भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 5 सीमा जैन 'भारत' द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 5

5…

1*वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

चाय-नाश्ता करके मैं अकेली ही टाइगर नेस्ट के लिए निकल पड़ी।

2*टाइगर नेस्ट

टाइगर नेस्ट, यह भूटान के सबसे पवित्र बौद्ध मठों में से एक है। इस बौद्ध मठ को तक्तसांग मठ ( Taktsang Monastery) भी कहा जाता है। पारो घाटी में एक ऊंची पहाड़ी चट्टान पर टंगा-सा दिखाई देता यह मठ, अपने आकर्षण व एक कठिन चढ़ाई के बावजूद सबको अपने पास बुलाता है। यह मठ करीब 3120 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाडी की कगार पर बना है।

पहाड़ पर चढ़ाई के लिए पचास रुपये में एक लाठी मैंने ली। रास्ते से ठीक पहले एक पटरी बाजार है जहां से यादगार के तौर पर टाइगर नेस्ट से जुडी चीजों की खरीदारी की जा सकती है।

आगे बढ़ते ही चीड़ और दूसरे पहाडी पेडों का जंगल शुरू हो जाता है। घने और शांत जंगल के बीच थोड़ा सा आगे बढ़ने के बाद पानी का एक झरना है जिस पर पानी की मदद से घूमने वाले बौद्ध प्रार्थना-चक्र बने हैं।

बौद्ध धर्म में पवित्र माने जाने वाली रंग-बिरंगी पताकाएँ रास्ते से बहुत सुंदर दिखाई दे रही थी। आराम से चलते रहे तो थकान कम लगती है। छोटे कदम, लंबे और खड़ी चढ़ाई से भरे रास्ते की जरूरत है। थोड़ी ऊँचाई से पारो घाटी का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है।

लगभग आधा सफर तय करने के बाद एक बडा प्रार्थना चक्र आता है। यहाँ मुझे पानी पीने की खाली प्लास्टिक बोतलों से बने बहुत से प्रार्थना चक्र भी दिखाई दिए।

पर्यटकों की बढती तादाद से पर्यावरण पर पडते प्रभाव को कुछ कम करने का यह अच्छा प्रयास है। अच्छी बात यह है कि पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए ही भूटान में बहुत देर से और धीर-धीरे देश के इलाकों को पर्यटकों के लिए खोला गया है। आज भी इस देश में पर्यटक के तौर पर आने पर बहुत से नियम और कायदों का पालन करना पडता है।

इसी जगह के पास एक रेस्टोरेंट भी बना है जो मुख्य रास्ते से थोड़ा हट कर है। मुख्य मठ से करीब एक किलोमीटर पहले एक व्यूपांइट है। यह जगह ऊंचाई में मठ के लगभग बराबर और उसके ठीक सामने हैं। इसलिए यहां से मठ की सबसे शानदार तस्वीरें ली जा सकती हैं। इसी वजह से इस जगह को व्यू-पाइंट कहते हैं। सुनहरी छत से बना मठ बेहद शानदार लगता है। यहाँ तक पहुँच कर थोड़ी राहत मिलती है कि अब हम अपनी मंजिल तक पहुंचने ही वाले हैं।

व्यूपाइंट के बाद मठ तक पहुंचने के लिए सीधे घाटी में थोड़ी उतराई शुरू होती है। यहां से उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। सीढियों से उतरते ही एक बडा विशाल झरना है। जिसे पुल से पार किया जाता है। इस झरने को पवित्र माना जाता है।

घाटी में उतरने के बाद मठ से पहुंचने के लिए सीढियां चढ़नी पडती हैं। इन सीढियों का सफर तय करके मठ तक पहुंचा जा सकता है।

मठ पर पहुँच कर मैंने जिस अद्भुत सौंदर्य, शांति को अनुभव किया वो अनोखी थी। बस झरने के पानी की गिरने की आवाज सुनाई दे रही थी। प्रकृति खामोश थी। उस खामोशी से बातें जो करतें हैं वो जानते हैं कि हमें उसका जवाब भी मिलता है। प्रकृति से बड़ा, सधन कोई संवाद नहीं!

पहाडी की कगार पर बना मठ कई हिस्सों में बना है। कगार से साथ ऊपर उठते कई मंदिरों का समूह है। यहां कुल चार मुख्य मंदिर हैं। इसमें सबसे प्रमुख भगवान पद्मसंभव का मंदिर है जहां उन्होंने तपस्या की थी। इस मठ के बनने की कहानी भी भगवान पद्मसंभव से ही जुडी है।

टाइगर नेस्ट से जुड़ी कथा:

भूटान की लोककथाओं के अनुसार इसी मठ की जगह पर भगवान पद्मसंभव ने तपस्या की थी। पहाडी की कगार पर बनी एक गुफा में रहने वाले राक्षस को मारने के लिए भगवान पद्मसंभव एक बाघिन पर बैठ तिब्बत से यहां उड़कर आए थे।

यहां आने के बाद उन्होंने राक्षस को हराया और इसी गुफा में तीन साल, तीन महीने, तीन सप्ताह, तीन दिन और तीन घंटे तक तपस्या की । भगवान पद्मसंभव बाघिन पर बैठ कर यहां आए थे इसी कारण इस मठ को टाइगर नेस्ट भी कहा जाता है। भगवान पद्मसंभव को स्थानीय भाषा में गुरू रिम्पोचे भी कहा जाता है। यहां सबसे पहले वर्ष 1692 में मठ परिसर बनाया गया। उसके बाद समय-समय पर यहां निर्माण का काम होता रहा। कुछ वर्ष पहले 19 अप्रैल 1998 के दिन मठ में भयानक आग लगी, जिसके बाद मठ का बडा हिस्सा नष्ट हो गया था। उसके बाद इसे फिर से बनाया गया है।

कुछ देर बाहर बैठने के बाद मैंने अपनी वापसी की यात्रा शुरू की। उतरना तो अपेक्षाकृत आसान ही होता है। मैंने रेस्टोरेंट में खाना खाया। इतना थककर आने के बाद भोजन स्वादिष्ट ही लगता है। भूटान अपने पर्यावरण के प्रति बेहद सजग है। पर्यटन के दबाव के बावजूद उन्होंने अपने नियमों से समझौता नहीं किया है। साढ़े पाँच किलोमीटर की चढाई के पूरे रास्ते में एक ही रेस्टोरेंट को इजाजत दी गई है।

रास्ते में उतरते समय गाइड ने बताया कि यहाँ के गाइड और लोग मिलकर अकसर रविवार के दिन चढाई के पूरे रास्ते की सफाई करते हैं। रास्ते में कचरे और प्लास्टिक की बोतलों को एक जगह जमा करके नीचे लाया जाता है।

चढ़ाई आसान नहीं होती है। मैंने दो ग़लतियाँ भी कर दी थी। एक तो मुझे सुबह जल्दी चढ़ाई शुरू करनी थी। दूसरा मेरे साथ पर्स था। चढ़ाई के समय बैग पैक हो तो ठीक रहता है। चढ़ाई के समय मेरे कपड़े भी मुझे गर्मी दे रहे थे। 

करीब पाँच घण्टे बाद जब मैं नीचे आई तो बहुत थक गई थी। आज का दिन इससे ज्यादा घूमने का बूता मुझमें नहीं था। मैं अपने घर आ गई। आज मैं थकान के साथ बुखार की कंपकपी भी महसूस कर रही थी।

 मैंने आमा को सन्देश भेजा –“मुझे बुखार जैसा लग रहा है। ठंड भी लग रही है। आपके पास कोई दवा होगी क्या?”

“हाँ है, मैं भिजवा देती हूँ! आप खाना क्या लेंगी?”

“मुझे सिर्फ दूध व सेवफल, यदि हों तो भेज दीजिये।”

कुछ ही देर में एक प्लेट में सेवफल, दो गोलियाँ, गर्म पानी (वहाँ लोग साधरणतः गर्म पानी ही पीते हैं। दर्द में ये बेहतर भी होता है।)

कुलू ( आमा की छोटी बेटी) भी साथ में आई थी। जो एक ही दिन में मुझसे घुलमिल गई थी। उस युवती ने सब देते हुए कहा- “आपको कुछ भी जरूरत हो तो आप बता दीजिए।”

“अरे नही, ये सब ही बहुत है। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। उनको दिल से बहुत सारा शुक्रिया व शुभ रात्रि कह कर खा-पीकर मैं बहुत गहरी नींद सो गई।

22/9/18

सुबह आँख खुली तो देखा आमा के दो सन्देश थे। रात वाला सन्देश, जिसमें वो जरूरत पड़ने पर बात करने को कह रही थीं। सुबह का सन्देश, अब मेरी तबियत कैसी है?

किसी होमस्टे में इतना अपनापन मिल सकता है। आपने ऐसा कभी सोचा था क्या?

प्रेम की ऊर्जा जीवन की गति को बढ़ा देती है। कब, किससे, कितना मिला ये महत्वपूर्ण नहीं है। मिलना ही हमारे जीवन में प्रकृति का धन्यवाद है। रिश्तों की दीवार के बाहर भी प्रेम बाहें पसारे मिल सकता है। नये मित्र मिलते हैं। जो बहुत ख़ुशियाँ कईं मीठी यादें दे सकते हैं।

यहाँ कोई अपना नहीं तो गैर भी नहीं है। हम सब इस मिट्टी के अंश हैं। जो एक तरह से एक ही है। बिल्कुल वैसे ही जैसे ईश्वर एक है।

 वहाँ दो की जगह नही! हाँ जीवन के दो पहलू जरूर हैं। दिन रात की तरह जीवन के हर भाव का रंग है। हमारी नजर का फर्क, है तो वो एक ही। 

आज दूसरा दिन, मैंने पारो के स्थानीय स्थल देखने का मन बनाया। 

टैक्सी स्टैंड से मैंने आज जो टैक्सी ली वो अकेले ही तय करनी पड़ी। आज कोई भी मेरे साथ चेले ला पास जाने वाला यात्री नहीं था। मेरे चालक सोनम ने कहा –“सबसे पहले हम चेले ला पास जाते हैं। फिर शहर के बाकी स्थल देख लेंगे।“

“ठीक है!” ऊंचाई पर पहले जाना ठीक ही होता है। पहाड़ी रास्तों पर कब बारिश हो जाये पता नही!

3*चेले ला पास

चेले ला पास : चेले ला पास की अधिकतम ऊंचाई समुद्रतल से 3988 मीटर है. चेले ला पास से गुजरता सड़क मार्ग भूटान का सब से ज्यादा ऊंचाई वाला सड़क मार्ग है।

 यहाँ पहुंचते ही ठंडी हवा के झोंके न केवल पर्यटकों का स्वागत करते हैं बल्कि शरीर में ठिठुरन भी पैदा कर देते हैं। इन पहाडि़यों में रंगबिरंगी लहराती पताकाएं इस जगह की खूबसूरती में चार चाँद लगाती हैं.

पारो का सौंदर्य, हर जगह, हर कोण से अलग व अद्भुत है। शहर से बाहर जब भी आप निकालेंगे वांगचु नदी साथ में बहती चलेगी। सड़क के साथ बहती नदिया की धारा रास्तों को बहुत जीवंत सुंदर बना देती है। हल्का हरे रंग का निर्मल जल, जिसमें कोई भी वस्तु प्रवाहित नहीं की जाती है। मन्न्तों के धागे हो या पूजा के फूल यहाँ किसी के लिए भी स्थान नहीं है।

 काँच से चमकता पानी, जिसमें तल के पत्थर बहुत साफ दिखतें हैं। बहुत अच्छे लगते है। नदियाँ तो हमारे देश में भी कईं है। पर उनकी निर्मलता के बारे में हम सब जानतें हैं। क्या करें, वो हमारी दुआओं का बोझ भी उठाती हैं!

 नदी से हम पानी लें और उसका सम्मान करें ये आसान नहीं है क्या? प्रदूषित जल का भुगतान कौन करता है? ये समझने से जल की स्वच्छता का स्तर बढ़ने लगेगा। हमारे देश की नदियाँ भी काँच सी चमकने लगेंगी।

चेले ला पास समुद्र तल से बहुत ऊंचाई पर है। इन रास्तों की ठंडक, हरियाली ऊंचाई के साथ बहुत शांत, नयी-सी लगने लगती है। यहाँ आकर ठंड बढ़ने लगी थी। रास्तों पर बनी एक और खूबसूरत मोनेस्ट्री दिखाई दी, जो बहुत सुंदर थी। 

दूर पर्वतों पर बनी ये मोनेस्ट्री कुछ-कुछ टाइगर नेस्ट जैसी दिखाई दे रही थी। यहाँ से भूटान का जो नज़ारा दिखाई दे रहा था, वो प्रकृति का इंसान को दिया एक अद्भुत तोहफा ही कहा जा सकता है। 

इस ऊंचाई पर सफेद व रंगीन प्रार्थना की पताकाएँ लकड़ी के सहारे लगी लहरा रहीं थीं। मेरे चालक सोनम ने मुझे बताया कि सफेद पताका दिवंगत परिवार के सदस्यों के लिए दुआ के रूप में लगायी जाती हैं। रंगीन (लाल, पीला, नीला, हरा) अच्छे भाग्य की उम्मीद में लगाई जाती है। सोनम को याद करते हुए ये फोटो उसके सद्व्यवहार, अपनत्व को समर्पित है।

इस ऊंचाई पर भी यहाँ के खाने का सामान तथा भूटानी कलाकृतियाँ खरीदने के लिए एक दुकान थी। ये दोनों दुकानें वाहनों पर ही बना ली गई थीं। इस स्थान से ऊपर जाने पर हमें भूटान का राष्ट्रीय फूल नीला पॉपी (अफ़ीम) का फूल देखने को मिल सकता था; पर मिला नहीं! जिसकी मुझे बहुत इच्छा थी। 

हा haa

एक बहुत ही सुंदर जगह है। जहाँ मैं नहीं गई। आप वहाँ जायें! शायद वहाँ आप भूटान का राष्ट्रीय फूल (पर्पल पॉपी) देख पाएंगे! वहां का प्राकृतिक सौंदर्य चेले ला पास से भी ज्यादा मोहक है। उसकी फोटो देख कर मुझे लग रहा है कि मैंने वहां न जाकर गलती की। पर इस ऊंचाई के आगे जाना, बाकी के सारे स्थल को देखने से वंचित रहने जैसा था। साथ ही फूलों का मिलना पक्का भी नहीं था। बस हमें एक कोशिश करनी थी। 

उस ठंडी खूबसूरत जगह कॉफी पीकर हम नीचे की तरफ चल पड़े। एक सज्जन चावल का नमकीन दलिया खा रहे थे। उसे हम खाने की जगह पीना भी कह सकते हैं। क्योंकि उसमें पानी की मात्रा काफी ज्यादा होती है। भूटान में तले हुए खाद्य-पदार्थ कम खाये जाते हैं। उनका भोजन स्वास्थ्य-वर्धक ज्यादा होता है। अपने होमस्टे में भी मैंने यही देखा।