उठा लिया।
"कबीर! अब तुम चाहो तो जा सकते हों। ये सब है तो ये लोग मेरी हेल्प कर देंगे।" अपर्णा ने कबीर की तरफ़ पलटकर कहा।
"ठीक है, और जब बनारस जाओ तब बताना हम दोनों साथ में जाएंगे।" कबीर ने कहा और अपर्णा के गले लगकर उसी टेक्सी में वापस चला गया जिसमें वो अपर्णा के साथ आया था। दरअसल कबीर भी मुंबई में ही अपनें बड़े पापा का बिजनेस संभालना सीखता था और उन्हीं के साथ रहता था। उसके मम्मी-पापा बनारस में उसके छोटे भाई के साथ रहते थे।
अपार्टमेंट की दीवार के पीछे छिपा रुद्र ये सब देख रहा था। कबीर ने अपर्णा को गले लगाया तो रूद्र को एक खटका हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल पर हथोड़े से वार किया हो। जैसे अपर्णा को बनारस के सभी लड़के पसंद करते थे। वैसे ही मुंबई की आधी से भी ज्यादा लड़कियां रूद्र को पसंद करती थी। लेकिन रूद्र को आज़ तक किसी लड़की ने इतना आकर्षित नहीं किया था। अब ये सिर्फ आकर्षण था या कुछ और ये तो रुद्र भी नहीं समझ पा रहा था।
रुद्र खड़ा सोच रहा था उसी वक्त नियति ने आकर कहा, "सर! आपका काम हो गया है। हमने अपर्णा का सारा सामान उसके फ्लैट तक पहुंचा दिया है। उसे फ्लैट भी काफी पसंद आया।"
"थैंक्यू! लेकिन उसे कभी ये मत बताना की साक्षी ने नहीं बल्कि मैंने आप सब से उसकी मदद करने के लिए कहा था। अगर उसे कोई भी परेशानी हो तो उसकी मदद करना और कभी आप में से कोई उसकी मदद ना कर पाएं तो मुझे बताना।" रुद्र ने कहा और वह चला गया।
"सर का बिहेवियर चेंज हो रहा है। कुछ तो बात है। जो भी हो बस वो खुश रहें।" रुद्र के जाते ही नियति मन ही मन सोचने लगी और चलीं गईं।

रुद्र अपर्णा के अपार्टमेंट से सीधा अपनें घर आ गया। वो जब घर पहुंचा तब सभी लोग उसका खाने पर इंतज़ार कर रहे थे। रुद्र के परिवार में उसके मम्मी-पापा, चाचा-चाची और उनका एक बेटा और बेटी थे। जिसमें बेटा रुद्र से बड़ा और बेटी रुद्र से छोटी थी।
रुद्र को देखते ही उसके पापा रणजीत जी ने घड़ी की ओर देखकर कहा, "अपनें हाथों में घड़ी पहनने का इतना ही शौक हो तो उसमें कभी वक्त भी देख लेना चाहिए। नौ बजकर पंद्रह मिनट हो गए है। नौ बजे का वक्त डीनर का है। लेकिन तुम्हें तो जैसे देर से आने की आदत हो गई है।"
रुद्र ने अपनें पापा की बात पर कुछ रिएक्ट नहीं किया और वॉशबेसिन की तरफ़ आगे बढ़ गया। वह हाथ-मुंह धोकर आया और कुर्सी पर बैठा तो घर के नौकरो ने सब को खाना परोसा। रुद्र ने चुपचाप खाना आया और अपने कमरे में जाने लगा तो रणजीत जी ने उसे रोकते हुए कहा, "कल तुम्हें एक प्रोजेक्ट के लिए दिल्ली जाना है। तो सारी तैयारी कर लेना।"
"लेकिन पापा! मुझे यहां पर कुछ ज़रुरी काम है। आप भाई को भेज दिजिए।" रुद्र ने कहा तो उसके पापा गुस्से से उसकी ओर देखने लगे। रुद्र ने आगे कुछ नहीं कहा। रुद्र ने आज़ तक अपनें पापा को किसी बात के लिए मना नहीं किया था। लेकिन आज़ जब उसने मना किया तो सब को थोड़ा अजीब लगा।
घर में रणजीत जी सब से बड़े थे। इसलिए घर में सिर्फ उनकी ही चलती थी। रुद्र के दादाजी भी जिंदा थे। लेकिन वह ज्यादा वक्त मुंबई से दूर एक आश्रम में ही रहते थे। दादीजी की मौत के बाद उन्हें घर पर रहना अच्छा नहीं लगता था। इनके परिवार का भी अजीब किस्सा था। रणजीत जी ने कभी दादाजी की कोई बात नहीं मानी थी। लेकिन वो चाहते थे कि उनका बेटा याने रुद्र अपनें पापा रणजीत जी की सभी बातें मानें। इसी वजह से दादाजी रुद्र का साथ देते। लेकिन दादी की मौत के बाद जब रुद्र ने लंडन जाकर फोटोग्राफी का कोर्स करने की बात की तो दादाजी ने उसका साथ दिया। लेकिन रणजीत जी नहीं माने। उसी चक्कर दादाजी और रणजीत जी की बहुत बड़ी लड़ाई हों गई। उस दिन के बाद दोनों के बीच कभी कुछ ठीक नहीं हुआ। इसलिए दादाजी आश्रम चले गए। तब से लेकर आज तक रुद्र अपनें पापा के सामने कभी कुछ बोल ही नहीं पाया। क्यूंकि दादाजी के बाद किसी ने उसका साथ नहीं दिया। सब रणजीत जी से डरते जो थे। इसमें कोई अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारता भला?
रुद्र का काफी बड़ा परिवार था। मगर उनमें से कोई भी रणजीत जी के खिलाफ नहीं जा सकता था। कभी-कभी तो रुद्र को लगता कि वो खुद भी आश्रम चला जाएं। लेकिन उसे अपनें दादाजी की कही बात याद आ जाती तो वह अपनी सोच बदल देता। आज़ भी उसने ऐसा ही किया और कमरे में आ गया।

(क्रमशः)

_सुजल पटेल


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