चाकू खटकेदार है अब-रामअवध विष्वकर्मा ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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चाकू खटकेदार है अब-रामअवध विष्वकर्मा

चाकू खटकेदार है अब हाथ में लेकर तो देखो

रामगोपाल भावुक

रामअवध विष्वकर्मा का व्यंग्य गजल संग्रह ‘चाकू खटकेदार है अब’पढ़ने के लिए हाथ में लेकर तो देखो, उसके पृष्ठ खोलते ही खट की आवाज ‘मेहमान भी लटकते है’ं पर प्रतिक्रिया देते हुए चर्चित साहित्यकार महेष अनध की सुनाई देती है।

खुरदरी, कुछ मखमली हैं आपकी गजलें।

बहुत बहुतों से भलीं हैं आपकी गजलें।।

और इस गजल का अन्तिम पायदान पर

आदमी से ब्याह देना लाल जोड़े में।

सत्य की सुन्दर लली हैं आपकी गजलें।।

संग्रह में सत्तर गजलें समाहित की गईं है। सूची में प्रत्येक गजल की पहली दो पक्तियाँ नाम करण कर रही है।

जिन हाथों में राम नाम की माला थी।

उन हाथों में चारकू खटकेदार है अब।।

प्रिय भाई रामअवध विष्वकर्मा जी का यह यंग्य गजल संग्रह पढ़ते समय याद हो आये हरिषंकर परसाई और जहीर कुरैषी जी।

रामअवध विष्वकर्मा जी ने अपनी गजलों के माध्यम से समाज का सच्चा सच पाठकों के सामने रखा है-

दरोगा ने कहा आँख दिखाकर

निकालो माल भागो दुम दबाकर।

आपकी इन गजलों में मुझे छोटीवहर की गजलों ने अधिक प्रभावित किया है। उनमें आप अधिक मुखर हुए हैं-

सब लुटेरे है मंत्रिमंड़ल में

ये लफंगों की राजधानी है।

यों कम “ाब्दों में बड़ी बड़ी बातें आप कह जाते हैं।

आपकी गजलों में मुझे कुछ खटका है तो पुराने प्रतीक। वर्तमान परिवेष में आप पुराने प्रतीकों से काम चलाते दिखे हैं-

हम गरीबों के लिये सेठों से

इक चवन्नी भी ना निकाली गई।

भैया जी अब चवन्नी का चलन ही चला गया। “ाायद अपनी बात कहने के लिये कोई और प्रतीक ही आपकों नहीं मिल पाया होगा।

इसी तरह दूसरी जगह-

इस वे रुखी से कौन न मर जाए ऐ खुदा

वर्शों से कोई खत भी नहीं तार भी नहीं।

भैया जी तार का जमाना तो बहुत पीछे छूट गया। अब तो इन्टर नेट का जमाना आ गया है।

एक अन्य स्थान पर-

तसल्ली दिल को दे लेते हम भी

बुझे हुक्के को अक्सर गुड़गुड़ाकर।

बुझे हुक्के को गुड़गुड़ाना “ाायद कवि ने अपने पुरखों की स्मृतियों के प्रतीक देकर हमें अपने पुराने परिवेष से परिचित कराना चाहा है।

दूसरी ओर कवि व्यवस्था के सच को कम “ाब्दों में पाठकों के समक्ष रख देता है-एक बच्चा है वो भी आदम का

जिसके हाथों में जूठा दइोना है।

ख्वाइषें सैकडों हैं उसकी भी

जिसके घर में फटा बिछौना है।

गजल क्रमांक 47 भी देखें-

आज गाँधी सुभाष होते तो

हार जाते वो दो तिहाई से।

डाकुओं से बच गई इज्जत

आबरू लुट गई सिपाही से।

यों आपकी गजलें व्यवस्था से रू-ब-रू कराने में पूरी तरह साफल रही हैं।

कवि ने अन्धविष्वास पर भी गहरा प्रहार किया है-

मेरे भाई मुझे बताओ

झाड फँूक से टली बला कुछ।

एक दूसरी गजल का एक “ोर देखें-

धर्म का ढोल पीटने वालो

धर्म के नाम पर तबाही क्यों?

कवि का विष्वास है-

इस इलेक्ट्रोनी करण की होड़ में

हाथ का सारा हुनर जायेगा अब।

कवि कितनी बड़ी बात सरलता से कह जाता है-

मत देखो तनख्वाह हमारी

बहुत कमाई है ऊपर की।

पहले घर का काम करेंगे

फिर सोचेंगे दफ्तर की।

आपकी गजल क्रमांक 68 मैंने अनेक बार पलटी है-

पाँच सितारा होटल भी

कौन सुनें निर्धन की बात।

नहीं कभी स्वीकार हमें

जीवन भर बंधन की बात।

इस तरह विष्वकर्मा जी की व्यंग्यात्मक गजलें पढ़कर पाठक सोचने को विवष हो जाता है। इसी तरह मुफ्तखोरी जिन्दाबाद भी चाकू खटकेदार ही है। इसमें तेइस व्यंग्य आलेख समाहित हैं जो व्यवस्था की “ाल्य क्रिया करने में समर्थ है। यह भी पठनीय एवं संग्रहणीय कृति है।

अब मैं अपनी बात की इति महेष अनघ जी के इस “ोर से करना चाहता हूँ-

दर्द है ईमान है सामान जीने का

फकीरों की पोटली हैं आपकी गजलें।

यों रामअवध विष्वकर्मा जी की गजलें पठनीय एवं संग्रहणीय है। ऐसी गजलों के व्यंग्य संग्रह के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।

कृति- चाकू खटकेदार है अब

कृतिकार- रामअवध विष्वकर्मा

प्रकाषक- रानी राजबाला प्रकाषन ग्वालियर

मुल्य- पेपर बैक-60रुपये

वर्ष- 2006

सम्पर्क- रामगोपाल भावुक कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला

ग्वालियर म. प्र. 475110 मो0 9425715707