भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 7 सीमा जैन 'भारत' द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 7

7…

7*बुद्धा डोर्डेंमा

 ग्रेट बुद्ध डोर्डेंमा: भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंगे वांगचुक की 60 वीं वर्षगांठ के अवसर पर विशाल शाक्यमुनि बुद्ध प्रतिमा का निर्माण करवाया गया। यहाँ इस मूर्ति में एक लाख से अधिक छोटी बुद्ध मूर्तियां हैं। जिनमें से प्रत्येक, महान बुद्ध डोर्डेंमा की तरह ही, कांस्य से बनाई गई हैं और सोने की परत उन पर चढ़ी है। 

ग्रेट बुद्ध डॉर्डेंमा, कुरेंस फोडरंग के खंडहर, शेर वांगचुक के महल, तेरहवीं देसी ड्रुक के खंडहर के बीच स्थित है। इसका निर्माण 2006 में शुरू हुआ था। इसके अक्टूबर 2010 में खत्म होने की योजना बनाई गई थी, हालांकि निर्माण 25 सितंबर 2015 तक समाप्त नहीं हुआ था। ये प्रतिमा 54 मीटर (177 फीट) दुनिया में सबसे विशाल कुछ बुद्ध प्रतिमाओं में से एक है।

मूर्ति का निर्माण नानजिंग, चीन, सिंगापुर के प्रायोजन से लाखों अमरीकी डालर की लागत से किया गया था। भूटानी राजशाही के शताब्दी के जश्न मनाने के अलावा, इस विशाल मूर्ति के लिए भविष्यवाणी की गई थी: कि गुरु पद्मसंभव, बुद्ध या (वज्रकीला) फर्बा की एक बड़ी मूर्ति इस क्षेत्र में दुनिया में आशीर्वाद, शांति और खुशी प्रदान करने के लिए बनाई जाएगी।

 इसके अतिरिक्त, वोंग-पारो के बीच क्षेत्र का निर्माण, पद्मनाभस्वामी की प्राचीन काल में निर्मित मूर्ति का उल्लेख किया गया है। जो लगभग छठी शताब्दी से आज तक का समय कहा गया था।

नारी-प्रतिमाएं और अपनी पारंपरिक परिकल्पना में बना भव्य पूजा-गृह देखकर आनन्द द्विगुणित हो उठता है। प्रायोजकों के नाम, ध्यान हाल में प्रदर्शित किए गए है जो इस बुद्ध की प्रतिमा आदि के निर्माण में सहयोगी थे। विशाल कुएंसेल फ़ादरांग नामक प्रकृति पार्क जो करीब 943.4 एकड़ वन क्षेत्र में फ़ैला हुआ है, यहाँ से देखा जा सकता है।

सोने के चमकते बुद्ध जो बहुत शांत, सुंदर दिखाई दे रहे थे। बहुत दूर जाने के बाद भी उस प्रतिमा को देखकर एक लगाव-सा महसूस होता है।

8*टेक्सटाईल म्युजियम

बुनाई की कला को जीवित रखने और संरक्षित करने के लिए इस म्युजियम की स्थापना की गई थी। यह महास्त्री आस्थी संगे गंगचुक के संरक्षण में बनाई गई गैर सरकारी, गैर लाभकारी संस्था है। जो भूटानी वस्त्र परंपरा की बुनाई कला को संरक्षित करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण के लिए, एक शैक्षणिक केन्द्र के रुप में स्थापित है।

 संग्रहालय में भूटान के आकर्षक ऐतिहासिक चीजों तथा विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं और पुरुषों के खूबसूरत भूटानी वस्त्रों का भी यहाँ प्रदर्शित किया गया है।

9*थिंपू चोरटेन

 

शहर के दक्षिण-मध्य भाग में स्थापित मेमोरियल स्तूप जिसे थिम्पू चोर्टेन के रुप में भी जाना जाता है। डुक ग्यालपो, जिग्मे दोरोजी वांगचुक को सम्मानित करने के लिए इसकी स्थापना 1974 में तत्कालीन राजमाता के द्वारा की गई थी।

 भूटान में मुख्य स्तम्भ और भारतीय सैन्य अस्पताल के निकट शहर के दक्षिणी-मध्य भाग में स्थित दूबूम लैम पर स्थित एक स्तूप ( झोंखका चोंने, चेटेन ) है। 1974 में तीसरा ड्रुक ग्यालपो, जिग्मे दोरोजी वांगचुक (1928-1972) को सम्मानित करने के लिए बनाया गया स्तूप अपने स्वर्ण शिखर और घंटी के साथ अपने पूरे सोंदर्य व गरिमा के साथ खड़ा है। 2008 में इसका पुनर्निर्माण किया गया था।

आज के दिन ये स्थल देखने के बाद मैंने खाना खाया और मैं वापस पारो लौट गई। मेरे पास थिम्पू को देखने के लिए दो दिन थे। आज के दिन यही सब देख कर लौटने का मन हुआ। पारो के टैक्सी स्टैंड पर पहुँच कर मैंने पारो के मार्केट को देखा। कुछ फल खरीदे। पारो में कईं एटीएम हैं। मैं ज्यादा कैश साथ लेकर नहीं चलती। आज पैसे निकालने थे। एक, दो, तीन हर जगह कोशिश की पर पैसे नहीं निकल पाये।

 पास खड़े स्थानीय लोगों ने बहुत सहयोग दिया। पहली मशीन पर लोगों ने मेरे साथ कोशिश की शायद उनकी सहायता से पैसे निकल आये। वहां से एक महिला मुझे दूसरे एटीएम तक ले गई। शायद यहाँ से पैसे मिल जाये। जब वहाँ पर पैसे नहीं निकले तो एक व्यक्ति ने मुझे बताया की ‘पास ही भूटान की बैंक है। आप वहां जाकर बात करें। शायद आप का काम हो जाये!’

 मैं भूटान के बैंक में गई। यहाँ बैंक के दरवाजे बंद होते हैं। खटखटाने पर ही दरवाजे खोले जाते हैं।

 वहाँ के कर्मचारियों को जब मैंने अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने मुझे कहा: “आप अपने बैंक के टोल फ्री नंबर पर बात करें। वहीं से कुछ हो पाएगा। यहाँ से हम कुछ नहीं कर पायेंगे। आप चाहे तो मैनेजर से बात कर सकती हैं।” मैंने उनको उनके सहयोग का धन्यवाद दिया और मैनेजर के पास गई।

 उन महिला मैनेजर ने मुझे कहा- “ऐसा कभी-कभी हो जाता है। किसी-किसी बैंक का कार्ड काम नहीं करता है। आप जहाँ ठहरी हुई हैं, उन के किसी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करवा लें। वो ही बेहतर होगा।”

 घर आकर जब मैंने आमा को यह बताया तो उन्होंने बड़े आराम से मुझसे कहा- “आप मेरे अकाउंट में पैसे मंगवा दो! तब तक मैं आपको पैसे दे देती हूं।” मेरे पैसे बाद में आये पर आमा ने मुझे अगली सुबह पैसे दे दिए। कार्बन-डाइऑक्साइड की कमी ने यहाँ की प्राणवायु को ही नहीं दिलों को भी ऑक्सीजन से भर दिया है।

जब एक जगह रहने लगे तो हर जगह याद हो जाती है। सब कुछ सुलभ लगने लगता है। मुझे उस जगह कुछ विशेष अपनापन लगने लगता है। जो अच्छा लगता है। पारो में ही सात दिन ठहरने का यही कारण था। ऐसा हम इस छोटे देश में कर सकते है। बड़े देश में ये आसान नहीं। 

एक बार आगे बढ़ गये तो दोबारा वहाँ नहीं जा सकते हैं। हर दो दिन बाद सामान पैक करने से ये बेहतर है। अब मैं लोकल टैक्सी स्टैंड से टैक्सी लेकर ₹30 में बड़े आराम से घर आ जाती थी। आज शाम का खाना खा कर मैं जल्दी ही सो गई। अगली सुबह उठ कर फिर थिम्पू के लिए रवाना हुई। आज थिम्पू में मैंने जो स्थल देखे वो हैं…

10*वस्त्र संग्रहालय थिंपू 

एक राष्ट्रीय कपड़ा संग्रहालय है जो कि भूटान के राष्ट्रीय पुस्तकालय के पास स्थित है। यह राष्ट्रीय आयोग द्वारा संचालित होता है। 2001 में इसकी स्थापना के बाद संग्रहालय ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनायी है।

 प्राचीन कपड़ा कलाकृतियों को इसमें सहज कर रखा गया है। इसका उद्देश्य कपड़ा कला कलाकृतियों को बढ़ावा देने के साथ ही अनुसंधान करना भी है। अध्ययन का केन्द्र बन चुके इस संग्रहालय में बड़ी संख्या में भूटानी लोग पारंगत हो रहे है।

11*चांग मानेस्ट्री-

इस बौद्ध मठ की स्थापना 12 वीं शताब्दी में एक ऊँची पहाड़ी पर लामा फ़ाजो रुजौम शिगपो द्वारा की गई थी। मंदिर परिसर से थिंपू शहर का सुंदर दृष्य दिखाई देता है। मन्दिर के चारों ओर 108 मंत्रों से सुसज्जित, हाथ से घुमाने वाले चकरियाँ देखने को मिली। यह मान्यता है कि इन्हें घुमाने से सारे पापों का अंत हो जाता है। ( धर्म को अंधविश्वास से जोड़ने की कला सदियों पुरानी है। इसकी आँच से कोई नहीं बच पाया है।)

12*फ़ोक हेरिटेज म्युजियम.

28 जुलाई 2001 में इस संग्रहालय की स्थापना की गई थी। इसमें भूटान की ग्रामीण संस्कृति और जीवन जीने के तरीके संबंधी अनेकानेक सामग्रियों को प्रदर्शित किया है।

 प्रदर्शनी में घरों की कलाकृतियाँ, उपकरण तथा अनेकानेक वस्तुएँ संग्रहीत की गई हैं। 19वीं शताब्दी के एक तीन मंजिला घर को उसके मूल स्वरुप में ही संरक्षित किया गया है। यह घर मिट्टी एवं लकड़ी से बना है।

13*नेशनल स्टेडियम

शाम होने को थी और हम नेशनल स्टेडियम पहुँचे थे। दिन के समय यहाँ तीरंदाजी और फ़ुटबाल खेल के लिए युवा खिलाड़ियों की अच्छी खासी भीड़ होती है।

14*ताकिप्राणी संग्रहाल

रॉयल ताकिन संरक्षित वन क्षेत्र- 15 वीं शताब्दी में ताकिन को भूटान का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था। ताकिन के अलावा यहाँ पर हिरण, बारहसिंघे भी देखे जा सकते है। पूरा वन क्षेत्र मिनिस्ट्री आफ़ एग्रीकल्चर-फ़ारेस्ट के अन्तर्गत आता है।

ये सब देखकर हम वापस पारो की ओर निकल पड़े। आज शाम को जब मैं घर लौट कर आई तो आमा ने कहा-“मैं थोड़ी देर बाद पास के बाज़ार में जाऊँगी। थोड़ा सामान खरीदना है।”

“मैं भी आपके साथ चलूँगी!”

“आपको क्या लेना है?”

“मुझे थोड़े फल, सब्जियाँ खरीदनी है।”

“उसकी क्या ज़रूरत है वो तो हम पीछे से ही तोड़ लेते हैं।”

आमा मुझे पीछे ले गई। वहाँ के फल, सब्जियाँ देख कर तो मेरा मन प्रसन्न हो गया। 

मैंने मूली, चेरी टमाटर, बैंगन, हरी मिर्च तोड़ी आज मैं अपने लिए बैंगन की सब्जी बनाऊँगी। वहाँ भुट्टे भी लगे थे। मैंने एक तोड़ा उबला हुआ भुट्टा मुझे बहुत अच्छा लगता है।

आमा के किचिन गार्डन में कई सब्ज़ियाँ हैं। चेरी टमेटो, हरी मिर्च जिसकी कईं प्रजातियाँ हैं। काली, हरी, लाल, घण्टी के आकार की मिर्च जो ज्यादा तीखी भी नही होती है। खीरा, कद्दू, ब्रोकली, सेवफल, मूली, बैंगन, आलू, बिन्स भी थे, कुछ शायद मैं भूल भी गई हूँ। किसके पास क्या है? इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उसकी देने की इच्छा कितनी है? इसमें आमा से जो अपनापन मिला वो तो हमारे किसी परिवार के सदस्य जैसा ही था। 

भूटान की खूबसूरती के साथ आमा का स्नेह मेरे जीवन की एक मीठी याद बनकर हमेशा मेरे साथ रहेगा।

24/9/18

सुबह की चाय के समय मेरी बातें रोज धनेश से होती थी। हम दोनों बाहर बैठ कर चाय पीते थे। मेरे बाहर जाने के कार्यक्रम के बारे में मैं उनको सब बताती थी। वो सब सुनकर मुझे बेहतर सलाह जरूर देते थे। जो वाकई काम की होती थी।

आज बातों-बातों में धनेश ने मुझे बताया कि वहाँ जन्मदिन मनाने की प्रथा नहीं है। आजकल के बच्चे अपना जन्मदिन मनाने लगे हैं। पर पहले ये नहीं होता था। भूटान में दूरदर्शन, इंटरनेट सब कुछ सालों पहले ही आया है।

भूटानी लोग दो दिन को ही अपना जन्मदिन मानते हैं या तो एक जनवरी या फिर ग्यारह नवम्बर जब उनके चौथे राजा का जन्मदिन होता है।भूटान में जन्म के समय बच्चे की उम्र एक वर्ष मानी जाती है। वो गर्भ से उसकी उम्र की गणना करते हैं।

 मैंने इन दिनों यहाँ दो बातें देखी एक तो कहीं भी ट्रैफिक लाइट नहीं है। दूसरी गाड़ियों की नम्बर प्लेट सबकी एक जैसी है। इसका गाड़ी के महँगी-सस्ती होने से कोई मतलब नहीं है।

 सबके नम्बर साधारण तरीके से लिखे हुए होते हैं। किसी में कोई कलात्मकता नहीं होती है। जो साफ समझ भी आते हैं। नम्बर के साथ कलात्मकता की जरूरत भी नहीं है। अनुशासन का एक और सुंदर उदाहरण!