कहानी संग्रह - 14 - खेल और खेल Shakti Singh Negi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानी संग्रह - 14 - खेल और खेल

खेल जीवन के लिए बहुत आवश्यक हैं. खेलों से शरीर का विकास होता है. बुद्धि का विकास होता है. सामाजिकता बढ़ती है.


अच्छे गुणों का विकास होता है. शरीर, बुद्धि और मन स्वस्थ रहता है.




आज मेरे फ्लावर्स के संख्या एक हजार से ज्यादा पहुंच गई है. सभी फॉलोवर्स को तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद.






आज मेरी रचना चमत्कारी जिन्न को 7.50 हजार से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं. इस रचना को पढ़ने वाले सभी पाठकों को तहे दिल से धन्यवाद.





अगर हम थोड़ा अपने शरीर और दिमाग में चुस्ती लाएं. सबका भला सोचें. अपना भी भला करें. दूसरे का भी भला करें. दूसरे से सहयोग करें. दूसरे का सहयोग लें.


सकारात्मक भावना रखें तो हम यह दुनिया बदल सकते हैं. दुनिया का आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास कर सकते हैं. इस दुनिया को हम स्वर्ग बना सकते हैं.







एक बार मेंने केवल ₹1500 अपनी जेब में लिए और भारत भ्रमण के लिए निकल पड़ा. मैंने जानबूझकर कम रूपया अपनी जेब लिया था. इसलिए मैं अधिकतर पैदल ही चला. ट्रेन और बस के द्वारा भी चला.


कहीं-कहीं मैंने सस्ता होटल किराए पर लिया और कहीं पेड़ के नीचे ही रात बिताई, कहीं गांव वालों के बीच रात बिताई. मेंने पूरे भारत का भ्रमण 2 महीने में कर लिया.


₹1500 में से 200 - 300 फिर भी बच गया. इस पूरे भ्रमण में बहुत मजा आया. आपकी क्या राय है? क्या मेरी योजना सही थी?






यह दुनिया जिसने भी बनाई, शायद जादू से ही बनाई है. जो यह विज्ञान है. शायद यह भी एक जादू ही है. विज्ञान भी कुछ सीमा तक ही आगे बढ़ पाया है. अभी भी कुछ घटनाएं ऐसी हैं इस दुनिया में जो, जादुई ही लगती हैं. विज्ञान उन घटनाओं के पीछे के तथ्य तक पूरा पूरा नहीं पहुंच पाया है. सच कहे तो


विज्ञान किसी भी घटना के पीछे पूरा पूरा नहीं पहुंच पाया है. क्योंकि विज्ञान के सिद्धांत भी समय के अनुसार किसी घटना के बारे में अलग-अलग व्याख्या देते हैं. विज्ञान के नियम भी कुछ समय बाद बदल भी जाते हैं. अतः यह दुनिया एक जादुई दुनिया ही है और शायद यह जादू उस परम शक्ति ने ही किया है, जिसे सभी भगवान कहते हैं.







किसी शहर में एक आदमी रहता था. वह बहुत अमीर था. वह पैदल नहीं चलता था. वह एरोप्लेन से चलता था. उसका हर काम करने के लिए नौकर चाकर थे. यहां तक कि उसका मुंह धोने और पर्सनल काम के लिए भी नौकर ही थे. धीरे-धीरे उसने अपने कमरे से बाहर निकलना भी बंद कर दिया.


उसको नहलाते भी नौकर ही थे. 1 दिन नौकरों ने देखा कि वह एक मूर्ति बन गया है. क्योंकि वह कुछ नहीं करता था, इसलिए एक मूर्ति जैसा तो पहले से ही था. लेकिन अब वह पूरी तरह मूर्ति बन गया था. नौकर उसे अभी भी रोज नहला
ते थे. अब धीरे-धीरे उसके सामने धूप दीप भी जलाने लगे.









समय का पहिया कभी नहीं रुकता है. यह चलता रहता है. समय को शायद भगवान भी नहीं रोक सकता है. सबको समय की धारा में बहते ही जाना है.


लेकिन अच्छे कर्म करें. विकास करें. ज्ञान का अर्जन करें. सब की भलाई करें. यही समय का की असली सीख है.








एक बार मैं अफ्रीका महादेश घूमने गया. घूमते घूमते मैं अकेले ही जंगल में बहुत अंदर घुस गया. अचानक एक कबीला मुझे दिखाई दिया. उस कबीले में सब औरतें ही औरतें थी. उनकी मुखिया भी एक खतरनाक सी औरत थी. कबीले वालों ने मुझे पकड़ लिया. लेकिन मैं उन से लड़ पड़ा.


मेरी बहादुरी व सुंदरता देखकर सब कबीले की औरतें मुझ पर फिदा हो गई. फिर उन्होंने मुझे वहां का राजा बना दिया. वहां की प्रथा के अनुसार मुझे सब औरतों से बारी-बारी से आनंददायक संभोग करना पड़ता था. मैं भी बहुत खुश हुआ.











यह दुनिया परिवर्तनशील है आज दुख है तो कल सुख है. इसी तरह अगर आज दुख है तो कल सुख आना भी अनिवार्य है.


इसी तरह कभी बसंत आता है तो कभी ग्रीष्म, तो कभी कुछ, तो कभी कुछ. तो कभी पतझर भी आता है.



इसी प्रकार बचपन की अवस्था से जब जवानी के अवस्था आती है तो समझ लो बसंत आ गया है. लेकिन जब बूढ़ापे की अवस्था आती है तो समझ लो जीवन का पतझड़ आ गया है.







जासूसों का जिक्र रामायण में भी मिलता है. असल में जासूस प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रहे हैं. बड़े - बड़े राजा महाराजा जासूसों को अपने पास रखते थे.


यह जासूस शत्रुओं की जानकारी देकर राजाओं को फायदा पहुंचाते थे. अभी भी हर देश के पास जासूस होते हैं. जासूसों का रोल भी विश्व के इतिहास को बदलने वाला रहा है.








एक बार मैं रात को श्मशान घाट से होकर गुजर रहा था. अचानक मैंने देखा कि शमशान घाट में एक सुंदर सा आधुनिक, स्मार्ट शहर उग सा गया है. मैं हनुमान जी का नाम लेकर भूतों के शहर में घूमने लगा. यह आजकल के भूत थे. पहले की तरह अनपढ़ भूत नहीं थे.


इसलिए उनकी स्थापत्य कला दर्शनीय थी. चारों तरफ सुंदर-सुंदर इमारतें बनी हुई थी. नालियां, बिजली, पानी सब की अच्छी व्यवस्था थी. मैं रात भर उस शहर में घूमता रहा. सुबह जैसे ही 4:00 बजे. वह शहर विलुप्त हो गया.









मैं कुछ दिनों से टीवी पर स्वामी रामदेव जी महाराज का योगासन वाला प्रोग्राम देख रहा हूं. मैंने भी योगासन करने की ठानी. मैं इससे पहले धुआंधार गुटका खाता था.


धीरे-धीरे मैंने गुटके की मात्रा कम कर दी. आज की डेट में मैं एक गुटका सुबह एक गुटका शाम को खाता हूं. केवल कुछ ही दिनों में यह मात्रा भी बिलकुल जीरो हो जाएगी.








उत्तराखंड में अन्य प्रांतों की तरह पहले बलि प्रथा थी. हालांकि यह प्रथा बड़ी क्रूर लगती है. सरकार ने इस प्रथा को बंद किया. इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है.


लेकिन इस प्रथा का एक दूसरा पहलू भी था. अधिकतर मंदिरों में भैंसों और बकरियों की बलि दी जाती थी. बकरियां तो खाने के काम आती थी, इसलिए मंदिर उत्सव में यह एक महा उत्सव बन जाता था. और क्योंकि भैंसा उत्तराखंड में किसी काम में नहीं आता है, क्योंकि उत्तराखंड एक पहाड़ी क्षेत्र है. इसलिए भैंसा यहां किसी काम का नहीं था.


इसलिए इसे महिषासुर के रूप में वध कर दिया जाता था. इससे आर्थिक दृष्टिकोण से भैंसों की संख्या उत्तराखंड में कम हो जाती थी और किसान आर्थिक रूप से कुछ सशक्त रहता था.










मेरे दादा दादी बहुत अमीर आदमी थे. वह दोनों अकेले गांव में रहते थे. बाकी हम लोग शहर में रहते थे. एक दिन मैं शहर से गांव घूमने गया. मैं दादा दादी के पास ठहरा.


मैंने उनके खेतों की चकबंदी करवाई. बाढ बंदी, तारबंदी करवाई. उनके घर गृहस्थी के काम में हाथ बंटाया. उनके मकान की रिपेयरिंग करवाई. डेंट पेंट ठीक करवाए. अब मैंने एक उजड़े हुए घोसले को सुंदर सा घोंसला बना दिया.








एक बार में ट्रेन मै़ जा रहा था तो वहां दो तीन लड़कियां मेरी दोस्त बन गई. उन्होंने मुझे जीवन का हर किस्म का सुख दिया. अभी भी उनके फोन आते हैं. एक लड़की तो मेरे घर में किराएदार बनकर ही बस गई है. आपकी क्या राय है? क्या यह सच्ची दोस्ती है?