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होली उमंग

1

होली के रंग गुलाल
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होली है डाल,लाल रंग वो गुलाल,
लाज शरम आज कहाँ, ना कोई सवाल।
बड़ा छोटा एक संग करें मिल बवाल,
मस्ती में डूब जाएं चलें वेढब चाल।
गाँव नगर ढोल बजे और बजे झाल,
फागुन के उल्लास में हो गये बेहाल।
जोगीरा के शा रा रा में ना कोई सुरताल,
भंग के तरंग में सब हैं गोलमाल।
होली है डाल लाल रंग वो गुलाल।
होली हमजोली बना और बिन धमाल,
होली भौजी शाली बिना और बिना गाल।
छूट ना जाये कोई,रंग दो रंग डाल,
प्रेम की पिचकारी में जादू है कमाल।
होली है डाल लाल रंग वो गुलाल।

2
हैप्पी होली
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कभी कभी तेरी छवि,सबको लुभाती है,
कभी कभी तेरी हँसी,सबको हँसाती है,
कभी कभी तेरी ब्यूटी,सबको फँसाती है, होली में कोई शिकवा नहीं,तू रंग वर्षाती है।
होली -होली,हैप्पी होली,
होली- होली ,ही-ही होली,
सबको जीना सखाती है ।
होली है •••।
ओठ तेरी गुलाबी गुलाबी,
चाल तेरी शराबी शराबी,
सबको झटके लगाती है।
मुखरा तेरा चंदा का टुकड़ा,
बाल म तेरे फूलों का गजरा,
आँख म तेरे सुरमे का कजरा,
सबकी जान ले जाती है।
होली -होली ,हैप्पी होली ,
होली- होली ,ही -ही होली ,
सबको जीना सखाती है ।
होली है •••।
साल दर साल चेहरा तेरा,
साल दर साल नखरा तेरा,
साल दर साल घूँघटा तेरा,
हँसकर होली सजाती है।
होली -होली,हैप्पी होली,
होली -होली ,ही- ही होली,
सबको जीना सखाती है ।
होली है •••।
तेरी अदा सबसे जुदा,
तेरी आँखें जिन पर फिदा,
सारा जमाना है,
रंगों की रंगत, हर दिल की मन्नत,
सब बैर मिटाना है,
होली -होली, हैप्पी होली,
होली -होली, ही -ही होली,
सबको लुभाती है ।
होली है •••।
3
बुजुर्गों की होली
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देख अपनी बूढ़ी जवानी,
ओ जवानी याद आयी।
देख अपनी खिचड़ी मूँछें,
मूँछों की कहानी याद आयी।
देख होली की रवानी,
फिर से उमंगें लौट आयी।
सुनो रे सब होली का बखान,
मैं भी था बाँका जवान,
हिलोरें लेता था जहान,
जब चलता फगुआ का गान,
अलाप लम्बी,थाप गहरी
ढ़ोलक मंजीरे का तिक धिक तान,
खड़कियां खुल जाती थी
ओठों पर लिये नशीली मुस्कान,
सालियां और भाभियां,
हो जाती थीं मुझ पर क़ुर्बान ।
अब सजनी की चाल लचीली,
होली पुरानी याद आयी,
देख अपनी बूढ़ी जवानी,
वो जवानी याद आयी,
होली के दिन हम भूल बैठे
युवाओं की रसीली होली आयी।
4
होली गीत
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रंग डारो रे,रंग डारो रे कन्हाई रंग डारो रे।
भर भर मारो पिचकारी ,कन्हाई रंग डारो रे।।
राधा के मन में तेरी सूरत गोपियां कहे हमारो रे।
रंग डारो रे•••
वृन्दावन में धूम मची है,
सखियन सारी झूम रही है,
तन पर घंघरा चोली कसी है,
अब ना श्याम तड़पाओ रे,
रंग डारो रे कन्हाई रंग डारो।
मामा कंस की त्योरी चढ़ी है,
घर घर कृष्ण की जादू चली है,
बाग बाग़ीचा कलि खिली है,
अब ना कान्हा भरमाओ रे,
रंग डारो रे कन्हाई रंग डारो रे।
आज का दिन है बड़ा सुहाना,
भेदभाव नहीं मन में लाना,
सबको हँस हँस गले लगाना,
होली के दिन आयो रे।
रंग डालो रे कन्हाई रंग डालो रे।
रंग भरी सूरत बड़ी ही सच्ची,
होली की मस्ती सबसे अच्छी,
आज तू सबको हँसाओ रे,
रंग डालो रे कन्हाई रंग डालो रे।
*
मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह
कवि/कहानीकार
सहरसा।

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