२०.मुश्किल वक्त
रूद्र ने अपर्णा के पास आकर उसे संभाला और खड़ा किया। दोनों ने एक नज़र घुटनों के बल बैठकर रो रहे अखिल जी को देखा। एक तरह से उनकी गलति तो थी। लेकिन वो आखिर अपर्णा के पापा थे। रुद्र चाहता था कि अपर्णा अखिल जी से बात करें। क्यूंकि अब शायद उन्हें उनकी गलति का पछतावा हो गया था। लेकिन जो गलत हुआ वो सब अपर्णा के साथ हुआ था। इसलिए रुद्र ने बीच में ना बोलना ही सही समझा।
अपर्णा ने रुद्र की ओर देखकर पूछा, "तो तुम मुझे यहां इनसे मिलवाने लाएं थे? लेकिन तुम्हें कैसे पता चला ये यहां है?"
अपर्णा के सवाल पर रुद्र ने उसे सब बता दिया। साथ में उसने उस दिन वंदिता जी से जो भी बातें की थी। वो सब भी बता दी। अपर्णा को ये सब सुनकर थोड़ी हैरानी हुई। उसके मन में रुद्र को लेकर बहुत सारे सवाल उठे। लेकिन फिलहाल उसने वो सवाल अपने मन में ही रखें और अखिल जी की ओर बढ़ गई।
अपर्णा जैसे ही अखिल जी के पास पहुंची, अखिल जी ने खड़े होकर कहा, "मानता हूं मैंने जो किया गलत किया। लेकिन मैंने ये कभी नहीं चाहा कि तुम मुझसे दूर हो जाओ। मैंने कभी तुम्हें अपनाने से इन्कार नहीं किया था।"
"जानती हूं, लेकिन अभी मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी है। मुझे मम्मी से कुछ सवालों के जवाब चाहिए। आज पुरानी बात निकली ही है। तो जैसा कि रुद्र ने कहा, मैं आज़ ही सब खत्म करना चाहती हूं।" अपर्णा ने अपने पापा का हाथ थामकर कहा और फिर रुद्र की ओर देखकर पूछा, "क्या तुम पापा और चाचा-चाची की भी मुंबई की टिकट करवा सकते हों?"
रुद्र ने सिर हां में हिला दिया। अपर्णा आगे जाकर रिक्शा रोकने लगी। रूद्र ने सब की प्लेन की टिकट बुक करवाई और फिर अखिल जी के साथ अपर्णा के पास आ गया। फिर तीनों साथ में ज्योति जी के घर जानें के लिए निकल गए।
अपर्णा पूरे रास्ते यही सोचती रही कि मुंबई जाकर क्या होगा? उसने तो बस ये किस्सा खत्म करने के बारे में सोच लिया था। लेकिन कैसे करेगी? ये अभी तक सोचा नहीं था। रुद्र ने जब अपर्णा को देखा तो उसे वह थोड़ी परेशान लगी। उसने अपनी जेब से फ़ोन निकाला और तुरंत किसी को मैसेज भेजा। कुछ ही देर में रुद्र को सामने से किसी का मैसेज आया। रुद्र ने मैसेज पढ़ा, तब तक ज्योति जी का घर आ गया। अपर्णा और अखिल जी दोनों साथ में रिक्शा से उतरे। अपर्णा तो आगे बढ़ गई। लेकिन अखिल जी वहीं रुक गए।
रुद्र ने अखिल जी का हाथ पकड़कर कहा, "अब यहां तक आ ही गए है। तो अंदर भी चलिए।"
रुद्र की बात मानकर सब लोग अंदर आ गए। ज्योति जी ने अपर्णा को देखा तो तुरंत उसे गले लगाकर पूछने लगी, "तुम आ रही थी तो तुमने बताया क्यूं नहीं? ऐसे अचानक आई है, तो वहां मुंबई में कोई गरबड़ तो नहीं हुई है ना?"
अपर्णा ने ज्योति जी के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। वो बस थोड़ा साइड हट गई। ताकि ज्योति जी को अखिल जी दिखे। उन्हें देखते ही ज्योति जी के तो होश ही उड़ गए। वो कभी अपर्णा तो कभी अखिल जी को देख रहीं थी। साथ में रुद्र को भी देखकर हैरान थी। क्यूंकि उन्हें नहीं पता था कि रुद्र रामाकृष्णन अग्निहोत्री का पोता है। सिर्फ वो ही क्या अपर्णा के चाचा या पापा को भी कुछ पता नहीं था।
ज्योति जी ने अपने पति मनिष जी को आवाज़ लगाते हुए कहा, "सुनिए जी, जरा बाहर आइए।"
ज्योति जी की आवाज़ सुनकर मनिष जी बाहर आए। उन्होंने भी बाहर आते ही अपर्णा को देखकर पूछा, "बेटा तुम अचानक यहां? सब ठीक तो है न?"
अपर्णा ने सिर्फ पलकें झपकाई और मनिष जी के गले लग गई। फिर जब मनिष जी की नज़र अखिल जी पर पड़ी। तो वो भी हैरान रह गए। उन्होंने अपर्णा की ओर देखा तो उसने कहा, "मम्मी-पापा ने डिवोर्स क्यूं लिया? वो सब मैं जान चुकी हूं।" कहते हुए अपर्णा ने मुंबई में और बनारस घाट पर जो हुआ वो सब अपने चाचा-चाची को बता दिया।
"अब आप दोनों हमारे साथ मुंबई चलेंगे। मैं रामाकृष्णन अग्निहोत्री का पोता हूं। अब जो भी बातें होंगी वहीं होगी।" रुद्र ने कहा तो ज्योति जी और मनिष जी ने रुद्र को देखा फिर एक-दूसरे को देखने लगे। रूद्र के दादाजी का नाम सुनते ही चाचा-चाची उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गए। अपर्णा कुछ वक्त के लिए बाहर गार्डन में चलीं गईं।
चाचा-चाची अपना सामान लेकर बाहर आए तो रुद्र ने उनसे कहा, "आप मेरे दादाजी का नाम सुनकर सब समझ गए होंगे। लेकिन आप अपर्णा को कुछ मत बताना। उसे मैंने और दादाजी ने अभी तक कुछ नहीं बताया है।"
"ठीक है, बेटा।" ज्योति जी ने प्यार से रुद्र का गाल छूकर कहा।
रुद्र सब के साथ बाहर आ गया। सब रिक्शा से एयरपोर्ट के लिए निकल गए। यहां पहुंचकर पता चला फ्लाईट एक घंटे बाद की थी। सब लोग वेटिंग एरिया में बैठकर इंतजार करने लगे। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। सब के बीच गहरी खामोशी थी। वहीं अपर्णा के मन में तो सवालों ने उथल-पुथल मचा रखी थी। कितने सालों बाद मम्मी-पापा से मुलाकात हुई। लेकिन वह अभी तक दोनों में से किसी के साथ ठीक से बात तक नहीं कर पाई थी।
एक घंटे बाद मुंबई जानेवाली फ्लाइट की अनाउंसमेंट हुई तो सब उस ओर चल दिए। प्लेन के उड़ान भरते ही दो घंटे और पंद्रह मिनट बाद प्लेन मुंबई एयरपोर्ट पर लेंड हुआ। सभी लोग एयरपोर्ट से बाहर आएं। रूद्र ने एक फोन किया और दो गाड़ियां सब को लेने एयरपोर्ट आ गई। एक गाड़ी में अपर्णा के चाचा-चाची और उसके पापा चले गए और दूसरु में रुद्र और अपर्णा बैठ गए।
"तुमने आगे का क्या सोचा है? मतलब तुम अंकल को यहां लेकर आई हो। तो कुछ तो सोचा होगा ना?" रुद्र ने गाड़ी में बैठते ही पूछा।
"नहीं, सच कहुं तो अभी तक कुछ सोचा नहीं है। लेकिन मैं यहां से अपने फ्लैट पर जाऊंगी। तुम ड्राईवर से कह दो कि दोनों गाडियां मेरे फ्लैट की तरफ़ लें ले।" अपर्णा ने खोए हुए स्वर में कहा।
"तुमने भले ही कुछ ना सोचा हो। मुझे जो सोचना था, वो मैं सोच चुका हूं। ड्राईवर को भी सब पता है।" रूद्र ने कहा। लेकिन अपर्णा कुछ समझ नहीं पाई। जब दोनों गाडियां रुद्र के घर के सामने रुकी। तब अपर्णा को सब समझ आया। उसने रुद्र की ओर देखकर पूछा, "हम यहां क्यूं आएं? घर पर सब क्या सोचेंगे?"
"उसकी फ़िक्र तुम मत करो। घर पर सब को सब पता है। कोई कुछ नहीं सोचेगा।" रुद्र ने कहा और अपर्णा का बैग लेकर गाड़ी से बाहर निकल गया। अपर्णा को ना चाहते हुए उसके पीछे घर के अंदर आना पड़ा।
अपर्णा अंदर आते ही दादाजी के गले लग गई और रोने लगी। सावित्री जी ने उसे संभाला और पानी पिलाया। चाचा-चाची और अखिल जी ने दादाजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिए। शाम हो चुकी थी तो किसी ने अभी कोई सवाल नही किया और दादाजी ने कहा, "आप सब फ्रेश हो जाईए। फिर खाने पर आ जाना। बाकी बातें सुबह करेंगे।"
दादाजी की बात मानकर रुद्र ने चाचा-चाची, अपर्णा और अखिल जी को उनके कमरे दिखा दिया। फिर रूद्र भी अपने कमरे में आ गया। उसने फ्रेश होकर वंदिता जी को फोन किया। उनके फोन उठाते ही रुद्र ने कहा, "अखिल अंकल को मैं मुंबई लेकर आ गया हूं। उन्होंने जो किया वो सब उन्होंने अपर्णा को बता दिया है। आप कल सुबह अग्निहोत्री बंगलो आ जाना।"
"ठीक है, मैं आ जाऊंगी।" वंदिता जी ने कहा और कॉल डिस्कनेक्ट हो गया।
रुद्र बात करके नीचे आ गया। सभी लोग डाइनिंग पर जमा थे। नौकरो ने सब को खाना परोसा। आज़ खाते वक्त भी कोई चर्चा या बात नहीं हुई। सब ने खाना खाया और अपने-अपने कमरे में चले गए। लेकिन आज़ कहां किसी को नींद आनेवाली थी? सब बिस्तर पर लेटे आंखें बंद किए सोचते रहे।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल