बंद है सिमसिम - 2 - देवी का गुस्सा Ranjana Jaiswal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बंद है सिमसिम - 2 - देवी का गुस्सा

घटना मेरी माँ के साथ घटी थी।मेरे पिताजी उन दिनों नागपुर में काम करते थे।माँ की नई शादी हुई थी ।वे उत्तर -प्रदेश के एक छोटे कस्बे की थीं और मात्र आठवीं पास थीं।बोलचाल की भाषा भी भोजपुरी थी।वे अपने रिश्ते के एक भाई को भी अपने साथ नागपुर ले गईं थीं ताकि उस अजनबी शहर में उनका मन लगा रहे। भाई की उम्र दस साल थी।माँ को उससे बहुत लगाव था।पिताजी दिन -भर काम पर रहते पर भाई माँ के साथ हमेशा रहता।माँ को अपने पास पड़ोसियों के घर जाना होता तो उसे भी अपने साथ ले जातीं।नागपुर की पहाड़ियाँ बहुत मशहूर हैं ।वहाँ संतरे और चिरौंजी के पेड़ बेशुमार हैं।माँ के घर से कुछ ही दूरी से पहाड़ियाँ शुरू होती थीं,जिस पर अक्सर भाई- बहन चढ़ जाते और ढेर सारे संतरे और चिरौंजी बटोर लाते।वहां रास्ते में ये फल बिखरे रहते।हाँ, उसके नीचे के जंगल से उन्हें डर लगता।शाम के बाद उधर कोई नहीं जाता था क्योंकि जंगल से जानवर निकलकर सड़क तक आ जाते थे।


एक दिन माँ भाई के साथ अपनी पड़ोसन के घर गईं।वह एक मराठी परिवार था।वहाँ भाई-बहन ने चाय -नाश्ता किया और घर लौट आए।उसी रात को वह घटना घटी।माँ को आदत थी कि सोने से पहले वे पूरे घर को चेक करती थीं।खिड़की -दरवाजे से लेकर ताले तक।उस रात जब वे भाई के कमरे की तरफ गईं तो उन्हें अजीब -सी आवाजें सुनाई दीं।उन्होंने ध्यान से


देखा तो भाई का शरीर जोर- जोर से हिल रहा था और वह कुछ बड़बड़ा रहा था।उन्होंने सोचा कि नींद में है कोई सपना देख रहा होगा।उन्होंने जमीन पर गिरा कम्बल उठाकर उसके शरीर पर डाल दिया और ज्यों ही लौटने लगीं तो भाई हू ...हू की आवाज निकालने लगा।कम्बल उसने फिर से जमीन पर गिरा दिया था।अब माँ ने उसे उसके नाम से पुकारा--रमेश! क्या बात है?तबियत तो ठीक है तुम्हारी!


रमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया ।वह और तेजी से हू ...हू करने लगा।माँ ने बत्ती जलाकर उसकी तरफ देखा तो सन्न रह गईं।वह उठकर बैठ गया था और अपने हाथ -पैर पटकने लगा था।उसकी आँखें बुरी तरह लाल थीं।मुँह से झाग जैसा निकल रहा था।माँ डरकर वहां से भागीं और सो चुके पिताजी को झकझोर कर जगाया।


--जरा चलकर देखिए न,रमेश को कुछ हो गया है।


पिताजी नींद में ही बोले-अरे यार ,सोने दो न!बहुत थका हूँ।


मां रूआंसी होकर बोली--वह अजीब- अजीब हरकतें कर रहा है।लगता है किसी ऊपरी ताकत ने उसे पकड़ लिया है।चलकर देखिए।


पिताजी झल्लाते हुए उठे और भाई के कमरे में आए।वे उसे डाँटने ही वाले थे कि वह बिस्तर से उछलकर नीचे आ गिरा और बुरी तरह छटपटाने लगा। पिताजी ने उसे कई बार पुकारा पर वह जैसे अपने आपे में न था।माँ ने पिताजी से कहा कि वे किसी पड़ोसी को मदद के लिए बुला लाएं।रमेश को अस्पताल ले जाना पड़ेगा।


पिताजी ने चिन्तित होकर कहा--'आधी रात को किसी के घर जाकर उसे जगाना उचित नहीं है पर और कोई रास्ता भी तो नहीं।'


आखिर वे घर से निकल गए ।अब माँ को और डर लगा क्योंकि अब वे रमेश के पास अकेली थीं।रमेश पहले की तरह सिर झटक रहा था और अजीब -अजीब सी आवाजें निकाल रहा था।थोड़ी देर बाद ही पिताजी अपने पड़ोसी मिस्टर रमाकरण के साथ आए।रमाकरण ने ज्यों ही रमेश को देखा तो समझ गए कि उसे कोई दूसरी ही बाधा है।उन्होंने अपनी जान पहचान के किसी पंडित को फोन करके बुलाया।पंडित जी ने आकर रमेश के पैर पर पैर रखकर उसे जमीन से उठाना चाहा।रमेश उठ तो गया पर उसने पंडित जी को कसकर पकड़ लिया।उसके दुबले पतले शरीर में जाने कैसे इतनी ताकत भर गई थी कि उसके शिकंजे में हट्टे -कट्टे पंडित जी छटपटाने लगे।पिताजी और रमाकरण ने उसे रमेश के शिकंजे से छुड़ाना चाहा तो उसने उन्हें भी झटक दिया।साथ ही पंडित जी से गुर्रा -गुर्रा कर कहने लगा--तेरी इतनी हिम्मत पंडित कि मुझे पैर से छुए।मैं तुम्हें मार दूँगी।मैं दुर्गा हूँ दुर्गा।इस लड़के पर मेरी कृपा है पर आज इसने अक्षम्य गलती की है।


माँ ने हाथ जोड़े-माता,क्या गलती हो गई है इस बालक से?


रमेश ने आवाज बदलकर कहा--इसने आज जूठा खाया है।इसे पता है कि मैं हमेशा इसके ऊपर रहती हूँ।इसका खाया- पीया मेरे भीतर जाता है फिर भी इसने दूसरे का जूठा खाया।इसे दंड दूँगी।अपने साथ रखूंगी।


पिताजी गिड़गिड़ाए--माता रानी पंडित जी को छोड़ दीजिए और इस बालक को भी।हम मनुष्य हैं हमसे गलती हो जाती है।क्षमा करें।


'पंडित को छोड़ रही हूँ पर इस बालक को नहीं छोड़ सकती।'


रमेश ने अपने शिकंजे खोल दिए।बदहवास पंडित जी रमेश के चरणों में लौट गए और प्रार्थना करने लगे।


--क्षमा माता ,क्षमा!कृपा करें हमपर। फिर वे एक किनारे खड़े होकर देवी श्रोत पढ़ने लगे।


अब माँ ने देवी के पांव पकड़े --"माँ, मेरे भाई को बख्श दीजिए।मुझे नहीं पता कि उसने क्या गलती की है?"


देवी ने गरजते हुए कहा--उसने कल जूठी चाय पी थी।तुम्हीं तो लेकर गई थी उसे।


माँ ने फिर से गिड़गिड़ाते हुए कहा--इसमें रमेश का क्या दोष?उसे कहाँ पता था कि उसे जूठी चाय दी जा रही है।गलती तो उसकी है न,जिसने चाय दी थी।


'पर मैंने इसे मना कर रखा है कि कहीं बाहर न खाए -पीए,शुद्ध सात्विक भोजन करे क्योंकि मैं इसके माध्यम से भोजन ग्रहण करती हूँ।'


माँ डर रही थी क्योंकि वह भी रमेश को अपनी थाली में खिला लेती थी।उसे पता ही नहीं था कि रमेश पर कभी -कभार देवी सवार हो जाती हैं।रमेश और उसके घर वालों ने कभी इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था।जिस मराठी परिवार में उनलोगों ने कल चाय पी थी।उन्होंने जूठा मानकर चाय नहीं दी थी।दरअसल उनके घर में एक चौड़े मुंह वाला बड़ा -सा पानी का घड़ा था।घर के सभी सदस्य उसी से पानी पीते थे।घड़े का मुंह ढंका रहता था और उसके ऊपर एक बड़ा सा गिलास औंधा करके रखा रहता था।जिसे भी प्यास लगती।ग्लास से पानी निकालता और पानी पीकर गिलास को बिना साफ किए वैसे ही औंधा करके रख देता।दूसरा सदस्य आता और उस जूठे गिलास से पानी निकालकर पीता और फिर वही सारी प्रक्रिया दुहराता।


इस तरह घड़े का पूरा पानी जूठा हो जाता।उसी पानी से मेहमानों के लिए चाय -पानी का बन्दोबस्त किया जाता।यह मराठियों के घर का आम चलन था।पानी की कमी होने के कारण वे इस तरह पानी का सदुपयोग करते थे।

उसी पानी से बनी चाय रमेश और माँ ने पी थी जिसके कारण रमेश पर देवी सवार हो गई थीं।और छोड़कर जाने को राजी नहीं थीं।


अब पंडित जी ने देवी से प्रार्थना की --पूजा लेकर छोड़ दीजिए न !बालक है आपका ।आप तो माँ हैं क्षमा करना आपका स्वभाव है।


देवी ने सदय होकर कहा--ठीक है ...मुझे धार और कपूर चढ़ाओ।
पंडित जी ने पिताजी को इशारा किया।पिताजी बाहर की तरफ़ लपके और पड़ोस की दूकान को खुलवाकर कपूर और धार ले आए।तब तक माँ ने भी नहा-धोकर कपड़े बदल लिए थे ताकि नियमपूर्वक देवी की पूजा कर सकें।माँ ने धार को बड़े से तांबे के जार में घोला और थाल में अन्य पूजा- सामग्री सजाकर ले आईं। अब समस्या यह थी कि देवी तो जमीन पर लेटी हुई थीं उनकी पूजा कैसे की जाए?माँ उनके पास ही घुटनों के बल बैठ गईं।और कपूरदानी में कपूर का बड़ा सा गोला जलाया।देवी ने हाथ बढ़ाकर उस गोले को मुँह में रख लिया और उसे चबाकर खा गईं।माँ ने डरते -डरते ही उनसे पूछा कि वे धार कहाँ चढ़ाएं तो देवी ने अपनी दोनों आंखों को फैला लिया कि इसी में डालो।सभी सांसें रोके यह तमाशा देख रहे थे।
'डालती क्यों नहीं...।'देवी के इतना कहते ही माँ ने देवी की आंखों में जार की धार को उड़ेलना शुरू किया।देखते ही देखते पूरा जार खाली हो गया।देवी के गले से धार को गटकने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी।