कर्तव्य की अवहेलना Rajesh Maheshwari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्तव्य की अवहेलना

कर्तव्य की अवहेलना

हम जबलपुर से हावड़ा जा रहे थे। मेरे साथ मेरे दो मित्र थे। उन दोनों में से एक मित्र को शराब की लत थी। गाड़ी जब सतना के पास पहुँची तब तक शाम हो चली थी लेकिन उनके स्टॉक शराब नही थी और उन्हें शराब की तलब सताने लगी। उन्होंने मेरे दूसरे साथी को अपनी व्यथा बतलाई। दूसरे साथी को भी मित्रता निभाने की धुन सवार हुई। उन्होंने टिकिट कंडक्टर को बुलाकर यह कहते हुए कहा कि पैसा चाहे लग जाए पर मित्र की आवश्यकता पूरी हो जाए। कंडक्टर ने बतलाया कि दो हजार रू. लगेंगे। हम सभी चौंके। आखिर इतना अधिक पैसा क्यों लगेगा ? जब आगे बात की तो उसने बताया कि जब तक बोतल नहीं आ जाती तब तक मेल को रोककर रखना पड़ेगा। हम आश्चर्यचकित थे और यह देखने के लिए कि देखें क्या होता है उससे हामी भर दी और उसे दो हजार रू. दे दिया।

वह कंडक्टर गार्ड को कुछ समझाकर स्टेशन के बाहर चला गया। ट्रेन के चलने का समय हो गया, ड्राइवर ने हार्न भी दिया लेकिन गार्ड ने हरी झंडी नही दिखलाई। लगभग बीस मिनिट तक ट्रेन सतना स्टेशन पर ही खड़ी रही। जब कंडक्टर आ गया तभी गार्ड ने झंडी दिखाई और ट्रेन आगे बढ़ी।

वह कंडक्टर और वह टीसी दोनों ही तगड़े पियक्कड़ थे। मेरे मित्र ने तो कम पी परंतु वे दोनों पूरी दारू पी गए। मदिरा ने अपना असर दिखाया तो दोनों टुन्न हो गए। वह टीसी जाकर एक सीट पर सो गया। गाडी इलाहाबाद स्टेशन से छूट गई। मुगलसराय स्टेशन पर उसकी नींद खुली परंतु जब तक वह कोई फैसला कर पाता ट्रेन मुगलसराय से भी आगे बढ़ गई। अब वह बहुत घबराया, उसे इलाहाबाद में अपनी ड्यूटी का चार्ज और पैसा देना था जो वह नही दे सका।

हमारे मित्र भी उसके मित्र बन चुके थे। उन्होंने उसे सलाह दी कि अब तो तुम हमारे साथ कलकत्ते तक चले चलो। कलकत्ते की सैर करने के बाद कल फिर इसी ट्रेन से वापिस आ जाना। उसके पास भी कोई दूसरा विकल्प नही था। वह तैयार हो गया। कलकत्ते वह मेरे मित्र के साथ उसकी कंपनी के गेस्ट रूम में रूका। मेरे वे मित्र तैयार होकर अपनी कंपनी के काम से ऑफिस चले गए। वे जब रात को वापिस आए तो गेस्ट हाऊस के चपरासी ने बतलाया कि आपके साथ जो साहब ठहरे थे वे चले गए हैं और दिन भर की टैक्सी का भाड़ा भी आपके नाम कर गए हैं। भीतर जाकर देखा तो गेस्ट हाऊस में रखी सारी शराब की बोतलें भी वे अपने साथ ले गए थे। मेरे मित्र ने वे सभी बिल चुकाए और कसम खाई कि भविष्य में ऐसे लोगों से सतर्क रहेंगे।

कुछ दिनों बाद पता चला कि उस टीसी के ऊपर जाँच चली जिसमें वह दोषी पाया गया। उस पर अनुशासनहीनता और लापरवाही की कार्यवाही हुई और वह अपनी रेल्वे की अच्छी खासी नौकरी से हाथ धो बैठा। यह घटना एक ओर तो विस्मयकारक, हास्यापद, अविश्वसनीय और गंभीर थी तो दूसरी ओर यह भी सिखा गई कि यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार और निष्ठावान नही होंगे तो यह स्थिति कभी भी हमारे जीवन पर वज्राघात कर सकती है।