नौकरानी की बेटी - 43 RACHNA ROY द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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नौकरानी की बेटी - 43

आनंदी ने कहा हां दीदी मैंने अपनी कहानी का नाम समर्पण इसलिए रखा क्योंकि जो मैं जो कुछ भी हुं वो कहीं ना कहीं आपकी और मां की समर्पण की वजह से ही। मैं जो चाहती थी वो ही हुआं और जब मेरा सपना सच हो गया तो मैंने कहानी का नाम समर्पण रखा क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हुं वो सिर्फ आपके साथ की वजह से, आप के समर्पण की वजह से। और फिर कहानी जो भी पढ़ेंगे वो समझ जाएंगे कि मैं इस कहानी के द्वारा सबको क्या सन्देश देना चाहती हुं।
रीतू ने कहा वाह क्या बात है मुझे बहुत ही खुशी है कि आज तुम उस ऊंचाई पर पहुंच गई हो जहां शायद ही कोई पहुंच पाता है। आनंदी ने कहा दी आप मुझे कहा से कहा पहुंचा दिया।
और फिर समर्पण एनजीओ खोलने के बाद आज वो किस बुलंदी पर पहुंचा है वो भी तो महत्वपूर्ण है।।
आज मैं आपको और सभी को सत् नमन करती हुं कि आपलोगो यहां तक मेरा साथ दिया मुझ पर विश्वास किया।


रीतू ने कहा आज रूलाऐगी क्या?

शैलेश ने कहा क्यों ना कल आउटिंग करते हैं। थोड़ा सा चेन्ज भी होगा और बाहर खाना पीना हो जायेगा।
अन्वेशा और शना ने कहा हां चलते हैं।
फिर सभी तैयारियां करने चले गए। आनंदी ने कहा हां ठीक है लेकिन कुछ देर के लिए मुझे जाना होगा।

दूसरे दिन सुबह सब जल्दी से तैयार हो कर शैलेश ने अपनी बड़ी गाड़ी मंगवा लिया और फिर सभी निकल गए।

लंदन को फिर से आनंदी ने महसूस किया और कहा वाह वाह क्या बात।।

रीतू ने कहा आनंदी बहुत लम्बे समयांतराल बाद ही तुम आईं।

आनंदी ने कहा हां दीदी एक पड़ाव बीत गया।

आनंदी बहुत ही खुश थी क्योंकि उसे अब सब कुछ अच्छा लग रहा था।

फिर सभी लंदन के कुछ गाडॉन पर जाकर बैठ गए और खुब सारी फोटो भी लिया।
फिर सभी एक बड़े से होटल में गए।
वहीं पर लंच आॅडर किया।
अन्वेशा और शना भी अपने में बातचीत करने लगी।
फिर खाना सर्व हो गया और सभी बहुत मन से खाना खाने लगे।

फिर वहां से निकल कर एक दो जगह घुमने के बाद सभी घर वापस आ गए।

आनंदी ने कहा शैलेश जी आपको बहुत आभार।।

रीतू ने कहा क्या आनंदी तुम भी ना।

फिर सभी थक गए थे और जाकर सो गए।

दो दिन बाद रीतू,शना और शैलेश अपने घर लौट गए।

आनंदी का किताब समर्पण आज पुरे देश में फ़ैल चुका था। बड़े बैनर पर बिक्री भी होने लगी थी। आनंदी की वो किताब आज एक बहुत बड़ा रूप ले चुका था। बहुत ही जल्द ही सारे एडिशन लॉन्च हो गए और फिर प्रकाशित के बाद ही बिक्री होने लगी।देश विदेश में फ़ैल गया था
कुछ दिन बाद ही आनंदी को किताब के पैसे आने लगें ‌। आनंदी ने सारा पैसा ही समर्पण एन जी ओ में दे दिया। आनंदी का मानना था कि इस पर सिर्फ उन बच्चों का अधिकार है जिस चीज के लिए आनंदी को कठिनाई झेलना पड़ा था वो आज इन बच्चों को नहीं हो।उनका सपना साकार हो। आनंदी ने बताया कि वो इन बच्चों को सब कुछ सिखाना चाहती है जो वो सिखना चाहते हैं।

फिर एक दिन एक लैटर आ गया आनंदी को सम्मानित करने के लिए बुलाया गया उस किताब के लिए जिसने करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बना लिया था। आनंदी खुशी से रोने लगी और फिर बोली की मां मैंने नहीं सोचा था कि मेरी कहानी को लोग इतना पसंद करेंगे।
अन्वेशा ने कहा हां मां क्यों नहीं मुझे पता था कि ये दिन जरूर आएगा।
आनंदी ने कहा कल हमें जाना होगा। ये सारे पास भी मिले हैं क्यों नहीं रीतू दी को भी बोल दे। कृष्णा ने कहा हां ज़रूर इतना बड़ा दिन है। फिर आनंदी ने रीतू को फोन पर सब कुछ बता दिया। रीतू भी खुश हो गई और फिर बोली हम भी आएंगे जरूर।
फिर दूसरे दिन सुबह सब तैयार हो कर लंदन में स्थित एक बहुत बड़े होटल में ये आयोजित किया गया था। जहां पर आनंदी का स्वागत तालियों के साथ हुआ और फिर एक स्वर्ण पदक दिया गया और फिर आनंदी ने कुछ कहा। फिर सभी लोग आनंदी से मिलने को तत्पर थे। तालियों की गूंज उठी विश्व में।
आनंदी को उसके किताब के लिए सम्मानित भी किया गया और उसकी किताब वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था।

बहुत ही कम समय में समर्पण किताब बहुत ही प्रसिद्ध हो गया था और आनंदी को उसकी मेहनत का परिणाम भी मिल गया।
किताब छपने पर अब लाखों रुपए मिलने लगें

जहां कोई तकलीफ़ में होता वहां आनंदी उसका सहारा बन जाती और उसका सहयोग करने लगती।

समर्पण एनजीओ अब हर के गांव और हर एक शहर में बस चुका था। हजारों की तादाद में बांच खुल गए थे।


अब कोई भी बच्चा अनाथ और बेसहारा नहीं रहेगा और ना ही अशिक्षित रहेगा ये बात आनंदी ने कहा था और आज कर दिखाया।


अन्वेशा भी मेडिकल की सारी परिक्षाओं में सफलता प्राप्त करने लगी थी।

उसको भी युनिवर्सिटी में टापर्स स्टुडेंट ऑफ द ईयर टाइटल का पुरस्कार भी हर बार मिलता था।

आनंदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अब वो हर एक बच्चे को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य एवं उसके योग्यता अनुसार पढ़ाई पूरी करने में सहायता करेंगी और फिर रोजगार भी दिलायेगी।

तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो।।

ये कहावत आनंदी ने हर एक इंसान तक पहुंचाने की कोशिश की।


अन्वेशा ने कहा मां लंदन आज दो साल बीत गए।

आनंदी ने कहा हां अन्वेशा हमें तो फिर वापस भी जाना होगा।

कृष्णा ने कहा हां आनंदी।
आनंदी ने कहा हां मां देखो अन्वेशा की पढ़ाई खत्म होते ही हम वापस तो जायेंगे।
फिर अगर अन्वेशा एम डी करेंगी तो फिर हमें रूकना होगा।

अन्वेशा ने कहा क्या मैं अकेले नहीं रह सकती हुं।
आनंदी ने कहा हां दीदी के साथ रह सकती हो।
अन्वेशा ने कहा हां मां आप चिंता मत करो।

आनंदी ने कहा हां चिंता तो होगी ही बेटा।

कृष्णा ने कहा हां देखो क्या होता है इसकी शादी भी करवाना होगा।
अन्वेशा ने कहा क्या नानी आप भी।

आनंदी ने कहा देखो बेटा अगर कोई है तो बता देना हां।

अन्वेशा ने कहा हां मां जरूर।



फिर एक दिन अन्वेशा ने अपने एक दोस्त को लेकर घर आ गई और बोली मां ये चेतन है।
आनंदी ने कहा अच्छा सिर्फ दोस्त।।

अन्वेशा ने कहा नहीं मां हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं।
मेडिकल कालेज में दाखिला के टाइम से।

आनंदी ने कहा हां ठीक है पर चेतन कौन कौन है तुम्हारे साथ।।

चेतन ने कहा मैम में अनाथ हुं।
पर मेरे हजार बच्चे हैं वो भी स्पेशल।।

आनंदी ने कहा हां बहुत ही अच्छा लगा बेटा ये सुनकर की तुम भी सबकी मदद करते हो।

चेतन ने कहा हां मैम मैं एक टूलिप स्कूल चलाता हूं।

आनंदी ने कहा वाह बेटा बहुत ही अच्छे संस्कार है तुम्हारे अन्दर।।

अन्वेशा ने कहा हां मां चेतन मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को पढ़ाया करता है।

आनंदी ने कहा हां आई फिल वैरी प्राउड की अन्वेशा ने तुमको चुना है अपने जीवन साथी के रूप में।।

चेतन ने कहा मैम मैंने भी बहुत कुछ आपसे सिखा है।
अन्वेशा हमेशा आपकी बातों को बताया करतीं थीं और तभी से।।

आनंदी ने कहा अच्छा बेटा चलो खाना खा ले।

फिर सभी मिलकर खाना खाने बैठ गए।

क्रमशः