अय्याश--भाग(५) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--भाग(५)

सभी लठैत दीनानाथ त्रिवेदी की बात मानकर रामभक्त को गाँव से निकालने के लिए जुट पड़े,उन्होंने रामभक्त को बदनाम करने का तरीका निकाला और एक रोज सुबह के वक्त जब हीरा गाँव के बाहर वाली बावड़ी से पानी लेने गई क्योकिं गाँव के भीतर वाले कुएँ और तालाब से उसे पानी भरने की मनाही थी इसलिए, तो तभी एक लठैत जिसका नाम बाँके था वो उसके पीछे लग गया....
और रास्तें में हीराबाई के साथ छेड़छाड़ करने लगा,हीराबाई ने शोर मचाया तो वहाँ आस पास मौजूद गाँव के दो चार लोंग इकट्ठे हो गए,तब हीराबाई उन सबसे बोली....
देखिए ना ! ये आदमी मुझे छेड़ रहा है।।
तब बाँकें उन लोगों से बोला...
ये झूठ बोल रही है,ये मेरे ऊपर डोरे डाल रही थी,बोली कि कुछ रूपयों की जरूरत है,घरखर्च ठीक से नहीं चल पा रहा और इतना कहकर मुझसे लिपट गई,मैने इसे खुद से दूर करना चाहा तो चिल्ला चिल्ला कर आप सबको इकट्ठा कर लिया,इसकी तो यहघ फितरत है क्योकिं ये तो ठहरी नौटंकी वाली एक मर्द के साथ तो जिन्द़गी भर टिक ही नहीं सकती,इसने इसी तरह उस रामभक्त को भी फाँसा होगा।।
ये सुनकर हीरा चुप ना रह सकी और बोली....
शरम नहीं आती तुझे झूठ बोलते हुए,मैं सबके सामने नाचती गाती जरूर हूँ लेकिन अपनी इज्जत का सौदा नहीं करती,तू मेरे ऊपर लाँक्षन लगा रहा है,तू मेरे साथ छेड़खानी कर रहा था मैं नहीं...
देखो भाई लोगों कितना झूठ बोल रही है,ये एक गिरी हुई औरत है ना जाने कितनों के साथ रासलीला रचाती होगी और यहाँ बड़ी दूध की धुली बन रही है,बाँकें बोला।।
तब वहाँ मौजूद लोगों में से एक बोला...
अब तो इसका फैसला पंचायत में ही होगा,गाँववालों ने इसका हुक्का-पानी बंद कर दिया तो पैसों के लिए अब ये गैरमर्दो को अपने जाल में फँसाने लगी,कुलच्छनी कहीं की।।
फिर दूसरा भी बोला....
ऐसी औरतें जो नौटंकियों में काम करतीं हो तो उनके चरित्र पर विश्वास नहीं किया जा सकता,बड़ी शरीफ़ बनती थी कहती थी मेरी आबरू बिकाऊ नहीं है,बड़ी सती-सावित्री बनती थी ,अब क्या हो गया?
तुम लोंग इस आदमी की बातों में आकर मेरे ऊपर कीचड़ उछाल रहे हो,हीराबाई बोली।।
ए...यहाँ ज्यादा सफाई मत पेश कर ,अब जो कहना हो तो पंचायत में पंचो के सामने कहना,बाँके बोला।।
ए....मेरी कोई भी गलती नहीं है और मैं कहीं भी अपनी सफाई पेश करने नहीं जाऊँगीं,हीराबाई बोली।।
तुझे चलना पडे़गा,बाँके बोला।।
मैं कहीं नहीं जाऊँगी और इतना कहकर हीराबाई ने अपनी गागर वहीं छोड़कर तेजी से घर की ओर दौड़ लगा दी,उसके पीछे पीछे सबलोंग भी भागें,बाँके तो इसी ताक में था और उसने रास्ते में खड़े अपने और भी लठैत साथियों को इशारा कर दिया,वे सब भी हीरा के पीछे लठ्ठ लेकर भागने लगे बाँके की मनसा भी यही थी कि उसे कब हीरा को बेइज्जत करने का मौका मिले,जिससे उसका पक्ष लेने के लिए रामभक्त आगें बढ़े और वो अपने लठैत साथियों के साथ उस पर टूट पड़े...
और हुआ भी यही भागते हुए हीरा घर में घुसी और रामभक्त के पीछे छुप गई,घर के द्वार पर और भी गाँववाले इकट्ठे हो गए साथ में वहाँ बाँके भी अपने लठैत साथियों के साथ मौजूद था।।
बाँके ने घर के द्वार से ही रामभक्त को ललकारा....
ए....मर्द का बच्चा है तो बाहर निकल और अपनी बीवी को भी बाहर ला,चन्द रूपयों के लिए गाँव के मर्दो पर डोरे डालती फिरती है,नचनिया कहीं की...
ये सुनकर रामभक्त भीतर ना रह सका वो बाहर आया और उसने बाँके की गिरेबान पकड़ते हुए कहा....
क्या बोला तू! फिर से बोल,हड्डी पसली ना तोड़ दूँ तो कहना।।
अकड़ तो देखों नवाबसाहब की,खुद की बीवी पर काबू नहीं और आएं हैं बड़े दूसरों की गिरेबान पर हाथ डालने,बाँके बोला।।
मैने कहा ना ! कि चुप कर नहीं तो मुँह तोड़ दूँगा,रामभक्त बोला।।
तेरी इतनी जुर्रत कि तू मेरा मुँह तोड़ेगा,बाँके चीखा ।।
हाँ! कमीने! मेरी बीवी के बारें में अब एक शब्द भी बोला ना तो जिन्दा नहीं छोड़ूगा,खून पी जाऊँगा तेरा,रामभक्त बोला।।
तभी बाँके ने अपने लठैत साथियों से कहा....
देख क्या रहे हो? आज इसकी अकड़ यही खतम कर दो,बड़ा आया अपनी बीवी की तरफदारी करने वाला,
और सभी लठैतों ने रामभक्त पर लाठियाँ बरसानी शुरू कर दीं,गाँववालों ने रोका भी लेकिन लठैत ना माने, फिर लठैतों के बीच गाँववालों की पड़ने की हिम्मत ना हुई,हीरा कैसे अपने पति को पिटता हुआ देख सकती थी,इसलिए घर की साँकल चढ़ाकर भाई,बहन और दादी को भीतर बंद करके वो भी रामभक्त का बीच-बचाव करने लगी।।
इस बीच-बचाव में उसके ऊपर भी लाठियाँ बरसने लगीं और फिर एक लाठी उसके सिर पर ऐसी पड़ी कि फिर वो उठ ना सकी,रामभक्त हीरा...हीरा चिल्लाता रह गया,तभी जोर की एक लाठी रामभक्त के कनपटी पर पड़ी और उसके कान से खून बह निकला और वो वहीं अचेत होकर गिर पड़ा ,तब भी बाँकें और उसके साथी नहीं रूकें,उन सबकी लाठियाँ तभी रूकीं जब उन्हें ये लगा कि अब दोनों में जान नहीं रह गई है।।
ये ख़बर पूरे गाँव में आग की तरह फैल गई और उड़ते हुए दीनानाथ जी के घर तक पहुँची लेकिन दीनानाथ का मन अपने छोटे भाई की मौत की खबर सुनकर नहीं पिघला और ऊपर से उन्होंने घर पर सबसे कह दिया कि खबरदार जो कोई उन दोनों की मिट्टी पर आँसू बहाने गया।।
सावित्री और वैजयन्ती दोनों ही आँसू बहाती रह गईं लेकिन दोनों ही मजबूर थीं,साथ में सत्या,गंगा और श्री भी मजबूर थे घर के मालिक की मर्जी के बिना वें कुछ ना कर सकते थें,सुबह से शाम होने को आई थी लेकिन कोई भी उन्हें देखने घर से बाहर ना निकला था....
तभी घर की नौकरानी संती बरतन माँजने आ पहुँची और रोते हुए बोली....
का हाल हुआ है दोनों का,सुबह से घर के द्वार पर दोनों की लाशें यूँ ही पड़ी हैं लेकिन उन्हें चार कंधे ना मिले समसान तक ले जाने के लिए,सब कहते हैं कि इनका हुक्का पानी बंद था अगर हमने अंतिम संस्कार किया तो पंचायत और गाँववाले हमारा भी हुक्का पानी बंद कर देगें,हमरी तो आत्मा तड़प गई दोनों की ख़बर सुनकर....
अब तो ये बात सुनकर घर में और भी रोना धोना मच गया,तब दीनानाथ जी बोले....
अभी मैं गाँव के डोम से कहकर आता हूँ कि दोनों की लाशों को ले जाकर जला दे,उसे कुछ रूपए भी दे आऊँगा,
जब दीनानाथ जी ये बोले तो सत्यकाम बिफर पड़ा और बोला....
एक तो आप उन सबकी पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करा रहें हैं,ऊपर से घर के सदस्यों के होते हुए उनकी लाशों को लावारिस समझ कर डोम से जलवाने की बात कर रहे हैं,मानवता है आपके भीतर या नहीं,कहीं आपने तो नहीं उन दोनों को मरवाने की ये तरकीब निकाली थी और अगर ये सही है तो आपने इस तरह की दरिन्दगी करके ठीक नहीं किया,ये मत सोचिए कि ये सब करके आप उस ऊपरवाले की सजा से बच जाएगें....
सत्यकाम का इतना कहना था कि दीनानाथ उसके गाल पर एक थप्पड़ धरते हुए बोलें...
बहुत अच्छा सिला दिया है तुमने! तुझे"पाल पाल अपने जी को काल" किया है मैनें,इससे अच्छा कि मैं तुझे यहाँ लाता ही नहीं,मुझे ही आँखें दिखाता है,मुझसे ही बदजुबानी कर रहा है तू ! नहीं दर्ज करवाऊँगा पुलिस में रिपोर्ट,जो करना है कर ले,हाँ! मैने ही दोनों को मरवाया है,रामभक्त जैसे कुल-कलंकी को ऐसी ही मौत मिलनी चाहिए थी,तू ज्यादा हितैषी बनता है उसका तो तू कर आ ना दोनों का अंतिम संस्कार,लेकिन याद रख अगर एक बार इस घर से तेरे कदम बाहर गए तो फिर यहाँ वापस आने की मत सोचना.....
सत्यकाम ने इतना सुना तो उसी वक्त अपने मामा दीनानाथ का घर छोड़ दिया,मामी और माँ यूँ ही बिलखतीं रहीं लेकिन सत्यकाम ने अपने मन की सुनी,मस्तिष्क की नहीं और वो अपने मामा सत्यकाम के द्वार पहुँचा,उनके घर के द्वार पर उनकी ही बैलगाड़ी खड़ी थी तो उसने हीरा के छोटे भाई को अपने साथ लिया ,बैलगाड़ी में रामभक्त और हीरा के शवों को रखकर समसान ले गया वहाँ दोनों ने उन दोनों की चिता लगाकर उन दोनों का अन्तिम संस्कार कर दिया,बैलगाड़ी लेकर हीरा के भाई को घर वापस जाने को कहा और स्वयं गाँव की पक्की सड़क तक आया तब तक सूरज ढ़ल चुका था और एक बस रोककर उसमें बैठ गया,बस कंडक्टर ने टिकट माँगा,सत्या ने अपने कुर्ते की जेब टटोली लेकिन उसमें उसे कुछ ना मिला....
तब कंडक्टर ने उसे बस से उतर जाने को कहा लेकिन तभी एक सेठ ने उसकी टिकट के पैसे चुका दिए और उससे पूछा....
बेटा!क्या घर से भागे हो?
भागा नहीं हूँ ,भगाया गया हूँ,सत्यकाम ने उत्तर दिया।।
लेकिन क्यों?कुछ गलत काम किया था क्या? सेठ ने पूछा।।
जी! नहीं! दुनिया की नजरों में गलत था लेकिन मेरी नज़रो में वो मानवता थी,सत्यकाम बोला।।
पढ़े लिखे मालूम होते हों,सेठ ने पूछा।।
जी बारहवीं पास हूँ,सत्यकाम बोला।।
मेरे साथ चलोगे,मेरे घर ,सेठ ने पूछा।।
जी! कुछ काम मिलेगा,सत्यकाम ने पूछा।।
पढ़ा सकते हो,सेठ ने पूछा।।
जी!किसे पढ़ाना होगा,सत्यकाम ने पूछा।।
मेरा बेटा है उसे,सेठ जी बोले।।
ठीक है पढ़ा दूँगा,सत्यकाम बोला।।
और फिर सत्यकाम सेठ हजारीलाल के साथ उनके घर आ गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....