बंद है सिमसिम - 4 - मैं जिन्न हूँ जिन्न Ranjana Jaiswal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बंद है सिमसिम - 4 - मैं जिन्न हूँ जिन्न

वे मेरे सगे बड़े मामा थे।माँ और बड़ी मासी के बाद उनका जन्म हुआ था,इसलिए सबके दुलारे थे ।उनके बाद छोटी मासी और छोटे मामा पैदा हुए। वे अपनी छोटी बहन यानी छोटी मासी पर जान छिड़कते थे।जब वे चौदह साल के हुए तब तक माँ और बड़ी मासी ब्याह हो चुका था।मामा जब आठवीं कक्षा में पहुँचे ,तभी से हीरो लगने लगे थे।गोरा रंग,ऊंची डील -डौल के साथ बेहद खूबसूरत चेहरा।किशोर होते ही उनके लिए रिश्ते आने शुरू हो गए थे।
एक दिन वे स्कूल से घर पहुंचे तो नाना और उनके बड़े भाई के बीच जबर्दस्त झगड़ा हो रहा था।झगड़ा पुश्तैनी जमीन -जायजाद को लेकर ही था।बड़े नाना की अपनी कोई संतान न थी इसलिए वे अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाना चाहते थे।बड़ी नानी काफी पहले ही मर चुकी थीं ।इधर उन्होंने एक जवान विधवा के घर आना -जाना शुरू किया था।उसी ने उन्हें समझा दिया था कि छोटे नाना के तो दो बेटे हैं जो सारी संपत्ति पर ऐश करेंगे।इसलिए उन्हें जीते- जी अपना हिस्सा लेकर मौज -मस्ती का जीवन जीना चाहिए।अपना खाया- पीया ,मौज -मस्ती ही सार्थक है।भाई -पटीदार किसी के सगे नहीं होते।
मेरे नाना किसी भी कीमत पर उनसे अलग नहीं होना चाहते थे।वे अपने बड़े भाई का बड़ा सम्मान करते थे पर बड़े नाना जिद पर अड़े अपनी हद पार कर रहे थे इसलिए उनमें झगड़ा हो रहा था।बड़े मामा गुस्से वाले थे।उन्होंने बड़े नाना को धमकाया कि ज्यादा चु- चपड़ करेंगे तो मैं भी लिहाज भूल जाऊंगा।दो चार हाथ पड़ेंगे तो बुढौती में रँगीनी करना भूल जाएंगे।बड़े मामा ने बड़े नाना को कई बार उस विधवा के घर आते- जाते देखा था।
बड़े नाना को बड़े मामा की बात चुभ गई। वे सोचने लगे--'अरे ,देखो इस लड़के को!इसको अपने कंधे पर बिठाकर घुमाता था। इसे इतना प्यार करता था यह भी काका -काका कहते नहीं अघाता था और आज यही मुझे मारने की धमकी दे रहा है।सांड बन गया है।छोड़ूँगा नहीं इसे......।'
पंचायत हुई पर फैसला मेरे नाना के पक्ष में हुआ।पंचों ने साफ कहा कि बड़े नाना के 'आगे नाथ न पीछे पगहा',इसलिए उन्हें भाई के साथ ही रहना चाहिए।हारी- बीमारी और बुढ़ापे में अपने ही काम आते हैं।बाकी लोग तो 'स्वारथ काज करे सब प्रीति'
बड़े नाना ने कुछ नहीं कहा।मामला शांत हो गया था।
पर कुछ दिन बाद से ही बड़े मामा की तबियत खराब होने लगी।उनके शरीर में रह -रहकर सुइयां चुभने जैसा दर्द होता ।वे छटपटाने लगते।घरेलू इलाज,वैद्यकी इलाज के साथ होम्योपैथ,एलोपैथ सब चला पर कोई सुधार नहीं हुआ।वे सूखते जा रहे थे ऐसा लगता था कि उनके शरीर का सारा रक्त कोई निचोड़ रहा है।सब लोग परेशान थे।बड़े नाना तो सबसे अधिक।वे घण्टों बड़े मामा के सिरहाने बैठे रहते और उनकी देखभाल करते।
और एक दिन बड़े मामा चल बसे।घर -परिवार ही नहीं पूरे गांव- मोहल्ले में हाहाकार मच गया।जो भी सुनता दुःखी हो जाता।बड़े मामा बड़े ही होनहार थे।सुंदर और गुणवान भी।चढ़ती उम्र में उनका जाना सबको खल रहा था।बड़े नाना का तो रो -रोकर बुरा हाल था।परिवार में सबसे अधिक दुःखी वही नज़र आते थे।कहते हैं समय सबसे बड़ा मरहम है ।धीरे- धीरे सब उस दुःख से उबरने लगे थे पर महीना भी नहीं बीता कि गाँव का ओझा मर गया।सबको आश्चर्य हुआ क्योंकि वह बिल्कुल नीरोग था।एक दिन एकाएक वह अपनी चारपाई पर छटपटाया जैसे किसी ने उसे दबोच रखा हो।उसके बेटे चकित थे कि चारपाई पर और कोई नहीं था पर वह इस तरह छटपटा रहा था कि कोई उसके शरीर पर लड़ा है और उसका गला दबा रहा है।धीरे -धीरे उसकी सांसें अवरूद्ध हो गईं और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
ओझा के मृतक संस्कार में सम्मलित होकर ज्यों ही बड़े नाना लौटे ,वे अपनी चारपाई पर गिरकर छटपटाने लगे।पूरा परिवार वहाँ जमा हो गया।किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें क्या हुआ है?उनके गले से गों -गों की आवाज आ रही थी।ठीक ओझा वाली हालत उनकी भी थी।उन्हें लग रहा था कि कोई पहाड़ उनकी देह को दबाए हुए है।
सब देखते रह गए और बड़े नाना की आंखें और जीभ बाहर निकल आईं और फिर उनका शरीर निश्चल हो गया।
एक साथ दो लोगों की एक जैसी मौत ने पूरे गांव -मोहल्ले को भयभीत कर दिया कि जाने कौन -सी बीमारी आ गई है?

सभी को अपने प्राणों की चिंता होने लगी।सभी पूजा- पाठ,हवन -पूजन करने लगे।घर -घर में महामृत्युंजय का जाप होने लगा।गनीमत हुई कि फिर किसी की उस तरह मौत नहीं हुई और कुछ महीने बाद सब इस बात को भूल भी गए।
कुछ वर्ष बीत गए थे ।घर के लोग बड़े मामा को याद करके अक्सर रो पड़ते थे।नाना नानी ऊपर से तो कुछ नहीं कहते थे पर सबको पता था कि वे उस हादसे को भूल नहीं पाए हैं ।छोटी मासी आठ साल की चुकी थीं ।उन्हें तो याद भी नहीं था कि उनका एक बड़ा भाई भी था,जो उन्हें बहुत प्यार करता था।मेरी माँ को सब याद था।बड़ी मासी अपने ससुराल थीं।छोटे मामा अभी नादान थे।
एक दिन अचानक एक ऐसी बात हुई कि घर के सभी सदस्य हिल गए।सभी को बड़े मामा की याद आ गई।
हुआ यह था कि उस दिन छोटी मासी टॉयलेट के रास्ते में बेसुध होकर गिर गईं।माँ ने उन्हें देखा तो शोर मचाया।नाना उन्हें उठाकर उनके बिस्तर तक लाए।घर के सभी लोग वहां जमा हो गए।छोटी मासी पागलों जैसी हरकत कर रही थीं ।कभी वे हंसतीं तो कभी रोतीं ।वे लगातार बड़बड़ा रही थीं।
उनका चेहरा पीला पड़ रहा था।नाना ने उनके सिर पर हाथ पर प्यार से हाथ रखकर पूछा--क्या हुआ छोटी?
अब तो मासी फफक -फफक कर रोने लगीं।वे लगातार बाबूजी... बाबूजी कह रही थीं जैसे वर्षों से उनसे बिछड़ी थीं और आज मिली हों।
बाबूजी को समझ नहीं आ रहा था कि मासी को हुआ क्या है?उन्होंने फिर से उसे पुचकारा --छोटी क्यों रो रही हो?मैं तो तुम्हारे पास ही हूँ।किसी ने कुछ कहा है तुम्हें,बताओ तो उसे मारूंगा।
अब मासी जोर से हँसी उनकी आवाज बदल गई --मैं छोटी नहीं अमन हूँ अमन!
अमन बड़े मामा का नाम था।
सभी डर गए तो मासी की देह पर सवार अमन मामा बोले--सब लोग डर क्यों रहे?मैं इसी घर का बेटा हूं सबका दुलारा।छोटी को देखे बहुत दिन हो गए थे इसलिए वापस आ गया।
तब नानी ने डरते -डरते पूछा--पर बेटा तुम तो मर गए थे न!
वापस कैसे आए?
--मैं मरा नही मारा गया था।अभी मेरी उम्र पूरी नहीं हुई थी ,इसलिए भटक रहा हूँ।मैं जहां चाहें जा सकता हूँ जो चाहे कर सकता हूँ...बहुत शक्तिशाली हूँ मैं....!हा हा हा।
बड़े मामा की आवाज में मासी हँस रही थीं।
उनकी बात सुनकर नाना ने प्यार से पूछा--तुम्हें किसने मारा था बेटा?
'ताऊजी ने ओझा से मिलकर मारा था।मेरी देह का पुतला बनाकर वे तंत्र -मंत्र से उसमें सुइयां चुभाते थे ,वही सुइयां मुझे चुभा करती थीं।धीरे -धीरे मेरा सारा खून बह गया और मैं कमजोर होता गया।और फिर मर गया पर मेरी उम्र मरने की नहीं थी इसलिए जिन हो गया हूँ।कोई मुझे नहीं देख सकता पर में सबको देख सकता हूँ।मेरा भौतिक शरीर नहीं है पर सूक्ष्म शरीर है।'
उनकी कहानी सुनकर सब रोने लगे।बड़े नाना ने इस तरह दुश्मनी निभाई थी।उपर से वे हमदर्द बने रहे और घर के चिराग को बुझा दिया।
"रो क्यों रहे हैं सब ?मैंने उनसे बदला ले लिया था।आप लोग क्या समझते हैं कि ओझा और ताऊजी किसी बीमारी या अपनी मौत से मरे थे।मैंने मारा था उन्हें ,वह भी तड़पा- तड़पाकर!अब वे भी मेरी योनि में भटक रहे हैं।मेरी चाकरी करते हैं।"