खंडहर की दास्तान Rajesh Maheshwari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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खंडहर की दास्तान

खंडहर की दास्तान


कुछ वर्ष पूर्व जबलपुर शहर के हनुमानताल क्षेत्र में एक वैद्य रहते थे। एक दिन रात में 12 बजे के आसपास उनके दरवाजे पर दस्तक हुयी और दरवाजा खोलने पर एक सज्जन अंदर आकर बोले वैद्य जी एक मरीज बहुत असहनीय पीडा में है। आपको चलकर उसे देखना है यह एक अशर्फी आप अपने पास रखिये। आप के इलाज के उपरांत एक अशर्फी और बतौर फीस दे दी जाएगी। वैद्य जी अशर्फी का मूल्य समझते थे और वे तुरंत ही उसके साथ अपना झोला लेकर चल पडे़ जिसमें आपातकालीन दवाएँ थी।
वे सज्जन बिना कोई बातचीत किये चुपचाप आगे बढ रहे थे और उनके पीछे पीछे वैद्य जी भी चल रहे थे। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि उस व्यक्ति के दोनेा हाथ नही दिख रहे थे। उन्होने इसको अपना दृष्टिभ्रम समझा और चुपचाप चलते रहे। वह व्यक्ति उन्हें उस हवेली में ले गया और ऊपर की ओर सीढी चढ़ने लगा यह देखकर वैद्य जी ठिठके और उन्होने पूछा कि तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो ? यहाँ तो पहली मंजिल के बाद कोई भी नही रहता है। उसी समय उन्हें आभास हुआ कि उनके पीछे एक आदमी और आ गया है और वे दोनो उन्हें इशारा करके ऊपर चढने के लिये कह रहे हैं। वे उनकी बात मानकर चलते रहे और तीसरी मंजिल पर पहुँच गये।
वहाँ पर जीने से बाहर आकर बरामदे का दरवाजा खुलने पर अंदर का दृश्य देखकर वे हतप्रभ हो गये वहाँ दिन के उजाले के समान रोशनी जल रही थी, खूबसूरत झाड़ फानूस टंगे हुये थे कुछ लोग हाथ से पंखा चला रहे थे और वहाँ की आंतरिक साज सज्जा देखकर वैद्य जी भौचक्के रह गये। हाल के बीचों बीच एक खूबसूरत औरत जिसके पैरों में घुंघरू बंधे हुये थे, लेटी हुयी थी और पेट दर्द के कारण कराह रही थी। वैद्य जी ने उसे कुछ दवा दी जिससे आश्चर्यजनक रूप से वह आधे घंटे में ही काफी ठीक हो गयी। वैद्य जी ने उसे अगले दो दिन की दवाई बनाकर दे दी। जो व्यक्ति उन्हें वहाँ पर लेकर आया था उसने अपने वादे के अनुसार एक अशर्फी उन्हें बतौर फीस देकर कहा इस घटना का जिक्र आप किसी से भी किसी भी परिस्थिति में कहीं पर भी नहीं करंेगें अन्यथा इसका परिणाम बहुत घातक होगा। वैद्य जी उनसे विदा लेकर तेज कदमों से चलते हुये अपने घर पहुँच गये।
वैद्य जी को रात भर नींद नही आयी और वे इस घटना का विश्लेषण करते रहे। दूसरे दिन सुबह होते ही वे क्षेत्र के मुखिया के पास गये और इस अद्भुत घटना की जानकारी दी। यह सुनकर वे बोले कि वैद्य जी आज सुबह सुबह कौन सा सपना देखा है मुझे तो आपने बता दिया लेकिन किसी और से ऐसा मत कहियेगा अन्यथा लोग आपको पागल और सिरफिरा कहने लगेंगे। वैद्य जी ने तुरंत अपनी जेब से दोनो अशर्फियाँ निकालकर सामने रख दी और बोले ये इस बात का सबूत है कि मैं मनगढंत बातें नही कह रहा हूँ।
मुखिया जी यह सुनकर चार पाँच लठैतों के साथ वैद्य जी केा लेकर हवेली की उस मंजिल पर पहुँचे तो सभी ने देखा कि उस कमरे में ताला लटक रहा था। बड़ी मुश्किल से उसको तोड़कर दरवाजा खोला गया। उस कमरे के अंदर चमगादड़ लटक रहे थे धूल की परत जमी हुयी थी, दीवारांे का चूना उखड रहा था और अजीब सी गंध फैली हुयी थी। वैद्य जी यह देखकर भौचक्के रह गये और उनसे कुछ भी कहते नही बन रहा था। सभी लोग वापिस आ गये मुखिया जी ने वैद्य जी को घर जाकर आराम करने की सलाह दी। उन्होने अशर्फियों की जाँच करवायी तो वह असली पाई गयीं। जिसे उन्होेने वैद्य जी को सौंपकर हँसते हुये कहा कि हम लोगों को भूत प्रेतों के दर्शन ही नही होते, आपकी मुलाकात होकर बातचीत भी हुयी और आपने उनका इलाज करके अशर्फी भी प्राप्त कर ली।
दूसरे दिन वैद्य जी रोते हुये मुखिया के पास पहुँचे और उन्हें बताया कि रात्रि में अचानक उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई उन्हें बेतहाशा मार रहा हो परंतु दिखाई कोई भी नही दे रहा था इसलिये मैं अब इस शहर में नही रह सकता हूँ और यह शहर छोडकर जा रहा हूँ। वह हवेली आज भी खंडहर के रूप में सुनसान पडी है और कोई भी व्यक्ति प्रेतात्माओं के डर से उस हवेली के पास फटकता भी नही है।