भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 11 सीमा जैन 'भारत' द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 11

11…

पहला दिन-

इन सालों में उम्र का प्रभाव व सावधानी जरूरी थी। फिर मुझे कोई जल्दी भी नहीं थी। आज मैं नाश्ता करके पैदल ही घूमने निकली। सोचा आसपास आगे कोई दर्शनीय स्थल देखने जाना चाहूँगी तो चली जाऊँगी।

अपने होटल से पैदल बाहर निकल कर इन पतली सड़कों पर चलना अच्छा लग रहा था। प्रकृति का साथ कितना हसीन हो सकता है। चारों तरफ पर्वत या पेड़ दिख रहें हैं। हम शहरों में रहने वाले लोगों को ये सुकून कितना जरूरी है! ठंडी हवा, गुनगुनी धूप में अकेले चलने का सुखद अहसास मेरे तन-मन को एक नयी ऊर्जा से भर रहा था। 

पहाड़ी लोगों की आंखों में हम अनजान पर्यटकों के लिए एक अजीब सा स्नेह, स्वागत दिखता है। जो बहुत अच्छा लग रहा था। वो रास्ता बताने को, कुछ भी समझाने को तत्पर रहते हैं। हर घर के बाहर बहुत सारे पेड़, पीछे पृष्ठ भूमि में पर्वत, मेरे साथ चलते बादल इससे ज्यादा हमारी क्या जरूरत हो सकती है?

मुझे प्रकृति से बातें करना बहुत अच्छा लगता है। मैं ऐसे ही बातें करते-करते बाजार में आ गई। सड़क के दोनों तरफ खाने-पीने की दुकानें साथ ही हाथ से बुने ऊनी सामान, लद्दाख की मोनेस्ट्रिस की सुंदर पेंटिंग, चांदी और स्टोन के आभूषण और भी न जाने क्या-क्या दिख रहा था। कश्मीरी सामान भी यहाँ के बाजार में था।

आगे चौक में चारों तरफ दुकानें थी। बीच में बैठने के लिए लम्बी बेंचें लगी हुई थी। एक बेंच पर बैठ कर मैं आराम से आते-जाते लोगों को देख रही थी। ये भी कितना सुकून भरा समय है। कहीं जानें कि जल्दी नहीं, कोई काम नहीं, कोई आवाज नहीं, कोई दख़ल नहीं। यहाँ सिर्फ हम हैं, अपनी पूरी शांति के साथ। ये शांति हममें कितनी ताकत भर देती है?! 

कुछ देर वहां बैठने के बाद मुझे लगा अब खाना खा कर वापस हॉस्टल चलते हैं। जर्मन बेकरी लद्दाख में काफी प्रसिद्ध है। यहां खाना खा कर मैं बहुत आराम से चलते हुए, रास्तों की सुंदरता को देखते हुए आगे बढ़ रही थी। एक फल व सब्जी की दुकान से मैंने कुछ सलाद का सामान व कुछ फल लिये।

 मैंने सोचा शाम को मैं अपने लिए इनमें से ही कुछ पका कर खा लूंगी। जब अपने हॉस्टल में आई तो मैं कुछ देर बाहर बैठी। वहीं बैठकर मैंने शाम की चाय पी। अब इस समय सुबह घूमने को निकले लोग वापस आ रहे थे। कुछ लोगों से एक स्माइल के साथ हैलो अपनेआप ही हो जाती है तो कुछ अपनी धुन में मगन आगे बढ़ जाते हैं।

शाम होने लगी थी। हवा एकदम ठंडी लग रही थी। और अब, तेजी से बहने लगी थी। कुछ देर पहले मैं बढ़े आराम से ढलती धूप का आनंद ले रही थी पर अब मुझे ठंड लगने लगी। नींद की आगोश में समाते गहराते बादल, दूर से काली चादर ओढ़े पर्वत देखकर लग रहा था अब ये सब अपने आराम की तैयारी में जुटे हैं।

 इस गहरी शाम के गहरे रंग को अपनी आंखों में गहरे तक जमा कर मैंने अपने कमरे की तरफ रुख़ किया। इस समय किचन में कुछ लोग अपनी कुकिंग कर रहे थे। मैंने सोचा थोड़ी देर कमरे में आराम करती हूं उसके बाद किचन में जाकर देखती हूं कि मुझे क्या खाना पकाना है।

मेरे कमरे में एक भारतीय युवती थी। हम दोनों ने आपस में अपने परिचय का आदान प्रदान किया। वह लखनऊ की एक बैंक में मैनेजर, अविवाहित, साथ ही ट्रेवलिंग की बेहद शौकीन युवती थी। वह साल में दो बार ऐसे ही घूमने निकलती है। वह देश- विदेश में कई जगह घूम चुकी थी।

सुबह उसका घूमने का क्या प्रोग्राम है? यह बात हमनें रात में ही की थी। लद्दाख में सुरक्षा कारणों से मोबाईल के नेटवर्क की थोड़ी परेशानी है। सुबह जल्दी उठना है। पहाड़ों पर घूमने के लिए जल्दी निकलना ही ठीक होता है क्योंकि वहां शाम जल्दी होती है। पांच बजे के बाद ठंड एकदम से बढ़ जाती है।

दूसरा दिन 

आज का पूरा दिन शिखा के साथ बहुत अच्छा रहा। हमने इन जगह को साथ में देखा। साथ में दोपहर का खाना खाया था और लौटते समय जर्मन बेकरी से शिखा ने अपने घर के लिए कुछ बिस्किट्स लिए थे। वह लेते हुए हम हॉस्टल वापस आए थे। आज के दिन हमने जिन स्थानों को देखा उनका साथ ही हर दिन देखे गए स्थानों का ब्यौरा एक साथ दे रही हूं।

 किसी जगह का आनंद सिर्फ वहां के दर्शनीय स्थलों में नहीं होता है वहां के रास्तों में भी होता है। या कहें, तो वह पूरी जगह ही एक अजीब-सी महक लिए होती है। उस खुशबू को हम सिर्फ पर्यटन स्थलों पर नहीं पूरे रास्ते महसूस कर सकते हैं। लद्दाख के साथ भी कुछ ऐसा ही है। एकदम शांत रास्ते, आसपास जहां भी नजर जाए वहां वनराज की तरह गर्व से विराजे पर्वत। रास्ते में बने हुए छोटे-छोटे गोंपा।

 बहुत साफ आकाश, निर्मल हवा, प्रदूषण के निम्न स्तर पर यह स्थान हम पर्यटकों की गाड़ियों की आवाजाही के कारण ही गुलज़ार है। एक गोंपा से दूसरे गोंपा तक भिक्षु अधिकतर पैदल चलते हुए ही दिखाई देते हैं। लद्दाख में सड़कें बहुत अच्छी हैं। जहां सेना की छावनी हो, वहां सड़कों का मेंटेनेंस बहुत अच्छा होता है। यह यहां हर सड़क पर देखने को मिला।

1.हॉल ऑफ फेम

लद्दाख में भारतीय सेना की वीरता व कुर्बानियों का इतिहास समेटने वाले हॉल ऑफ फेम को एशिया के सर्वक्षेष्ठ 25 संग्रहालयों की सूची में शामिल किया गया है। यह संग्रहालय देश के पांच संग्रहालयों में सबसे ऊपर है।

लद्दाख में आने वाले सभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। हर साल करीब डेढ़ लाख पर्यटक हॉल ऑफ फेम में आकर देखते हैं कि भारतीय सेना ने लद्दाख में देश की सरहदों की रक्षा के लिए क्या-क्या कुर्बानियां दी हैं। हॉल ऑफ फेम का निर्माण लेह में 1986 में हुआ था।

इसमें लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर व कारगिल में पाकिस्तान से हुए युद्धों के साथ अन्य सैन्य अभियानों में भारतीय सेना की उपलब्धियों के साथ क्षेत्र की कला व संस्कृति को भी संजोया गया है।

यह संग्रहालय लोगों में देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देता है। पिछले तीन दशकों के दौरान हॉल ऑफ फेम पर्यटकों का एक प्रमुख केंद्र बनकर पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है।

देश के साथ विदेश से भी पर्यटक गर्मियों के महीने में यहां आकर भारतीय सेना की वीरता के कायल होते हैं। हाल ही में हॉल ऑफ कांपलेक्स को भी विकसित किया गया है।

इसमें युद्ध स्मारक के साथ वार सीमेट्री, एडवेंचर पार्क बनाकर लोगों को समर्पित किया गया है। इस पूरे हाल ऑफ फेम को देखने के लिए कम से कम दो – तीन घंटे का समय लग जाता है यदि हम हर कमरे में रखी व लिखी गई सूचनाओं को ध्यान से देखें और पढ़े। यह संग्रहालय हमें युद्ध के समय से जुड़ी कई जानकारियां भी देता है। हम जान पाते हैं कि हमारे वीर सैनिक विपरीत परिस्थितियों में कैसे अपने काम को अंजाम देते हैं!

2.ड्रूक पदमा कारपो स्कूल

फिल्म के बाद यह दीवार इतनी फेमस हुई कि लद्दाख आने वाले टूरिस्ट इस स्पॉट को देखने जरूर आते हैं। इस वजह से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने लगी। कैंपस में गंदगी भी फैलने लगी। इसी वजह से स्कूल प्रबंधन ने इस दीवार को अब गिरा दिया है।

कैंपस में टूरिस्ट्स की एंट्री भी अब बैन कर दी गई है। स्कूल की प्रिंसिपल स्तंजिन कुंजग ने बताया कि स्कूल के कैंपस में प्लास्टिक की बोतल या बैग पूरी तरह से बैन है। लेकिन टूरिस्ट की भीड़ बढ़ने से यहां गंदगी फैलने लगी थी। इसी वजह से यह फैसला लिया गया। फिल्म से जुड़ी कई चीजों को स्कूल से हटाया जा रहा है। गिराई गई दीवार के जैसी ही एक दीवार कैंपस के बाहर बनाकर उसे टूरिस्ट के लिए एक स्पॉट बना दिया गया है।

जब मैं लद्दाख गई थी तो हम स्कूल के अंदर जा सके थे। उस समय बच्चों के स्कूल बन्द थे। यह बोर्डिंग स्कूल मेरे जीवन का सबसे लुभावना स्कूल था। स्कूल के अंदर जाने से पहले एक पर्मिशन पूरे ग्रुप के लिए ली गई थी। हम सब एक कतार में चल रहे थे। आगे हमारी जो गाइड थीं उनके कहे रास्ते पर ही हम जा सकते थे। आगे – पीछे या इधर उधर बिल्कुल भी नहीं। 

 ड्रूक पदमा कारपो स्कूल की स्थापना 2001 में हेमिस मॉनेस्टरी के 12वें गुरू ग्यालवंड ड्रूकपा रिंपोंछे ने की। लेह-मनाली रोड पर 400 कनाल में यह स्कूल बना हुआ है। फिल्म के बाद यह स्कूल इतना पॉपुलर हुआ लोग असली नाम के बजाय इसे रैंचो का स्कूल ही बुलाने लगे। प्रिंसिपल कहती हैं-यह उस फिल्मी स्कूल से 100 गुना बेहतर है। इसे 8 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुके हैं।

 

कुछ अलग

  1. लाइफ स्किल: हॉस्टल मैस में बच्चों को लाइफ स्किल की ट्रेनिंग दी जाती है। यहां सब्जी काटना, बर्तन धोना, स्टोर से सामान भी बच्चे ही लाते हैं।
  2. नेटिव डे: लद्दाख के ट्रेडिशनल फूड के कल्चर को मेंटेन रखने के लिए हर बुधवार को स्कूल में नेटिव डे मनाया जाता है। इस दिन हॉस्टल की मैस में लद्दाख का ट्रेडिशनल खाना ही बनता है।
  3. आर्ट रूम: स्कूल में जो भी वेस्ट मैटिरियल होता है उसे रिसाइकल कर आर्ट रूम में यूज करते हैं।
  4. मैथ्स लैब: मैथ्स के सवालों को बच्चे एक्टिविटी से सीखते हैं। मैथ्स लैब की दीवारों पर कई इक्वेशन बनाई हैं।बच्चेजिससे सवाल हल करते हैं।

3.मंजुश्री मंदिर

मंजुश्री मंदिर में मंजुश्री देवी की चार अलग-अलग मूर्तियां हैं जो चार तरह के रंग – स्वर्ण, केसरी, नीला और हरे रंग से सुशोभित एक दूसरे की ओर पीठ किए हैं। इस मंदिर की छत पर विभिन्न प्रकार के नमूने बने हैं, जो कपड़ों पर बने चित्र की तरह लगते हैं। जिनमें शिकार के दृश्य बिखरे पड़े हैं। जो विभिन्न प्राणी जैसे बाघ, घोडा तथा विभिन्न अस्त्र जैसे धनुष-बाण आदि को रेखांकित करते हैं। आल्ची मठ में मैंने पहली बार चित्रकारी के लिए काले और सफ़ेद रंग का प्रयोग होते देखा, वरना अक्सर ये रंग पट्टिका से गायब होते हैं, या फिर इनका प्रयोग जरूरत पड़ने पर ही किया जाता है।

4.हेमीस मठ

अपने शोख रंगों से सजा यह हेमिस मठ या हेमिस गोम्पा जम्मू और कश्मीर राज्य में लेह के दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 45 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह एक बौद्ध मठ है, जो लद्दाख के सभी मठों से आकर्षक और ख़ूबसूरत है। यह मठ लगभग 12000 फुट की ऊंचाई पर सिन्धु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। इस मठ का निर्माण 1630 ई में स्टेग्संग रास्पा नंवाग ग्यात्सो ने करवाया था।

 1972 में राजा सेंज नामपार ग्वालवा ने मठ का पुर्ननिर्माण करवाया। हेमिस मठ धार्मिक विद्यालय धर्म की शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। तिब्बती स्थापत्य शैली में बना यह मठ बौद्ध जीवन और संस्कृति को प्रदर्शित करता है। मठ के हर कोने-कोने में कुछ न कुछ विशिष्ट है और कई तीर्थ भी हैं लेकिन पूरे मठ का आकर्षण बिंदु ताँबे की धातु में ढली भगवान बुद्ध की प्रतिमा है।

 भगवान बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्‍थापक थे जिन्‍होने इस धर्म की नींव रखी थी और अपने उपदेशों से जनता में शांति का संदेश फैलाया था। मठ की दीवारों पर जीवन के चक्र को दर्शाते कालचक्र को भी लगाया गया है। मठ के दो मुख्‍य भाग है जिन्‍हे दुखांग और शोंगखांग कहा जाता है।

वर्तमान में इस मठ की देखरेख द्रुकपा संप्रदाय के लोग किया करते है, यह लोग बौद्ध धर्म के ही अनुयायी हुआ करते हैं। मठ में जून के आखिर में या शुरूआत जुलाई के महीने में भारी सख्‍ंया में लोग आते हैं और गुरू पद्मसंभव के लिए वार्षिक उत्‍सव का आयोजन करते हैं। गुरू पद्मसंभव तिब्‍बती बौद्ध धर्म की परिचित हस्‍ती हैं। यहां मैंने और शिखा ने कई फोटो लिए थे। साथ ही नाश्ता भी किया था।

5.लद्दाख शांति स्तूप

लद्दाख शांति स्तूप शांति स्तूप, जम्मू एवं कश्मीर में लेह के चंग्स्पा के कृषि उपनगर के ऊपर स्थित है, जिसका निर्माण शांति संप्रदाय के जापानी बौद्धों ने कराया था। यहाँ महात्मा बुद्ध की अनुपम प्रतिमा स्थापित है। लेह आने वाले पर्यटक इस स्थान तक जीप और टैक्सियों के माध्यम से पहुँच सकते हैं। साथ ही यहां से लद्दाख शहर का नज़ारा बहुत सुंदर लगता है।