अध्याय 9
रंजीता हाथ मलने लगी। पति को परेशान होकर देखा।
"क्यों जी.... यह.... सुरभि को किडनैप करके ले जाने वाले बिल्कुल चुप हैं....?"
सुंदरेसन चिल्ला कर बोले।
"मुझसे पूछे तो....?"
यहां से वहां चलने वाला दामू रंजीता के सामने आकर चिड़चिड़ाता हुआ खड़ा हुआ। "मैंने पहले ही कह दिया था पुलिस के पास चले जाएंगे ! तुमने नहीं माना.... सुरभि को किडनैप करके जाने वाला इतनी आसानी से उसे छोड़ देगा क्या?"
"अब... क्या करें रे...?"
"क्या करें...? जाकर उस दीवार पर सर मार कर रो.....! मेरी बात मानते तो इतनी देर में सुरभि अपने घर होती।"
रोने वाली रंजीता अपने साड़ी के पल्लू से आंखों को पोंछकर उठी - टेलीफोन को छूकर रिसीवर को उठाया - डायरेक्टरी को देखकर फिर - कुछ नंबरों को घुमाया। कुछ आवाज आई। "मदर टेरेसा अनाथाश्रम....."
"हां"
"शारदा मणि बोल रहीं हैं?"
"हां....!"
"थोड़ी देर पहले मैं और मेरे पति आपके आश्रम के लिए एक लाख रुपए डोनेट किए थे। उसके बारे में किसी आदमी ने आप से कांटेक्ट करके विवरण पूछा था क्या?"
"नहीं...."
सभी जगह उसने फोन करके पूछा सब जगहों से नहीं में ही उत्तर आया।
जहां-जहां डोनेट किया सब जगह पूछने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। रंजीता सुंदरेसन के पास आई। "हमने जहां-जहां पैसे दिए वहां किसी ने भी फोन करके कुछ नहीं पूछा..... किसी ने हमें धोखा दिया है.... और भी देर करना ठीक नहीं। पुलिस स्टेशन चलते हैं...."
"दस मिनट ठहरो रंजीता...?
"नहीं जी.... और समय गवाना ठीक नहीं, अरे दामू....!
"क्या है दीदी....?"
"पुलिस को फोन करो।।"
दामू वहां से सरका -
टेलीफोन की घंटी बजी।
दामू ने उठाया।
दूसरी तरफ से प्रोडूसर कनकू बोले "जो समय दिया वह खत्म हो गया.... कहां है सुरभि...?
"सुरभि आज नहीं आएगी......"
"क्या.... नहीं आएगी?... क्यों...?"
"सबको कारण बताते नहीं रहेंगे..... चुपचाप रिसीवर को रखकर जा...."
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