रेडीमेड स्वर्ग - 10 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रेडीमेड स्वर्ग - 10

अध्याय 10

शटर धीरे-धीरे उठा - बाहर जो प्रकाश था वह अंदर आकर चिपक गया।

ड्राइवर धनराज - क्लीनर नागु पैरों को फैलाकर खड़े थे - धनराज के हाथ में रिवाल्वर था।

नागु होशियार बन कर चिल्लाया ।

"धनराज भैया एक के हाथ में हथौड़ा है।"

उसके बोलते समय ही --

हेमंत ट्रक के ऊंचाई से जो हथौड़े को टेढ़ा कर धनराज पर निशाना लगाकर झपटा।

धनराज ने हथौड़े को एक हाथ से पकड़ लिया। रिवाल्वर को पकड़ने आए शाहिद को लात मार कर गिरा दिया। वह पीछे से आकर दोबारा झपटा।

कार के पास जा रहे सुरभि को - नागु तेजी से भागकर उसका पीछा किया।

धनराज, पलक झपकने के पहले - रिवाल्वर को घुमाकर - शाहिद के छाती पर - गोली आवाज के साथ चली।

"अम्मा.... अम्मा...." शाहिद जमीन पर गिर पड़ा।

नागु सुरभि के सिर के बालों को पकड़ कर खींच कर लेकर आया।

शांत हो रहे शाहिद को आंसू भरी आंखों से हेमंत ने देखा। धनराज ने उसके कंधे को ऊंचा किया ।

"और थोड़ी देर में यह मर जाएगा..... आगे-पीछे सोचे बिना काम करें तो ऐसा ही होगा - खून बहा के मरना पड़ेगा....

"अबे.... अबे.....!"

हेमंत चिल्लाते हुए - धनराज को मारने की कोशिश की - उसने हेमंत के गर्दन को पकड़ा।

"चारों तरफ देख....? एक पेड़, मक्खी, मच्छर, कौवा कुछ नहीं..... बेकार पिस्तौल से मर मत! अच्छे लड़के जैसे वहां जाकर खड़े हो......" उसे पकड़ कर धक्का दिया।

धनराज धीरे से चलकर - बिना हिले-डुले पड़े शाहिद के शरीर को - लात मार के दूर किया। शरीर एकदम से गिर गया। सुरभि स्तंभित होकर खड़ी रही।

"अबे.... नागु ...?"

"क्या बात है...?"

"शेड के पीछे एक गहरा खड्डा खोद इसे उसमें गाड़ दो... गाड़ने वाली जगह पहचान में नहीं आए - दो-तीन पौधों को उखाड़ कर- वहां पर लगा देना....."

"ठीक है भैया...."

जब नागु शाहिद के शव के पास गया तो - धनराज, हेमंत और सुरभि को पिस्टल के नोक पर शेड की ओर लेकर गया।

शेड में एक अजीब सी बुरी गंध आ रही थी। अंदर खाली डिब्बे। घास फूस और बोरिया थीं।

"दोनों इस बेंच पर बैठो....."

शरीर कांपते हुए वे दोनों बेंच पर बैठे। धनराज एक कुर्सी को खींचकर उस पर बैठा। रिवाल्वर से अपने नाक के किनारों को खुजाते हुए सुरभि को देखा।

"तुम्हारा नाम क्या है....?"

"सुरभि"

सिनेमा में गीत गाने वाली लड़की हो ना....? तुम्हारी फोटो को पत्रिकाओं में तो बहुत देखा है...." - कहकर हेमंत की तरफ मुड़ा।

"तुम्हारा नाम क्या है छोटे....?"

"हेमंत...."

"तुम्हारा और सुरभि का क्या रिश्ता है....?"

"मैं... हम दोनों एक दूसरे को चाहते हैं।"

"ओह....! लव....? परफेक्ट जोड़ी है....!

पिस्तौल से मरने वाला वह कौन है ....?"

"मे...मे... मेरा फ्रेंड ....."

"नाम....?"

"शाहिद..."

हेमंत गुस्से से धनराज से बोला। "यह देखो.... तुम जैसे सोच रहे हो वैसे हम खराब आदमी नहीं हैं। एक अच्छे काम में रुपए उपयोग में आना चाहिए इसलिए खेल-खेल में बनाई यह एक योजना थी।

"तुम्हारी योजना क्या थी विस्तार से बताओगे ?"

हेमंत ने बताया।

उसके बोलकर खत्म करते ही - धनराज के हाथ में जो रिवाल्वर था उससे वह गर्दन को खुजाने लगा फिर सीधा हुआ। सुरभि की तरफ मुड़ा। "ऐसा है तो तुमने जो कमाया है वह घर पर बहुतायत से है बोलो....?"

आंखों में आंसू लिए हुए सुरभि ने हाथ जोड़ दिया.... ।

"हमें छोड़ दो.... मेरे घर जाते ही जितने रुपए तुम्हें चाहिए मैं दे दूंगी...."

धनराज हंसा। "तुम्हें तो अपने घर में कुछ भी पावर नहीं है...? तुम कैसे पैसे दे सकोगी...? पैदा किए हुए मां-बाप को 'ब्लैकमेल' करके ही धर्म के लिए पैसे दे रही हो.... तुम हमें अलग तरीके से रुपए कैसे दे पाओगी... इसलिए...."

हेमंत और सुरभि मौन हुए - धनराज ने सुरभि को देखा और आगे बोलने लगा।

"इसलिए..... आप लोगों ने जो शुरू किया यह किडनैपिंग ब्लैकमेलिंग खेल उसे मैं कंटिन्यू करूंगा। मैं जो डिमांड करूंगा वह रूपए मेरे हाथ में आते ही तुम दोनों को छोड़ दूंगा। तब तक तुम्हें इस गोडाउन में ही रहना पड़ेगा..... यहां से बचकर निकलने की सोचो..... तो शाहिद के पास ही तुम दोनों का भी गड्ढा खोदना पड़ेगा....."

नागु, हाथ मे लगे हुए मिट्टी को झटकाता हुआ अंदर घुसा। वह जो कपड़ा पहना था उस पर भी मिट्टी लग रही थी।

"क्यों नागु, शाहिद को दफना दिया....

"हो गया"

“इतनी जल्दी...?"

“यह पथरीली जमीन थोड़ी है...? काली मिट्टी की जमीन थी ना ? दस  मिनट के अंदर खड्डा खोदकर.... शरीर को उस में डाल कर बंद कर दिया...." नागु के बोलते बोलते - हेमंत की आंखों में आंसू भर आए । सुरभि, सहन न कर पाई बिलख पड़ी और उसने दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया। धनराज उनके रोने पर ध्यान न देकर - नागु से बोलने लगा।

"कार को ले जाकर गोडाउन के अंदर रख दो।"

वह रख कर आया।

"दोनों जनों को अलग-अलग कुर्सियों में बैठाकर बांध दो....."

उसने किया।

"तुम यहीं रहो..... मैं ट्रक को लेकर शहर की तरफ जा रहा हूं.... सुरभि के घर फोन करके - अपने जरूरत के अमाउंट को बता कर..... वैसे ही मैं खाने के लिए कुछ लेकर आता हूं।"

"तुम जाकर आओ भैया....!" मैं देख लूंगा।"

सुरभि के घर के फोन नंबर को पूछ कर धनराज, अपने हाथ में जो रिवाल्वर था, उसे नागु को देकर ट्रक की तरफ गया।