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छल - Story of love and betrayal - 16

भैरव ने प्रेरित के कंधे पर हाथ रख कर कहा "फिर….फिर क्या हुआ साब जी"?

प्रेरित ने जेल की सलाखों से बाहर देखते हुए कहा, "एक दिन मेरा फोन लगातार बजता जा रहा था, मैं मीटिंग में बिजी था और फ्री होते ही जब फोन किया तो प्रेरणा उधर से रो रही थी,वो बस इतना ही कह पाई की आप सिटी हॉस्पिटल आजाओ, मैं घबरा गया और सीधा अस्पताल गया, जहां पता चला कि मां का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया था, उन्होंने अपने दोनों पैर खो दिए थे, मैं गुस्से से पागल हो गया और पुलिस को छानबीन करने को कहा, मैं मां के पास बैठा रो रहा था, मां को इस हाल में देखकर मेरा दिल फटा जा रहा था"।


तभी बाहर से आवाज आई, "ओके मैम.. मैं चलता हूं, भगवान करे आंटी जी जल्दी ठीक हो जाएं" | मैंने आवाज सुनी तो खड़ा हो गया और उस आदमी को बुलाया तो प्रेरणा ने बताया, "इन्होंने वक्त पर पहुंचकर मुझे और माँजी को अस्पताल ले आए, वरना माँ जी को तो बचाना भी…" |

प्रेरणा इतना ही कह सकीं और रोने लगी |

प्रेरित ने उस आदमी का नाम पूछा तो उसने कहा," मैं नितेश वर्मा, वैसे आप मुझे नहीं जानते लेकिन मैं आपको बहुत अच्छे से जानता हूं" |

प्रेरित (अचंभे से) - मुझे कैसे जानते हो" ?

नीतेश - "अरे सर, हर जगह, न्यूज़पेपर बैनर, शहर भर में आप ही तो छाए हैं, आपको कौन नहीं जानता होगा "|

प्रेरित ने अपना कार्ड देते हुए कहा, "दोस्त कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो, प्लीज कॉल मी एनी टाइम, एंड थैंक्स फॉर योर हेल्प"|

नितेश चला गया कुछ महीनों में मां पूरी तरह से ठीक हो गई लेकिन व्हीलचेयर पर हमेशा उदास बैठी रहती ना जाने वो क्या सोचती रहती | मैंने, प्रेरणा और चाचा जी ने नकली पैर के लिए बहुत राजी किया पर वह नहीं मानी | एक दिन जब मैं ऑफिस में ही था तो प्रेरणा ने बताया नितेश वर्मा जॉब के लिए इंटरव्यू देने आए हैं, मैंने प्रेरणा से तुरंत उसे जॉब पर रखने के लिए कहा, हालांकि प्रेरणा ने कहा कि पहले इंटरव्यू तो ले लो लेकिन मैं नहीं माना और सच में नितेश ने काम संभालते ही कंपनी का नाम रोशन कर दिया लेकिन मुझे नहीं पता था एक दिन वह प्रेरणा को मुझसे छीन लेगा…. " |

प्रेरित इतना कहकर खामोश हो गया, प्रतिशोध की ज्वाला उसके अंदर फिर दहकने लगी, जो पहले ही पूरा हो चुका था|


भैरव (कुछ सोचते हुए) - " साब.. आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं, ये नितेश वर्मा का आना क्या सच में कोई इत्तेफाक था, या…."|

प्रेरित भैरव की बात सुनकर सोच में डूब गया, तभी कुछ पुलिसवाले आकर मुन्ना पठान को देखने लगे और चले गए |



रात के दो बज चुके थे, कुछ पुलिस वाले बैठे बैठे सो रहे थे और कुछ बातें कर रहे थे,

" अरे बेकार का ड्रामा है ज्ञानेश्वर सर का, इतना मुश्किल से आज का टाइम बीवी बच्चों के लिए निकाला था"

तभी गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया,

"अरे लो गैस वाली गाड़ी भी आ गई"

तभी ज्ञानेश्वर प्रताप बाहर आकर बोले,

"गाड़ी को अंदर घुसने से पहले चेक कर लो, मुन्ना पठान तो किसी भी हद तक जा सकता है"|

पुलिस वालों ने गाड़ी चेक की और कहा,

" सब ठीक है, चलो आजाओ " |

गाड़ी जेल के अंदर जाने लगी, गाड़ी और अंदर जाती लेकिन सामने लकड़ी का सामान बिखरा पड़ा था तो गाड़ी वहीं रुक गई | सब अपनी ड्यूटी पर थे और मुन्ना पठान हंसता हुआ प्रेरित और भैरव को घूर रहा था |

ऐसा लग रहा था जैसे तूफान आने वाला है, कोई कुछ समझता इससे पहले एक जोरदार धमाका हुआ और उस धमाके के बाद लगातार कई धमाके हुए, चारों ओर आग फैल गई, पुलिस वाले, कैदी सब चिल्लाने लगे |

ज्ञानेश्वर भागकर जलती आग में कूद गया और भागते हुए मुन्ना के पास आया पर मुन्ना पठान गायब था |

प्रेरित और भैरव भी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे | आग पूरी तरह जेल के अंदर फैल चुकी थी, कई कैदी जान बचाकर भाग चुके थे, कई जल गए थे, कई पुलिसवाले जलकर खाक हो गए थे, ज्ञानेश्वर सिंह भागते भागते बाहर की तरफ आया तो देखा गाड़ी के परखच्चे उड़ गए थे और गाड़ी जेल से निकलने वाले नाले के ऊपर खड़ी थी, नाले की ऊपरी सतह बिल्कुल टूट चुकी थी और पानी तेज बहता हुआ बाहर की तरफ जा रहा था, वह समझ गया की मुन्ना पठान ने मिलकर यह षड्यंत्र रचा था फिर भी वह तुरंत ही नाले में कूद गया |


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