अय्याश--भाग(२२) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--भाग(२२)

मोक्षदा की बात सुनकर सत्यकाम के आँसू आखिर छलछला ही पड़े और वो बोला....
ये सज़ा ही तो है मेरी प्यारी मोक्षदा! जो मैं ना जाने कब से भुगत रहा हूँ? मैं जिसे चाहता हूँ उसे अपना बना ही नहीं सकता,उसे अपने कलेजे से लगा कर ठंडक नहीं पहुँचा सकता,उसके हाथों में अपना हाथ लेकर ये नहीं कह सकता की तुम मेरे जीवन में एक किरण की भाँति आई और देखते ही देखते मेरा जीवन उजाले से भर गया,तुम्हारे प्रतिबिम्ब को मैं निःसंकोच अपने लोचनों में स्थान नहीं दे सकता,तुमसे खुलकर ये नहीं कह सकता कि तुम ही मेरी प्राणप्यारी प्रियतमा हो...
"हाय!ये कैसी बिडम्बना है? प्यासे के समक्ष जल से भरा पात्र रखा है और वो उसे पीकर अपनी प्यास भी नहीं बुझा सकता....
इतना लाचार और विवश मैं कभी भी नहीं हुआ,जब मैनें अपनी बचपन की साथी को तवायफ के रूप में देखा था तब भी नहीं ,जब मेरा बाप मरा और तब मेरे बाप की अस्थियों को मैनें नदी में प्रवाहित करने के लिए अपनी माँ का साथ माँगा था और उसने मेरे साथ आने से इनकार कर दिया था तब भी नहीं,जब मैनें अपने प्यारे दोस्त की मरने की खबर सुनी थी तब भी नहीं,मेरे ऊपर कितने आरोप लगाएं गए तब भी मैंनें स्वयं को इतना विवश कभी नहीं पाया,लेकिन मोक्षदा आज मैं इतना विवश हूँ कि मैं कह नही सकता.....
"मैनें कभी भी अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर किसी का बुरा नहीं किया और ना कभी भी भविष्य में किसी का बुरा करना चाहूँगा,इसलिए मुझे क्षमा कर दो"!
ऐसा क्यों कहते हो सत्यकाम? मैं जीवनपर्यन्त तुम्हारे चरणों में अपना समस्त जीवन समर्पित कर दूँगी,केवल एक बार मुझे अवसर तो दों,मैं तुम्हारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ बिखेर दूँगीं,तुम्हारे मार्ग में आने वाले सभी काँटों को चुन लूँगीं,मोक्षदा बोलीं।।
ना...ना...मोक्षदा!मैं तुमसे ऐसी अपेक्षाएं नहीं रखता और ना ही अपनी जीवन संगिनी से ऐसी कोई भी अपेक्षा रखने की सोचता हूँ,तुम्हें मेरे मार्ग के काँटों को चुनने की कोई आवश्यकता ही नहीं,किन्तु मैं तुम्हें अब भी अपनी संगिनी नहीं बना सकता,मेरी इज्ज़त पर बट्टा लग जाएगा,तुम समझने का प्रयास क्यों नहीं करती? सत्यकाम बोला।।
मैं कुछ नहीं समझना चाहती और ना ही कुछ सोचना चाहती हो,मैं बस तुम्हें चाहती हूँ,मोक्षदा बोली।।
नादान मत बनों,जरा ठंडे दिमाग से काम लो,सत्यकाम बोला।।
तुम कायर और नपुंसक की भाँति व्यवहार कर रहे हों,मोक्षदा चीखी।।
इतना सुनते ही सत्यकाम ने एक ज़ोर का थप्पड़ मोक्षदा के गाल पर रसीद दिया,मोक्षदा एकदम से सन्न हो गई और अपना गाल पकड़कर रह गई.....
सत्यकाम का चेहरा गुस्से से लाल था,उसकी आँखों में गुस्से के कारण खून उतर आया था और वो बुरी तरह काँप रहा था,गुस्से में वो अपने होश खो बैठा था और जब उसने मोक्षदा के भावहीन चेहरें को देखा तो अपने उस हथेली की मुट्ठी बनाकर जोर से दीवार पर दे मारी जिस हाथ से उसने अभी अभी मोक्षदा को थप्पड़ मारा था,मोक्षदा उसे जोर से घूर रही थी,मोक्षदा का घूरना सत्यकाम से बरदाश्त ना हुआ और वो बाहर चला गया,
वो छत पर जा पहुँचा,अब बारिश भी थम चुकी थी और मौसम में ठंडक थी लेकिन मौसम की ठंडक भी सत्यकाम के मन को ठंडक नहीं पहुँचा पा रही थी,जब आग दिल में लगी हो तो कोई भी बारिश उस आग को बुझाने में काम नहीं आती,सत्यकाम छत पर ही ठंडी हवा में खड़ा रहा,धीरे धीरे पेड़ो पर चिड़ियाँ चहचहाने लगी थी और सूरज की किरणें अँगड़ाई लेते हुए संसार में अपनी लालिमा बिखेरने लगीं थीं,लेकिन सूरज अभी भी किरणों के पीछे ही छुपा था,शायद सबेरा होने वाला था,लेकिन सत्यकाम के जीवन में अभी भी रात वाली बातों के अंशों ने डेरा डाल रखा था.....
हवा के झोंके आकर सत्यकाम के चेहरें पर आकर अपनी हथेलियाँ फिराकर चले जातें,उसके बालों को बिखेरकर उस से अठखेलियाँ कर रहे थें लेकिन सत्यकाम नीरसता और अवसाद से घिरा हुआ था,उसकी इन्द्रियों को आनंद की अनुभूति नहीं हो रही थीं,जीवन के अत्यधिक खतरनाक मोड़ पर वो खड़ा था,सभी ओर से केवल उसके लिए ही खतरा था,वो मोक्षदा को अपना लेता है तो उस पर नमकहरामी का कलंक लग जाता है और अगर उसे नहीं अपनाता तो बेवफाई रूपी नागिन उसे जीवनपर्यन्त डँसती रहेगी......
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वों क्या करें? वो यूँ ही छत पर खड़ा रहा और उधर मोक्षदा अपना चेहरा तकिए में छुपाकर यूँ ही रोती रही,तभी घर के दरवाज़े पर दस्तक हुई,मोक्षदा ने झटपट अपने आँसू पोछें और दरवाज़े के पास आकर पूछा....
कौन है?
हम है बिटिया! तुम्हारी काकी,दरवाजा तो खोलो,दरवाजे के बाहर से झुमकी काकी बोली।।
झुमकी काकी की आवाज़ सुनकर मोक्षदा ने दरवाजे खोले,झुमकी भीतर आई और जैसे ही उसने मोक्षदा के चेहरे को देखा तो बोल पड़ी.....
का हुआ बिटिया? रातभर सोई नहीं का? आँखें सूजी सी लगतीं हैं।।
हाँ...काकी! रात तुम ना थी तो बहुत देर तक नींद नहीं आई फिर आँधी आईं और गौशाला का छप्पर उखड़ गया ,उसके नीचें गाय और बछड़ा दोनों दब गए फिर उन्हें निकाला ,मुझे भी चोट लग गई,तब से नींद नहीं आई,इसलिए आँखें सूजी हैं,मोक्षदा बोली।।
और सत्यकाम बाबू कहाँ थे,मदद करने नहीं आएं,काकी ने पूछा।।
आएं थे लेकिन फिर से छत पर सोने चले गए होगें,मोक्षदा बोली।।
लेकिन बारिश हो रही थी तो छत पर थोड़े ही गए होगें,काकी बोली।।
तो मैं क्या जानूँ? कहाँ गए? मैं क्या उनकी पल पल की खबर लिए घूमा करती हूँ?मोक्षदा तुनकते हुए बोली।।
ठीक है नहीं पूछते,लेकिन रात बहुत आनन्द आया बहन के यहाँ,खूब छककर पकवान खाएं,इतनी भीड़भाड़ ना जाने कितने साल बाद देखी,जब तुम्हारे माँ बाप जिन्दा थे तो छोटे मालिक के जन्मदिन की दसवीं सालगिरह पर ऐसी ही भीड़ इकट्ठी हुई थी,खूब पकवान बने थे,काकी बोली।।
चलो काकी तुम्हें खुश देखकर अच्छा लग रहा है,चलो कोई तो खुश है,मोक्षदा बोली।।
अब छोटे मालिक की शादी हो तो ऐसी ही भीड़ इकट्ठी होगी,काकी बोली।।
हाँ! काकी! मैं भी यही चाहती हूँ,मोक्षदा बोली।।
अच्छा! छोड़ो इन बातों को,ये बताओ रात को कोई तकलीफ़ तो ना हुई,काकी ने पूछा...
ना !काकी! सब ठीक था,मोक्षदा बोली।।
तो ठीक है लेकिन लगता है तुम्हारे पाँव में चोट गहरी आई है तभी लँगड़ा रही हो ,काकी बोली।।
हाँ! जरा कमर में भी तो देखों कितनी चोट लगी है,पीड़ा हो रही है,मुझे तो पीछे का दिखाई नहीं देता,मोक्षदा ने काकी से पूछा....
अरे! ये तो बहुत गहरी चोट है,कुछ लगाया नहीं,काकी बोली....
ना अभी तो ना लगाया,मोक्षदा बोली।।
हल्दी और तिल का तेल लगा लेना गरम करके आराम लग जाएगा,काकी बोली।।
हाँ! लगा लूँगी थोड़ी देर में,मोक्षदा बोली।
ठीक है बिटिया! तुम आराम कर लो थोड़ी देर,अभी सबेरे सबेरे किसे खाना है? रसोई में मत घुस जाना,हम जब तक जानवरों का हाल देख लेते हैं,उन्हें दाना पानी डाल देते हैं,तुम कहो तो हरिया को बुलवा लें आज दूध दोहने को,काकी बोली।।
ठीक है,मेरा मन भी नहीं है कुछ करने का,मैं लेट जाती हूँ,मोक्षदा बोली।।
और फिर मोक्षदा अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई,रात की जागी और रोई थी इसलिए उसकी पलके भारी थी तो लेटते ही उसे नींद आ गई,
कुछ देर बाद सत्यकाम छत से नीचे उतरा और आँगन में उसने काकी को बर्तन माँजते देखा तो बोला...
काकी! आ गई।।
हाँ! बेटा! वो तो पल भर का आनंद था,जीवन तो यही कटा है और यहीं कटेगा,काकी बोली।।
तुम्हारी बिटिया कहाँ है? सत्यकाम ने पूछा।।
हमें थकी लग रही थी तो हमने कहा कि जाकर आराम कर लो शायद सो गई...काकी बोली।।
सही किया,मैं तब तक स्नान करके आता हूँ और नाश्ते की तैयारी कर लेता हूँ,उन्हें सोने देना,नाश्ता मैं बना लेता है,उन्हें चोट भी तो लगी है,सत्यकाम बोला।।
यही ठीक रहेगा,काकी बोली।।
और फिर कुछ देर बाद सत्या स्नानादि करके वापस लौटा,फिर उसने गरमागरम आलू-पूरी बनाएं और काकी से बोला....
अपनी बिटिया से कहो कि स्नान कर ले,नाश्ता तैयार है।।
अभी जगाएं देते हैं बिटिया को,काकी बोली।।
और फिर काकी ने मोक्षदा को जगाते हुए कहा....
बिटिया! स्नान कर आओ,नाश्ता तैयार है।।
मोक्षदा...झटपट बड़ी फुर्ती से उठी और फिर कराह उठी,वो भूल गई थी कि उसकी कमर में चोट लगी है और बोली.....
नाश्ता.....भला नाश्ता किसने बनाया?
और कौन बनाएगा अपने सत्यकाम बाबू ने बनाया,काकी बोली।।
और तुमने बनाने दिया,मोक्षदा बोली....
तो क्या भूखे रहेगें सब? काकी बोली।।
मैं जिन्दा हूँ ना !मर थोड़े ही गई थी जो उन्होंने नाश्ता बनाया,मोक्षदा बोली।।
वें बोलें तुम्हें चोट लगी है इसलिए आराम करने दो,तुम्हारी चिन्ता थी उन्हें,काकी बोली।।
जानती हूँ कितनी चिन्ता करते हैं वो मेरी,मोक्षदा बोली।।
ऐसा क्यों कहती हो बिटिया! काकी बोली।।
ऐसे ही मुँह से निकल गया,मैं जाकर स्नान कर लेती हूँ,मोक्षदा बोली।।
और फिर मोक्षदा स्नान करने चली गई,कुछ देर बाद वो स्नान करके लौटीं तो सत्यकाम रसोई में उसका इन्तजार कर रहा था और उससे बोला....
आप खाने बैठिए,मैं थाली परोसता हूँ।।
वहाँ काकी थी इसलिए मोक्षदा कुछ ना बोली और चुपचाप खाने बैठ गई....
खाने के बाद मोक्षदा कुछ देर रसोई में यूँ ही बैठी रही वो काकी के जाने की प्रतीक्षा कर रही थी और काकी के जाते ही वो सत्यकाम से बोली...
कितना अच्छा अभिनय करते हो? मन के भीतर की बात चेहरे पर आने ही नहीं देते।।
सत्यकाम कुछ ना बोला,वो पहले ही खा चुका था इसलिए चुपचाप उठा,आँगन में हाथ धुले और बाहर चला गया,मोक्षदा एक बार फिर गुस्से का घूँट पी कर रह गई....
ऐसे ही दोपहर हो गई और बाहर से अमरेन्द्र की आवाज़ आई....
वो खुशी में केवल मोक्षदा का नाम कुछ इस तरह से पुकार रहा था.....
मोक्षदा....मोक्षदा....मेरी प्यारी बहन कहाँ है तू?देख तेरे लिए एक खुशखबरी लाया हूँ....
और फिर काकी और मोक्षदा ,अमरेन्द्र को अचरज से निहारते हुए बोलीं....
ऐसा क्या हुआ? दोनों ही साथ में बोल पड़ीं थीं....
पता है मुझे ठाकुर बलदेव के यहाँ उनके किसी रिश्तेदार ने अपनी बेटी के लिए पसंद कर लिया,मैनें लड़की देखी वो भी गुणीं और सुन्दर लगी,उसका नाम बेला है....
फिर क्या हुआ?काकी ने पूछा।।
लेकिन मैनें उनसे कहा कि जब तक मेरी बहन का रिश्ता नहीं हो जाता मैं ब्याह नहीं करूँगा,अमरेन्द्र बोला।।
फिर.... काकी ने पूछा।।
फिर उस लड़की के पिता जी बोले कि
आपकी बहन का भी हम रिश्ता करवा देगें,
फिर मैं बोला.....अमरेन्द्र ने कहा....
क्या कहा? जल्दी बोलो!काकी बोली।।
अमरेन्द्र ने कहना शुरु किया....
फिर मैनें कहा कि उसकी शादी में अड़चन है और वो अड़चन ये है कि वो बालविधवा है,मेरी बात सुनते ही वें बोलें....
मेरा भतीजा है,मेरे बड़े भाई का इकलौता बेटा है जिसका नाम मोरमुकुट सिंह है ,वो वकील है और वो ये सब चींजें नहीं मानता,उसकी पत्नी अभी पिछले साल बच्चे को जन्मते हुए भगवान को प्यारी हो गई,बाद में बिना माँ के बच्चा भी नहीं जी सका,वो तुम्हारी बहन से शादी करने को तैयार हो जाएगा,मैं तुम्हें उससे मिलवा देता हूँ और फिर मैं मोरमुकुट सिंह से मिला,उनकी सज्जनता और सरल स्वभाव ने मुझे पल भर में आकर्षित कर लिया और मैनें साफ साफ उनसे सब कह दिया और वें मोक्षदा से शादी के लिए मान गए,इसलिए मैं खुश हूँ,मेरी भी शादी हो जाएगी और साथ साथ मेरी बहन का घर भी बस जाएगा.....
अमरेन्द्र को ये सब कहते हुए सत्यकाम ने भी सुन लिया था....और मोक्षदा ये सुनकर एकदम शून्य हो गई थी खुश अगर कोई था तो वो थी काकी और अमरेन्द्र.......

क्रमशः......
सरोज वर्मा......