बंद है सिमसिम - 8 - मर के भी न रहूँगा जुदा Ranjana Jaiswal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बंद है सिमसिम - 8 - मर के भी न रहूँगा जुदा

सुगनी का पति परेशान था।वह नाम-मात्र का पति रह गया था।हर रात जाने कैसे वह बेसुध होकर दूसरे कमरे में पहुंच जाता और दिन में सुगनी उसे अपने पास फटकने तक नहीं देती थी।उसे शक हुआ कि जरूर रात के उसके खाने में सुगनी कुछ नशीला पदार्थ मिला देती है और अपने किसी अमीर प्रेमी के साथ रात बिताती है।सुबह होने से पहले अपने प्रेमी को भगा देती है और भीतर से दरवाजा बंद कर सो जाती है।उसकी पसन्द की चीजें उसका प्रेमी ही लाता होगा। उसका सन्देह दिन पर दिन पुख्ता होता गया और एक दिन उसके सब्र का बांध टूट गया।उसने एक दिन भरी दुपहरिया में सुगनी को बिस्तर से बांध दिया और उससे जबर्दस्ती करने लगा।सुगनी विरोध करती रही। रोती- चिल्लाती रही पर वह मान ही नहीं रहा था।तभी अचानक जैसे कमरे में भूचाल आ गया हो।चीजें अपने- आप उछलकर छत से टकरातीं और जमीन पर गिरकर चूर- चूर हो जातीं।सुगनी के भीतर इतनी ताकत आ गई कि उसके शरीर पर बंधी रस्सी टूट गई ।उसने अपनी देह ओर कब्जा किए पति को ऐसी लात मारी कि वह दूर जा गिरा।सुगनी बिस्तर से उतरकर उसके पास आई और उसके सीने पर सवार होकर उसका गला दबाते हुए चीखी--तुमने मुझे छुआ ।मेरे से जबरदस्ती करने की कोशिश की।तुम्हारी इतनी हिम्मत!मैं तुम्हारी जान ले लूंगी।
सुगनी के बाल बिखर गए थे ।उसकी ऑंखें बाहर की ओर उबल -सी आईं थीं।सांसें तेज चल रही थीं।वह अपने आपे में नहीं थी।उसके पति की हालत खराब थी। वह मरणासन्न हो चला था।इसके पूर्व कि उसके प्राण -पखेरू उड़ जाते कि बाहर से उसके पड़ोसियों की आवाज़ सुनाई दी।
सुगनी के हाथ रूक गए ।वह पति के सीने से उतरकर उसको आश्चर्य से देखने लगी।वह अपने आप में आ चुकी थी।उसने दरवाजा खोल दिया।पड़ोसी उसके कमरे में घुस आए और उससे पूछने लगे कि क्या हुआ है? कुछ गिरने की आवाजें आ रही थीं..चीखने -चिल्लाने की भी।
सुगनी ने जमीन पर अधमरे से पड़े पति की ओर इशारा करते हुए कहा कि न जाने इन्हें क्या हो गया है?पहले सामान फेंकते रहे।फिर चीखे -चिल्लाए और फिर जमीन पर गिरकर छटपटाने लगे। पड़ोसी उसके पति के इर्द ,-गिर्द बैठ गए और उससे हाल पूछने लगे।पर सुगनी का पति कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।पड़ोसियों ने उसको उठाकर खड़ा करना चाहा तो वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उसके कमर के नीचे के सारे हिस्से को फ़ालिज मार गया था।
-ओहो,यह तो भरी जवानी में बेकार हो गया।अभी तो कोई बाल -बच्चे भी नहीं हुए थे।
सुगनी के पति की आंखों से आंसू बह रहे थे।पड़ोसी उसे अस्पताल ले जाने की तैयारी कर रहे थे।एम्बूलेंस बुलाया गया था। ज्यों ही सब लोग सुगनी के पति को सप्ताल लेकर गए।रोती- बिलखती सुगनी ठठाकर हँस पड़ी ।उसकी हँसी रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी।यह तो अच्छा हुआ कि किसी ने उसके इस रूप को नहीं देखा था।
सुगनी का पति न फिर बोल पाया और ना ही अपने पैरों पर खड़ा हो पाया।उसके माता -पिता तीर्थयात्रा से लौट आए थे और बेटे की हालत देखकर बेहद दुःखी थे।घर में अब कमाने वाला कोई सदस्य नहीं रहा था पर उनके घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी।सुगनी न तो कोई नौकरी करती थी ,न ही कहीं बाहर जाती थी।कोई पुरुष उसके घर आता जाता भी नहीं दिखा फिर भी दुनिया की जिस किसी वस्तु की कामना सुगनी करती रातों -रात उसके घर आ जाता।उसका छोटा घर अब महल हो गया था।दरवाजे पर कार आ गई थी।कीमती साड़ियाँ और गहनों से उसकी कई आलमारियाँ भरी थीं ।वह कोलकाता का रसगुल्ला खाना चाहती तो रात को उसकी मेज पर सज जाता और वह भी इतनी मात्रा में कि सुबह पड़ोसियों को बाँटना पड़ता।पड़ोसी लज़ीज़ मिठाईयां पाकर निहाल हो जाते।वे सुगनी की सास से पूछते कि देशी- विदेशी हर तरह की मिठाईयां आप कहाँ से मंगाती हैं तो वह कोई जवाब नहीं दे पातीं और कहतीं बहू जाने
सुगनी दिन -भर सामान्य रहती।मेहमानों का स्वागत,घर के काम -काज,सास -ससुर की सेवा सब करती ।सबसे हँसती- बोलती।किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी ।अपाहिज़ पति की तेल मालिश करती। उसको नहलाना -धुलाना,समय से दवा -दारू,भोजन- पानी सब देती।सभी लोग उसकी पति- भक्ति देखकर चकित होते।उसका पति बीमारी की वजह से इतना चिड़चिड़ा हो गया था कि उसे खूब परेशान करता।वह उसे ब्रश करने को कहती तो ब्रश फेंक देता और जब वह उसके मुंह में अंगुली डालकर जबरन उसके दांत माजती तो उसे दांत काट लेता।उस पर थूक देता।टट्टी-पिशाब आती तो बताता नहीं था,बिस्तर ही खराब कर देता।सुगनी बिना माथे पर शिकन लाए उसकी गंदगी साफ करती ।उसे साफ और स्वच्छ कपड़े पहनाती।पर यह सिर्फ उसके दिन का रूप होता था। रात होते ही जैसे वह कोई और हो जाती।जैसे उसमें किसी और कि आत्मा समा जाती हो।कितनी भी ठंड हो वह रात को नहाती और फिर घण्टों साज -श्रृंगार करती फिर अपने कमरे में बंद हो जाती।किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि उसका दरवाजा खुलवाए।कमरे के भीतर से सुगनी के हँसने- खिलखिलाने की आवाज आती,पर कोई पुरुष स्वर कभी सुनाई नहीं पड़ता था।एक बार सास ने सुगनी के कमरे के भीतर झांकने की कोशिश की तो उसके गाल पर झन्नाटेदार तमाचा पड़ा।प्रहार इतना तेज था कि सासु के सारे दांत जमीन पर बिखर गए।अब वे नकली दांतों के सहारे जी रही थीं ।सुगनी के सास -ससुर जान गए थे कि सुगनी पर किसी ऊपरी ताकत का साया है।
पर वे और उनका लकवा-ग्रस्त बेटा सुगनी पर ही आश्रित थे,इसलिए उन्होंने हालात से समझौता कर लिया।
सुगनी की कोई संतान नहीं हुई। पड़ोसी उसे तंत्र -मंत्र वाली समझकर उससे दूर रहते थे।ज्यादा पढ़े -लिखे लोगों के अनुसार सुगनी को कोई मनोवैज्ञानिक बीमारी थी पर वे भी इस सत्य से इनकार नहीं कर पाते थे कि अगर बिना किसी कमाई के सुगनी करोड़पति बन गई है ,तो अवश्य ही कहीं कुछ झोल है।हो सकता है सुगनी के हाथ कोई गड़ा खजाना लग गया हो या फिर सच ही उसका कोई अमीर प्रेमी हो।पर सभी यह भी स्वीकार करते थे कि सुगनी चरित्रहीन नहीं हो सकती।उसकी बोलचाल, बात- व्यवहार में एक विनम्रता और सच्चाई है।
सुगनी अपनी पूरी उम्र जीकर मरी थी । वह आज भी रहस्यमयी शख्शियत के रूप में ही जानी जाती है।