नौकरानी की बेटी - 42 RACHNA ROY द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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नौकरानी की बेटी - 42

फिर सभी के साथ आनंदी ने बहुत ही अच्छे से समय बिताया लंदन में।

और फिर एक हफ्ते बाद आनंदी लोग अपने बंगले में लौट गए।

कृष्णा ने कहा आनंदी किसी रोज़ सबको खाने पर बुलायेंगे।

आनंदी ने कहा हां मां जरूर। मुझे एक दिन कालेज भी जाना है।

सबसे मिलने के लिए पर इस बार मैं आराम करूंगी।

अन्वेशा ने कहा हां मां।
आनंदी ने कहा इस बार मैंने सोचा कि कहानी लिखुं।

और फिर जब भी समय मिलता आनंदी कहानी लिखने लगती थी।उसे कहानी लिखने में विशेष रूचि हो गई थी। एक दिन कृष्णा ने कहा अच्छा ठीक है आनंदी अपने सेहत का ख्याल तो रखा करो। आनंदी ने कहा हां मां मैं ठीक हूं।बस एक कहानी पुरी हो गई है।

फिर इसी तरह लंदन में एक महीने बीत गए। और फिर आनंदी ने लंदन में भी समर्पण एनजीओ खोल लिया।
और बहुत ही जल्दी कामयाबी हासिल हो गई।।
आनंदी ने बहुत ही कम समय में छोटे छोटे बच्चों को एक नया जीवन देने के लिए बहुत ही मेहनत किया और फिर उसका एन जी ओ भी काफी कम समय में एक जगह बना लिया था। आज हर जगह सब सुरक्षित महसूस कर रहे थे कोई भी बच्चा अकेला और बेसहारा हो कर नहीं घुम रहा था। आनंदी ने वो कर दिखाया जो वो सोचती थी। और उन सभी बच्चों को आत्म निर्भर बनने के लिए एक अलग से क्लास भी दी गई थी। और विशेष रूप से लड़कियों को अपनी आत्म रक्षा कैसे करनी चाहिए ये भी सिखाया जाने लगा। इसके लिए लड़कियों को ट्रेनिंग बैल्क बैल्ट की विशेषताएं बताई गई।

फिर बहुत जल्दी अन्वेशा का एडमिशन मेडिकल कॉलेज में हो गया।

अन्वेशा ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर दिया और साथ में कोचिंग क्लास भी जोय्न किया था। अन्वेशा भी हर चीज में आनंदी जैसी ही होती जा रही थी कहते हैं कि खून का रिश्ता ही सब कुछ होता है पर यहां पर एक मां की ममता के साथ, साथ एक अच्छी परवरिश एक अच्छी शिक्षा और फिर एक साकारात्मक पहलु ही इन्सान को कहां से कहां तक पहुंचा सकता है।।


एक दिन आनंदी ने अपने कालेज और युनिवर्सिटी में जाकर सभी से मिलने पहुंची।

सभी ने आनंदी का बहुत ही सम्मान किया। दुसरी तरफ समर्पण एनजीओ की सफलता से बहुत ही आनंदी की वाहवाही हुई।


आनंदी देखती रहती कि अन्वेशा बहुत ही मेहनत से पढ़ाई करती रहती थी।। आनंदी ने कहा मां अन्वेशा की मेडिकल की पढ़ाई बहुत ही कठिन होता जा रहा था।वो कर पाएंगी ना? कृष्णा ने कहा हां ज़रूर कर पाएंगी बेटा एक समय तो शायद मैं सोचा करती की आनंदी कर पाएंगी पर आज मुझे गर्व होता है कि तू मेरी बेटी है। आनंदी ने कहा हां मां सच कहा आपने मैं भी सब कुछ हासिल कर पाईं हुं तो अन्वेशा भी करेंगी ‌।
और दूसरी तरफआनंदी ने अपनी एक और इच्छा को साकार करने के लिए रात को ही आनंदी इत्मिनान होकर लिखा करतीं थीं।
आनंदी ने अभी तक अपनी कहानी का नाम नहीं बताया था।
सभी उत्साहित थे कि आनंदी की कहानी कब प्रकाशित होगी।
अन्वेशा ने वो कर दिखाया जो शायद एक सगी बेटी भी नहीं कर पाती। आनंदी के सोचने से पहले ही अन्वेशा ने आनंदी का किताब प्रकाशित करने दे दिया था। और फिर एक दिन अन्वेशा ने कहा मां आप सभी को घर में बुला लिजिए फिर हम कुछ करते हैं। आनंदी ने कहा अच्छा ये तो बहुत अच्छी बात है अन्वेशा।।
एक दिन आनंदी ने सभी को घर आमन्त्रित किया जितने भी उसके दोस्त थे लंदन में।।
उसके शिक्षक और साथी।रीतू दी और बाकी सभी को भी बुलाया।

अन्वेशा ने सारी तैयारियां जोरों शोरों से करने लगी थी।
आज आनंदी का घर फुलों से सजाया गया था। एक धीमी वादन बज रहा था।
रीतू, शैलेश और शना भी आ गए थे।

आनंदी ने बहुत ही अच्छे से सब कुछ अरेंज किया था।

फिर मेहमान धीरे धीरे आने लगें।।सभी सोच रहे थे कि आनंदी क्या करने वाली है।
क्यों पार्टी रखी थी। सभी फुलों का गुलदस्ता भेंट दे रहे थे।

कुछ देर बाद ही अन्वेशा ने माइक लेकर कहा कि दोस्तों आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं आज हम सब यहां इक्कठा हुए हैं और आप सभी को कौतूहल हो रहा है कि क्या बात है।
और कुछ नहीं बोले मैं मां को कुछ कहने के लिए बोल रही हुं।
आनंदी ने माइक लेकर कहा कि मैं आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रही हुं कि आज सभी लोग यहां उपस्थित हुए हैं।
मैं अब उम्र की एक ऐसी दहलीज पर पहुंच गईं हुं कि अब सब कुछ मुझे अच्छा लग रहा है।
आज मैं कुछ विशेष आप लोगों के लिए लेकर आई हुं।

सभी ने ताली बजाकर स्वागत किया।

फिरआनंदी ने कहा कि आज जो कुछ भी किया है वो अन्वेशा ने किया है। अन्वेशा ने फिर एक दिवाल पर प्रोजेक्ट चलाने को कहा।

फिर सभी उपस्थित लोगों ने बहुत ही अच्छे से वो प्रोजेक्ट देखा।
जिसने आनंदी की जीवन यात्रा पर एक फिल्म बना था और बनाने वाला कोई और नहीं उसकी अन्वेशा थी।

सभी लोग बहुत ही उत्साहित होकर वो फिल्म देख रहे थे।
तालियों की गूंज पुरे घर में चहक उठा था और फिर फिल्म समाप्त हो गई।

आनंदी के आंखो में खुशी के आंसु झलक रही थी। कृष्णा भी रोने लगी थी क्योंकि उसमें एक सात साल की आनंदी कि जीवन से जुड़ी हुई सभी फोटो को शेयर किया गया था। आज कल सबकुछ सोशल मीडिया पर बहुत ही आसानी से मिल जाता है।
फिर आनंदी ने कहा आज मेरी साधना पुरी हो गई और आज मेरी कहानी का पहला संकलन आप सभी लोगों को देना चाहती हुं।
इसको मैंने पुरी तरह से गोपनीय रखा था।पर मेरी बेटी ने कब इसको प्रकाशित करवाया मुझे कुछ भी पता नहीं चल पाया। मैं आज इसका एक -एक कापी मैं आप सभी को देना चाहती हुं।

फिर आनंदी ने कृष्णा और रीतू के हाथों से किताब का उद्घाटन करवाया । सभी उपस्थित लोगों ने बहुत ही खूबसूरती से अभिनन्दन जताया।

और फिर अन्वेशा ने एक- एक करके सभी उपस्थित लोगों को वो किताब दिया।

किताब का नाम समर्पण रखा था आनंदी ने।।

सभी बहुत भावुक हो कर किताब को देखने लगें।

रीतू भी बहुत खुश हो कर रोने लगी। फिर अन्वेशा ने कहा अब सभी को मैं खाना खाने के लिए आमंत्रित करती हुं।

फिर सभी अतिथियों को दोपहर का भोजन कराया गया।

आज विशेष भोजन आनंदी और अन्वेशा ने मिलकर बनाया था।

दाल, कढ़ी वरी, पनीर लबाबदार, रूमाली रोटी, पुलाव, आलू पालक, वेज़ राइज, चटनी, गाजर का हलवा। खाना एक दम देसी घी से बना था।

सभी खाना खा कर बहुत ही तारीफ करते हुए थके नहीं।

फिर सभी लोग चले गए।

आनंदी ने कहा रीतू दी आप लोग दो दिन रुक जाओ।
रीतू ने कहा हां और क्या रूकने ही आईं हुं।

आनंदी ने गले से लगाया और कहा दीदी आज मै जो कुछ भी हुं वो आपकी वजह से हुं।
वरना मैं एक नौकरानी की बेटी ही रह जाती।


कृष्णा ने कहा हां आनंदी ने ठीक कहा।।
फिर सभी मिलकर बातें करते करते सो गए।


शाम को सभी चाय पीने लगे और फिर आनंदी को सभी का फोन आने लगा और बधाईयां मिलने लगीं।

घर पर भी बहुत से प्रियजनों ने फुलों का गुलदस्ता, कार्ड भी भेजा।

आनंदी का स्टडी रूम पुरे फुलों से भर गया था।

शैलेश ने कहा आनंदी समर्पण ने तो कमाल कर दिया मैंने कुछ पन्ने पढ़ा हां बहुत ही उनदा लिखा है।

अन्वेशा ने कहा हां मौसा जी आप ने ठीक कहा।

रीतू ने कहा अच्छा अन्वेशा इतना अच्छा डायरेक्टर कैसे बन गई।अन्वेशा हंसने लगी। और फिर बोली मासी आप से ही सिखा है।

फिर सभी आनंदी की कहानी के बारे में बात करने लगे। डिनर करते हुए फिर रीतू ने कहा आनंदी तूने कहानी का नाम समर्पण ही क्यों चुना?


क्रमशः