ये उन दिनों की बात है - 38 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 38

सागर उस बस्ती में गया जहाँ वो बच्ची रहती थी वहां की हालत देखकर उसका मन व्याकुल हो उठा
जब वो उस बच्ची के घर गया तो घर क्या था सिर्फ एक छोटा सा कमरा था जहाँ बहुत ही कम सामान था देखा एक खाट पर उस बच्ची की माँ अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही थी एक कोने में स्टोव रखा था एक दूसरे कोने में पीने के पानी की मटकी रखी थी घर में अनाज के दाने का नामोनिशान तक नही था कुछ बर्तन थे जो इधर उधर बिखरे पड़े थे पूरा कमरा एक अजीब सी गंध से दहक रहा था
बच्ची की माँ ने अधखुली आँखों से सागर को देखा और एक बीमार सी मुस्कान दी जवाब में सागर भी हल्का सा मुस्कुराया
और फिर वे आँखें यूँ ही ठहर सी गयी
उस बच्ची की माँ इस दुनिया से अलविदा ले चुकी थी
कुछ पल के लिए सागर को उस बच्ची में खुद का अक्स और उसकी माँ में अपनी माँ नजर आई
माँ देखो भैया ने मुझे क्या क्या दिलाया है
वो बच्ची अपनी तमाम चीजें अपनी मरी हुई माँ को दिखा रही थी
माँ देखो ना
तुम उठती क्यों नहीं
देखो ना भैया ने कितनी सारी चीजे दिलाई है मुझे
ये देखकर सागर से रहा नही गया जोरों से रो पड़ा उसने बहुत कोशिश की खुद को रोकने की पर सब्र का बांध जैसे टूट ही गया उस पल में उसे ऐसा लगा जैसे उसकी अपनी माँ उसे छोड़कर चली गयी हो
सागर रो रहा था उस कमरे की हर एक चीज रो रही थी पूरा कमरा ही ग़मगीन था सिवाय उस बच्ची के जो अब तक ये समझ पाने में असमर्थ थी की अब वो इस दुनिया में बिलकुल अकेली हो गयी है

सागर भागकर उस बच्ची से लिपट गया
नही तुम अकेली नहीं हो बेटा मैं हूँ तुम्हारे साथ
उसने उस बच्ची को गोद में उठा लिया और उसपर चुंबनों की बौछार कर दी
सागर उसे अपने साथ अपने घर ले गया
सागर के दादा दादी के मन में सवाल उठ रहे थे की की ये बच्ची कौन है
लेकिन उन दोनों ने उस वक़्त कुछ कहा नहीं सागर को देखकर उन्हें लग गया था की ये काफी रोया है
पिंकी अबसे तुम इसे अपना ही घर समझो
पिंकी नाम सागर ने ही उसे दिया था
कौन है ये बच्ची सागर और तुम्हे कहाँ मिली, दादी सागर के कमरे में आई
दादी, पिंकी के साथ बहुत ही बुरा हुआ इसकी माँ इसे छोड़कर चली गई जिस तरह मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई थी
हम्म्म्म
पर
दादी अभी में कुछ भी बताने की सिचुएशन में नहीं
कैन बी प्लीज टॉक लेटर, सागर पिंकी को सुला रहा था
कोई बात नहीं बेटा तुम्हारा जब मन करे तब तुम बता देना