एक बूंद इश्क - 22 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - 22

२२.चमत्कार


वंदिता जी के जाने के बाद अपर्णा बहुत रोई। उसे अभी तक यकीन नहीं हो पा रहा था कि उसकी खुद की मम्मी ने उसके कदम अशुभ समझकर उसे ठुकरा दिया था। सावित्री जी ने उसे बहुत समझाया। मगर उसका रोना बंद ही नहीं हो रहा था। आखिर में उसने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया। बाहर सभी लोग बहुत परेशान थे। लेकिन किसी की अपर्णा को समझाने की हिम्मत नहीं थी।
दादाजी ने रुद्र के पास आकर कहा, "बेटा! तू जाकर अपर्णा को समझा कि इन सब में उसकी कोई गलति नहीं है। वो हमसे ज्यादा तुम्हें जानती है। इसलिए शायद वो तुम्हारी बात मानेगी।"
दादाजी की बात मानकर रुद्र अपर्णा को मनाने उसके कमरे के बाहर आ पहुंचा। दरवाज़ा अंदर से बंद था। रुद्र ने दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा, "अपर्णा! प्लीज़ दरवाज़ा खोलो। मुझे तुमसे बात करनी है।"
"लेकिन मुझे किसी से बात नहीं करनी है। अगर कोई मेरे साथ रहा तो वो भी दुःखी रहेगा। इसलिए मुझे किसी के साथ नहीं रहना।" अपर्णा ने रोते हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक दर्द था। जो रुद्र भी महसूस कर पा रहा था। उसे लगा कि इस वक्त अपर्णा को कुछ देर अकेला ही रहना चाहिए।
रुद्र उसे परेशान किए बिना बाहर ही दरवाजे से पीठ लगाए बैठे गया। उसे अपर्णा की सिसकियां सुनाई दे रही थी। जिससे उसका दिल तड़प उठा था। मगर वो करता भी क्या? अपर्णा इस वक्त उस इंसान से दुःखी थी। जिसने उसे जन्म दिया था। ऐसे में कोई उसके साथ जबरदस्ती करता तो अपर्णा खुद को भी नुक़सान पहुंचा सकती थी। इसलिए रुद्र बाहर ही बैठकर उसका इंतज़ार करने लगा।
दोपहर से शाम हो गई। लेकिन अपर्णा ने दरवाज़ा नहीं खोला। जब रुद्र काफ़ी देर तक नीचे नहीं गया। तो दादाजी ही ऊपर आ गए। उन्होंने रुद्र को दरवाज़े के बाहर खड़ा देखकर उसके पास आकर कहा, "तुम यहां हो मतलब अपर्णा ने तुम्हें अंदर नहीं आने दिया।"
"वो बिल्कुल टूट चुकी है। पता नहीं उसने रोना बंद भी किया या नहीं? सुबह से उसने कुछ खाया भी नहीं है।" रूद्र ने परेशान सी आवाज़ में कहा।
"तो फिर यहां क्या बैठा है? तुझे तो पाइप चढ़कर कमरे में घुसने की आदत है। अपर्णा ने दरवाज़ा नहीं खोला तो क्या हुआ? तू पाईप चढ़कर उसके कमरे में घुस जा।" दादाजी ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखकर कहा।
"ठीक है, अपर्णा के लिए कुछ भी।" रूद्र ने कहा और तुरंत सीढ़ियां उतरकर बाहर गार्डन में आ गया। उसने गार्डन में आकर देखा कि अपर्णा जिस कमरे में रूकी थी। उस कमरे की खिड़की खुली है। फिर क्या था? रुद्र पाइप से चढ़कर खिड़की से होते हुए कमरे में आ गया। लेकिन ये क्या? अपर्णा तो अंदर थी ही नहीं। रूद्र ने बाथरूम में भी चेक किया। अपर्णा वहां भी नहीं थी। उसने तुरंत कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर आकर दादाजी से कहने लगा, "दादाजी! अपर्णा अपने कमरे में नहीं है।"
"लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? तू तो यहां बाहर ही बैठा था। तो ऐसे कैसे वो कहीं जा सकती है?" दादाजी ने परेशान सी आवाज़ में कहा और खुद भी कमरे में आकर चारों तरफ़ देखने लगे। उतने में उनकी नजर टेबल पर पड़ी एक चिट्ठी पर पड़ी। उन्होंने उसे उठाया और पढ़ने लगे, "मुझे माफ़ करना। मैं किसी को बिना बताए जा रही हूं। लेकिन मम्मी सच ही कहती है। मैं जहां जाऊंगी सब बर्बाद हो जाएगा। इसलिए मैं सब से दूर जा रही हूं।"
चिट्ठी पढ़ते ही दादाजी के हाथ से कागज़ नीचे गिर गया और दादाजी ने अपने सीने पर हाथ रख लिया। सुबह में सब के सामने तो उन्होंने दिल का दोहरा पड़ने का नाटक किया था। लेकिन चिट्ठी पढ़ते ही उन्हें सच में दर्द शुरू हो गया। रुद्र ने देखा तो वह काफी घबरा गया। उसने दादाजी को बिस्तर पर लेटा दिया। फिर उसने तुरंत डॉक्टर को फोन किया। जब उसकी नज़र अपर्णा के लिखे कागज़ पर पड़ी। तब उसे पढ़ने पर रूद्र को दादाजी की ऐसी हालत का कारण पता चल गया। रुद्र ने वो कागज जेब में रखकर दादाजी की ओर देखा तो उन्होंने धीरे से कहा, "तुम जाकर अपर्णा को ढूंढ़ो। अभी जाओगे तो मिल जाएगी।"
दादाजी की बात तो सही थी। लेकिन रुद्र उन्हें अकेला छोड़कर भी नहीं जा सकता था। इसलिए उसने डॉक्टर के आने तक का इंतजार किया। कुछ देर बाद डॉक्टर के साथ पूरा परिवार ऊपर आ गया। उसी वक्त रुद्र तुरंत अपर्णा को ढूंढने निकल गया। उसने बाहर आकर गाड़ी में बैठकर गाड़ी को तेजी से सड़क पर भगाना शुरू कर दिया। लेकिन आखिर अपर्णा को ढूंढे कहा? ये याद आते ही उसने गाड़ी की स्पीड कम कर दी। फिर उसे एक ख्याल आया। उसने अपने सभी दोस्तो का वॉट्सएप ग्रुप ओपन किया और उसमें एक मैसेज डाल दिया। मैसेज मिलते ही रुद्र के साथ उसके सभी दोस्त भी अपर्णा को ढूंढने में लग गए। साथ ही रुद्र ने फेसबुक पर भी अपर्णा की जन्माष्टमी के दिन खींची गई तस्वीर डाल दी और ऊपर गुमशुदा लिख दिया।
रुद्र एक बहुत बड़ी कंपनी का सीईओ था। उसे पूरा मुंबई जानता था। फिर रुद्र को पता था कि अपर्णा अभी भी मुंबई में ही होगी। इसलिए उसने इंटरनेट का सहारा लेना ही सही समझा। इंटरनेट का यही तो फायदा है। वहां किसी से कोई रिश्ता ना होने पर भी लोग आपकी मदद करते है। रुद्र द्वारा फेसबुक पर पोस्ट की हुई अपर्णा की फ़ोटो कुछ ही मिनटों में आधे से ज्यादा मुंबई वासियों ने देख ली। इसी के साथ सब लोग उसे ढूंढने में लग गए।
रुद्र सिर्फ इतना करके हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकता था। वो सीधा अपर्णा के फ्लैट पर पहुंचा। क्यूंकि वो जब रुद्र के साथ बनारस गई। तब सारा सामान लेकर नहीं गई थी। उसका कुछ सामान फ्लैट पर भी था। इसलिए रुद्र को लगा कि शायद वो बाकी का सामान लेने फ्लैट पर गई होगी।
रुद्र तुरंत फ्लैट पर आया। लेकिन वहां ताला लगा देखकर वह तुरंत गाड़ी में आ बैठा। अपर्णा मुंबई में कुछ ही हफ्तों पहले आई थी। ऐसे में वो कहां जा सकती है? ये रुद्र की समझ में नहीं आया। सोचते हुए रूद्र को कबीर का ख्याल आया। उसने घर पर फोन करके अपर्णा के चाचाजी से कबीर का नंबर लेकर उसे फोन किया।
"हेल्लो कबीर मैं रुद्र अग्निहोत्री बोल रहा हूं। अपर्णा तुम्हारे पास आई है क्या?" कबीर के फ़ोन उठाते ही रुद्र ने पूछा।
"नहीं लेकिन तुम इतने डरे हुए क्यूं लग रहे हो?" कबीर ने परेशान सी आवाज़ में पूछा।
"वो सब बाद में बताता हूं। अगर अपर्णा तेरे पास आएं तो तुरंत मुझे इस नंबर पर फोन करना।" रुद्र ने कहा और कॉल काट दिया।
कबीर से बात करने के बाद रूद्र की उम्मीद टूटने लगी थी। मुंबई में दो ही तो जगह थी। जहां अपर्णा जा सकती थी। लेकिन वहां पर भी वो नहीं गई थी। ऐसे में तो रुद्र उसे वक्त रहते ढूंढ़ ना पाएं तो अपर्णा मुंबई छोड़कर चली जाती। फिर रुद्र चाहे तो भी उसे जल्दी नहीं ढूंढ पाता। अब तो कोई चमत्कार ही था जो रुद्र और अपर्णा को मिला सकता था।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल