भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 13 सीमा जैन 'भारत' द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 13

13…

चौथा दिन

आज का दिन मुझे आराम करना था। अपने हॉस्टल के बाहर बैठकर किताब पढ़ने की इच्छा थी। उस हॉस्टल में कई किताबें रखीं थीं। जिसमें आने वाले अपनी पसंद की किताब पढ़ते हैं और अपनी कोई पढ़ी हुई किताब वहां छोड़ जाते हैं। किताबों के एक्सचेंज का यह एक खूबसूरत तरीका लगा।

आज जर्मनी से आए हुए कुछ लोग भी धूप में बैठे थे। जिनमें एक युवती ड्राइंग कर रही थी और उनका साथी पढ़ रहा था। उस अंब्रेला के नीचे लगी कुर्सियों का भरपूर इस्तेमाल होता था। कोई अपनी कुर्सी उठाकर, एक कोने में बैठकर संगीत का आनंद ले रहा होता तो कोई कुछ देख रहा होता था।

पांचवा दिन

अगली सुबह मेरे दोनों साथी मेरा इंतजार करते हुए मिले। हमनें साथ में नाश्ता किया और हम टैक्सी में बैठ निकल पड़े अपने पहले गंतव्य की ओर…

बुद्ध की मोनेस्ट्रिस कला, आस्था का एक अनुपम उदाहरण है। चटकीले रंगों से बनी खूबसूरत पेंटिंग, बुद्ध की प्रतिमा को भी बहुत सुंदर रंगों से सजाया था। उनके आसपास की दीवारें बहुत अच्छी लग रही थी। दीये की अखण्ड जोत ईश्वर से एक कामना ही होगी, दिल में प्रेम, विश्वास को जलाये रखने की। 

मन्दिर, मेरी नजर में एक जगह है, ख़ुद से बात करने की, अपने आपको देखने, समझने की। जितना हम खुद को जानते है उतना ही अपने करीब होते जाते हैं। एक नयी ताकत महसूस करते हैं। 

लद्दाख के रास्ते, वहाँ की मोनेस्ट्रिस से शहर का नज़ारा, यह सब बहुत अद्भुत है। मेरे जैसे कईं होंगे जिनके लिये प्रकृति एक राहत का काम करती है। ईश्वर ने हमारे लिए कितना कुछ बनाया है! अपने दायरों से बाहर निकलें तो दुनिया बहुत लुभावनी लगती है। जिसमें हम छोटे हो जाते हैं। बाकी सब बहुत विस्तृत लगने लगता है। 

अपने नए साथियों के साथ आज का दिन बहुत अच्छा रहा। लौटते समय हमनें बाहर ही खाना खाया। वो भारतीय खाना बहुत चाव से खा रहीं थीं। उनको खाने से जुड़ी जानकारी जब मैंने दी तो वो बहुत खुश हुईं। हम भारतीय अपने देश को कितना घूम पाते हैं पता नहीं? पर ये विदेशी पर्यटक हमारे देश के बारे में कई जानकारियों के साथ, बिना हिंदी जाने बड़े आराम से यहाँ का आनंद लेते है। संस्कृति, सभ्यता से जुड़ी इनकी जिज्ञासा मुझे लुभा गई।

  1. 11. लामायुरू

लामायुरु या लमवु जैसा कि उसे कहा जाता है, लद्दाख का सबसे प्राचीन मठ एवं मठों का शहर है। इस यात्रा की विशेष बात थी यहां के जमे हुए झरने।

आपको रास्ते में इस प्रकार के बहुत से छोटे-बड़े जमे हुए झरने देखने को मिलेंगे। जी हाँ, आप इन्हें चादर यात्रा किए बिना भी देख सकते हैं। ये जमे हुए झरने लद्दाख के दृश्यों को अत्यधिक प्रसिद्ध बनाते हैं।

स्पीति घाटी में स्थित धनकर मठ की भाँति, पहाड़ी के शिखर पर बसा हुआ लमयुरु मठ यहां के पूरे परिदृश्य को और भी सुरम्य बनाता है। दीमक पहाड़ी जैसे दिखनेवाली इन हलकी फूली सी चट्टानों पर स्थित यह पूरा मठ, या दरअसल यह गाँव ही किसी शानदार दृश्य की तरह दिखाई देता है। जो हमारी आँखों के सामने से गुजरता हुआ जाता है।

 कुछ सदियों पहले नौ लामाओं ने आकर इस मठ की स्थापना की थी। और तब से यह मठ इसी ढलान पर स्थित है। सैकड़ों लामाओं को अपनी छत्र-छाया प्रदान करनेवाला यह विशाल मठ बहुत ही साधारण है, जिसकी बाहरी दीवारें रंगी हुई हैं। आंतरिक सजावट भी ससाधार-सी है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित बाकी मठों की तरह यह मठ भी अपने आस-पास के परिदृश्यों को देखने के लिए आगंतुकों को सुविधाजनक स्थान प्रदान करता है।

12.मूनस्केप

चाँद की सतह से मिलता जुलता परिदृश्य – लद्दाख से लमयुरु पहुँचने से ठीक पहले आपको बेतरतीब सा भूदृश्य दिखाई देगा, जिसे अक्सर मूनस्केप या ऐसी जमीन जो चंद्रमा की सतह के जैसी दिखाई देती है। यानि एक प्रकार से यह चंद्रमा की सैर करने जैसा ही है। मुझे यह जगह बहुत ही अनुपम और थोड़ी सी काल्पनिक भी लगी।

 चांदनी रात में इस जगह को देखना एक अद्भुत अनुभव होता जिसे मैं नहीं देख पाई। पर इन चट्टानों की खूबसूरती ने मुझे मोहित किया। यहां एक मोनेस्ट्री भी है जो श्रीनगर से आने वाले लोगों के लिए सबसे पहला पर्यटक स्थल है। मैं इस मोनेस्ट्री के अंदर नहीं गई। मगर होगी तो ये भी बुद्ध की मूर्ति और रंगों से सजी हुई। जो एक अजीब सी शांति का अहसास देती है। 

13.आल्ची मठ

लद्दाख में प्रत्येक गाँव का अपना मठ है जिसे आमतौर पर उसी गाँव के नाम से जाना जाता है। आल्ची मठ इन्हीं में से एक है जहां तक पहुँचने के लिए आपको लमयुरु की यात्रा को कुछ समय के लिए स्थगित कर थोड़ा सा विमार्ग होना पड़ता है। अगर आप भित्ति-चित्रों को देखना पसंद करते हैं, तो आपको इस सुंदर से मठ की विशेष यात्रा जरूर करनी चाहिए।

 मठ की चित्रित दीवारों और उनपर की गयी विशाल दस्तरकारी का अवलोकन करते समय एक सुखद अनुभव हुआ। कला ने जीवन को कितना सुंदर बनाया है। कलाकार, चाहे वो किसी भी देश या क्षेत्र का हो उसका एक विशेष योगदान रहा है जिसे आगे की अनगिनत पीढ़ियां देखती और अपनी घरोहर पर गर्व करती है।