रोहन अपने यान में बैठकर अंतरिक्ष में यात्रा कर रहा है। यह सन 3001 का समय है। पृथ्वी के सभी देश एक देश बन चुके हैं। सभी धर्मों की एकता स्थापित हो चुकी है। सभी के लिए समान कानून हैं। कोई अगड़ा नहीं कोई पिछड़ा नहीं। कोई आरक्षण नहीं कोई झगड़ा नहीं। कोई जनसंख्या विस्फोट नहीं कोई समस्या नहीं। पृथ्वी स्वर्ग बन चुका है। बुद्धिमान मानव की औसत आयु 500 वर्ष हो चुकी है। मानव लगभग अजर-अमर हो चुका है।
अचानक रोहन के यान में कुछ खराबी आ जाती है। रोहन को मजबूरी में निकट के सौर मंडल के एक ग्रह पर अपना यान उतारना पड़ता है। यह ग्रह पूरी तरह पानी से निर्मित है। रोहन को कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि इस समय तक मानव जल थल नभ में रहने के लिए ढल चुका है।
रोहन यान से बाहर निकलता है।
रोहन-अरे मैं यह कहां उतर गया। यह तो पानी से बना कोई ग्रह लगता है। रोहन पानी पर चलता है। फिर वह पानी में डुबकी लगाता है। अरे पानी के नीचे यह बड़ा सा कांच का गोला क्या है।
रोहन कांच के गोले की तरफ आगे बढ़ता है। नजदीक जाने पर कांच का गोला विशाल दिखने लग जाता है। यह एक अति विशाल कांच का गोला है। अचानक गोले का द्वार खुलता है और घोड़े पर सवार 40 व्यक्ति रोहन को घेर लेते हैं। यह घोड़े और व्यक्ति पानी में भी आराम से चल रहे थे। यह सभी व्यक्ति मेंढक जैसे थे। आगे एक सफेद घोड़े पर बैठा वलिष्ठ व्यक्ति (सेनापति) कहता है। युवक तुम कौन हो।क्या तुम कराला के जासूस हो।
रोहन -कराला। कौन कराला।
सेनापति- हीरक ग्रह की रानी कराला
रोहन-नहीं महोदय
सेनापति-हम जल ग्रह के वासी हैं। तुम कहां के वाशिंदे हो।
रोहन-पृथ्वी के पृथ्वी का
सेनापति- ब्रह्मांड के स्वर्ग पृथ्वी के। तुम्हारा स्वागत है।
फिर वह रोहन को भी साथ ले चलने का इशारा करता है। एक सैनिक रोहन को अपने घोड़े पर अपने साथ बिठा लेता है और वह द्वार की तरफ चल पड़ते हैं। गोले के अंदर जाते ही रोहन को एक विशाल नगर दिखाई पड़ता है।
सभी घुड़सवार रोहन को जल ग्रह के राजा के पास ले चलते हैं।
जल ग्रह का राजा (फरोगा)-आओ अजनबी। पृथ्वी के लोग हमें एलियंस के नाम से पुकारते हैं। जल ग्रह के सभी वाशिंदे 6 फीट लंबे व हटे कटे हैं।
रमेश एक गरीब चित्रकार था। उसका घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था। एक बार रमेश ने एक बहुत अद्भुत पेंटिंग बनाई। वह पेंटिंग एक बहुत अमीर आदमी को पसंद आ गई। उसने उसे खरीद लिया। कुछ ही दिनों में उस पेंटिंग के चर्चे अखबारों में छा गए। अब रमेश की पेंटिंग धुआंधार बिकने लगी। कुछ ही दिनों में वह बहुत अमीर हो गया। रमेश ने प्राप्त धन से गरीब चित्रकारों की मदद की। रमेश के कारण चित्रकारों के दिन बदल गए।
रामू एक छोटा बच्चा था। उसकी उम्र लगभग 12 साल थी। एक दिन वह जंगल से होकर जा रहा था। इस जंगल से होकर वह घर से स्कूल जा रहा था। अचानक उसे झाड़ियों के बीच कुछ हलचल सुनाई दी। उसने वहां जाकर देखा तो उसने पाया कि एक बड़ा सा नाग एक खरगोश को निगल रहा है। रामू ने पत्थर से मारकर नाग को भगा दिया। खरगोश लगभग बेहोश हो चुका था। पत्तों से पोंछ कर उसने खरगोश को साफ किया और पानी की बोतल से पानी निकालकर खरगोश को नहला दिया। थोड़ी देर बाद आराम करने के बाद खरगोश को होश आ गया। रामू खरगोश को अपने घर ले आया। 1 दिन रामू रात को सो रहा था। अचानक कुछ खटपट सुनकर उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि कोई बहुत सुंदर लड़की उसके घर को सजा रही है। उस लड़की के खरगोश की तरह बड़े बड़े कान थे। रामू नींद का नाटक करता है। तभी उसने देखा कि वह लड़की एक खरगोश में बदल गई। रामू समझ गया कि उसका पाला हुआ खरगोश की एक लड़की है।
वृद्धाश्रम आज समय की जरूरत है। हालांकि भारतीय सभ्यता में वृद्ध आश्रम अजीब सी चीज दिखाई देती है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज विश्व संस्कृति का समय है। सभी संस्कृतियों की अच्छी-अच्छी बातें मिलकर एक नई संस्कृति का निर्माण कर चुकी है। उस नई संस्कृति का नाम है विश्व संस्कृति। वृद्धाश्रम आज की एक सामाजिक जरूरत है।
रंजन एक बहुत गरीब व्यक्ति था। उसने बहुत सा कर्जा लेकर अपने इकलौते बेटे पीयूष को डॉक्टर बनाया था। पीयूष ने अपनी मर्जी से एक लड़की से शादी कर ली। शादी के बाद लड़की कुछ दिन तक तो ठीक रही। उसके बाद उसे पीयूष का पिता बुरा लगने लगा। अब वह अपने पति को लेकर अलग हो गई। पिता बेचारा ध्याड़ी मजदूरी कर अपने लिए हुए कर्जे को चुका रहा था । वह कर्जा जो उसने अपने डॉक्टर बेटे की पढ़ाई के लिए लिया था। फिर भी उसके मन में अपने बेटे के प्रति कोई गिला शिकवा नहीं है। उसकी नजरें आज भी इंतजार करती हैं यह कब उसका बेटा उसके पास फिर से आएगा। काश रंजन भाई की व्यथा उसका मूर्ख पुत्र जोकि बहुत पढ़ा लिखा है और अपने आप को बहुत विद्वान समझता है समझ सके। आपकी इस विषय में क्या राय है।