शायरी - 10 pradeep Kumar Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 10

ये चाय भी बिल्कुल तुम्हारे जैसी हो गई है,
जब तक लबों को ना छू ले ज़िन्दगी बिस्तर पर ही पड़ी रहती है।

अब वो मुझसे बिछड़ जाने के बाद मोहब्बत का हिंसाब मांगते हैं,
मना कर दिया, अगर देदेते तो दोबारा मोहब्ब्त हो जाती उन्हें हमसे।

अभी हम उस मोहब्ब्त के हिसाब में उलझे हुए हैं तो जिंदा है,
उन्हें दे कर हम अपनी रात दिन की कमाई क्या जिंदा रहते नहीं, मर जाते।।

ये तो उनकी आंखों की चमक है जो हमे रात दिन दिखाई देता है,
वरना हमने तो कबकी मूंद ली थी अपनी आंखे।

हमें मोहब्बत का नशा था, अब चाय से है।
हमें उनका भी नशा था, अब उनकी याद से है।।


दिल जिगर जान प्यार मोहब्बत इश्क़, तोहफे इंतज़ार मिलन।
जुदाई बेवफ़ा यादें, सब कुछ झूठा है क्योकि तुमने कहा है।।

मैं लिखता जा रहा हूं वो हर एक लफ्ज पढ़ती जा रही है
अब ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं शायरी होती जा रही है

वो इस तरह नजर आते हैं, जैसे कड़ाके की सर्दी हो और धूप निकल आई हो।

खुद को आईने के सामने क्यों लाते हो बार बार किसी का शर्माना अच्छा नहीं लगता है
ये तो मोहब्बत है जो सब कुछ करवा देती है वर्ना इन गालों पर लाली का लगना अच्छा नहीं लगता है

नसीहत हमें दे रहे थे वो दूर रहने की
तमाशा तो अब होगा जब वो खुद मनाने आयेंगे

मैं तुम्हें देखूं और तुम्हारे देखने पर नजर अंदाज करूं
इतनी मोहब्बत होने में अभी वक्त लगेगा प्रदीप
अभी तुम्हें पाना है फिर तुम्हें जताना है फिर तुम्हें खोना है
फिर कहीं जा कर तुम्हें देखना और नजर अंदाज करना है

पाने की भीड़ थी तुम्हें मैं खोता चला गया
सब देखते रहे तुम्हें मैं तुम्हारा होता चला गया

कोई कूड़ा उठा कर झोपड़ी संजोता है, तो कोई तोड़ कर आशियाने को महल संजोता है।
कोई रूखी सूखी खा कर भी मौज में रह लेता है, तो कोई मालपुआ की थाली भी आधी छोड़ जाता है।
ज़िंदगी जीने का हुनर सब को कहा आता है जनाब
कोई महलों के पंखों में हीं झूल जाता है, तो कोई झोपड़ी में भी मौज से बीतता है।।

वो कितने अमीर हैं जो फुटपाथ पर सोते हैं, सरकार मेरी गरीबों के लिए घर बना रही है।।

एक बड़ी सी कार देख कर कोई मुस्कुरा कर क्या झांक ली, ऐसे कांच बन्द हुआ जैसे एक अमीर ने भिखारी से जान मांग ली।।

अंधेरे में जलते हुए उस चिराग का क्या कुसूर, खता तो उस हवा की है जो जलता कर छोड़ गई।।

ऐ खुदा इतने अमीर लोग तू कैसे बनाता है, जो मांग कर लाते हैं और बांट कर खाते हैं।।

चल बीमार को दवा देते हैं, उसे मोहब्बत में लगा देते हैं।
वो आए या ना आए तेरी कबर पर, तेरा फर्ज है उसे बता देते हैं।।
कल ऐसा ना हो इल्जाम लगा दे तुझ पर, बेवफा था चला गया दगा दे कर।
वो ना मिले तो उसके दीवार पर एक नोटिस लगा दे, बीमार मोहब्बत का था राम राम जाते जाते।।

गजब की आशिक़ी देखी हमने एक पत्थर की, जबसे दिल लगा बैठा तो मोम हो गया।।

मिरो गालिब सा तराना लिखना अब तो मुमकिन नहीं, अब कोन मोहब्बत में जान देता है।।