मैं किन सपनों की बात करूँ - श्याम सुन्दर तिवारी ramgopal bhavuk द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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मैं किन सपनों की बात करूँ - श्याम सुन्दर तिवारी

मैं किन सपनों की बात करूँ

समीक्षक- रामगोपाल भावुक

श्याम सुन्दर तिवारी की कृति ‘मैं किन सपनों की बात करूँ शिवना प्रकाशन सिहोर से वर्ष 2020 में प्रकाशित होकर आई है।

याद आ रहा है वह समय जब सबसे पहली बार आदमी ने झरने का गीत सुना होगा। सर सर बहती हवा के स्वर को पहचाना होगा। गड़गड़ाते बादलों की आवाज में किसी स्वर की अनुभूति हुई होगी। इसी रिद्म में उसने गुनगुना शुरू किया होगा और बन गया होगा कोई गीत ।

इस कृति के फ्लेप में जीवन का दूसरा नाम ही छंद है इसीलिए जीवन में लय है, संगीत है और रागात्मकता है। इन सभी से गीत का सृजन होता है।

श्याम सुन्दर तिवारी जी ने भावों को कभी बांध कर नहीं रखा जिससे वे शब्दों की माला में गुथकर गीत बन गये हैं।

रातें बातें करती हैं, कोई तो आग जला दे।

पूरी बस्ती ठिठुर रही है,इक तीली सुलगा दे।

यह कृति छियासठ गीतों से सरसब्ज है-

कैसी है अगन हवाओं में,

अमृत घट सूख रहे मन के।।

अब तक जितने श्रंगार किये,

सारे के सारे थे तन के।।।

वे बाह्य वातावरण से ऊब कर किन सपनों की बात करूँ गीत गुनगुनाने लगते हैं- किन सपनों की बात करूँ,

सपने तो आते जाते हैं।।

एक छोर सवेरा होता है,

दूजे तट पर कालीं रातें।।

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आशाएँ लेकिन कहाँ रुकीं,

ये किसी मोड़ पर नहीं झुकीं।।

लेकिन आशा का दीप बुझा नहीं है-

इनमें किरणों की ललक छिपी,

कहतीं हैं किरणें नहीं बिकी।।

इसी तरह भाग रहा है रथ जीवन का में-

भाग रहा है रथ जीवन का।।

घूम रहा मन, मनका मनका।।

लेकिन-

खोले द्वार भोर ने हंस कर,

दोपहरी में स्वेद सपन का।।

गीत में वे अपनी बेदना उडे़लते- उड़ेलते आखिर में कह जाते हैं-

आशाओं के पल हैं जीवित,

कहना है यह खिले सुमन का।।

चाहे जैसे कोई नदी रेत के नीचे अथवा जीवन के संधर्ष का गीत हो, दोनों में-

आशाओं की दुल्हन,

हर दिन ब्याही जाती है।

साँझ और उषा की,

गुइयाँ सोहर गाती हैं।

कहाँ जान पाये हम,

उर में कितनी परतें हैं।

और घर का कोना कोना अम्मा में-

इसे गनगुनाते समय माँ का अस्तित्व उभर कर हम सभी के मनों में समा जाता है और माँ की याद में मन किलोले करने लगता है।

मीनारों की सोच और,

मन अमृत जल सा रखती हो।

बच्चों की हर एक हँसी में,

हरसिंगार सी दिखती हो।

तेरे उर का सोना अम्मा,

खरा खरा सा लगता है।।

बरसों बीत गए में पारिवारिक जीवन का सजीव चित्रण अंकित है। जब परिवेश

बदलता है तो अपना यह शहर बेगाना लगता है।

तिवारी जी घर, गाँव और देश को अपने गीतों में समेटें दिखाई देते हैं-

जड़े देश में और सुगंधें,

सात समंदरपार।।

और अगले ही गीत-

तुम कह दो तो आज बसा दूं ,

एक गाँव मैं गीतांे का।।

कह दो फिर आ जायें दिन वो ,में गाँव का सजीव चित्रण हमें अपने गाँव में ले जा पहुँचता है।

नदी तुम अब तो देह धरो में-

हम तेरे ही तो बालक हैं

मत सन्देह करो।

इसी सन्दर्भ में अगला गीत भी-

जीवन को आनन्दित करता दिखा है।

और अगला गीत-निर्मल जल से निश्छल रिस्ते में भी रिस्तों की गहराई को उजागर किया है।

ष्श्याम सुन्दर तिवारी जी ने-बर्षेगा मेघा गीत में गहरे स्नेह को पनपने का एक अनूठा सन्देश दिया है।

इन प्राणों में बसते है ये-गीत में गीतों के देह धरे स्वरूप का गहरा चिंतन है।

यथा- छू लेते हैं अन्तर मन की,

सब अनछुई किनोर ।

इसी क्रम में अगला गीत- किरन गई ये सांझ न बीते में मनके सारे कलुष को भरने का अनूठा उपक्रम है।

आँख है अब भी अलावों में गीत जीवन के अभावों को भरने की लालसा में पल्लवित है।

इसी क्रम में अगला गीत हम गुनगुनाने लगे-

बैठो दो पल पास।

चले रे मन कुछ दूर चलें को भी हमारा मन बड़ी देर तक गुनगुनाता रहा।

आज के समय को जगाने के क्रम में और बूढ़ी हुई दोपहरी का सन्देश भी समय सार्थक लगा।

गीतों की गहराई बखूबी बोलती -बतियाती दिखी जब रातें बातें करतीं हैं गीत को गुनगुनाया।

दुख सुख दो पहिए इस मन के दौड़ रहे हैं पथ पर तन के में तनके रह गया।

गीतों की धारता में कई गीत ऐसे मिले जो मन के कोने कोने को छू गये। यथा-

एक गीत में जाने कितने मीठे गीत बसे।

गीतों में दुख की लम्बाई को भी पाटने का पूरा प्रयास किया गया है।

कई गीत अनेक सन्दर्भों को लेकर चले हैं। यथा-

गर्मी की यह गहन तपन तथा जाने कितने बीत गये युग और अधरों पै मौन गीत हृदय ग्राही हैं।

गीतों में हृदय के गहरे दर्दों को भी उकेरने का अच्छा खासा प्रयास किया गया है।

यथा- झुलस गये हैं पंख तथा जाने कैसे बीत रहे हैं

और

बहुत लिख लिये सपने जीवन की अनुठी कहानी कहते हैं।

गीतों में जीवन के बिखराव को भी रेखांकित किया गया है। जैसे-

बुझा न जाना दीप अभी तुम तथा गहन अंधेरा फैल रहा है। इसी क्रम में आशा की उम्मीद लिए बोलता है गीत- किरणों ने लिख डाली धूपकी किताब।

इसके बाद भी श्याम जी मन को ढाढ़स बँधाते हुए गा उठते हैं-

यथा- सुनरे मन मत भाग तथा अब तो गाँव चलें और मन की नाव, भाव की मछली,सपनों के हर खेत में बदली।

जिन्दगी की सार्थकता पर भी उनका गीत-

टहनी पर पेड़ों की,

बेल से लिपटते हैं।

हाथ नहीं आते फिर,

दिन जो निकलते हैं।

इसी तरह की आशा का संचार करते हुए-

उजियारों ने सब चुरा लिया,

पर अंधियारे बदनाम हुए हैं।

गीत अनकही बातों को उजागर करता है।

इस तरह गीतों की छियासठवी संृखला में संभावना का यह गीत-

अब लिखूंगा मौन की आराधना के गीत मैं ।

अब लिखूंगा बस तेरी ही साधना के गीत मैं।।

जो मानव धरती को हमेशा नई दिशा की ओर ले जाने का पायदान सा है यथा

अब लिखूंगा रेत पर संभावना के गीत मैं।

अब लिखूंगा हर्ष की हर भावना के गीत मैं।।

इस तरह यह गीत संग्रह सम्पूर्ण चिन्तन के आकाश में गूंजते हुए इस धरती को भी सन्देश देता रहेगा।

गीत का उदेश्य आदमी को निराशा से बचाने का रहा है। श्याम सुन्दर तिवारी जी इसमें पूरी तरह सफल रहे हैं।

श्याम सुन्दर तिवारी जी सशक्त गीतकार है। उनके गीतों में नये- नये बिंब है। वे अपनी बात की पुष्टि के लिए नये- नये तथ्य रखते जाते हैं। आपकी भाषा भी गीतों में सराबोर है। राग रागिनियां भावों में बैठकर कोयल की कूक बन जाती है। ऐसे नवगीत संग्रह का बंदन अभिनन्दन।

कृति का नाम-‘मैं किन सपनों की बात करूँ

गीतकार- श्याम सुन्दर तिवारी

प्रकाशक- शिवना प्रकाशन सिहोर

वर्ष - 2020

मूल्य- 170रू0 मात्र

समीक्षक- राम गोपाल भावुक कमलेश्वर कॉलोनी डबरा, भवभूति नगर जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0- 9425715707