एक बूंद इश्क - 21 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - 21

२१.शुभ-अशुभ



अपर्णा सुबह उठकर नीचे आई। तब सभी लोग हॉल में जमा थे। अपर्णा को उठने में देरी हो गई थी। देर रात तक सोचने की वजह से उसे नींद भी देरी से आई थी। उसने नीचे आकर देखा तो वंदिता जी सुबह-सुबह ही आ गई थी। लेकिन रुद्र कहीं नजर नहीं आ रहा था। जिससे अपर्णा को थोड़ा असहज महसूस हुआ। रुद्र के साथ अपर्णा ने भले ही थोड़ा वक्त बिताया था। लेकिन जब वो साथ होता तो उसे हिमत मिलती। फिर आज़ तो उसे जिंदगी का सब से बड़ा फैसला लेना था। बहुत सारे सवाल करने थे और बहुत से सवाल उससे भी पूछे जानेवाले थे।
अपर्णा ने इधर उधर देखते हुए रुद्र को ढूंढना शुरू कर दिया। उतनें में रुद्र बाहर से आकर दरवाज़े से घर के अंदर दाखिल हुआ। वह आकर सोफे की कुर्सी पर बैठ गया। कुछ देर बाद सावित्री जी सब के लिए चाय-नाश्ता रख गई।
आज़ घर में क्या होनेवाला है? ये सब को पता था। इसलिए किसी ने चाय नाश्ते की तरफ़ नहीं देखा। तो दादाजी ने अपर्णा से कहा, "बेटा! अब तुम जो चाहें अपनी माँ से पूछ सकती हो। तुम्हें सच्चाई तो पता चल ही चुकी है।"
"दादाजी! अगर आप चाहें तो अपर्णा से पहले मैं आन्टी से एक सवाल पूछ सकता हूं?" रुद्र ने पूछा।
"ठीक है, जैसा तुम चाहो‌।" दादाजी ने कहा।
"तो आन्टी! आपने मुझसे कहा था कि मैं अंकल को ढूंढूं। वैसे तो आप भी उन्हें ढूंढ सकती थी। तो आपने क्यूं नहीं ढूंढा?" रुद्र ने वंदिता जी की ओर देखकर पूछा।
"वो... मैं...अखिल।" वंदिता जी ने हकलाते हुए बोलना शुरू किया तो रुद्र ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा, "क्यूंकि आपको पता था कि अखिल जी कब कहां होते है? फिर भी आपने मुझे बताया नहीं। क्यूंकि आप चाहती थी कि मैं उन्हें ढूंढने में अपना वक्त बर्बाद करु और तब तक आप अपर्णा के करीब आ जाएं। फिर आप उसे अपने हिसाब से कोई पट्टी पढ़ाकर अंकल के खिलाफ कर दे। क्यूं सही कहा ना मैंने?"
"ऐसा तो मैं पहले भी कर सकती थी। लेकिन नहीं किया। क्यूंकि मैं ऐसा करना ही नहीं चाहती थी।" वंदिता जी ने सहजता से कहा।
"तो फिर आप मेरे सवाल का जवाब देते वक्त घबरा क्यूं गई?" रुद्र ने पूछा। जिसका वंदिता जी के पास कोई जवाब नहीं था। वह खामोश हो गई। क्यूंकि वह भले ही कितना भी नोर्मल रहने की कोशिश कर ले। लेकिन पकड़े जाने का डर उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
रुद्र की कही बात सच थी। लेकिन आजकल बिना सबूत के कोई यकीन कहा करता है? इसलिए रूद्र ने उसके बारे में भी सोच रखा था। उसने अपर्णा की ओर देखकर कहा, "तुम्हारे पापा ने तुम्हें जो बताया। उस सच के साथ एक और भी सच है। जो तुम्हें मैं बताऊंगा। तुम्हारे पापा बनारस छोड़कर गए। तब से लेकर आज तक वो कहां रहे? उन्होंने क्या किया? वो कब बनारस आते थे? वो सब तुम्हारी मम्मी को पता था। इन्होंने इनके पीछे अपना एक आदमी जो छोड़ रखा था।"
"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता?" अपर्णा ने हैरानी से पूछा।
"जैसा की उस दिन तुम्हारे पापा ने कहा। तुम्हारी मम्मी को धोखा बर्दाश्त नहीं होता। अब तुम्हारे पापा ने उनकी आसमान को छूती कंपनी को जमीन पर लाकर पटक दिया था और इन्होंने उनको डिवोर्स दिया। इसलिए तुम्हारे दादाजी ने तुम्हारे पापा को घर से निकाल दिया। ऐसे में इनको लगा कि तुम्हारे पापा इनसे बदला लेने के लिए कोई और चाल ना चले। इसलिए इन्होंने उनके पीछे एक आदमी को भेजा था। जो पल-पल की खबर इन तक पहुंचाता था। किस्मत से वो आदमी मैंने अंकल को ढूंढने के लिए जिस जासूस को हायर किया। उसी का भाई था। उसने कल रात को मेरे जासूस के पास अंकल की फोटो देखी। तब उसने सब बताया। तो मेरे जासूस ने रात को ही मुझे ये सब बताया।"
रुद्र की बात से अपर्णा का दिल एक बार फिर टूट गया। लेकिन जब कोई कहानी पूरी तरह से खत्म करनी हो। तब हर एक पन्ने पर छिपे राज़ खोलने जरुरी होते है। इसलिए रुद्र को यहीं सही लगा। क्यूंकि रुद्र नहीं चाहता था कि वंदिता जी झूठी ममता के साथ अपर्णा को अपनाएं।
अपर्णा ने नम आंखों से वंदिता जी की ओर देखकर पूछा, "आपने ये सब क्यूं किया? मतलब आप सच में किसी खास मकसद से हमारी जिंदगी में वापस आई है। क्यूंकि आपको तो लगता है कि मेरे कदम अशुभ है। इसलिए कोई तो वजह रही होगी कि आपने पुराना किस्सा फिर से ताजा करने की जरूरत पड़ी।"
"हां, वजह थी। बहुत बड़ी वजह थी। मैंने सच ही कहा था। तेरे कदम अशुभ ही है। क्यूंकि तेरे जन्म के साथ ही मेरी कंपनी को इतना बड़ा नुक़सान हुआ कि जिसे भरते-भरते बरसों लग गए। तब जाकर मैं आज़ इस पॉजिशन तक पहुंच पाई। फिर रही पुराने किस्से को फिर से खोलने की बात तो तेरी वजह से मेरा जो नुक़सान हुआ। उसकी भरपाई तो तुझे करनी ही थी। कुछ दिनों पहले मैंने सुना था कि तेरे दादाजी याने मेरे ससुर जी तेरा और रूद्र का रिश्ता तय करके गए थे।"
वंदिता जी ने एक नज़र पूरे परिवार की ओर की फिर अपर्णा पर अपनी नज़र रोकते हुए आगे कहना शुरू किया, "तेरा रिश्ता इतने बडे खानदान में हो जाता। तो इनकी भी मेरी कंपनी की तरह हालत हो जाती। इसलिए मैं इन सब को बचाने के लिए इनकी कंपनी की इन्वेस्टर बनी। फिर मुझे पता चला की तू तो उसी कंपनी में काम करती है। जिस कंपनी का सीईओ रुद्र अग्निहोत्री है। फिर क्या था? मैं उस दिन जानबूझकर यहां आई। मैं तो उसी दिन सारा किस्सा खत्म करके जाना चाहती थी। तेरी असलियत के बारे में सब को बताकर उसी दिन मेरा हिसाब चुकता करना चाहती थी। लेकिन यहां पर सब को तेरे साथ खड़ा देखकर मैंने सोचा इस खेल को थोड़ा दिलचस्प बनाते है। इसलिए मैंने रुद्र से कहा कि वो अखिल को ढूंढे। उसे अखिल को ढूंढने में बिजी करके मैं तेरे करीब आना चाहती थी। मुझे लगा रुद्र अखिल को नहीं ढूंढ पाएगा। फिर मैं तुझे कोई भी झूठी कहानी बताकर तुझे तेरे पापा से दूर कर दूंगी। उसके बाद रुद्र और उसके परिवार से भी दूर कर दूंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।"
"खेल? आपको मेरी जिंदगी एक खेल लगती है?" अपर्णा ने भरी आंखों से पूछा।
"क्यूं? आज़ आंखों में ये आंसु क्यूं भर आएं? तुने कभी सोचा भी है कि तेरी वजह से मैंने क्या-क्या झेला था? मैंने जो नाम कमाया था। वो तेरे आते ही डूबने लगा था। तू मेरी जिंदगी से गई। तब जाकर मैं फिर से इतना नाम कमा पाई। वर्ना तेरे अशुभ कदमों ने तो मुझे रास्ते पर लाने का तय ही कर लिया था।" वंदिता जी ने गुस्से से कहा।
"चुप करो वंदिता! जो हुआ मेरी वजह से हुआ था। इन सब में तुम इस बच्ची को क्यूं घसीट रही हो? तुम तो पढ़ी-लिखी हो। फिर भी ये शुभ-अशुभ क्या लगा रखा है?" अखिल जी से वंदिता जी का अपर्णा को लेकर बिहेवियर सहन ना हुआ तो उन्होंने गुस्से से चिल्लाकर कहा।
अखिल जी की गुस्से से भरी तेज़ आवाज़ से चारों तरफ़ ख़ामोशी फैल गई। उसी वक्त एक लड़के ने आकर कहा, "रूद्र सर! हम कितने ही वक्त से जिस प्रोजेक्ट के लिए मेहनत कर रहे थे। वो प्रोजेक्ट हमें आज़ मिल गया। आप कल ऑफिस आएंगे। तब हम सारी डिस्कस कर लेंगे। अभी ये मिठाई लेकर आया था और ये फाइल आप एक बार देख लेना।"
रुद्र ने खड़े होकर उस लड़के के पास से फाइल और मिठाई का बॉक्स लिया। उसे खोलकर उसमें से एक टुकड़ा उस लड़के को खिलाया। लड़का खुश होता हुआ चला गया। फिर रूद्र ने वापस आकर मिठाई का बॉक्स और फाइल नौकर को दी और उसकी जगह पर बैठ गया।
वंदिता जी कब से शांत बैठी थी। लड़का चला गया तो वह तुरंत अपर्णा पर बरस पड़ी, "देखा ना तुने? ये वो ही अखिल है। जो एक वक्त पर मुझसे प्यार करता था। लेकिन तेरे आते ही तुने ना सिर्फ मेरी कंपनी बल्कि अखिल को भी मुझसे छीन लिया।"
"क्या आपको सच में लगता है, आपके साथ जो हुआ वो सब मेरी वजह से हुआ।" अपर्णा ने रोते हुए पूछा।
"हां, मुझे यही लगता है। आगे भी यही लगता रहेगा। तू जहां भी जाएगी। सब बर्बाद करके रख देगी।" वंदिता जी ने गुस्से से कहा। तभी दादाजी की सांसें फुलने लगी। रुद्र का ध्यान उन पर गया तो वह तुरंत दादाजी के पास आ गया।
"दादाजी! आपको क्या हो गया? आप ठीक तो है ना?" रुद्र ने घबराकर पूछा। घर के सभी लोग काफ़ी घबरा गए थे। तभी वंदिता जी ने कहा, "देखा, मैंने कहा था ना। इस लड़की के कदम शुभ नहीं है। इसकी वजह से ही दादाजी की तबियत बिगड़ गई है।"
"अब तुम चुप करोगी?" अचानक ही दादाजी ने गुस्से से कहा तो सब चौंक गए। थोड़ी देर पहले दादाजी सांस तक नहीं ले पा रहे थे। उतने में उनको गुस्सा होते देख सब हैरान थे। लेकिन रुद्र के चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं थे।
अपर्णा ने दादाजी से पूछा, "आप ठीक है ना?"
"हां, मैं बिल्कुल ठीक हूं। बिगड़ तो तुम्हारी माँ की सोच गई है। (वंदिता जी की ओर देखते हुए) तुमने अभी-अभी ये कहा कि अपर्णा कि वजह से मेरी तबियत बिगड़ गई। तो थोड़ी देर पहले जो अच्छी बात हुई। उस पर तुमने कैसे ध्यान नहीं दिया? अपर्णा का हमारी कंपनी और ऑफिस में पांव पड़ा। तब जाकर हमें वो प्रोजेक्ट मिला। जिसके पीछे मेरे दोनों पोते और दोनों बेटे ना जाने कितने ही वक्त से मेहनत कर रहे थे और इसकी जब आखरी मीटिंग हुई। तब ऑलमोस्ट वो प्रोजेक्ट हमारे हाथ से निकल चुका था। लेकिन अपर्णा के आते ही उसकी दोबारा मीटिंग हुई और वो प्रोजेक्ट हमें मिल गया।"
"एक प्रोजेक्ट मिलने से इसके कदम शुभ नहीं हो जाएंगे।" वंदिता जी ने लगभग गुस्से से तिलमिलाकर कहा।
"तो तुम्हें एक बार कंपनी में नुकसान हुआ। इससे अपर्णा के कदम अशुभ भी नहीं हो जाएंगे। सारा फल हमारी मेहनत और कर्मों का होता है। बाकी शुभ-अशुभ जैसा कुछ नहीं होता। फिर छोटे बच्चे तो भगवान का रुप होते है‌। ऐसे में तुमने अपनी ही बच्ची को अशुभ समझकर खुद से दूर कर दिया। वो भी तब जब इसे तुम्हारी सब से ज़्यादा ज़रूरत थी‌।" कहते-कहते दादाजी की आंखें भी भर आईं। अपर्णा का तो रो रोकर बूरा हाल था।
रुद्र ने अपर्णा और दादाजी की हालत देखकर बात को और ज्यादा ना बढ़ाते हुए सब वहीं खत्म करते हुए कहा, "किसी इंसान के हमारे घर आने पर हमें कुछ नुक़सान हो। तो उसके कदम अशुभ नहीं हो जाते और उसके आने पर कुछ अच्छा हो तो उसके क़दम शुभ नहीं हो जाते। सब किस्मत का खेल है। जिसकी क़िस्मत में जब जो लिखा होता है, तब वहीं होता है। अगर अपर्णा के कदमों से आपका नुक़सान हुआ था। तो चाचा-चाची ने उसे अपने साथ रखा तो उन्हें क्यूं कोई नुक़सान नहीं हुआ? जब की अपर्णा के जन्म के बाद उनकी साड़ी की दुकान तो पूरे बनारस में हिट हो गई। जिससे उन्होंने दूसरे शहरों में भी अपनी दुकान की दूसरी शाखाएं खोली। इसके बारे में आप क्या कहेंगी? क्या अब भी आपको लगता है कि अपर्णा के कदम अशुभ है? आपके पास अब वक्त ही वक्त है। पुराना किस्सा यही खत्म होता है। अगर आपको आपकी गलति का अहसास हो। तो वापस अपनी बेटी से मिलने आ जाना। तब हम नई शुरुआत करेंगे। लेकिन अगली बार मन में नफ़रत नहीं बल्कि दिल में प्यार लेकर आना। अब आप जा सकती है। हर हर महादेव!" रुद्र ने हाथ जोड़कर कहा और वंदिता जी बिना कुछ कहे सिर झुकाए चली गई।

(क्रमशः)

_सुजल पटेल