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बहेलिया विपिन कुमार शर्मा

बहेलिया विपिन कुमार शर्मा

प्रयोगात्मक पहल कहानी संग्रह

रामगोपाल भावुक

विपिन कुमार शर्मा का कहानी संग्रह बहेलिया सामने है। कलात्मक कबर पृष्ठ पर बहेलिये नाम पढ़कर चित्त कलात्मक तरीके से बहेलिये के बारे में सोचने लगा। इसकी कहानियाँ निश्चय ही कलात्म ढंग से कही गईं होगीं। बहेलिये कहाँ नहीं हैं। पशुता के प्रतीक इस नाम के कारण इस कृति के पन्ने पलटना शुरू कर दिये।

इसकी पहली कहानी बहेलिये पढ़ने लगा-हम जिन प्रश्नों से बचना चाहते हैं, वे ही प्रश्न संधान बनकर सामने आ जाते हैं तो वह उनसे बैसे ही बचकर भागना चाहता है जैसे बहेलिये के डर से शिकार भागता है।ं

जिस समय वह इन्टरव्यूह देने जाता है इन्टरव्यूह में उससे ऐसे ऐसे प्रश्न किये जाते है कि वह हर प्रश्न से आहत होता है। इन्टरव्यूह लेने वाले भी उसी रूप में प्रश्न करते हैं जैसे वे किसी शिकारी से कर रहे हैं। यही व्यथा कथा इस कहानी में संजोई गई है।

हर शाखा पर उल्लू बैठा है। इस कहानी को लेखक नाटक के रूप में शुरू करता है। मछली का शिकार करने वाले अपना काँटा डालकर किनारे पर बैठ जाते हैं कि कहीं कोई मछली उसमें फँसे।

ए. बी. सी. डी. इत्यादि रूप के मछुआरे लड़की रूपी मछलियों को फसाने में लगे हैं। वे मछलियाँ भी कम नहीं हैं। चकमा देना जानतीं हैं। जब उन्हें काँटे में फसना होता है तभी फसतीं हैं। ऐसी ही उधेडबुन की यह कहानी है।

जिन्दगी! ऐ जिन्दगी बेरोजगार पुत्र की पीड़ा की कहानी है। पिता पुत्र में राजकीय नोंक- झोंक कहानी की पर्तें खोलता रहता है किन्तु एक दिन ऐसा आता है कि जब पिता को छटनी में नौकरी से निकाल दिया जाता है। पिता इस बात को पुत्र से छुपाये रखता है। जब शेखर को यह बात पता चलती है तो उसे इससे बहुत दुःख होता है। वह कमरे में जाकर अपने को बंद कर लेता है।माँ उससे भोजन करने के लिये दरबाजा खोलने के लिए कहती है। वह फिर भी दरबाजा नहीं खोलता है। उसके पिता उसे समझाते हैं।रात में खाना नहीं खाने से उसके पिता जी भी खाना नहीं खाते हैं। जब सुबह पुत्र यह बात सुनता है तो वह रोने लगता है।

कहानी में चल रही नोंक झोंक में इससे विराम लग जाता है।

कहानी मुक्ति प्रसंग लेखिकाओं के लिये लिखी गई है। जो मुक्ति प्रसंग के नाम पर समाज को अश्लीलता परोस रही है। ऐसी स्त्रियाँ समाज में दो प्रतिसत से अधिक नहीं होंगीं। यानी 98 प्रतिसत को छोड़कर क्या दो प्रतिसम के लिये ये कहानियाँ हैं।

इसमें लेखिका का चिन्तन बंदनीय है- यह देह हमारी है। हम इसका जैसा चाहें इस्तेमाल करें। किसी के बाप का क्या जाता है? इस कहानी के माध्यम से लेखक ने दलित साहित्य के बारे में अपने विचार रखे हैं। यथार्थवादी सोच के लिये लेखक को बधाई।

लेखिका से स्त्री कथा अंक के लिए कहानी की माँग आई है पर वे अपनी लाड़ली बिटिया के परीक्षा में आये नम्बरों से परेशान है उधर पति देव भी उसके साहित्य के अवदान को नहीं समझ रहे हैं। वे तो अपनी भूख मिटाने उसे अपनी ओर खीच लेते हैं और वह उपेक्षित सी पड़ी रह जाती है।

जब लेखिका को सारी वास्तविकता समझ में आती है तो उसे असली कहानी का प्लाट मिल जाता है।

इस कहानी में लेखक ने उन कहानी लेखिकाओं को सचेत किया है जो झूठी बनावटी कहानी लिखकर वाह वही लूटना चाहती है। विषय चयन के लिये लेखक को बधाई।

उदास मौसम के लिए कहानी में राजनीति ने अपने स्वार्थ के लिए जातियों के घेरे बना लिए हैं। विहार प्रान्त की ऐसी राजनीति देश के सारे हिस्सों में पसरती जा रही है।

सूवेदार सूर्यदेव सिंह अपने पत्र में मेजर को लिखते हैं- गाँव में जाति से अधिक खतरनाक जाति की राजनीति हो गई है।

वे गाँव में रहकर गाँव के लोगों को शिक्षित करने लगते हैं। उनके पुत्र पुत्री भी इस काम में लग जाते हैं। इससे गाँव के लोग उनके सहयोगी हो गये हैं।

चुनाव आने वाले हैं। हर गाँव कस्वे की तरह लोग सेवा भाव में भी राजनीति की गंध देखते हैं। कुछ ही समय में कुछ विरोधी लोग विरोध करने उनके सामने आ जाते हैं।

जब उनकी बेटी की वेइज्जती कर दी जाती है तो मुन्ना संदीप की सेना का सहारा लेता है। गाँव में मारकाट मच जाती है। सूवेदार सूर्यदेव सिंह की हत्या कर दी जाती है। मेजर साहव मुन्नी को अपनी बहू बना कर ले जाते हैं लेकिन मुन्ना गायव हो जाता है। मुन्ना की लिखी चिटठी डाकिया बीरान हवेली में डाल आता है।

करुआ को वह चिटठी मिलती हैं वह पढ़ी जाती है-‘मैं जिस रास्ते पर चला था वह रास्ता सही नहीं है बाबा। वह खाई हैं

लगता है लेखक इस व्यथा-कथा का साक्षी रहा है।

लेखक की अंधेरा जीत लेंगे अपेक्षकृत लम्बी कहानी है। इसमें लोग आदित्य एवं उसकी पत्नी के पिता और उनके मित्र पर दवाब डालते है कि ऐसा पत्र नहीं लिखें जिससे हजारों मजदूर भड़क जायें। वंदना चाहती है कि वे उसके पिता की बात मानकर लिखने की धारा बदल दें।

वह लिखना बंद तो कर देता है लेकिन इससे वह पागल सा हो जाता हैं कहानी में पत्नी का प्यार एक ओर है दूसरी ओर है लेखक की पीड़ा। दोनों के विचारों की टकराहट ही कहानी हैं

जीने की बजह तलाशती- सी जिंदगी कहानी एक लड़की और उसकी माँ के बीच जिन्दगी की तलाश करती कहानी है।

रात की दहलीज फलाँगती-सी शाम जैसे वाक्यों के प्रयोग ने कहानी में जीवन्तता ला दी है।

संकलन के अंत में ‘अविश्वास एक यातना है’ कहानी दो सगे भाइयों द्वारा एक लड़की के बलात्कार की खबर छपी। जब वह सड़क पर अपने मित्र के साथ जा रहा था तों वह अपने को कुछ लड़कियों के मध्य पाता है। वे लड़कियाँ विरोध व्यक्त कर रहीं है कि उस बच्ची के साथ बलात्कार क्यों हुआ?

यह भावुकता पैदा करने वाली कहानी हैं

विपिन जी की कहन वड़ी रोचक हैं। अंग्रजी के शब्दों को पचाकर उनका सहजता से प्रयोग किया है जिससे वे अंग्रजी कें शब्द न लग कर हिन्दी के लगने लगते हैं। यों हिन्दी कें विस्तार की भूमिका का निर्वाह करते हुये लेखन में सतत प्रयास रत हैं। वे जो बाते कहना चाहते हैं उन्हें पाठक के जहन में उतार देते हैं। आपकी भाषा सहज सरल, छोटे छोटे चुदीले वाक्य पाठक को बाँध रहते हैं। आप संबाद अथवा स्क्रिप्ट लेखन में आँगे बढ़़े तो निश्चय ही सफल हो सकते हैं। आपने अपनी कहानियों के लिए विषय बस्तु का चयन बहुत ही सोच समझ कर किया है। लग रहा है आप इसी तरह प्रयोगात्मक पहल करते रहे तो निश्चय ही हिन्दी जगत में अपना स्थान बना लेंगे। धन्यबाद।

सम्पर्क- रामगोपाल भावुक कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र. 475110 मो0 9425715707

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