कनबतियाँ और जोग लिखी एक कथाकार के आइने में
रामगोपाल भावुक
महेश अनघ जी का नवगीत संग्रह साभिप्राय कनबतियाँ पढ़ने का सौभाग्य मिला। भावानुभूतियों की गहनता लिए हुए यह नवगीत संग्रह उनकी अनेक अनुभूतियों से रू-ब-रू हुआ।
हरी भर उम्मीदें हैं
लय भी है वंदिश हैं।
खारे जल से मैं खुसियों के
पाँव पखारा करता हूँ।
एक सौ एक नवगीत संग्रह के माध्यम से उनकें नवगीतों से परिचित हुआ। निश्चय ही अनघ जी की काव्य साधना उनकी अपनी पहचान बनकर बोलने लगी है।
गीतांजली की तरह ‘कनबतियाँ’ में भी गीतोंकी गिनती दी है।शायद इसी परम्परा का गीतकार अनघ जी ने निर्वाह किया है।
काश! समकालीन गीतकारों में से किसी का नाम लेते तो अधिक सार्थक होता। सम्भव है वे किसी को इस लायक नहीं मानते होंगे। मोवाइल नम्बरों की तरह ये गीत अपना अपना स्वतंत्र अस्त्वि रख पायें।
इनका यह गीत संग्रह मेरे चित्त में कहानियाँ सी बनकर समा गया है। इसके कुछ ही समय बाद मुझे आपका कहानी संग्रह जोग लिखी सामने आ गया है।
जोग लिखी कहानी संग्रह भी कनबतियाँ की तरह व्यवस्था से रू-ब-रू करा रहा है।
अनघ जी की कहानी कहने की अपनी कला है। कथा कथन में वे लिखते हैं-कहानी को मैं आज और कल में भी नहीं बाँटता। आदमी का न तो शरीर बदलता है और न कपड़ा, केवल दर्जी बदलता है। कहानी मानव समाज का स्वभाव है क्योंकि वह एक रचना है इसलिए रिपोर्ताज नहीं हो सकती। क्योंकि वह आदमी के बारे में आदमी से आदमी का बयान है इसलिए गप्प नहीं हो सकती।
कहानी संग्रह कें दो भाग है
एक तिरिया चरित और दूसरा चोर चरित।
पहली कहानी आँकडों वाली नदी में ललिता का जीवन रेत पर मिटा मिटाकर हिसाब लिख कर मिटा रही है लेकिन हिसाब नहीं लगा पा रही है। ललिता के विवाह से लेकर मजबूरी में घर छोड़ने तक का हिसाब लगा रही है। किस चीज का कितना मूल्य लोग तो सिक्कों में तत्काल लगा देते हैं लेकिन वह उनकी कीमत नहीं लगा पा रही है। माथे के सिंदूर की कीमत लगा पाना उसकी समझ से बाहर है। उसका जीवन आँकड़ों के हिसाब से सरपट दौड़ता दिखा है और आँकड़ों में ही खो गया।
तिरिया चरित कहानी पुरुषवादी संस्कृति को पोषित करते दिखी।
रासमती का डोला, सस की हवेली, चम्पा कनेर, नकचढ़ी भवानी और तिरिया चरित लोक कथा शैली में कही कहानियाँ है। इस तरह जोग लिखी के पहले भाग की सभी कहानियो में स्त्रिी जीवन में जो चाहती है वह सब उसें प्राप्त नहीं हो पाता। कभी कभी लगता है वे अपनी चाहत तय ही नहीं कर पातीं इसीलिये चाहत पाने में फिसलती रहतीं हैं।
इसके दूसरे भग चोर चरित में आठ कहानियाँ समाहित कीं हैं। रिस्ता, तवायफ और व्याघ वध व्यवस्था की शल्य क्रिया करने में लगीं रही।
जीवन चोट्टा भूकम्प की स्थिति से निपटने के लिये एक संघर्ष कथा है किन्तु साथी की मृत्यु उसे जीवन चोट्टा का सार्थ नाम प्रदान करती है।
महेश अनध जी कथ- कथन में ही लिखते हैं- कहानी मेरी कोई गुलाम नहीं है। जो सचमुच हुआ सो सचमुच होता है, वही कहानी में कह रहा हूँ। विश्वास न हो तो अपने अपने घरों में जाकर देख लेना कि ऐसा होता है कि नहीं।
उनकी कहानियों में यही बात चरितार्थ मिली।
हाँ मैंने सम्राट अशोक होते देखा, आदमी के जीवन में घटनायें बदलाव संजोतीं हैं।
पिंजरा कहानी में पिंजरे के अन्दर की स्थिति एवं उसके बाहर का अंकन बच्चे के माध्यम सो किया है। आधुनिकता के घेरे में हम पिंजड़े की तरह कैद हैं जबकि बाहर का जो सुन्दर संसार है उसे हमने पीछे छोड़ दिया हैं
खलवंदना चाटुकार समाज पर तमाचा है।
खोल दूँ कहानी संस्कृति की टूटन की कहानी है और चोर चरित मनो बैज्ञानिक परिवेश को पुष्ट करती है।
आपकी भाषा शैली प्रतीक सा आनन्द देती एक प्रौढ़ कथाकार की तरह पुष्ट एवं भावपूर्ण है। एक एक शब्द चुन चुनकर संजोने की कला के जानकार है। आपको पढ़ने में लोक कथास सा आनन्द मिलता हैं। आपकी कहानियाँ और कहन लोक कथा सा आनन्द देतीं हैं।
निश्चय ही साहित्यकारों एवं समीक्षकों को मिल बैठ कर कथाकार महेश अनध जी का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। धन्यवाद
कृति का नाम- जोग लिखी
कृतिकार- महेश अनघ 00000
वर्ष-2009
मूल्य- 200 रु मात्र
प्रकाशक- अनुभव प्रकाशन गाजियाबाद उ. प्र.
समीक्षक- रामगोपाल भावुक
दिनांक 19.04. 2011
धन्यवाद
सम्पर्क- रामगोपाल भावुक कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र. 475110 मो0 9425715707