अध्याय 11
दामू, गुस्से और चिड़चिड़ाहट की आवाज में "दीदी...." बोला।
सोफे पर थक कर बैठी हुई रंजीता, फिकर भरी आंखों से देखने लगी।
"क्या हुआ.....?"
"आप और जीजाजी कितने देर ऐसे ही बैठे रहोगे.....? आज पूरे दिन ऐसे ही बैठे रहो तो भी सुरभि के किडनैपर का कॉल नहीं आएगा । हमारा पुलिस में इस समस्या को ले जाना ही ठीक रहेगा।"
"दामू तुम... अभी भी बिना सोचे-समझे बात कर रहे हो ! समस्या को पुलिस के पास ले जाना सही बात नहीं है। बात पुलिस तक जाएगी, तो तुरंत अखबारों में फैल जाएगी..... सुरभि की इमेज इससे प्रभावित होगी..... सिर्फ वही नहीं अपने कालेधन के बारे में भी सबको पता चल जाएगा...."
"तो फिर..... एक काम करें?"
"क्या....?"
"मेरा एक फ्रेंड क्राइम ब्रांच में ऑफिसर है। उसका नाम लक्ष्मण है। मैं सारी बातों को बताकर उसको लेकर आता हूं। विषय बाहर ना आए ऐसे इन्वेस्टिगेशन करके सुरभि को वे छुड़ा लेंगे। अपने ब्लैक मनी के बारे में भी किसी को पता नहीं लगेगा ।"
रंजीता, सुंदरेशन की तरफ मुड़ी। "क्यों जी, मेरा भाई कह रहा है ऐसा करें क्या....?"
सुंदरेसन अपने दाढ़ी को रगड़ने लगे।
"मुझे यही सही योजना लग रही है....! दामू, उसका नाम क्या बताया ?"
"लक्ष्मण"
"विश्वास करने लायक है ना...?"
"वह मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं..."
"ठीक.... जाकर बात बताकर उसे लेकर आ जा..... सुरभि को छुड़वा दें तो एक बड़ा अमाउंट उन्हें दे देंगे ऐसी पक्की बात कर लो...."
"ठीक...."
दामू सिर हिलाकर, बाहर खड़े हुए गाड़ी की तरफ गया। वह कार के कंपाउंड के बाहर जा ही रहा था, तो टेलीफोन की घंटी बजी।