भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 6 सीमा जैन 'भारत' द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 6

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4*राष्ट्रीय संग्रहालय : इस इमारत का निर्माण 17 वीं शताब्दी में रिणपंग जोंग की सुरक्षा हेतु वॉच टावर के रूप में किया गया था। 1967 में इसे भूटान का राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित किया गया।

नए भवन में स्थानांतरित राष्ट्रीय संग्रहालय में 4 दीर्घाएं-मुखौटा दीर्घा, थंगक दीर्घा, हेरीटेज दीर्घा एवं नैचुरल हिस्ट्री दीर्घा हैं।

गोल आकृति की एक सुंदर इमारत में इसे बनाया गया है। (इस समय इमारत का मरम्मत का कार्य चल रहा था। इसलिए पास ही एक अन्य इमारत में संग्रहालय को स्थानांतरित किया गया था।) मैंने उस इमारत को बाहर के ही देखा। कहते है वो बहुत सुंदर है।

 एक कमरे में विभिन्न मुखोटे रखे गये हैं। जो यहाँ के पारंपरिक त्योहारों पर नृत्य के समय इस्तेमाल किये जाते हैं। उन्हें पहन कर ही नृत्य किया जाता है।

 जो कईं तरह के है साथ ही इनके रंग, रूप विविधता लिये हुए हैं। भूटान की वन, पशु संपदा, यहाँ को भौगोलिक जानकारी को समेटे ये एक सुंदर संग्रहालय है।

 इसका एक कमरा भारत को समर्पित है। हमारे देश के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के साथ भूटान नरेश के फोटो हमारे रिश्ते की मजबूत डोर की गवाही देतें हैं।

 एक कमरे में भूटान की जानकारियों से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री चल रही थी। जिसे लोग बड़े चाव से देख रहे थे। यहाँ कैमरा साथ में नहीं ले जा सकते हैं। सारा सामान बाहर एक लॉकर में रखकर जाना होता है।

5*रिनपंग जोंग 

एक बहुत विशाल, हरियाली, पर्वतों के सौंदर्य से घिरा आध्यात्मिक स्थल। जो सचमुच शांति के एक खूबसूरत अहसास से भर देता है। 

यहाँ कुछ देर बैठकर आप ईश्वर, प्रकृति से बात करेंगे तो जो सुकून आपको मिलेगा वो आपकी ऐसी सम्पदा होगा जिसे कोई चुरा नहीं सकता। हाँ, वो बाँटने से बढ़ने लगेगी।

यह पारो का प्रमुख मठ है. इस का निर्माण 1646 में शबदरूंग नगवांग नामग्याल द्वारा कराया गया. मठ होने के साथ-साथ इस में जिला प्रशासनिक प्रमुख का कार्यालय एवं जिला न्यायालय भी लगता है.

6*दंगसे लहखांग : स्तूपनुमा इस बौद्ध मंदिर का निर्माण 1433 में लौहपुल निर्माता थंगटोंग गैलपो द्वारा कराया गया. इस मंदिर में बने चित्र भूटान की उत्कृष्ट चित्रकला के शानदार नमूने हैं।

आज के दिन जितने स्थल देखने थे वो मैं देख चुकी थी। साथ ही मुझे कुछ खाना भी था। एक जगह खाना खाया जो बहुत ही स्वादिष्ट था। यहाँ से शेयरिंग टैक्सी लेकर मैं ₹30 में अपने होमस्टे तक पहुँच गई।

यहाँ के टैक्सी चालक बहुत मिलनसार हैं। वो हमसे बातें करना पसंद करते हैं। उनके सवाल:- “हमें उनका देश कैसा लग रहा है? यहाँ के लोग कैसे हैं? मेरे अगले दिन का क्या कार्यक्रम है?” ये जरूर होते थे।

 आख़िरी सवाल का सबसे बड़ा फायदा मुझे ही होता था। वो मेरी अगले दिन की यात्रा से जुड़ी जानकारी को पूरा कर देते या सुधार देते थे। शाम को मैं आमा से बातें करना पसंद करती थी। भूटान के जीवन से जुड़ी बातें जितनी आमा बता सकती हैं उतनी मैं कहीं से भी नहीं जान सकती हूँ।

साथ ही मुझे ये पुस्तक लिखनी है यह पहले से ही तय था तो ये बातचीत मेरी जरूरत भी थी। आज मुझे आमा ने जो बताया वो चौंकाने वाला था। मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं थी। यहाँ भूटानी व नेपाली लोगों से मिलकर यह देश बना है। आमा के पिता नेपाली व माँ भूटानी हैं। यहाँ शादी के बाद ‘वर’ अपना घर बदलता है। 

माने आमा के पति पेमा अब इस घर में आये। (हालांकि वो अब अमेरिका में कार्य करते हैं।) आमा का अपने पति के घर भी नियमित आना-जाना चलता रहता है। सिर्फ त्यौहार पर जा पाते हैं क्या? इसके जवाब में आमा ने मुझे बताया।

जब बेटियाँ ही घर को देखती है तो आज़ादी, जिम्मेदारी से जुड़े सारे सवाल खत्म हो जाते हैं। महिलाओं के प्रति सम्मान व बराबरी का, यह देश एक सुंदर उदाहरण है। साथ ही संपति बेटियों में बराबरी में बांट दी जाती है।

दहेज व पर्दा-प्रथा का यहाँ के लोगों से कोई सरोकार नहीं है। बेटा-बेटी की परवरिश एक-सी ही होती है। जो एक स्वस्थ समाज व देश की मजबूत नींव की सबसे बड़ी जरूरत है।

भूटान में जाति की बात आपस में बिल्कुल भी पसन्द नहीं की जाती है। राजतंत्र की ओर से इसे बढ़ावा नहीं मिलता है। देश को शांति के साथ आगे बढ़ाने की समझ राजा में होना ज़रूरी है। वो चाहे तो अनुशासन से इसे बाँध सकता है और स्वार्थ के चलते तोड़ भी सकता है।

एक खूबसूरत देश को उसके राजा ने बड़े जतन से सम्हाला है। ये बात मुझे आमा से बात करते हुए रोज लगती थी। जब-जब वो मुझे अपने देश के बारे में कुछ बताती थी।

23/9/18

हमारे शेफ़ धनेश ने आज नाश्ता तैयार करके रखा था। वैसे तो वो रोजाना मुझसे पूछते थे कि मैं अपना नाश्ता स्वंयम बनाऊँगी या वो कुछ बना कर दें?

आज जो तैयार था, वो था:- नमकीन दलिया, जिसमें अदरक, टमाटर, प्याज सब डला था। और वो बहुत अच्छा था। आज त्यौहार का दिन है और इसे ही खाया जाता है। आज के दिन का नाम है (blessed rainy day)। आज की सुबह वर्षा ऋतु की समाप्ति व नयी बुवाई का दिन होता है। बौद्ध परम्परा के अनुसार इसको पवित्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

अलसुबह (अधिकतर घरों में बुजुर्ग) उठकर इस परिवर्तन का स्वागत करते हैं। वो घर के बाहर स्नान करते हैं। आज के दिन स्नान का मतलब, अपने आप को बीमारियों, नकारात्मकताओं, बाधाओं से बचाने जैसा मानते हैं। यह इनकी नजर में प्रकृति का आशीर्वाद है। 

भूटान का राष्ट्रीय खेल तीरंदाजी है। आज उसे चलाया जाता है। या लकड़ी के बोर्ड पर तीर फेंक कर भी इस रस्म को पूरा किया जाता है।

आज अवकाश का दिन भी है तो चुवांग नदी के किनारे थिम्पू जाते समय लोग पिकनिक मनाते हुए दिखे। कहीं नदी किनारे लोग खेल रहे थे तो कहीं बैठे धूप व सर्दी की पहली दोपहर का आनंद ले रहे थे।

थिम्पू

 भूटान की राजधानी थिंपू है। यह शहर वांगछू नदी के किनारे समुद्रतल से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहाँ यातायात को नियंत्रित करने के लिए सड़क के बीच बनी चौकियाँ बहुत सुंदर है। यहाँ मुख्य बाजार, होटल, रेस्तरां, शासकीय कार्यालय, स्टेडियम और खूबसूरत बगीचे हैं।

थिम्पू, भूटान के पश्चिमी मध्य भाग में स्थित है। भूटान की प्राचीन राजधानी पुनाखा थी जिसे १९६१ में बदलकर थिंपू को राजधानी बनाया गया। यह नगर, रैडक नदी द्वारा बनाई गई घाटी के पश्चिमी तट पर उत्तर-दक्षिण दिशा में फैला हुआ है जिसे भूटान में 'वांग चू' या 'थिम्पू चू' के रूप में जाना जाता है।

 थिम्फु दुनिया में चौथी सबसे ऊँची राजधानी है (2,248 मीटर से 2,648 मीटर तक)। थिम्पू का अपना हवाई अड्डा नहीं है, लेकिन लगभग 54 किलोमीटर दूर पारो हवाई अड्डा है जो थिम्पू से सड़क से जुड़ा है। थिम्फू वास्तव में एक कस्बे के रूप में तब तक मौजूद नहीं था जब तक कि यह 1961 में भूटान की राजधानी नहीं बन गया। थिम्पू में 1962 में पहला वाहन दिखाई दिया और शहर 1970 के दशक के अन्त तक बहुत कुछ गाँव जैसा था।

 1990 के बाद से जनसंख्या बढ़ी है, और अब अनुमानतः 90,000 होने का अनुमान है। यहाँ का ताशी छो डोज़ोंग (पहाड़ी दुर्ग) पारम्परिक दुर्ग और मठ है जिसे जिसे शाही सरकार के कार्यालयों के रूप में उपयोग किया जा रहा है। यह पारम्परिक भूटानी वास्तुकला के श्रेष्ठ नमूना है। शाही महल के आस-पास के खेत कृषि को दी जाने वाली उच्च प्राथमिकता को दर्शाते हैं। क्षेत्र में प्रमुख फसलें चावल, मक्का और गेहूं हैं। 1966 में एक जलविद्युत संयंत्र का संचालन शुरू हुआ। शहर में हवाई जहाज उतारने की एक पट्टी है। भारत-भूटान राष्ट्रीय राजमार्ग (1968 को खोला गया) थिम्फू को भारत के भूटान के मुख्य प्रवेश द्वार, फंटशोलिंग से जोड़ता है

 यहाँ कईं पर्यटन स्थल हैं। एक दिन में पूरा थिम्पू देख पाना सम्भव नहीं है। आज हम वो जगह देख लेंगे जो खुली है। बाकी की जगह हम कल देखेंगे।

थिम्पू एक बड़ा शहर है। पारो और थिम्पू में एक बड़ा फर्क नजर आया। वो ये था कि यहाँ की इमारतें आधुनिक है। पर उनकी शैली खासकर खिड़कियाँ वैसी ही हैं जैसी पारम्परिक शैली की होती हैं। 

मेरे चालक व सहयात्री ने बताया कि ये राजकीय नियम है। खिड़कियों के डिज़ाइन को बदला नहीं जा सकता है। आप मकान आधुनिक शैली का बना सकतें हैं। पर कुछ नियम तो मानने पड़ेंगे। यही चीज मैंने फुनशीलोंग में भी देखी थी। आधुनिक भवन की खिड़कियाँ एक-सी थी। जो यहाँ की पहचान है। उसे संजोने का यही एक कड़ा नियम है; जो सही भी है।

 मुझे ये बात अच्छी लगी। देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनुशासन जरूरी है। मेरा पहला दर्शनीय स्थल जो बहुत दूर से ही दिखाई दे रहा था। बुद्ध की विशाल, मोहक प्रतिमा दूर से भी बहुत सुंदर आकर्षक लग रही थी।