एक बूंद इश्क - (आखरी अध्याय) Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - (आखरी अध्याय)

३१.तारों के रुप में रुद्र-अपर्णा



अपर्णा की बातें दरवाज़े पर खड़ी चाची ने सुन ली, तो उन्होंने तुरंत चाचा को फोन करके सब को सीटी हॉस्पिटल जाने के लिए कह दिया। इधर अपर्णा की तबियत भी बिगड़ रही थी। चाची और सावित्री जी मिलकर उसे भी नीचे ले आई। दादाजी अपने कमरे में थे। उन्हें इन सब के बारे में कुछ पता नहीं था। चाची और सावित्री जी अपर्णा को भी हॉस्पिटल ले गई। हॉस्पिटल पहुंचकर दोनों ने अपर्णा को वहां एडमिट किया। तब तक चाचा, विक्रम और रणजीत जी भी आ गए। उन्होंने यहां के डॉक्टर से बात करके रुद्र से मिलने की इच्छा जाहिर की तो डॉक्टर ने कहा, "अभी उनका ऑपरेशन चल रहा है। आप उनसे नहीं मिल सकते।"
ऑपरेशन शब्द सुनकर ही सब के पैर भारी हो गए। इस वक्त अग्निहोत्री परिवार का बेटा और बहू दोनों ही हॉस्पिटल में एडमिट थे। दोनों की हालत गंभीर थी। कुछ देर बाद अपर्णा के मम्मी-पापा और चाचा-चाची भी आ गए। सब महादेव से एक ही प्रार्थना कर रहे थे, कि दोनों बच्चों की जान बच जाए। लेकिन नियति का लिखा आखिर कौन टाल सकता है?
कुछ देर बाद रूद्र के डॉक्टर ने आकर कहा, "पेशंट की हालत बहुत नाज़ुक है। हमें नहीं लगता वो बच..." डॉक्टर कहते-कहते रुक गए, फिर कुछ सेकंड बाद आगे कहा, "एक बार आप सब उनसे मिल लिजिए।"
डॉक्टर की बात सुनते ही सावित्री जी वहीं घुटनों के बल बैठ गई। ये नियति का कैसा खेल था? वह समझ नहीं पा रही थी। अभी तो दोनों की शादी को कुछ ही वक्त हुआ था और आज दोनों ही हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहे थे। रणजीत जी को भी बहुत बड़ा आघात लगा था। लेकिन घर के बड़े होने के नाते उन्होंने थोड़ा मजबूत बनते हुए सावित्री जी को संभाला और उनके साथ रूद्र के रुम में आ गए।
रुद्र के सिर पर पट्टियां बंधी हुई थी। जिससे उसका सिर पूरी तरह कवर हो चुका था। सिने में कांच चुभने की वजह से वहां भी बहुत सारी पट्टियां बंधी हुई थी। मुंह पर ऑक्सिजन मास्क लगा हुआ था। सावित्री जी उसे इस हालत में नहीं देख पाई। वह तुरंत रुम से बाहर निकल गई और रोने लगी। रणजीत जी ने रुद्र के सिर पर हाथ रखा और वह भी बाहर निकल गए। उनके बाद चाचा-चाची आएं। उन्हें देखकर रुद्र ने मुश्किल से पूछा, "अपर्णा.....वो कहां है?"
रुद्र के सवाल पर चाची की आंखों से आंसु बहने लगे। वो कुछ नहीं कह पाई। आखिर में चाचा ने हिम्मत करके कहा, "वह बाहर है। हम अभी उसे भेजते है।" कहकर चाचा चाची को लेकर बाहर आ गए।
"रुद्र अपर्णा से मिलना चाहता है। उसकी हालत कैसी है?" चाचा ने बाहर आकर पूछा। इतने में तो सावित्री जी फूट-फूटकर रोने लगी। कुछ ही सेकंड में एक नर्स स्ट्रेचर पर रखी सफेद कपड़े से ढंकी एक लाश लेकर सब के बीच से गुजरी। जो किसी लड़की की थी और हाथ कपड़े से बाहर निकलकर बाहर लटक रहा था। जब चाची ने उस हाथ की एक ऊंगली में पहनी अंगूठी को देखा तो चाची की चीख निकल गई।

इधर दादाजी सारी बातों से अनजान अपने कमरें में बैठे थे। जब उन्होंने काफी देर तक किसी की आवाज़ नहीं सुनी, तो वह नीचे चले आएं। नीचे कोई नहीं था। तभी वहां से एक नौकर गुज़रा तो दादाजी ने उसे पूछा, "सब कहां गए?"
"वो अपर्णा भौजी की तबियत खराब हो गई। तो सब उन्हें लेकर अस्पताल गए है।" नौकर ने कहा और चला गया।
नौकर की बात सुनकर दादाजी तुरंत सावित्री जी को फोन करने लगे। लेकिन वह तो फोन घर पर ही भूल गई थी। जिसकी आवाज किचन से सुनाई दी। उसी वक्त स्नेहा नीचे आई, तो वह सावित्री जी का फोन बजने की आवाज सुनकर किचन में चली गई। घर का नंबर स्क्रीन पर देखकर वह बाहर दादाजी के पास चली आई। स्नेहा के हाथों में सावित्री जी का फोन देखकर दादाजी ने बिना समय गंवाए चाची को फोन किया। लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। बाद में रणजीत जी को फोन किया तो उन्होंने भी नहीं उठाया। क्यूंकि सब हॉस्पिटल में थे और सब का फोन साइलेंट था। दादाजी काफी परेशान हो गए। वह उठकर बाहर जाने लगे। तभी चाचा-चाची रणजीत जी, विक्रम और सावित्री जी के साथ आएं।
"तुम में से कोई फोन क्यूं नहीं उठा रहा था? अपर्णा कैसी है?" दादाजी ने थोड़ा घबराकर पूछा।
दादाजी का सवाल सुनकर सब साइड हो गए। उसी वक्त हॉस्पिटल से आएं लड़के दो लाश अंदर लेकर आएं। जिन्हें देखकर दादाजी ने तुरंत अपने सिने पर हाथ रख लिया। लड़के जब दोनों लाशों को रखकर चले गए। तब दादाजी ने कांपते हाथों से उस पर से सफेद कपड़ा हटाया। इसी के साथ दादाजी वहीं फर्श पर बैठकर रोने लगे।
"पापा! हमारे बच्चे हमें छोड़कर चले गए।" रणजीत जी ने अंदर आकर दादाजी के पास बैठकर कहा।
जी हां, दोनों लाशें रूद्र और अपर्णा की थी। जिस वक्त अपर्णा की सांसें रुकी, उसी वक्त रुद्र ने भी दम तोड दिया था। रुद्र के एक्सिडेंट का अपर्णा को बहुत बड़ा आघात लगा था और उसे हार्ट फेलियर की बिमारी होने की वजह से हॉस्पिटल में पहुंचने के कुछ ही मिनटों में दम तोड़ दिया था। उसके ठीक दूसरे ही सेकंड में रूद्र भी दम तोड़ चुका था। एक साथ दो दो लाशों को देखकर स्नेहा को तो जैसे संभालना मुश्किल हो गया। अग्निहोत्री परिवार के बेटा और बहू दोनों की एक ही दिन, एक साथ मौत हो गई। इससे पूरा परिवार शोकग्रस्त हो गया था। दोनों की मौत से जैसे भगवान को भी दुःख हुआ था। इसकी वजह से बाहर जोरों की बारिश के रुप में आसमान भी आंसु सहा रहा था। रणजीत जी ने अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर दिया। रात का वक़्त था, तो अभी दोनों की अंतिम यात्रा नहीं निकल सकती थी। सुबह तक पूरा परिवार अपर्णा और रूद्र की लाश के पास बैठा रहा। किसी की आंखों से आंसु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
सुबह होते ही सभी रिश्तेदार आ गए। आस-पड़ोस के लोग भी पहुंच गए। आरुषि और कबीर को भी विक्रम ने बुला लिया था। वो दोनों भी आ गए। उन्होंने अपनी प्यारी दोस्त को खो दिया था। ये देखकर उनकी आंखों से भी आंसु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। कुछ देर में ऑफिस का स्टाफ भी पहुंच गया। सब के आते ही दोनों की अंतिम यात्रा निकालने की तैयारी होने लगी। बाहर बारिश अभी तक रुकी नहीं थी। चालु बारिश में ही रूद्र और अपर्णा की अंतिम यात्रा निकली।

कुछ दिनों तक अग्निहोत्री परिवार में मातम छाया रहा। इसी बीच दिल्ली से अपर्णा के फ़ोन पर फोन आया। जिसे विक्रम ने उठाया, "जी मैं दिल्ली से रिधम सक्सेना बोल रहा हूं। मैं रुद्र को काफी देर से फ़ोन ट्राय कर रहा हूं। लेकिन फोन बंद आ रहा है, तो मैंने आपको फोन किया। रुद्र जी ने कुछ दिनों पहले प्रोजेक्ट वर्क भेजा था। जो बहुत बढ़िया था। उनका नाम बेस्ट फोटोग्राफर अवॉर्ड के लिए चुना गया है। कल शाम को उन्हें अपने परिवार के साथ दिल्ली आना है।" विक्रम के फोन उठाते ही रिधम सक्सेना ने कहा। रुद्र का फोन गाड़ी का एक्सिडेंट हुआ तब ही टूट गया था। इसलिए उन्होंने अपर्णा को फ़ोन किया था।
"मैं उनका भाई बोल रहा हूं। रुद्र और अपर्णा की कुछ दिनों पहले...."कहते हुए विक्रम का गला रुंध गया। फिर भी उसने जैसे-तैसे करके खुद को संभालते हुए कहा, "अब वो दोनों इस दुनिया में नहीं रहे। हममें से कोई दिल्ली नहीं आ पाएगा। आप अवॉर्ड अग्निहोत्री बंगलो भेज देना। वो मेरे भाई का सपना था।"
विक्रम की बात सुनकर रणजीत जी ने उसके पास से फोन लेकर कहा, "जी मैं रुद्र का पापा बोल रहा हूं। मैं अवॉर्ड लेने आऊंगा।"
"ठीक है, सर।" रिधम ने कहा और कोन कट गया।
रणजीत जी की बात सुनकर सब हैरानी से उन्हें देख रहे थे। लेकिन सावित्री जी को किसी भी तरह की हैरानी नहीं थी। रणजीत जी अपने कमरे में चले गए तो सावित्री जी भी उनके पीछे-पीछे आई और कमरें में आकर कहा, "मैं भी आपके साथ चलूंगी। वो अवॉर्ड हमारे बेटे का सपना था। हमारी बहू ने भी उसके लिए बहुत मेहनत की थी। हम उनकी मेहनत को जाया नहीं होने देंगे। हम अवॉर्ड लेने गए तो उन दोनों को बहुत खुशी होगी।"

अगले दिन दोपहर को रणजीत जी और सावित्री जी दादाजी का आशीर्वाद लेकर दिल्ली जाने के लिए निकल गए। दोनों सीधा होटल पहुंचे और शाम को अवॉर्ड फंक्शन में चलें आए। आज़ भी यहां वो सभी फोटोग्राफर्स मौजूद थे, जिनसे रुद्र पहले भी दिल्ली में मिल चुका था। सब को पता चला कि रुद्र और अपर्णा की मौत हो चुकी है, तो सब को बहुत दुःख हुआ।
कुछ देर बाद फंक्शन शुरू हुआ और रूद्र को मिला अवॉर्ड रणजीत जी लेने गए। अवॉर्ड को हाथों में पकड़ते ही उनकी आंखें भर आईं। उनके सामने कुछ ही दूरी पर बैठी सावित्री जी की आंखों से भी आंसु बहने लगे। रिधम ने रणजीत जी की ओर माइक बढ़ाया तो उन्होंने कांपते हाथों से माइक पकड़कर, सब की ओर देखते हुए कहा, "फोटोग्राफर बनना मेरे बेटे का सपना था। लेकिन मैं कभी उसके सपने को समझ ही नहीं पाया। मुझे लगा कि उसका उस फील्ड में कोई फ्यूचर ही नहीं है। जिससे रुद्र को मैंने अपनी कंपनी का सीईओ बना दिया। लेकिन मेरी बहू अपर्णा, उसने आकर मेरे बेटे का सपना पूरा करने की हर मुमकिन कोशिश की, उसी ने उसके खींचे फोटोग्राफ्स यहां की कंपनी में भेजे। जिससे रुद्र को ये प्रोजेक्ट मिला और आज़ बेस्ट फोटोग्राफर का अवॉर्ड भी मिला। लेकिन मेरी बूरी किस्मत की मेरा बेटा और बहू इस अवॉर्ड के मिलने से पहले ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए।
हमारे बच्चे बिल्कुल सही कहते है, हम उन्हें समझने की कोशिश ही नहीं करते। जब तक समझ पाते है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। अगर मैंने पहले ही रूद्र को उसका सपना पूरा करने की इजाजत दे दी होती, तो ये अवॉर्ड बहुत पहले ही उसे मिल चुका होता। मेरी दुनिया के सभी माता-पिता से एक ही सिफारिश है, कि अपने बच्चों को समझना और उनके सपनों को पूरा करना। इससे पहले की हम उन्हें हमेशा के लिए खो दे।"
रणजीत जी की बातें सुनकर सब की आंखें नम हो गई। वह अवॉर्ड को अपने सीने से लगाए नीचे उतरे और सावित्री जी के पास आ गए। सावित्री जी ने खड़े होकर उस अवॉर्ड को अपनें हाथों की उंगलियों से छुआ। अभी भी उनकी आंखें बह रही थी। रणजीत जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा और दोनों एक-दूसरे का सहारा बने बाहर आकर गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी यहीं से मुंबई की ओर निकल गई। रात का वक़्त था और तारे टिमटिमा रहे थे। मानों उसमें किसी तारों के रुप में रूद्र और अपर्णा रणजीत जी और सावित्री जी को अवॉर्ड लेने आया देखकर मुस्कुरा रहे थे।



समाप्त